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अष्टांगहृदये।
म. ६
पालेवतादि।
बट और क्लांति को दूर करते हैं, । हलके स्वादुम्लं शीतमुष्णं च द्विधा पालेवतं गुरु । और कफवातमें पथ्य होते हैं । रुच्यमत्यग्निशमनं रुच्यं मधुरमारुकम् ॥ पक्वमाशु जरां याति नात्युष्णं गुरु दोषलम्। लकुचको अवरत्व ।
.. अथे-पालवत या रेवतक दोप्रकार का फलानामवरं तत्र लकुचं सर्वदोषकृत ।१३९ होता है, एक खट्टा, दूसरा मांठा, मीठा पा- अर्थ-संपूर्ण फलोम लकुच अप्रधानहे, रेवत शीतवीर्य और खट्टा उष्णवीर्य होता है। क्योंकि यह तीनों दोषों को करताहै । दोनों प्रकार के गुरुपाकी, रुचिबर्द्धक, और त्यागने के योग्य शाकफलादि तीक्ष्णादि नाशक है । आरुक वा आड रुआ वा आदर हिमानिलोष्णदुर्वातव्याललालादिदूषितम् ।
जंतुजुष्ट जले मग्नमभूमिजमनार्तवम् ।१४०॥ चियर्द्धक और मधुर होता है, पकाहुआ
अन्यधान्ययुतं हीनवीर्य जीर्णतयाऽपि च । आरुक शीघ्र पचजाता है, यह बहुत गर्म धान्यं त्यजेत्तथा शाकं रूक्षसिद्धमकोमलम् । नहीं है, तथा भारी और दोषकारक हैं। असंजातरसं तद्वच्छुष्कं चान्यत्र मूलकात् । दाख और फालसे ।
प्रायेण फलमप्येवं तथामं बिल्ववर्जितम् ॥ द्राक्षापरूषकं चामम्लं पित्तकफप्रदम ।
___ अर्थ-जो धान्य हिम, वायु, आतप, गुरूष्णवीर्य वातघ्नं सरं च करमर्दकम् १३६ | विषैली हवा, सर्पकी लारसे दूषित, कीडों - अर्थ-हरे. दाख फालसा और करोंदा का खायाहुआ जलमें ड्रवाहुआ, अप्रशस्त खट्टे, कफपित्तोत्पादक, भारी, उष्णवीर्य, वा ! पृथ्वी में उपजा हुआ, कुस्तुमें उत्पन्न, तनाशक और रेचक होते हैं।
अन्य धान्यों से युक्त, हीनवीर्य, बहुत पुराकोलादि ।
ना होगया है वह काममें नहीं लाना चाहितथाऽम्लं कोलकर्कधूलकुचाम्रातमारकम् । ये इसी तरह से दूषित शाक बा विना तैऐरावतं दंतशठं सतूद मृगलिंडिकम् १३७॥ लादि हाले केवल जलमें पकाये हुए, अनातिपित्तकरं पक्कं शुष्कं च करमदेकम् । कोमल, और जिसमें रस संपूर्ण न हुएहों ऐसे अर्थ-छोटे बडे वेर, लकुच अंबाडा आ
शाक छोड देने चाहिये । परन्तु सूखी मूली रुक, नारंगी, जंभारी, नीबू, सहतूत, मृग
त्याज्य नहीं है । जो फल उक्त प्रकार से लिंडिक दाखके तुल्य, गुणवाले और खट्टे
दूषित होगये हों वा कच्चे हों वे उपयोग होते हैं ! पकाहुआ और सूखा करोंदा अ
में लाने नहीं चाहिये । केवल वेलगिरी कच्ची तिशय पित्तकर्ता नहीं होता।
भी ग्राह्य होती है। इमली आदि । दीपनं भेदनं शुष्कमम्लीकाकोलयोः फलम् ।।
विविध औषधवर्ग-लक्षण । सृष्णाश्रमलमन्छेदि लध्विष्टं कफवातयोः। विष्यदि लवण सर्व सूक्ष्म सृष्टमलं विदुः। ___ अर्थ-ईमली और वेर के सूखेफल अ-पातघ्नं पाकि तीक्ष्णोष्णं रोचनं कफपित्तकृत ग्निसंदीपन और भेदी होते हैं, तृषा, थका- अर्थ--सब प्रकार के नमक फफादि को
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