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है । आहारक वर्गणाएं से स्थूल पदार्थ बनते हैं । सभी स्थूल सूक्ष्म तथा सूक्ष्म-स्थूल स्कंधों शब्द प्रकाश आदि का निर्माण होता है, इसलिए वे उसकी अपेक्षा कम स्थूल है । मनोवर्गणा से मनुष्यादि का सूक्ष्म मांस पिंडरूप मन बनता है अतः सूक्ष्म है । तैजसवर्गणाओं के पदार्थों में तथा शरीरों में कांति तथा चमक-दमक उत्पन्न होती है अतः वे और भी अधिक सूक्ष्म है । कार्मणवर्गणा से जीवों के अष्टविधा कर्मों का निर्माण होता है । कर्म नामक पदार्थ सूक्ष्म सूक्ष्म है । अत: उसकी कारणभूता यह वर्गणा भी अत्यन्त सूक्ष्म है ।
ये वर्गणाएं लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर अनंत अनंत स्थित हैं। एक-एक वर्गणा से अनेक-अनेक जाति के स्कंध बनते हैं । तपस्वियों के कुछ विचित्र प्रकार के अदृष्टयोगज शरीरों का निर्माण आहारकवर्गणा का कार्य है । विना जीव के संयोग हुए सूक्ष्म आहारकवर्गणा अकेली स्वयं इन स्थूल शरीरों या स्कधों का निर्माण नहीं कर सकती ।
भाषा - वर्गणा का अर्थ 'शब्द' सर्व परिचित है । मनोवर्गणा का कार्यभूत 'मन' संज्ञी जीवों में ही पाया जाता है। शरीरों में स्फूर्ति क्रिया तथा कान्ति उत्पन्न करने का निमित्तभूत तेजसशरीर, तैजसवर्गणा का कार्य है । यह अत्यन्त सूक्ष्म होने से प्रत्यक्ष का विषय नहीं है ।
इन सबके भीतर तथा सबका मूल कारण एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म शरीर है जिसे कार्मणशरीर कहते हैं । यह अष्टकर्मों के संघात रूप होता है । यह शरीर कार्मणवर्गणा का कार्य है ।
जैन दर्शन जीव को असंख्य प्रदेशी अर्थात् असंख्यात परमाणुओं के माप जितना बड़ा मानता हुआ उसे अखड स्वीकार करता है ।
संयोग व बन्ध में महान अन्तर है । रजकणों की भांति परस्पर में मिलकर भी पृथक्-पृथक् रहना संयोग कहलाता है । संयोग दो प्रकार का होता है - (१) भिन्न क्षेत्रवर्ती और एक क्षेत्रवर्ती । रजकणों का संयोग भिन्न क्षेत्रवर्ती है । अनंतानंत परमाणुओं का या सूक्ष्म स्कंधों का या वर्गणाओं का सयोग एक क्षेत्रवर्ती है । आकाश के प्रत्येक प्रदेश पर जो इस प्रकार अनंतानंत पुद्गल द्रव्य रह सकते हैं वे स्वतंत्र सत्ता रखने के कारण परस्पर में बंधे हुए नहीं है । मिल-जुलकर एकाकार अखंड रूप बन जाना बंध है ।
अनंतानंत परमाणु, अनंतानंत सूक्ष्म सूक्ष्म वर्गणाएं, अनंतसूक्ष्म शरीरधारी जीव का एक देश तथा एक स्थूल शरीरधारी जीव का एक देश प्रदेश या क्षेत्र पर इतनी बड़ी समष्टि का अवस्थान पाया जाता है
लोकाकाश के एक
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