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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० २५ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (२०९) ला चार अंगुल लंबा होता है, इससे कीड़ों | न्द्राकार होता है । नासार्श और नासार्बुद के खाये हुए वा हिलते हुए दांत निकाले । को दग्ध करने के लिये बेरकी गुठलीके मुजाते हैं। खवाली सलाई काम आती है । छः मकारकी शलाका । कार्यासबिहितोष्णीषाः शलाकाः षटू प्रमार्जने। पायावासनदूरार्थे वे दशद्वादशांगुले ॥३४॥ द्वेषट्सप्तांगुले घ्राणे द्वे कर्णेऽष्टनवांगुले। कर्णशोधनमश्वत्थपत्रप्रांतं सुवाननम् ३५ ॥ अर्थ-क्षार और क्लेदादि को दूर करने के लिये छः प्रकार की शलाका काम में आतीहैं इनका अग्रभाग कपासकी पगडी के सदृश होता है। पास और दूरके अनुसार गुह्यदेश में दस और वारह अंगुल लंबी क्षारकर्ममें शलाका। दो प्रकार की शलाका काम आती हैं । छः | अष्टांगुला निम्नमुखास्तिस्रः क्षारौषधक्रमे । और सात अंगुललंबी दो शलाका नासिका | कनानीमध्यमानामिनखमानसमैर्मुखैः।३८॥ के लिये तथा आठ और नौअंगुल लंबी दौ | . अर्थ-क्षार औषध लगाने के लिये तीप्रकार की शलाका कान के लिये होती हैं। न प्रकार की सलाई होती है । इनका मुख कानका शोधन करने में मुख स्नबा के स- | नीचे को झुका होता है । ये आठअंगुललंबी दृश होता है। और कनिष्ठका, मध्यमा तथा अनामिका के क्षाराग्नि कर्मोपयोगी शलाका ।। नखके समान परिमाणयुक्त होती है । शलाकाजांबवोष्ठानांक्षारेऽग्नौ चपृथक्त्रयम् | मेदशोधन शलाका। युज्यात् स्थूलाणुदीर्घाणाम् | स्वस्वमुक्तानि यंत्राणि मेदशुद्धधजनादिषु ।। शलाकामंत्रवर्मनि ॥ ३६॥ अर्थ-मेढ़ शोधन और अंजनादि में उमध्याव॑वृत्तंदडां च मूले चाधैंदुसंनिभाम् । पयोगी शलाकाओं का वर्णन अपने अपने प्रकोलास्थिदलतुल्यास्या नासार्शार्बुददाहकृत् । करण में कर दिया गया है। ___अर्थ-शलाका और जांववोष्ट यंत्रोंमें मो टे, पतले और लंबे तीन प्रकार के शलाका उन्नीस प्रकारके अनुयंत्र । और जांवोष्ट यंत्र होते हैं । ये क्षारकर्म औ अनुयंत्राण्ययस्कांतरज्जुवस्त्राश्ममुद्राः ३९ वध्रांत्रजिह्वाबालाश्च शाखानखमुखद्विजाः। र अग्निकर्ममें काम आते हैं । अंत्रवृद्धि में कालापाकः करम्पादोभयं हर्षश्च तक्रिया जो शलाका काम आती है उसका बेटा बी- उपायवित्प्रविभजेदालोच्य निपुणं धिया ४० च से ऊपर तक गोल और तलेमें अईच- अर्थ-अयस्कांत (चुंबक पत्थर ), रज्जु २७ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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