SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . अ० २३ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत। (२०७) कहते है । इस यंत्र के मध्यभागमें छिद्र लिये दो मुखबाली नली का वा मोर की होते हैं, इसकी लंबाई सोलह अंगुल होती पूंछ का नाल काम में लाया जाता है। है तथा मुद्रिका से बद्ध होता है, इसमें चार | इस का नाम दकोदरै यंत्र है । पत्ते होते हैं इसका आकार कमलके मुकुल के सदृश होता है, इन चारों को मिलादेने से यह नाडी यंत्र के तुल्य होजाताहै । मूल देशमें चतुर्थ शलाका के गाने से यंत्रका अग्रभाग खुल जाता है । धूमादि यंत्र । - षडंगल यंत्र। धूमयस्त्यादियंत्राणि निर्दिष्टानि यथायथम् ॥ यंत्रे नाडीव्रणाभ्यंगक्षालनाय षडंगुले २३॥ अर्थ--धूमयंत्र और वस्ति यंत्रों का वर्णन बस्तियंत्राकृती मूले मुर्खेऽगुष्ठकलायखे।। अपने अपने प्रकरण में है। अग्रतोऽकर्णिके मूले निबद्धमृदुचर्मणी २४॥ - अर्थ-नाडी ब्रण के अभ्यंग और धाने शृंगीयंत्र । के लिये छः अंगुल लंबा तथा वस्तियंत्र के व्यंगुलास्यं भवेच्छंगं चूषणेऽष्टादशांगुलम् । सदृश गोल गौकी पूंछके आकार वाला दो । अग्रे सिद्धार्थकच्छिद्रं सुनद्धं चूकाकृति॥ प्रकार का यंत्र काममें लाया जाता है । इस अर्थ-तीन अंगुल के मुखवाला यह शंगी के मूलभागमें अंगूठे के तुल्य और मुख भाग | यंत्र दूषित वात, विष, रक्त, नल, विगडा में मटर के तुल्य छेद होता है, इस के मूल हुआ दूध आदिके खींचने में काम आता है में कोमल चमडे की पट्टी लगी होती है। इस की लंबाई अठारह अंगुल की होती है वस्त्रि यंत्र में और इस में इतना ही अंतर | इसके अग्रभाग में सरसों के समान छेद है कि वस्ति के अग्रभाग में कर्णिका होती होता है । इसका अग्रभाग स्त्री के स्तनों के है । इस में नहीं होती। अग्रभाग के सदृश होता है। . तुंबीयंत्र । स्याद्वादशांगुलोऽलाबु हे त्वष्टादशांगुलः। चतुरुभ्यंगुलवृत्तास्योदीप्तोऽतःश्लेष्मरक्तहत् अर्थ-तुंवी यंत्र १२ अंगुल मोटा होता है, इसका मुख गोलाकार तीन वा चार उदकोदर में नलिका यंत्र। अंगुल चौडा होता है । इस के बीच में द्विद्वारा नालिका पिच्छनलिका वोदकोदरे। जलती हुई बत्ती रखकर रोग की जगह लगा .. अर्थ--दकोदर में से जल निकालने के | देने से दूषित श्लेष्मा और रक्त खिंच आता है For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy