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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(३३)
अर्थ--निद्राका वेग रोकनेसे मोह ( ज्ञा- नींदलैना, मद्यपान और रोचक कहानियां नेन्द्रियोंमें शून्यता ) होताहै, मस्तक और इसमें हितकारकहैं । आंखों में भारापन होताहै, आलस्य, जंभाई, वमनरोकने के रोग । और अंगमर्द ( अंगड़ाई ) होते हैं । इसमें विसर्प कोठ कुष्ठाक्षि कंडूपांड्वामयज्वराः गहरी नींद और धीरेधीरे हाथ पांवोंका दवाना सकासश्वासहल्लासव्यंगश्वयथवावमेः॥१८॥ हितकारी होताहै ।
| गंडूषधूमानाहारान् रुक्ष भुक्त्वा तदुद्वमः।
व्यायामःनुतिरस्रस्यशस्तं चात्रविरेचनम् ॥ खांसी के रोग।
सक्षारलवणंतैलमभ्यंगार्थ च शस्यते । कासस्यरोधासाद्धिःश्वासारुचिट्टदामयाः१४ | शोषोहिमाचकार्योऽत्रकासहासुतरांविधिः।
। अर्थ-. वमनका बेग रोकनेसे विसर्परोग, अर्थ--खांसी रोकनसे खाँसी कोठ ( पित्ती शरीर पर लाल चकत्ते ) कोढ श्वास, अरुचि, हृद्रोग, शोषरोग, हिचकी
नेत्ररोग, कंडूरोग, पांडुरोग, ज्वर, खांसी भादि रोग उपजतेहैं । इस में खांसीकी चि- श्वास, हल्लास ( जी मिचलाना), व्यंग और कित्सा विशेष रूपसे करनी चाहिये । सूजन ये रोग उत्पन्न होजातेहैं । इसमें गंडूश्वास के रोग ।
षाविधि, धूमपान, उपवास, रूक्ष अन्न खाकर गुल्महद्रोगसंमोहा श्रमश्वासाद्विधारितात् १५ वमनद्वारा निकालना, व्यायाम, रक्तस्राव हितं विश्रमणं तत्र वातघ्नश्च क्रियाक्रमः। (फस्द बोलना ), विरेचन तथा क्षार और
अर्थ- परिश्रमसे उत्पन्न हुए श्वासको रो- | लवणमिश्रित तेलका मर्दन विशेष लाभकनेसे गुल्म, हृद्रोग और मोह उत्पन्न होते
कारकहैं । हैं । इस में विश्राम लेना तथा वातनाशक
वीर्य और मूत्र रोकने के रोग । उपायोंका करना हितकारक है ।
| शुक्रात्तस्रवणं गुह्यवेदनाश्वयथुर्वरः ॥२०॥ जंभाई के रोग।
हृदयथा मूत्रसंगांगभंगवृद्धथश्मषंढताः। जुभायाक्षववद्रोगाःसर्वश्चानिलजिद्विधिः १६ ताम्रचूडसुराशालिबस्त्यभ्यगावगाहनम् २१
अर्थ- जो रोग छींक रोकनेसे होतेहैं | बस्तिशुद्धिकरैः सिद्धंभजेत्क्षीरंप्रिया स्त्रियः । वे ही सब जंभाईके रोकनेसे भी होतेहैं इस अर्थ- वीर्यका बेग रोकनेसे वीर्यका में वायुनाशक उपायोंका करना हितकारकहै । झरना अर्थात् धीरे २ निकलते रहना, गुह्य
आंसुओं के रोग। वेदना, सूजन, ज्वर, और हृदयमें व्यथा ये पीनसाक्षिशिरो मन्यास्तंभारुचिभ्रमाः। रोग होतहैं । मूत्रका बेग रोकनेसे अंगभंग. सगुल्माबापतस्तास्वप्नोमद्यप्रियाःकथाः १७ | अंडवृद्धि, पथरी और नपुंसकता ये रोग ___अर्थ- आंसुओंका वेग रोकनेसे पीनस, होतेहैं । इन सब रोगोंमें मुर्गेका मांस, सुराआंख, सिर और हृदयमें वेदना, मन्यास्तंभ, पान, शालीचांवल, वस्तिकर्म, तैलमर्दन, अरुचि, भ्रम, और गुल्मरोग होजातेहैं ।। अवगाहन, तथा वस्तिके शुद्ध करने वाले,
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