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सूत्रस्थान भाषाकासमेत ।
(७३))
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है।
उद्वेगं याति मार्जारःशकन्मुंवति वानरः।१६। मुख में लगाहुआ बिष । दृष्येन्मयूरस्तदृष्ट्वा मंदतेजो भवद्विषम । लालाजिहवौष्ठयोर्जाड्यमृषाचिमिचिमायनम् इत्यन्नं विषवज्ञात्वा त्यजेदेवं प्रयत्नतः।१७। तहयों रसाशत्वं हनस्तंभश्च वक्रगे। तथा तेन विपद्येरनपि न क्षुद्रजंतवः।
| सेव्यायैस्तत्र गंडूषाः सर्वच विषजिद्धितम्२१ अर्थ-विषदषित अन्न खाकर मक्खियां
अर्थ-जो विष जिह्वा वा मुख के भीतर मर जाती है, कौआ क्षीणस्वर हो जाता है,
लग गया हो तो मुख से लार गिरने लगती तोता मेना जलमुर्ग अन्न को देखते ही
। हैं | जीभ और ओष्ट जड होजाते हैं, मुखमें चीख मारने लगते है । हंस चलने में लड़
दाह और चिमचिमाहट होता है दांत खट्टे खडाता है, जीवंजीव को ग्लानि होती है,
पड़ जातेहैं । जीभ से खट्टे मीठे का स्वाद चकोरं की आंख लाल हो जाती हैं, क्रौच
जाता रहता है । हनुस्तंभ हो जाता है । ऐसे को नशा होता है, कपोत कोयल मुर्ग और
लक्षण उत्पन्न होने पर वेणीमूलादि ऊपर चकवा शीघू मर जाते हैं, बिल्ली को घबडा
कहे हुए द्रव्यों के क्वाथसे कुल्ले करै । तथा हट होती है, बन्दर मलमूत्र त्यागने लगता
अन्य विषनाशक औषधों का सेवन भी हित है, मोर इसे देखकर प्रसन्न होता है और बिष भी मंद होजाता है । इन लक्षणों द्वारा
आमाशयस्थ विष । विषयुक्त अन्न की परीक्षा करके उस का
आमाशयगते स्वेदमूर्छाध्मानमदभ्रमाः। त्याग ऐसी जगह पर करना चाहिये जिससे
रोमहर्षी वमिर्दाहश्चक्षुहृदयरोधनम् ॥२२॥ कोई क्षुद्र जीव भी न मरे ।
बिंदुभिश्वाचयोऽगानां पक्वाशयगते पुनः । विषस्पर्श का फल ।
अनेकवर्ण वमति मूत्रयत्यतिसार्यते ॥२३ ।। स्पृष्टे तुकंइदाहोषाज्वरार्तिस्कोटसुप्तयः।२८ तंद्रा कृशत्वं पांडुत्वमुदरं बलसंक्षयः। मखरीमच्युतिःशोकः सेकाद्या विषनाशनाःतयोवातविरिक्तस्य हरिद्रे कटभी गुडम् ।२४ शस्तास्तत्र प्रलेपाश्च सेव्यचंदनपद्मकैः।१९॥ सिंदुवारितनिष्पाववापिकाशतपर्विकाः। खसोमवल्कतालीसपत्रकुष्ठामृतानतैः। तंडुलीयकमूलानि कुक्कुटांडमवल्गुजम् ।२५ ___ अर्थ-विष का स्पर्श करने से खुजली नावनांजनपानेषु योजयेद्विवशांतये।। सर्वोगदाह, विष लगे हुए अंग में दाह, अर्थ-जो विष आमाशयमें पहुँच गया हो ज्वर, शूल, स्फोट, सुन्न होता है बाल और तो पसीने मूर्छा, पेट पर अफरा, मद, भ्रम, नख गिर पडते है, सूजन होजाती है, इन रेमहर्षणं, वमन, दाह, नेत्ररोध, हृदयरोध, जगहों में सिरस आदि विषनाशक औषधियों तथा छोटी छोटी शरीर पर अनेक प्रकारकी के काथसे सेक आदि करने से विष जाता | बूंद पडजाती है। पेशाव होता है और दस्त रहता है । तथा वेनामूल, रक्तचंदन, पद्माख, भी होजातेहैं । आंखों में तन्द्रा, देहमें कृशपपडियाखार, तालीसपत्र, कूट, गिलोय और ता, शरीर में पीलापन, और उदर रोग पैदा तगर इनका लेप करना उपकारी होता है। होजातेहैं । बल क्षीण होजाता है यहां बिष
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