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अष्टांगहृदये ।
( ५२ )
तक्र
रास्ना, अरंडकी जड, जटामांसी और मांस, इनको शिला पर पीसकर अधिक नमक मिलाकर तथा घृतादि स्नेह, चूका, वा दूध डालकर गरम करले, फिर इसके द्वारा पसीने दे । कफयुक्तवायुमें पहिले कहे हुए सुरसादि गणोक्त द्रव्यों द्वारा स्वेदन करे किंचित् पित्तयुक्त वायुमें पद्मकादि गण में कहे हुए द्रयों द्वारा बार बार स्वेदन कैर ( समान वा अधिक पित्तयुक्त होने पर यह विधि नहीं कही गई हैं ), इन दोनों प्रकार के वेदों में भी नमक और घृतादि मिलालेने चाहियें । ऐसे स्वेद का नाम उपनाह है । अन्य ग्रन्थ में इमको साल्वणस्वेद भी कहते हैं । प्रचलित भाषा में इसे पुलटिस कहते हैं । चमड़े की पट्टी आदि से बांधा जाता है इसलिये इसे उपनाह कहते हैं । भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं " काकोल्यादि स वातघ्नः सर्वाम्लद्रव्यसंयुतः । सानुपाद कमांसस्तु सर्वस्नेहसमन्वितः । सुखोष्णः स्पष्ट लवण: साल्वणः परिकीर्तितः ।
स्वेदोपायभूत चमपट्टादि । निग्घोष्णवीर्यैर्मृदुभिश्चर्मप हैरपूतिभिः ||४| • अलाभे वातजिपत्रकौशेयाऽधिकशाटकैः । रात्रौबद्धंदिवामुंचेन्मुंचेद्रात्रौ दिवाकृतम् ५
अर्थ- किसी अंग में ऊपर कहे हुए लेप लगाकर मृदु, स्निग्ध, उष्णवीर्य और दुर्गन्धरहित चर्म तथा चर्म के न मिलने पर वातनाशक अरंडके पत्ते वा रेशमी वस्त्र, अथवा कंवल या साडी बांधे रखने का नाम उपनाह स्वंद है । रात में बांधी हुई पट्टी
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अ० १६
को दिनमें खोले और दिन में बांधी हुई पट्टी को रात में खोले ।
ऊष्मारव्य स्वेद |
ऊष्मा तूत्कारिकालोष्ठ कपालो पलपांसुभिः । पत्रभंगेन धान्येन करीषसिकतातुषैः ॥ ६ ॥ अनेकोपायसंतप्तैः प्रयोज्यो देशकालतः ।
अर्थ-भाफ लगाकर पसीने निकालने का नाम ऊष्मास्त्रेद है । उत्कारिका, मिट्टी 1 का डेला, खीपडा, पत्थर, धूल, पत्तों का समूह, धान्य, गोवरकाचूर्ण, बालू और भुस आदि अनेक उपायों से इनको गरम करके देश, काल, दोष, दृष्य आदि पर विचार करके पसीने निकालने के लिये प्रयोग करै ।
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जी, उरद, अरंड के बीज, असी, कसूम के बीज आदि को पत्थर पर पीसकर पानी के साथ घोटकर लपसी के समान करके जो पसीने निकालने में काममें लाई जाती है उसे उत्कारिका (लाडी ) कहते हैं । मिट्टी के डेले आदि ऊपर कहे हुए पदार्थों को लाल गरम कर करके पानी में अथवा धान्याम्ल में अथवा शुक्तमें डाल डाल कर उनकी भाऊ लेवे | यह भाफ खाटमें सोकर ली जाती है । गोवर आदि का गोला सा बनाकर गरम करके स्वेद देने का नाम पिंडस्वेद है | अथवा अरंडके पत्ते यवादि धान्य खटाई युक्त लेकर इनको गरम करके खाट अथवा पृथ्वी पर कंबल, ऊनका वस्त्र, रेशमविस्त्र, वातनाशक पत्ते वा मृगचर्म आदि बिछाकर उसके ऊपर उक्त गरम कियेहुए द्रव्य बिछावे और उस पर लेटकर कोई गरम कपडा ओढले और
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