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(१८)
मष्टांगहृदये।
म.
मत्स्य मांस का गण।
नरमादा का मांस । मत्स्याः परं कफकराः
पुस्त्रियोः पूर्व पश्चार्धेगुरुणीगर्भिणी गुरु६७ चिलिचीमत्रिशेषकृत् ।६६|| लधुर्योषिच्चतुष्पात्सुविहंगेषुपुनःपुमान् । अर्थ-पीछे कह आये है कि विलेशय वर्ग शिरःस्कंधोरुपृष्टस्यकट्या सक्थोश्चगौरवम् के पछि के वर्गों का मांस उत्तरोत्तर अति । तथामपक्वाशययोर्यथापूर्वविनिर्दिशेत् ।
मित प्रभृतीनांच धातूनामुत्तरोत्तरम् ६९ भारा,आत गरम, आतस्निग्य, भात सागरीयोवृषणमे वृक्कयकृदगुदम् । अति मल-मूत्र-वीर्य वर्द्धक, अति वायुनाशक अर्थ- नाके शरीरका अगला भाग और अति कफ पित्तकारी है । परन्तु मत्स्य-गारी तथा मादा का पिछला भाग भारी यर्ग सब से पिछला है इस लिये ऊपर कहे
होताहे, गर्भिणी मादा अन्यसे भारी होती हुए सब गुण मछलियों में विशेष रूप से हैं
है । चौपायोंमें स्त्रीजातिका मांस हलका हो. और यहां जो कफकरा लिखा गया है यह
ताहै और पक्षियोंमें नर का मांस हलका होताहै यही दिखाने के लिये लिखा है कि कफ का
सिर, कंधा, ऊरु, पीठ, कमर, सक्थि, गुण तो बहुतही विशेष रूपसे है । चिल
भामाशय और पकाशय इनका मांस यथापूर्व चीम मत्स्य का मांस तीनों दोषों का करने
भारी होताहै । रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वाला है।
और शुक्र ये उत्तरोत्तर भारीहै । मांसकी - सर्वोत्तम मांस ।
अपेक्षा अंडकोष, लिंग, अग्रमासयकृत और लावरोहितगोधैणाःस्वे स्वे वर्गेवराःपरम् ।
अर्थ-लवा - रोहित मछली, जलकी गोह गुह्यस्थान अधिक भारी होतेहैं । और मृग इनका मांस अपने अपने वर्ग में शाकवर्ग-शाकोंकंगुण । सर्वोत्तम है ॥
शाकंपाठासटीपूषा निषण्णसतीनजम् ७१ त्पाज्यात्याज्य मांस ।
त्रिदोषघ्नं लघुग्राहिसराजक्षववास्तुकम् । "मांसंसद्योहतंशुद्धवयःस्थंचभजेत्
___ अर्थ- पाठा, शठी, पूषा, सुनिषण्ण,
त्यजेत् ॥ ६७॥ सतीन ज, राजक्षव और बथुआ ये सब शाक मृतं कृशं भृशं मेधंब्याधिवारिविषैर्हतम् । त्रिदोषनाशक, हलके और मात्र होतेहैं । ' अर्थ-तत्काल मारे हुए जीब का मांस खाने ।
। ऊपरके शाकोंक विशेषगुण । के योग्य होता है । तथा तरुण जानवर का मांस स्नायु आदिसे शुद्ध करके खाना चाहि- सुनिषण्णोऽग्निकदवृष्यस्तेषु
राजक्षवः परम् ॥७२॥ ये । इससे यह भी सिद्धहै कि बालक और वृद्ध का मांस नहीं खाना चाहिये । जो जानवर
ग्रहण्यों विकारघ्नः
वर्षोभेदितुवास्तुकम्। स्वयं मर गयाहो दुबला हो अति मेदबाला हो । अर्थ- इनमेंसे सुनिषण्णक का शाक जो रोग से बा जल में डूवकर वा विष से ! जठराग्निवर्द्धक और पौष्टिक होताहै । इस मरा हो उनका मांस भी नहीं खाना चाहिये । स्वस्तिक कहतेहैं इसके पत्ते चांगेरीके सदृश
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