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१०८ नाम कहे हैं। इसी अवसर्पिणी में ऋषभदेव भगवान से लेकर चार तीर्थंकरोंका यहां समवसरण हुआ, है तथा भविष्य में नेमिनाथके सिवाय बाकी १९ तीर्थकरोंका समवसरण यहां होनेवाला है । इसी प्रकार पूर्वकालमें यहां अनन्त सिद्ध हुए हैं व भविष्यकाल में भी होवेंगे, इसी कारण इस तीर्थको सिद्धक्षेत्र कहते हैं। सारे जगत् के स्तुति करने योग्य महाविदेह - क्षेत्रमें विचरनेवाले शाश्वत तीर्थंकर भी इस तीर्थ की बहुत प्रशंसा करते हैं, उसी प्रकार वहां के भव्य जीव भी नित्य इसका स्मरण करते हैं । जिस भांति उत्तमभूमिमें बोया हुआ बीज कईगुणा हो जाता है, उसी भांति इस शाश्वततर्थि में की हुई यात्रा, पूजा, तपस्या, स्नात्र तथा दान ये सर्व अनन्तगुण फल देते हैं । कहा है कि
पल्योपमसहस्रं च ध्यानामभिग्रहात् । दुष्कर्म क्षीयते मार्गे, सागरोपमसंमितम् ॥ १ ॥ शत्रुंजये जिने हटे, दुर्गतिद्वितयं क्षिपेत् । सागराणां सहस्रं च, पूजास्नात्र विधानतः || २ || एकैकस्मिन्पत्रे दत्ते, पुंडरीकगिरिं प्रति । भव कोटि कृतेभ्येऽपे, पातकेभ्यः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥ अन्यत्र पूर्वकोट्या यत्, शुभध्यानेन शुद्धधीः । प्राणी बध्नाति सत्कर्म, मुहूर्तादिह तद् ध्रुवम् ॥ ४ ॥