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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(२१)
अर्थ--मुख को हाथ वा वस्त्र से ढके । अन्य मादक द्रव्योंका लेना देना सर्वथा विना छींक लेना, हंसना वा जंभाई लेना । बर्जित है। उचित नहीं है । नासिका का मल निकालने
__ त्याग के योग्य अन्य कर्म। के समय के सिवाय कभी नासिका को न खेंचे । निष्प्रयोजन ठाली बैठे पृथ्वी पर ल
पुरोवातातपरजस्तुषारपरुषानिलान् ॥४०॥
अनृजुः क्षवथूगारकासस्वप्नानमैथुनम् ॥ कीर न खींचे वा नं खोदे ! हाथ पांव आदि
कूलच्छायानृपद्विष्टव्यालदष्ट्रिविषाणिनः ४१ अंगों से कुत्सित चेष्टा न करै । उकडू हीनानार्यातिनिपुणसेवां विग्रहमुत्तमैः ॥ आसन से न बैठे । थकावट पैदा होने से
संध्यास्वभ्यवहारस्त्रीस्वप्नाध्यायनचिंतनम् ४२ पहिले ही देह, वाणी और चित्त के व्यापार
शत्रुसत्रगणाकीर्णगणिकापागकाशनम् ॥
गात्रवनखैर्वाद्यं हस्तकेशावधूननम् ॥४३॥ को बन्द कर देना उचित है परों को ऊंचा | तोयाग्निपूज्यमध्येन यानं धूमं शवाश्रयम् ॥ करकं वहुत देर तक न बैठा रहै । रात में मद्यातसक्तिं विश्रंभस्वातंत्र्ये स्त्रीषुच त्यजेत् पेड के नीचे न सोवे क्योंकि रात्रि के सयय | अर्थ--पूर्व की वायु, तेज धूप, उडली हुई पेड में से नाइट्रोजिन निकलती है जो प्राण- धूल,तुषार कर्कश पवन इनका सेवन न करें। घातक होती है । चौराहा, देवस्थानका वृक्ष, शरीर को टेढा तिरछा किये विना समान बौद्धोंका मठ, तिराहा, और देवालय इन स्था सूधाही बैठे छींक, डकार और खांसी निषिद्ध नोमें रात्रि को न रहना चाहिये । बधस्थान,
है, सोना भोजन करना और मैथुन करना निर्जन स्थान, सूने घर और परवर में दिन
भी बुरा है । नदी के करारे की छायोंमें बैठना, में भी न रहना चाहिये ।
राजा से बैर करना अथवा राजा के बैरी से सर्वथेक्षेत नादित्यं न भारं शिरसा वहेत् ॥
मेल रखना, सर्प खिलाना, दांत वाले तथा नेक्षेत प्रततं सूक्ष्मदीप्तामेध्याप्रियाणि च ३९ सींगवाले जानवरों से सदा बचता रहै । नचि, " मद्यविक्रयसंधानदानादानानि नाचरेत् ॥ | अशिष्ट, और अत्यन्त चतुर की सेवा, और
अर्थ-सूर्यकी ओर किसी प्रकार से भी उत्तम मनुष्यों के साथ लडाई त्याग देनी चाहि. न देखे क्योंकि ऐसा करने से दृष्टिपर आ- ये । संध्याकाल में भोजन स्त्रीसंग, शयन, घात पहुंचता है, बोझ को सिरपर लादकर पठनपाठन और किसी विषय का चितवन न जाय, बहुत सूक्ष्म ( छोटी ) और अत्य- छोड़ देवै । शत्रु का दिया भोजन, यज्ञ का न्त चमकीली वस्तुओं को न देखे इससे भोजन, भाट चारणादि का भोजन, वेश्याका दृष्टिमारी जाती है ! अप्रिय और घिनोनी भोजन, और दुकानदारका भोजन न करै । अपवित्र वस्तुओं को न देखै इससे चित्त में | शरीर मुख और नखों को न बजावै, । हाथ विकार होकर अनेक रोग पैदा होजाते हैं। से सिर के बालों को पकड़ पकड़ कर न शराव वेचना, फलों का आसवनिकालना वा / खींचे, जल के बीच में, अग्नि के बीच में
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