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अष्टांगहृदये ।
(१४४)
पित्तघ्न, मज्जा, पित्तघ्नतर, घृतपित्तघ्नतम । इसी तरह यथोत्तर कहने से मज्जा, वातकफनाशक, वसा अधिकतर वातकफनाशक, और तेल अधिकतम वातकफनाशक है । कोई कोई इसकी व्याख्या इसतरह करते हैं कि 'पित्तसे इतर' कहनेपर वात और कफ दोनों का ग्रहण है तथापि कफ में स्नेहका निषेध होने के कारण उक्त मज्जादिकमें केवल वातघ्न गुण है अथवा यदि इतर शब्दसे श्लेष्मा का भी ग्रहण हैं, ऐसा होनेपर शुद्ध मज्जादि श्लेष्मघ्न न होकर अन्य द्रव्योंसे संस्कार किये जाने पर मज्जादि श्लेष्मनाशक होसकते हैं ।
घृतकी अपेक्षा तैलादि को गुरुत्व | घृतात्तैलं गुरु वसा तैलान्मज्जा ततोऽपि च अर्थ घृत की अपेक्षा तेल, तेलकी अपेक्षा बसा, और वसाकी अपेक्षा मज्जा भारी होती है ।
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यमकस्नेहादि का निरूपण । द्वाभ्यां त्रिभिश्चतुर्भिस्तैर्थमकस्त्रिवृतो महान् अर्थ- दो दो स्नेह मिलने
यमक
संज्ञा होती हैं, जैसे घृतवसा, घृततैल, घत मज्जा | तीन स्नेह द्वारा त्रिवृत संज्ञा होती हैं जैसे घृततैल वसा । चार स्नेहों के द्वारा महास्नेह संज्ञा होती हैं, जैसे घृततैलय सामज्जा
स्नेहन योग्योंका निरूपण । स्वेद्य संशोध्य मद्यस्त्रीध्यायामासक्तचितकाः बृद्धबालाऽबलाङ्कुशा रूक्षाः क्षीणास्ररेतसः । बातार्तस्यदतिमिरदारुणप्रतिबोधिनः ॥ ५ ॥
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स्नेहन के अयोग्य व्यक्ति । नवतिमंदानितीक्ष्णाग्निस्थूलदुर्बलाः ऊरुस्तंभाऽतिसाराऽमगलरोगगरोदरैः |६| मूर्च्छाच्छ विश्लेष्मतृष्णामद्यैश्च पीडिताः अपप्रसूता युक्ते च नस्ये वस्तौ विरेचने ॥७
अर्थ- जो मनुष्य मन्दाग्नि वा तीक्ष्णाग्निसे पीडित हैं, जो अतिस्थूल वा अति दुर्बल है, जो ऊरुस्तंभ, अतिसार, आमरोग, कंठरोग, विषरोग, उदररोग, मूर्छा, वमन, अरुचि, कफ, तृषा, और मद्यरोग से पीडित हैं जिसका गर्भ गिर गया है, ये सब स्नेहन क्रिया के योग्य नहीं हैं । नस्य, वस्ति और विरेचन क्रिया करने के पीछे भी स्नेहनकर्म उचित नहीं है ।
चारों स्नेहका हितकारित्व | तत्र स्मृतिमेधाऽनिकांक्षिणांशस्यते घृतम्। ग्रंथिनाडीकृमिश्लेष्ममेदोमारुतरोगिषु ॥ ८ ॥ तैलं लाघवदाढ्यार्थिक्रूरकोष्ठेषु देहिषु । वाताऽतपाऽध्वभारस्त्रीव्यायामक्षीणधातुषु रूक्षक्लेशक्षमाऽत्यग्निवातावृतपथेषु च । शेषोवसा तु संध्यस्थिमर्मकोष्ठरुजासु च १०
स्नेह्याः
अर्थ- नीचे लिखे मनुष्य स्नेहनकर्मके । तथा दुग्धाऽहत भ्रष्टयोनिकर्गशिरोरुजि ।
अ० १६
योग्य होते हैं, जैसे जिस मनुष्य का स्वेदन करना है, वा जिसको वमनविरेचनादि द्वारा शुद्ध करना है वह पहिले स्नेहन के योग्य है । जो मद्यपान, स्त्रीसंग वा व्यायाम में आसक्त है जो चिन्ताग्रस्त है, अथवा वृद्ध, बालक, दुर्बल, कृश, रूक्ष, अल्परक्त, और क्षीण वीर्य हैं, जो वातपीडित हैं, जो अभिष्यन्द अथवा तिमिरनामक नेत्ररोग से पीडित है और जो कठिनतासे आंख खोलता है, ये सब रोगी स्नेहन कर्म के योग्य होते हैं ।
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