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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( २०८ ) www.kobatirth.org अष्टांगहृदये । घंटीयंत्र | तद्वद् घटी हिता गुल्मविलयोनमने च सा अर्थ- यह घटी यंत्र गुल्म के घटाने बढाने में काम आता है । अलावु यंत्र के सदृश ही इस में भी जलती हुई बत्ती रक्खी जातीं है । शलाका यंत्र | शलाकाख्यानि यंत्राणि नानाकर्माकृतीनि च यथायोगप्रमाणानि तेषामेषणकर्मणी । उभे गंडूपदमुखेस्नोतोभ्यः शल्यहारिणी ॥ २९ ॥ मसूरदलवक्त्रे द्वे स्यातामष्टनवांगुले । अर्थ --शलाका यंत्र अनेक प्रकार के होते हैं, इनकी आकृति भी कार्य के अनुसार भिन्न २ प्रकार की होती है । इन में से गिडोये के तुल्य मुखवाली दो प्रकार की लाई नाडी व्रण के अन्वेषण में काम आती है । और दो प्रकार की शलाका आठ और नौ अंगुल लंबी मसूर के दल के समान मुखवाली होती है ये स्रोतो मार्ग में प्रविष्ट शल्यों के निकालने में काम आती हैं । इन संकुयंत्र | शङ्कवः षट् तेषां षोडशद्वादशांगुलौ ॥ ३० ॥ व्यूहनेऽहिफणावत्रौ द्वौ दशद्वादशांगुली। चालने शरपुंखास्य आहार्ये बडिशाकृती ॥ ३१ ॥ अर्थ--शंकुयंत्र छः प्रकार के होते है । में से दो सर्प के फण के आकार वाले Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० २५ सोलह वा बारह अंगुल लंबे होते है, ये व्यूहन अर्थात् शल्य निकालने के काम में आते हैं । दो शरपुंख (वाज ) के मुखवाले दस और बारह अंगुल लंबे चालन. कार्य के निमित्त व्यवहार में आते हैं शेष दो बडिश की आकृतिवाले आहरणार्थ (शल्य के निकालने में ) काम आते हैं । गर्भशंकु । नतोऽग्रे शंकुना तुल्यो गर्भशकुरिति स्मृतः । अष्टांगुलायतस्तेन मूढगर्भ हरेत् स्त्रियाः ३२ अर्थ - आठ अंगुल लंबे अंकुश के समान | टेढे मुखबाला स्त्रियों के मूढ गर्भ को निकालेने में काम आता है । इसे गर्भशंकु यंत्र कहते हैं ॥ 1 सर्पफण यंत्र । अश्मर्याहरणे सर्पफणावद्वक्रमप्रतः । अर्थ अप्रभाग में सर्प के फण के समान यंत्र से पथरी निकाली जाती है, इसे सर्प फणास्य यंत्र कहते हैं ॥ For Private And Personal Use Only शरपुंयंत्र | शरपुंखमुखं दन्तपातनं चतुरंगुलम् ॥ ३३ ॥ अर्थ - यह वाजपक्षी के सदृश मुखवा -
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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