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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२) अष्टांगहृदये। - मलरोध में उपाय छींक रोकने के रोग। भनयानं च विभेदि विदरोधोत्थेषयमसु ।, शिरोतीन्द्रिय दौर्वल्यमन्यास्तंभार्दितंक्षुतेः । अर्थ-मलके वेगको रोकनेसे हुए रोगोंमें तीक्ष्णधूमांजनाघ्राणनावनार्कबिलोकनैः ११० मलभेदक ( मलको पतला करनेवाले ) अन्न | प्रवर्तयेत्झुर्तिलतां मेहस्वेदीव शालयेत् । पान तथा ऊपर कहे हुए फलवर्ती आदि उ. ___ अर्थ--छींक का वेग रोकनेसे सिरमें दर्द, पाय करने चाहिये। | इन्द्रियोंमें दुर्वलता, मन्यास्तम्भ ( ग्रीवाके पिमूत्ररोधमे उपाय । | छले भागकी दो नसोंका जकड़ना ) और मूत्रजेषु च पानेच प्राग्भशस्यतेवृतम् ॥७॥ | अर्दित ये रोग उत्पन्न हो जाते हैं इसलिये इन जीर्णान्तिकं चोत्तमयामात्रयायोजनाद्वयम् । रोगोंमें तीक्ष्ण धूम, तीक्ष्ण अंजन, तीक्ष्ण अवपीडकमेतञ्च संशितं । घ्राण (मिरचादिक सूंघना ) तीक्ष्ण नस्य और अर्थ-मूत्रके वेगके रोकनेसे उत्पन्न हुए रोगों | सूर्यकी ओर देखना इन उपायोंसे छींकलाने में उत्तम मात्रासे प्राग्भक्त घृतपान, जीर्णा- | का यत्नकरै । तथा स्नेह विधि और स्वेद न्तिक घृतपान ठीक कहाहै भोजन करने के | विधि में कहेहुए उपायों को करै । पहिळे जो घृतपान किया जाता है उसे प्राग्भक्त तृषा के रोग । घृतपान कहते हैं, । इसी तरह पूर्व आहार के शोषांगसाश्वाधिर्यसंमोहभ्रमहद्दाः॥११॥ अच्छी तरह पच जाने पर जो घृतपान किया । तृष्णायानग्रहात्तत्र शीतः सर्वांविधिर्हितः । जाता है उसे जीर्णान्तिक घृतपान कहते | अर्थ--तृषाके रोकनेसे, शोषरोग, अंगमें हैं । इस प्राग्भक्त घृतपान और जीर्णान्तिक | शिथिलता, बहरापन, मूर्छा, भ्रम और हृदघतपान की दो प्रकार की घतयोजनाको अव | यके रोग उत्पन्न होजाते हैं । इन रोगों में पीडक कहते हैं । जो मात्रा एक दिन रात में सब प्रकारके शीत उपचार उपयोगी होतेहैं । पच जाती है उसे उत्तम मात्रा कहते हैं । - भूम्ब के रोग। डकार के रोग अंगभंगारचिग्लानिकार्यशूलभ्रमाक्षुधः १२ धारणातुनः ॥८॥ तत्र योज्यंलघुनिन्धमुष्णमल भोजनम् । उद्गारस्यारुचिः कंपो विबंधो दृश्यो रसोः। अथ -क्षुधा राकनस अगभग, असाच भाध्मानकासहिधमाश्चाहमावतत्रभेषजम् ९ ग्लानि, कृशता, और पक्काशय में दर्द और अर्थ उद्गार अर्थात् डकारका वेग रोकने से | भ्रम उत्पन्न होजाताहै । इममें हलका, स्निग्ध, अरुचे, कंपन, हृदय और छाती में रुक वट, | गर्म और थाडा भोजन करना चाहिये, (वै. अफग, स्वांसी, और हिचको आदि रोग | वचक्षुषस्तत्र स्निग्धोभोजनमितिपाठान्तरम् । उत्पन्न होते है । इन सब रोगों में हिमा के निद्राके रोग। तुल्य औषध करना चाहिये ( यह प्रकरण निद्रायामोहमूर्धाक्षिगौरवालस्यभिकाः १३ आग आवेगा। अंगमर्दश्च तत्रेष्टः स्वप्नःसंवाहनानि च । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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