________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१८)
अष्टांगहृदये।
होती है, वीर्य और आयु बढते हैं उत्साह ) दूसरे काम में न लगे क्योंकि उस की उपेक्षा
और बल वृद्धि पाते हैं, तथा खुजली, मैल, करने से वह असाध्य हो जाता है । थकावट, पसीना, तन्द्रा, तृषा, दाद और | धर्म पर दृढता । पाप रूप दूर हो जाते हैं।
सुखार्थाः सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः। गर्म जल से स्नान के गुणागुण ।।
सुखं च न विना धर्मात्तस्माद्धर्मपरो भवेत्२० उष्णांबुनाधःकायस्य परिषेको बलावहः ॥
अर्थ-संपूर्ण प्राणियों की सब प्रवृत्तियां तेनैव चोत्तमांगस्य बलहृत्केशचक्षुषाम् १७ सुख के निमित्त होती हैं, और वह सुख बिना
अर्थ-यदि नीचे के अंग पर गर्म जल | धर्म के नहीं मिलता, इस लिये सदा धर्म में का तरेड़ा दिया जाय तो बल की वृद्धि होती तत्पर रहना उचित है । है और मस्तक पर गर्म पानी का सेचन मित्र शत्रु का विवेक । करना बाल और नेत्रों का बलनाशक है । | भक्त्या कल्याणमित्राणि सेवेतेतरदूरगः ॥ स्नान का निषेध ।
अर्थ-अपनी भलाई चाहने वाले मित्रों स्नानमर्दितनेत्रास्यकर्णरोगातिसारिषु ॥ का प्रेम से सेवन करे और शत्रुओं को दूर आध्मानपीनसाजीर्णभुक्तवत्सु च गर्हितम्१८ ही से त्यागदे । अथे-अदित नामक बात रोगी को तथा
| हिंसादि, पापों का त्याग । जिस के नेत्र, मुख्न और कान में कोई रोग |
| हिंसास्तेयान्यथाकामं पैन्यं परुषानृते ।२१ हो, तथा जिस को अतिसार, पेट में अफरा,
N) | संभिन्नालापव्याशइमभिध्याग्विपर्ययम् ॥ और अजीर्ण हो तथा जो भोजन करके चुका पापं कर्मेति दशधा कायवाङ्मानसैस्त्यजेत् २२ हो उन को स्नान नहीं करना चाहिये । अर्थ-हिंसा:( प्राणियों का बध ) स्तय
मूत्रादि वेगोंके रोकनेको निषेध ।। ( चोरी करना, ) अन्यथाकाम ( अगम्या जीणे हितं मितं चाद्यान्न वेगानीरयेदलात स्त्रियों का समागम ) ये तीन कायिक पाप नवेगितोऽन्यकार्यस्यान्नाजित्वासाध्यमामयम् हैं। पैशुन्य (चुगली ) परुष ( कठोर वचन,) __ अर्थ-पूर्व खाये हुए अन्न के अच्छी अन्त (मिथ्या भाषण,)संभिन्नालाप ( अमतरह पचजाने पर भी शरीर की प्रकृति के र्याद बोलना, ये चार वाचिक पाप है । अनुसार हितकारी और प्रमाणयुक्त भोजन | व्यापाद ( औरों के अनिष्टका विचार,) करना चाहिये । बलपूर्वक मलमूत्रादि के वेगों अभिध्या ( पराये उत्कर्ष को न सहना, ) को न करै ( अर्थात् दस्त की इच्छा न हो / दृग्विपर्यय ( शास्त्र में कुतर्क ) इन दस पापों तो बलपूर्वक दस्त को न जाय ) अथवा को शरीर वाणी और मन से त्याग देना चाहिये। जिस को मलमूत्रादि का वेग हो रहा हो वह प्राणिमात्र पर समदृष्टि । किसी दूसरे काम के करने में प्रवृत्त न हो। अवत्तिव्याधिशोकानिनुवर्तेत शक्तितः॥ - इसी तरह साध्य रोगको दूर किये विना किसी आत्मवत्सततं पश्येदपि कीटपिपीलिकम२३
For Private And Personal Use Only