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अष्टांगहृदये।
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होता है इन्हें स्वस्तिक * यंत्र कहते हैं। | इसको चिमटी कहना बहुत संभवमालूम होइनके द्वारा अस्थिमें लगे हुए शल्य निकाले | ता है और यही मुक्तान है, यह छोटे छोटे जाते हैं ।
शल्य और नाकके बाल, और आंखके पलकों संदंश यंत्र ।
के परवाल खींचने क काम में आता है । कीलबद्धविमुक्तांग्रौ सदशौ षोडशांगुलौ७॥ मुचुंडीयंत्र तालयंत्र । त्वशिरास्नायुपिशितलग्नशल्यापकणी । मचडीसूक्ष्मदंतर्जुमलेरुचकभूषणा। षडंगुलोऽन्योहरणेसुक्ष्मशल्योपपक्ष्मणाम्॥
" गंभीरब्रममांसानामर्मणः शेषितस्य च ९ ॥ अर्थ-संदंश यंत्र सोलह अगुल लंबे दे द्वादशांगुले मत्स्यतालवद् द्वथेकतालके। होते हैं, ये दो प्रकार के होते हैं एक तो तालयंत्रे स्मृते कर्णनाडीशल्यापहारिणी ॥ ऐसे होते हैं जिनके अग्रभाग में कील लगी । अर्थ-मुचुंडी नाम एक प्रकार का यंत्र होती है. दूसरी तरह के मुक्तान अर्थात् | होता है, इस में छोटे छोटे दांत होते हैं। खुलेहुए मुखबाले होते हैं । इस संदंश शब्द | सीधा होता है और पकड़ने की जगह पर का अपभ्रंश संडासी मालूम होता है । संदेश भंगुलीयक रूप होता है । यह गहरे घावों यंत्रों द्वारा त्वचा, शिरा, स्नायु, और मांस में मांस तथा बचेहुए अर्मको निकालने में में घुसा हुआ शल्य निकाला जाता है । काम आता है। दूसरी प्रकारका संदश छःअंगुल लंबा होताहै | तालयंत्र दो प्रकार का होता है, एक
द्वितालक, जिस के दोनों ओर मछली के ताल के सदृश और एकतालक इसके एक
ओर मछलीके तालके आकार का होता है। इसकी लंबाई बारह अंगुल की होती है । यह यंत्र कान, नाक और नाडीव्रण से शल्यों के निकालने में काम आता है ।
+ देशी जराहों को सथिया भी कहते हैं, मालूम होता है कि स्वस्तिक नामक यंत्रों की विद्या में कुशछ होने से इनका नाम स्वस्तिक वेत्ता अर्थात् सथिया पड़ गया है ये अपने लिये कायस्थ कहते हैं।
नाडीयंत्र । इनके मथुरा में बहुत घर हैं और प्रायः | नाडीयंत्राणि शुषिराण्येकानेकमुखानि च। जर्राही करते हैं।
स्रोतोगतानां शल्यानामामयानांच दर्शने ॥
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