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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टागहृदये। अ.२५ अर्थ-अर्शीयंत्र ( बवासीर का यंत्र ) । नासायंत्र । गौ के स्तनों के सदृश चार अंगुल लंबा घ्राणार्बुदार्शसामेकच्छिद्रा नाडपंगुलदया। और पांच अंगुल गोलाई में होता है, स्त्रियों प्रदोशनीपरीणाहा स्याद्भगंदरयंत्रवत् २०॥ के लिये इसी यंत्र की गोलाई छ; अंगुलकी | अर्थ-नासिका के अर्बुद और अर्शकी होती है क्योंकि उनकी गुदा स्वाभाविक ही चिकित्सा के निमित्त नासायंत्र उपयोग में बडी होती है । व्याधिके देखने के लिये आताहैं । इसमें एक छिद्र होता है | छिद्र दोनों ओर दो किदवाला यंत्र होता है तथा | की लंबाई दो अंगुल और परिधि तर्जनी उंशस्त्र और क्षारादि प्रयोग के निमित्त एक गली के समान होती है । नासायंत्र भग. छिद्रवाला यंत्र होता है । इस यंत्रके बीच दर यंत्रके तुल्य होता है। में तीन अंगुल का और परिधि अंगूठे के | अंगुलित्राणक यंत्र । समान होती है । इस यंत्रके ऊपर आधे | अंगुलित्राणकं दांतं वाः वाचतुरंगुलम् । अंगल उंची एक कर्णिका होती है. जिससे | द्विाच्छन्द्र गोस्तनाकारं तद्वक्त्रविवृतीसुखम् यंत्र बहुत गहराई में नहीं जा सकता है । ___ अर्थ-अंगुलित्राणक यंत्र हाथीदांत वा काष्ठ का बनाया जाता है, इसका प्रमाण .... अर्शके. पीडनके निमित्त एक और प्रकार का यंत्र होता है उसे शमी कहते हैं चार अंगुल होता है । यह अर्शयंत्र के सह श गौके स्तनके आकार वाला दो छिद्रों से यह भी ऐसा ही होता है, इसमें छिद्र नहीं युक्त होताहै, इससे मुख सहजमें खुल जाता होते हैं। भगंदर यंत्र। है । इस यंत्रसे अंगुलियों की रक्षा दांतों से सर्वथाऽपनयेदाष्ठं छिद्रादूर्ध्व भगंदरे ॥१९॥ हाजाता है । इसा से इसका नाम अगुल अर्य-भगंदर यंत्रभी अर्शीयंत्रके सदृश त्राणक है। - होता है । इसकी कार्णका छिद्रसे ऊपर दूर करदी जातीहै कोई कोई कहते हैं कि कणिकाहीन अशेयंत्रको ही भगंदर यंत्र कहते हैं। अशीयंत्र । पोनिव्रणेक्षण पंत्र। योनिव्रणेक्षणं मध्ये सुषिरं षोडशांगुलम् । मुद्राबद्धं चतुर्भित्तमभोजमुकुलाननम् २२॥ शयिंत्र । चतुःशलाकमाक्रांत मूले तद्विकसन्मुखे । ___ अर्थ-यह यंत्र योनिके व्रणों के देखनेमें काम आता है, इस से इसे योनिव्रणेक्षण यं. For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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