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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
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सप्तमोऽध्यायः। चिकना होजाता है, इसमें से मांद नहीं निअथातोऽनरक्षाध्याय व्याख्यास्यामः। कल सकता है। रांधने में बहुत देर लगती
अर्थ-शरीर धारण के लिये अन्नपान की है और रंध चुकने पर रात के रक्खे हुए आवश्यक्ता है, उसके स्वरूप का वर्णन छटे वासी के समान प्रतीत होता है । विषदूषि. अध्याय में कर चुकेहैं परन्तु अन्न विषोपहत | त भात से मोर के कंठ के समान अनेक होने से अनेक प्रकार के रोग बा मृत्यु का प्रकार की भाफ उठती है और खानेवाले को कारण होजाता है इस लिये इस अन्नरक्षा- मोह मूर्छा, और लालास्राव होता है । विष ध्याय में अन्नकी रक्षा के उपायों का वर्णन | दृषित भात का रंग गंध, रस, स्पर्श सब किया जायगा ।
। हीन मालूम होते हैं, यह क्लिन्न होता है वैद्य का स्थान । | और इस में मोर पंख की चन्द्रिका के समा" राजाराजगृहासन्ने प्राणाचार्य निवेशयेत्। न अनेक रंग के छींटे २ छींटे से दिखाई सर्वदा स भवत्येवं सर्वत्र प्रतिजागृविः ।। अर्थराजा को उचित है कि वैद्यको राज
देते हैं । महल के पास ही बसावै, ऐसा करनेसे वैद्य
विषदूषित शाक। हर समय खाने पीने सोने बैठनेकी वस्तुओं
| व्यंजनान्याशुशुप्यति ध्यामक्वाथाति तत्र च।
हीनातिरिक्ता विकृता छाया दृश्येत नैववा।। पर ध्यान रखसकेगा।
फेनोलराजीसीमंततंतुबुद्बुदसंभवः।। बिष से अन्न पानकी रक्षा। पिच्छिन्नविरसारागाःखांडव-शाकमामिषम् अन्नपान विषाद्रक्षेद्विशेषेण महीपतेः। अर्थ-विषषित व्यंजन शीघ्रही सूख जायोगक्षेमौ तदायत्तौ धर्माद्या यन्निबंधनाः ।।
ता है और इसके उवाले हुए पानी का रंग अर्थ-राना के खाने पीने के पदाथों को
मैला होता है । इस काथ में छोटी, बड़ी, विशेष रूपसे विषसेरक्षा करनी चाहिये क्योंकि
विकृत आकार की छायां दिखाई देता है मनुष्य का योग ( अलब्ध धनादिकी प्राप्ति)
| और कभी दिखाई नहीं देती । व्यंजनादि में और क्षेम (कुशलता ) का आधार राजा
फेन, खीरेखा, फटी फटी रेखा, तंतु,आदि है। और अर्थ धर्म काम मोक्ष चतुवर्ग का
| दिखाई देते हैं । कहीं कहीं राग, खांडव, अधार योग क्षेम है।
शाक और मांसादि लाल रंग के और वेस्वाविषदूषित भात के लक्षण ।
द होजाते हैं । मोदनो विषवान् सांद्रोयात्यविसाव्यतामिब। चिरेण पच्यते पक्को भवेत्पर्युषितोपमः ॥३॥ विषदूषित अन्य पदाथा का मयूरकंठतुल्योष्मा मोहमू प्रसेककृत् ।
परीक्षा । हीयते वर्णगंधाद्यैः क्लिद्यते चंद्रकांचितः।४। नीला राजी रसे ताम्रा क्षीरे दधनि दृश्यते।
अर्थ-विषदूषित भात. रावडी की तरह श्यावापीताऽसितां तक्रे घृते पानीयसन्निभा
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