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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
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कषाय रसके गुण । वर्ग हैं तथा इनसे आदि लेकर और भी कषायः पित्तकफहा गुरुरस्रविशोधनः। ।
जैसे तृण पंचमूल, मेदा, मज्जा, तेल, मीपीडनो रोपणः शीतः क्लेदमेदोविशोषणः२०
ठाअनार, पुष्करवीज, सिंघाड़ा, असगंध, भामसंस्तंभनो ग्राही रूक्षोऽतित्वक्प्रसादनः । करोतिशीलितःसोऽतिविष्टंभाध्मानहृदुजः। श्वदंष्ट्र, मृणाल, कसेरू, खिजूर आदि भी वृद्कार्यपौरुषभ्रंशस्रोतोरोधमलग्रहान् ।, मधुरस्कंध में परिगणनीय हैं। अथे-कषायरस पित्तकफनाशक, भारी |
अम्लबर्ग के द्रव्य रक्तशोधक, पीडक, ( पीडापहुंचाने वाला) अम्लो धात्रीफलाम्लीकामातुलुंगाम्लवेतसम् रोपणकर्ता, शीतल, क्लेद, और मेदका शो- | दाडिमं रजतं तकं चुकं पालेवतं दधि ।। पणकर्ता, आमसंस्तंभक ( आमको बाहर
आम्रमाम्रातकं भव्यं कपित्थं करमर्दकम् ९६ निकलने नहीं देता है ), संग्राही, रूक्ष और
__ अर्थ-आंवला,इमली, विजौरा, अम्लवेत,
अनार चांदी, तक्र, चूका, पालेवत, दही, त्वचाको अत्यन्त सुन्दर करने वाला है, ।
आम, अंबाडा, भव्य, कैथ, करोंदा ये सब इसका अत्यन्त सेवन, करने से विष्टंभ, अ.
अम्ल वर्गके द्रव्य हैं इनके सिवाय, कोशाम्र, करा, हृद्रोग, तृपा, कृशता, पुंस्त्वकानाश,
लकुच, कुवल, झाडीवेर, बडावेर, दही का स्रोतोंका अबरोध, और मलकी रुकावट में
तोड, धान्याम्ल, आदि संग्रहोक्त द्व्य भी रोग उत्पन्न होते हैं।
इसी वर्ग में हैं। मधुरवर्ग के द्रव्यों के नाम
लवण वर्ग के नाम । वृतहेमगुडाक्षोडमचिचोचपरूषकम् । २२ । । वरंसौवर्चलं कृष्णं विडं सामुद्रमौद्भिदम् । अमीरुघोरापनलराजाइनबलायम् ।
रोमकं पांसुजं शीसं क्षारश्च लवणो गणः२७ मेदे चततः पर्शिन्यो जीवंतीजीवकपभो।२३। अर्थ-सेंधानमक, संचलनमक, कालामधूकं मधुकं विवी विदारी श्रावणीयुगम् । क्षीरशुक्ला तुगाक्षीरी क्षोरिण्यौ काश्मरी सहे नमक, विडनमक, सामुद्रनमक, औद्भिदनमक क्षीरेक्षुगोक्षुरक्षौद्राक्षादिमधुरो गणः। काचनमक, खारीनमक, सीसेकानमक, तथा
अर्थ-घृत, गुवर्ण, गुड, अखरोट, केला जबाखारादि ये सब लवण वर्ग के द्रव्य है। तालफल, फालसा, शतमूली, क्षीरकाकोली, तिक्त वर्ग के नाम । पनस, खिरनी, वला, अतिवला, नागबला, तिक्तः पटोली त्रायंती बालकोशीरवंदनम् । मेदा,महामेदा, शालपर्णी, पृष्टपर्णी, मुद्गपर्णी,
भूनिंबनिंबकटुकातगरागुरुवत्सकम् ॥२८॥
नक्तमालद्विरजनीमुस्तमूर्वाटरूपकम् । माषपर्णी, जीवक, ऋपभक, महुआ,मुलहटी
पाठापामार्गकांस्यायोगुडूचीधन्वयासकमरर विवी, विदारीकंद. श्रावणी, महाश्रावणी,क्षी
पंचमूलं महह्याद्यौविशालाऽतिविषा वचा। रशुक्ला, वंशलोचन, क्षारिणी, महाक्षीरिणी, अर्थ-पटोलपत्र, त्रायंती ( त्रायमाणा,) खभारी, महासहा, क्षुद्रसहा, दूध, ईख, वाला, उशीर, चन्दन, भूनिंब, नीम, कुटकी गोखरू, शहत, दाख ये सब मधुर तगर, अगर, इन्द्रौ , कंजा, हलदी, दारु
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