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(५६)
सूत्रस्थान भाषाकासमेत ।
अ०६
चुलूकीनझमकरशिशुमारतिमिगिलाः ।। | वायु मध्यवल और कफ हीन बल होता है राजीचिलिचिमाद्याश्च ।
उनके लिये उपयोगी होता है । मांसमित्याहुरष्टधा ॥ ५२॥ - अर्थ-रोहित, पाठीन ये दो बडी म |
शशक मांस ।
दीपनः ककः पाके ग्राहीरूक्षोहिमःशशः। छलियां हैं ) कच्छप, कुंभीर, केंकडा, शु
अर्थ.खाँश का मांस अग्निसंदीपन क्ति शंख, उडू, शंबूक, शफरी, वर्मि, च
कटुपाकी मलसंग्राही रूस और शीतवीर्य न्द्रिका, चुळूकी, नक्र, मगर, शिशुमार, ।
होताहै । (सूस ), तिमिंगला, राजी और चिलचिमा | तीतरादि के मांसका गुण । ये सब मछली की जति के कहलाते हैं । ईषदुष्णागुरु स्निग्धा बृहणावर्तकादयः ॥५५ इस तरह शास्त्रकारों ने आठ प्रकार का मांस तित्तिरिस्तष्वपिवरो मेधाग्निवलशुक्रकृतू।
ग्राही वोऽनिलोद्रिक्तसन्निपातहरः परम् कहा है। मिश्रवर्ग ।
अर्थ- बटेर आदि का मांस कुछ गरम, योनिवजावीव्यामिश्रगोवरत्वादनिश्चिते ।।
भारी, स्निग्ध और बलकरक होता है । इन अर्थ-भेडा और बकरा ये दोनों जांगल
सबमें तीतर का मांस सबसे उत्तम होताहै, और आनूप दोनों में पाये जाते है इसलिये
यह मेधा, जाठराग्नि, बल और वीर्यको वढाइनका आवास स्थान अनिश्चित है अतएव
ता है, तथा मलसंग्राही, कान्तीजनक, और ये मिश्र देशीय कहलाते हैं।
| बात प्रधान सन्निपात को दूर करता है। जांगलादिक संज्ञा ।
अन्य पक्षियों के मांस | भाद्यान्त्याजांगलानूपामध्यौसाधारणौस्मृती :
नातिपथ्यशिखीपथ्यः श्रोत्रस्वरवयोदृशाम्
तद्वञ्च कुक्कुटो वृष्यः ग्राम्यस्तुश्लेष्मलोगुरुः अर्थ-कहे हुए आठ प्रकार के जीवोंमें
| मेधाऽनलकरा हृह्याः कराः सोपचक्रकाः पहिले तीन मृग, विष्किर और प्रतुद जांग- गुरुः सलवणः कागकपोतः सर्वदोषकृत् ॥ लदेशीय है पिछले तीन महामृग जलचर और चटकाःश्लेष्मला:स्निग्धावातघ्नाःशुक्रला-परम् मत्स्य ये आनूप देशीय हैं । वीचवाले दो अर्थ- मोर का मांस शरीर के पक्षमें विलेशय और प्रसह साधारण देशीय है। अत्यन्त हितकर नहीं है, किन्त, कान, स्वर, ___ जांगल बग का गुण।
| बयस्थापन और नेत्र पक्षमें हित होता है । तत्रवद्धमला शीतालघवोजांगलाहिताः।।
जंगली मुर्ग मोर के समान गुणकारी है, यह पित्तोत्तरेवातमध्येसान्निपातेकफानुगे ॥ ५४॥ बलकारकहै परन्तु, पालतू मुर्ग का मांस कफ
अर्थ-इनमेंसे जांगल जीवाकामांस हित | वर्द्धक और भारी होताहे कर और उपचक्र कारी है यह मल को वांधता है शीतवीर्य का मांस मेधा और अग्निबर्द्धक है तथा हृद
और हलका होता है जिस मनुष्य को ऐसा यको हितकारी होता है । कालकपोत का सन्निपात होजाता हैं जिस में पिन प्रधान मांस भारी कुछनमकीन, और सब दोपों का
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