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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
वातनाशक भोजन, किंचित् उष्ण जलपान, वस्तिकर्म तथा और भी वातानुलोमनकर्म ( वे उपाय जिनसे अधोवायु होनेलगे ) कर
ना चाहिये । अथातोरोगानुत्पादनीयाध्यायंठ्याख्यास्यामः वमन रोकने के रोग ।
अर्थ-अब हम यहां से रोगानुत्पादनीय शकृतः पिडिकोद्वेष्टप्रतिश्यायशिरोरुजः । नामक अध्यायकी व्याख्या करेंगे । अर्थात्
ऊर्ध्ववायुःपरीक” हृदयस्योपरोधनम् ॥४॥
मुखेनविट्प्रवृत्तिश्चपूर्वोक्ताश्चामयाःस्मृताः। इस अध्यायमें उन बातोंका वर्णन है कि किन
___ अर्थ- मलके वेगको रोकनेसे पिंडिकोकिन कामोंके करने न करनेसे रोग उत्पन्न
द्वेष्टन ! जांधके पिछले भाग अर्थात् कूल्हेके होने के पीछे उनकी शान्ति किस प्रकार कर- मांसमें ऐंठा ), प्रतिश्याय ( मुख और नासिनी चाहिये ।
कासे जलस्राव ), शिरोवेदना ऊर्ध्ववायुः वेगोंके रोकनेका प्रतिषेध ।।
| ( हिचकी डकार आदि वायुका ऊपरको जा"वेगान धारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृक्षुधाम् ।
ना), परीकत ( गुदामें कैंचीसे काटनेकीसी निद्राकासश्रमश्वासजूभाश्रुच्छदिरेतसाम् १ अथे--अधो वायु, मल, मूत्र, छींक, प्या:
वेदना ), हृदयोपरोध ( छातीमें भारापन ), स, भूख, निद्रा, खांसी, श्रमश्वास ( मिहनत मुखसे विष्टाका निकलना, और वातनिरोध से चढाहुआ श्वास जिसे हांफनी कहते हैं ) | में कहेहुऐ गुल्मादिक रोग भी होजातेहैं । जंभाई, आंसू, वमन और बीर्यपात, इनके मत्ररोध के रोग और उपाय वोंको रोकना न चाहिये ।
| अंगभंगाश्मरीबस्तिमेढूवंक्षणवेदनाः ॥५॥
मूत्रस्य रोधात्पूर्वे च प्रायोरोगाःतदौषधम् । वातरोधमें रोग ।
वय॑भ्यंगावगाहाश्चस्वेदनंबस्तिकर्म च॥६॥ अधोवातस्य रोधेन गुलमोदावर्तरुक्लमाः । वातमूत्रशकृत्संगदृष्टयग्निवधगदाः ॥ २ ॥ __ अर्थ- मूत्रका वेग रोकनेसे हड़फूटन, __अर्थ--अधोवायुके रोकनेसे गुल्म, उदा- पथरी, वस्ति ( पेडू ) मे ( शिश्नेन्द्रियु वर्त, नामि आदि स्थानोंमें वेदना, बलान्ति, और अंडकोषों वेदना होने लगती है और वात, मूत्र, और मल की रुकावट, दृष्टिनाश, बहुधा वात और मलके रोकने से उत्पन्न जठराग्नि नाश और हृद्रोग उत्पन्न होते हैं । हुए रोगभा उत्पन्न होजाते हैं । इन रोगोंकी वातरोधमें रोग।
शान्तिके लिये फरवर्तियोंका प्रयोग, वातनेहस्वेदविधिस्तत्र वर्तयो भोजनानि च। नाशक तेलोंका मर्दन, अवगाह ( वातनाशक पाननिवस्तयश्चैवशस्तंवातानुलोमनम् ॥३॥ द्रव्यों के काथसे भरीहुई नाद में नाभि पर्य्यन्त ___ अर्थ--अधोवातके वेगके रोकनेसे उत्पन्न बैठना ) और स्वेदन तथा वस्तिकर्म करने हुए रोगोंमें स्नेह विधि, स्वेद विधि, फलवर्ती, J चाहिये ।
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