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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । (३३) अर्थ--निद्राका वेग रोकनेसे मोह ( ज्ञा- नींदलैना, मद्यपान और रोचक कहानियां नेन्द्रियोंमें शून्यता ) होताहै, मस्तक और इसमें हितकारकहैं । आंखों में भारापन होताहै, आलस्य, जंभाई, वमनरोकने के रोग । और अंगमर्द ( अंगड़ाई ) होते हैं । इसमें विसर्प कोठ कुष्ठाक्षि कंडूपांड्वामयज्वराः गहरी नींद और धीरेधीरे हाथ पांवोंका दवाना सकासश्वासहल्लासव्यंगश्वयथवावमेः॥१८॥ हितकारी होताहै । | गंडूषधूमानाहारान् रुक्ष भुक्त्वा तदुद्वमः। व्यायामःनुतिरस्रस्यशस्तं चात्रविरेचनम् ॥ खांसी के रोग। सक्षारलवणंतैलमभ्यंगार्थ च शस्यते । कासस्यरोधासाद्धिःश्वासारुचिट्टदामयाः१४ | शोषोहिमाचकार्योऽत्रकासहासुतरांविधिः। । अर्थ-. वमनका बेग रोकनेसे विसर्परोग, अर्थ--खांसी रोकनसे खाँसी कोठ ( पित्ती शरीर पर लाल चकत्ते ) कोढ श्वास, अरुचि, हृद्रोग, शोषरोग, हिचकी नेत्ररोग, कंडूरोग, पांडुरोग, ज्वर, खांसी भादि रोग उपजतेहैं । इस में खांसीकी चि- श्वास, हल्लास ( जी मिचलाना), व्यंग और कित्सा विशेष रूपसे करनी चाहिये । सूजन ये रोग उत्पन्न होजातेहैं । इसमें गंडूश्वास के रोग । षाविधि, धूमपान, उपवास, रूक्ष अन्न खाकर गुल्महद्रोगसंमोहा श्रमश्वासाद्विधारितात् १५ वमनद्वारा निकालना, व्यायाम, रक्तस्राव हितं विश्रमणं तत्र वातघ्नश्च क्रियाक्रमः। (फस्द बोलना ), विरेचन तथा क्षार और अर्थ- परिश्रमसे उत्पन्न हुए श्वासको रो- | लवणमिश्रित तेलका मर्दन विशेष लाभकनेसे गुल्म, हृद्रोग और मोह उत्पन्न होते कारकहैं । हैं । इस में विश्राम लेना तथा वातनाशक वीर्य और मूत्र रोकने के रोग । उपायोंका करना हितकारक है । | शुक्रात्तस्रवणं गुह्यवेदनाश्वयथुर्वरः ॥२०॥ जंभाई के रोग। हृदयथा मूत्रसंगांगभंगवृद्धथश्मषंढताः। जुभायाक्षववद्रोगाःसर्वश्चानिलजिद्विधिः १६ ताम्रचूडसुराशालिबस्त्यभ्यगावगाहनम् २१ अर्थ- जो रोग छींक रोकनेसे होतेहैं | बस्तिशुद्धिकरैः सिद्धंभजेत्क्षीरंप्रिया स्त्रियः । वे ही सब जंभाईके रोकनेसे भी होतेहैं इस अर्थ- वीर्यका बेग रोकनेसे वीर्यका में वायुनाशक उपायोंका करना हितकारकहै । झरना अर्थात् धीरे २ निकलते रहना, गुह्य आंसुओं के रोग। वेदना, सूजन, ज्वर, और हृदयमें व्यथा ये पीनसाक्षिशिरो मन्यास्तंभारुचिभ्रमाः। रोग होतहैं । मूत्रका बेग रोकनेसे अंगभंग. सगुल्माबापतस्तास्वप्नोमद्यप्रियाःकथाः १७ | अंडवृद्धि, पथरी और नपुंसकता ये रोग ___अर्थ- आंसुओंका वेग रोकनेसे पीनस, होतेहैं । इन सब रोगोंमें मुर्गेका मांस, सुराआंख, सिर और हृदयमें वेदना, मन्यास्तंभ, पान, शालीचांवल, वस्तिकर्म, तैलमर्दन, अरुचि, भ्रम, और गुल्मरोग होजातेहैं ।। अवगाहन, तथा वस्तिके शुद्ध करने वाले, For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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