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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत
(१५३)
पसीना ले इसका नाम संस्तरस्वेद है।
अवगाहनस्वेद । अथवा भाफ लेनेके पदार्थों को एक घडे तैरेव वा द्रवैः पूर्णकुंडं सर्वांगगेऽनिले । में भरदे और उसका मुख ढककर अच्छी
अवगाह्याऽऽतुरस्तिष्ठेदर्शः कृच्छ्रादिरुक्षुच॥ तरह गरम. करले । और रोगी को ऐसे
। अर्थ-ऊपर कहे हुए द्रव्यों को एक स्थान में बैठा कर जहां हवा न लगती हो
कुंड में अथवा एक वडे पात्रमें भरकर कंवल आदि वस्त्र उढाकर सव शरीर ढकदे
रोगी को उसमें बैठादे । यह रोगी ऐसा
| हो जिसके सब अंग में वात की पीडा पीछे इस पात्रका मुख धीरे धीरे खोलकर
| होती हो अथवा अर्श और मूत्रकृच्छादि उससे उठी हुई भाफ से भपारा दे
रोगों में इस तरह किया जाता है । वर्तन इसका नाम कुंभस्वेद है । इसतरह अनेक
कोई हो पर इतना वडा होना चाहिये युक्तियों से उष्मास्वेद दिया जाता है ।।
जिसमें रोगी कंठ तक बैठ जाय । खाट के द्रवस्वेद । शिवारणकरंडकारजसुरसार्जकात् ।७ ॥ नीचे एक गढा खोदकर उसमें वातनाशक शिरीषवासावंशामालतीदर्षिततः। लकडी उपले भरकर आग लगाकर निर्धूम पत्रभंगवाद्यैश्चैव मांसश्चाऽनूपवारिजैः८ अंगार कर लिये जाय, फिर रोगी को उस दशमूलेन च पृथक् सहितैर्वा यथामलम् ।। स्नेहवद्भिःसुराशुक्तवारिक्षीरादिसाधितैः॥
खाट पर शयन कराई जाय, इसका नाम कुंभीर्गलतीर्नाडी पूरयित्वा रुजार्दितम् ।। कूपस्वेद है, इसी तरह कुटीस्वेदादि के वाससाऽऽच्छादितं गात्रंस्निग्धंसिंचेद्यथा- लक्षण अन्य ग्रन्थों से जानने चाहिये । सुखम् ॥ १० ॥
स्वेदविधि। __अर्थ-सहजना, वीरण, अरंड, कंजा, निवाऽतर्वहिःस्निग्धोजीर्णान्नःस्वेदमाचरेत् तुलसी, अर्जक, सिरस, अडूसा, बांस,आक, ध्याधिव्याधितदेशर्तुशान्मध्यवरावरम् ॥ मालती, दीर्घवृत इनके पत्तों का समुदाय, अर्थ-स्नेहपान और स्नेहाभ्यंगद्वारा भीवचादिगण में कहे हुए द्रव्य, आनूप और / तर और बाहर स्निग्ध होकर, पहिले आहाजलचरों का मांस, और, दशमूल इनमें से | र के पचने पर रोग,रोगी, देश और ऋतु कोई एक, दो, तीन वा सबको दोषके के अनुसार वायुरहित स्थान में हीन,मध्यम अनुसार घृतादि स्नेह मिलाकर तथा मद्य, | वा उत्कृष्ट स्वेद देवै । आमाजीर्णवाले रोगी शुक्त, जल, वा दूध द्वारा पकाकर थाली, 7 को अथवा जिसको जिसका पहिला भोजन सबेला, घडा, अथवा वांस की नली में | न पचा हो ऐसे रोगी को पसीने कदापि रोगी के अंग के जिस भाग में: पीडा होती न देवै । हो सुहाता हुआ गरम गरम से सेचन करे।। कफरोगमें स्वेदविधि । सेचन से पहिले उस पीडित अंग को घृत कफातॊ रूक्षणं रूक्षोरुक्षस्निग्धं कफामिले। से चुपडले बा उस पर वस्त्र ढकदे । । अर्थ-कफ से पीडित रोगी रूक्ष होकर
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