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अष्टांगहृदये।
तथा गुरुजनों के बीच में होकर न निकले । के आचार व्यवहारका वर्णन किया गया है। मुर्दे के धुंएका सेवन न करै । शराव बहुत जो इन नियमों के अनुसार चलते वे आयु, पीना छोडदे, स्त्रियों में बहुत विश्वास छोड
आरोग्यता, ऐश्वर्य, और यश प्राप्त करते हैं दे और उन को स्वतंत्र न छोड़े ॥
और मरने पर सद्गति को प्राप्त होते हैं । लोक के अनुसार काम की विधि । " आचार्यःसर्वचेष्टासु लोक एव हि धीमतः | इत्यष्टाङ्गहृदये सूत्रस्थाने भाषाटीकायां अनुकुर्यात्तमेवातो लौकिकेऽर्थे परीक्षकः ४५
अर्थ-संसार के सब कामों में लोक ही द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥ बडा आचार्य है इस लिये संसार के व्यवहार को देखकर बुद्धिमान मनुष्य को उचित है कि जैसे अन्य लोग काम चलाते हों वैसे ही
तृतीयोऽध्यायः। आपभी चलावै ॥ सव्रत के लक्षण ।
अथात ऋतुचर्याध्यायं व्याख्यास्यामः । आर्द्रसंतानतात्यागःकायबाक्चेतसां दमः।। अर्थ--तदनन्तर आत्रेयादिक महर्षि कहने स्वार्थबुद्धिःपरार्थेषु पर्याप्तमिति सद्रतम् ४६ लगे कि अब हम ऋतुचर्याध्याय की व्या___ अर्थ--संपूर्ण प्राणियों पर दयालुता, दान। ख्या करते हैं। शीलता, मन, वचन और शरीर का बस
छः ऋतुओं के नामादि । में रखना, पराये काम में ऐसी बुद्धि रखना मासैदिसंख्येर्माघायःक्रमातपडतवःस्मता कि यह मेरा ही काम है। ऐसे आचरण बाले शिशिरोऽथ बसंतश्च ग्रीष्मवर्षाशरद्धिमाः। पुरुष सद्बत कहलाते हैं ।
शिशिराद्यास्त्रिाभस्तैस्तु विद्यादयनमुत्तरम्। रात्रि दिन का विचार ।
आदानंचतदादत्ते नृणां प्रतिदिनं बलम् ॥२॥
___ अर्थ -माघ आदि दो दो महिने की एक नक्तदिनानि मे यांति कथंभूतस्य संप्रति ।। दुःखभाइन भवत्येवं नित्यं संनिहितस्मृतिः४७
एक ऋतु होती है जैसे माघ और फाल्गुन __ अर्थ--जो आदमी नित्य प्रति यह विचारते में शिशिर ऋतु, चैत्र वैसाख में वसंत, ज्येष्ट रहते हैं कि मेरे दिन और रात किस किस आषाढ में ग्रीष्म, श्रावण भाद्रपद में वर्षा काम के करने में वीतते हैं वे कभी दुख के आश्विन और कार्तिक में शरद तथा अगहन, भागी नहीं होते।
पौष में हेमन्त ऋतु होती है । इन में से शि
शिर वसंत और ग्रीष्म इन तीन ऋतुओं का आचार का फल । इत्याचारः समासेन संप्राप्नोति समाचरन् । उत्तरायण काल कहलाता है यह पुरुष के आयुरारोग्यमैश्वर्य यज्ञो लोकांश्च शाश्वतान् बलका आदान कल है अर्थात् उत्तरायण में
अर्थ--इस तरह संक्षेप रीति से मनुष्यों । सूर्य प्रति दिन मनुष्य के वलको हरण करताहै।
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