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भर ८
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(८३)
विशूचिका का लक्षण । उत्पीडित और कफद्वारा आमाशयमें रुका विविधैर्वेदनोद्भदैर्वाय्वादिभृशकोपतः ॥७॥ हुआ अलस भावमें ठहरा हुआ वातादिक सूचीभिरिव गात्राणि विध्यतीति विचिका।
दोषोंसे क्षुभित होकर शल्यकी तरह रुकजाअर्थ-वातादिकों के अत्यन्त प्रकुपित
ताहै और रुककर वमन और अतीसार से होने से अनेक प्रकार की वेदना और सुई
रहित तीव्र शूलादि रोगोंको उत्पन्न करताहै छिदने की सी पीडा होती है उसे विशूचिका
इसीको अलसक रोग कहतहैं । उसी अलकहते हैं।
सकरोगमें यदि संपूर्ण वातादिक दोष अत्यन्त विशूचिका में उपद्रव ।
कुपित और दुष्ट तथा अपक्व भुक्त अन्न तत्र शूलभ्रमाऽनाहकंपस्तंभादयोऽनिलात्।।
द्वारा रुदमार्ग होकर तिरछा मार्ग ग्रहण कर पित्तात्ज्वरातिसारांतर्दाहतृप्रलयादयः । कफाच्छयंगगुरुतावासंगष्ठीवनादयः १९।
के सब देहको दंडकी तरह स्तंभित करदेता ___ अर्थ-विशचिका रोग में वात की अधि. इसीसे इसे दंडालसक कहते हैं, यह शीघ्र कता से शल, भ्रम आनाह, कंपन, स्तंभता,
'प्राणनाशक है इसलिये इसकी चिकित्सा अंगोद्वेष्टन और मुखशोषादि होते हैं । पित्त
नहीं करना चाहिये । की अधिकता से ज्वर, अतीसार, अंतर्दाह,
आम बिषका लक्षण ।
विरुद्धाध्यशनाजीर्णशीलिनो बिषलक्षणम् १३ तुषा, मूर्छा और मदादि परिग्रह होते हैं,
आमदोषं महाधोरंजेयेद्विषसंशकम् । इसी तरह कफ की अधिकता से छर्दि, अंग विषयकारित्वाद्विरुद्धोपक्रम
विषरू .शुकारित्वाद्विरुद्धोपक्रमत्वतः ॥१४॥ में भारापन, मुखरोध, ष्टीवन और छींक अर्थ-विद्भआहार अध्यशन ( पहिला आदि रोग होजाते हैं
भोजन विना पचे और खा लेना ), और अलसक दंडालसक।
अजीर्ण में भोजन करने वाले मनुष्य के विविशेषात् दुर्बलस्याऽल्पवह्नवेगविधारिणः।।
पलक्षण लालास्रावादि युक्तविषसंज्ञक जो पीडितं मारुतेनान्नं श्लेष्मणा रुद्धमंतरा।१०।। अत्यन्त कष्टदायक आमदोष उत्पन्न करताहै अलसं क्षोभित दोषैः शल्यत्वेनैव संसितम्। वह विष के समान शीघ्र प्राणनाशक और शूलादीकुरुते तीब्रांश्छद्यतीसारवर्जितान् ११
चिकित्सा से विरुद्ध होता है इस लिये इस सोऽलसः ___ अत्यर्थदुष्टास्तु दोषा द्रुष्टामबद्धखाः ।
का इलाज न करै । विषमें शीतक्रियारूक्ष यांतस्तियक्तनुं सा दंडवत्स्तंभयंति चेत् १२ । चिकित्सा और आममें उष्ण चिकित्सा की दंडकालसकं नाम तंत्यजेदाशुकारिणम् । जाती है, किन्तु विषलक्षण युक्त आममें दो
अर्थ-अब अलसक और दंडालसक के नौ क्रिया ही विरुद्ध होती हैं इसलिये यह विशेष लक्षण लिखतेहैं । दुर्बल, मंदाग्नि दश्चिकित्स्य होता है ।
और मलमूत्रादिका वेगरोकने वाले मनुष्यका अलसकमें चिकित्सा । ओजन किया हुआ अन्न वायुद्वारा अत्यन्त । अथाऽममलसीभूतं साध्यं त्वरितमुल्लिखेत्। .
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