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( १२४ )
अष्टांगहृदये।
अ० १३
रण करना । कपूर चन्दन खस इनका लेप रूक्ष मर्दन कराना, विशेष करके वमन, थोडी थोडी. देरमें करना, प्रदोष काल का यूप, मधु, मेदनाशक औषध, धूमपान, उपसेवन, चन्द्रमा की चांदनी में बैठना, चूने वास, गंडुपविधि, तथा मन, बाणी और की कलई से पुते हुए घरमें रहना, मनह- कर्म में जिससे क्लेश हो वह काम करना । रण गीतों का सुनना, ठंडे पवन का सेवन । ये सब प्रकुपित कफ के उपचार हैं । अनियंत्रणसुख मित्र ( ऐसा मित्र जिसके दोषों के उपचार की विधि। आगे किसी बात के करने की रोक टोक | उपक्रमः पृथग्दोषान् योऽयमुद्दिश्य कीर्तितः न हो ), मधुरी मधुरी तोतली वाणी बोलने
संसर्गसन्निपातेषुतं यथास्वं विकल्पयेत् १२ वाली संतान, पति के अनुकूल इच्छाके अ.
___ अर्थ-वातादिक प्रत्येक दोषों में जो जो
| चिकित्सा कही गई हैं, वेही वही द्वन्द्व और नुसार वर्तनशील और प्राणबल्लुभास्त्री के
सन्निपाति दोनों में भी मिलाकर करनी. साथ हास्य विनोद, शीतल जलके फब्बारे
चाहिये जैसे भारपित्त के संसर्ग में बात जिसमें चलरहे हों ऐसे घरमें रहना, उपरन और बाटिकाओं में रहना, पुष्करिणी के
और पित्त में कही हुई चिकित्सा मिला कर
करें। इसी तरह सन्निपात में भी करें। किनारों पर वृक्षों के तले पुर्णकुटी में रहना
अन्य उपचार। शांत भाव से रहना, घी और दूध पीना
श्रेष्मः प्रायो मरुत्पित्ते वासंतः कफमारते । तथा विशेष करके विरेचन ये सब प्रकुपित मस्तो योगवाहित्वात्कफपित्ते तुं शारदः ।। पित्त के उपचार हैं।
___ अर्थ-वात और पित्त के संसर्ग में ग्रीष्म कफ के उपचार । ऋतुचर्या में कही हुई चिकित्सा करै । जैसे श्लेष्मणो विधिनो युक्तं तीक्ष्णं वनवरेचनम् श्री ऋतुमें मधुर, कटु, अम्ल, व्यायाम, अनरूक्षाऽल्पतीक्ष्णाष्णकतिक्तरूपायकम् । सर्य की किरणें त्याज्य है और मधरादि दीर्घकालस्थित मद्यं रतिप्रीतिप्रजागरः । अनेकरूपो व्यायानश्चिता रूक्षं विमर्दनम् ।
अन्न सेव्य हैं, वैसेही वातपित्त में लवणादि विशेषाद्वमनं यूपः क्षौद्धं मेडोनमौषधम् ।। त्याज्य है और मधुरादि सेव्य हैं । वात धूमोपवासगंडूषानिःसुखत्वं सुखाय च १२॥ कफ के संसर्ग में वसंत ऋतुचर्यामें कहे
अर्थ-प्रकृपित कफमें शास्त्रोक्त विधिक हुए तीक्ष्ण नस्य वमनादि रूप चिकित्सा का अनुसार तीक्ष्ण वमन और तीक्ष्ण विरेचन प्रायः उपयोग करै । कफ पित्त के संसर्ग देवै । रूक्ष, अल्प, तीक्ष्ण, उष्ण, कटु, में शरद ऋतुचर्या में कही हुई चिकित्सा तिक्त, और कषाय भोजन देवै । पुराना करै । ग्रीष्ममें अत्यन्त शीतल सेबन कहा है मद्य पीवै स्त्रीसंभोग का सुख अनुभव करें। और वसंत में तीक्ष्ण वमन और नस्यादि का जागरण करै । मयुद्ध, धनुराकर्षणादि प्रयोग कहा है। किन्तु ये दोनों ही अत्यन्त प्रकार का व्यायाम करना, चिंता करना, वातकारकहैं तव किस तरह वातपित्त और
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