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अष्टांगहृदये ।
(१४)
तथा जो जो पदार्थ उसमें पडेहों उन्होंके गुणोंसे युक्त होता है । धानीका गुण | लाजास्तृट्छर्यतीसारमेहमेदः कफच्छिदः । कासपित्तोपशमना दीपना लघवो हिमाः ॥३५ अर्थ- चांवलकी खोल तृषा, वमन, अतीसार, प्रमेह, मेदरोग, तथा कफरोगनाशकहै । खांसी और पित्तको दूर करती है अग्निसंदीपन, लघु और शीतल है । पृथुकादिके गुण !
पृथुका गुरवो यल्याः कफविष्टंभकारिणः । धाना विष्टंभिनी रूक्षा तर्पणी लेखनी गुरुः ।
कहते हैं
अर्थ - हरे धान्यको निस्तुषकरके मूमल से कूटकर भून लेते हैं उसे चिपिट ये भारी बलकारक, कफकारी और होते हैं । जौ आदि धानी विष्टंभी, I तृप्तिकर्ता, लेखनकर्ता और भारी होती है ।
विष्टंभी
रूक्ष
सत्तू के गुण |
सक्तबो लघवः क्षुत्तृश्रमनेत्रामयणान् । नंति संतर्पणाः पानात्सद्य एव बलप्रदाः ३७ नोदकांतरिता न द्विर्न निशायां न केवलान् । नभुक्त्वा न द्विजैश्छित्वा सक्तू नद्यान्नवावहून्
अर्थ- सत्तू हलका होता है, तृषा, श्रम, नेत्ररोग, व्रणरोग, इनको दूर करता है । तृप्ति करता है, पानी में घोलकर पीने से तत्काल बल बढाता है सत्तू खाने के समय बीच बीच में बार बार जल पीना उचित नहीं है एक दिनमें दो बार भी खाना उचित नहीं है घी वा शर्करा मिलाये बिना सूखा सत्तू नहीं खाना चाहिये रात्रिमें नहीं खाना चाहिये भोजन करके, अथवा दांतन करके अथवा
अ० ६
परिमाणसे अधिक सत्तू खाना उचित नहीं है । पिण्याक के गुण |
पिण्याको ग्लपनो रूक्षो विष्टभी दृष्टिदूषणः । अर्थ - तिलका कल्क अर्थात् खल ग्लानिकर्ता रूक्ष, विष्टंभी और नेत्रोंको हानि पहुंचाने वाला है ।
सवार के गुण |
वैसवारो गुरुः स्निग्धो वलोपचयवर्धनः। ३९ । मुद्रादिजास्तु गुरवो यथाद्रव्यगुणानुगाः ।
अर्थ -- वेसवार भारी, स्निग्ध, बलकारक और पौष्टिक होता है मूंग आदि द्रव्यों से बना या हुआ सवार भारी होता है । जिस प दार्थका बेसवार बनाया जाता है, उस पदा र्थ के गुण उसमें रहते हैं । निरस्थि मांस को कूटकर धनियां, जीरा, हींग और घृतादि डा लकर पकाने से बेसवार बनता है तथा अदरखके छोटे छोटे टुकडे और मूंग की पिट्ठी मिलाकर जो बनाया जाता है उसे मुद्रादि का सवार कहते हैं । इसका लौकिक नाम पूरण भी है ।
रोटी आदिके गुण |
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कुकूलकर्परभ्राष्ट्रकंद्वंगारविपचितान् |४०| एकयोनींल्लघून्विद्यादपूपानुत्तरोत्तरम्
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अर्थ - एकही प्रकारके अन्नकी रोटियां नीचे लिखी रीति से जुदी जुदी अग्नि पर बनाई जांय तो वे उत्तरोत्तर हलकी होती हैं ( ऊपले की आग से पकाई हुई रोटियों से कर्पर ( खीपडे ) पर पकाई हुई हलकी होतीहै । कर्परपकसे भ्राष्ट्रपक, भ्राष्ट्प कसे कंदुपक, कंडुपकसे अंगारपक्व, हलकी होती है । (कुकूलगौका गोवर । कर्पर अग्नि
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