________________ नैषधीयचरिते अनुवाद-कमलिनी के पत्र पर बना कर दमयन्ती का जो चित्र हंसने नल को दिखाया था, उसी तरह उन ( नल ) द्वारा बनाया गया ( दमयन्ती का) चित्र, जिसमें उन्होंने अपना मोतियों का हार उसके गले में पहना रखा था, देखने में आया हुआ ( अन्तःपुर की ) किस युवति को अश्चर्य चकित नहीं कर देता था ? / 37 / टिप्पणो-इस श्लोक में विद्याधर का अलंकारविषयक टिप्पणी खण्डित है। 'यथा-तथा' द्वारा प्रतिपादित साम्य में उपमा स्पष्ट ही है। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। उपहृतस्वहारा-इससे यह सूचित होता है कि दमयन्ती का चित्र बनाकर नल यह समझ बैठे कि प्रत्यक्षतः वह मुझे मिल ही गई है, इसलिए क्यों न अब उसके गले में अपनी हार पहना दूं ? यह सब उनके चित्तभ्रम का खेल है। कौमारगन्धो न निवारयन्तो वृत्तानि रोमावलिवेचिह्ना। सालिख्य तेनैक्ष्यत यौवनीयद्वा:स्थामवस्था परिचेतुकामा // 38 / / अन्वयः-तेन यौवनीयद्वाःस्थाम् अवस्थाम् परिचेतुकामा ( अतएव) रोमावलि-वेत्र-चिह्ना ( सती ) कौमार-गन्धीनि वृत्तानि निवारयन्ती सा आलिख्य ऐक्ष्यत / टोका-तेन नलेन यौवनस्येयमिति यौवनीया युवावस्थासम्बन्धिनीया द्वाः द्वारम् अथ च प्रारम्भः ( कर्मधा० ) तस्यां तिष्ठतीति तथोक्ताम् (उपपद तत्पु०) अवस्थाम् दौवारिकत्वाधिकारम् अथ च यौवनारम्भदशाम् परिचेतुम् अभ्यसितुम् अङ्गीकर्तुमिति यावत् कामः इच्छा यस्याः तथाभूता (ब० वी० ) अतएव रोम्णाम् शरीरलोम्नाम् आवलिः पङ्किः ( 10 तत्पु० ) एव वेत्रम दण्ड: चिह्न रूपम् ( उभयत्र कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता ( ब० वी० ), कुमार्याः अयमिति कौमारः शैशवसम्बन्धीत्यर्थ: गन्धः लेशः सम्बन्धो वा कर्मधा० येषु तथाभूतानि (ब० वी०) वृत्तानि आचरणानि क्रीडादोनि निवारयन्ती प्रतिषेधन्ती सा दमयन्ती आलिख्य चित्रयित्वा ऐक्ष्यत विलोकिता। शैशवावस्थां विहाय यौवनावस्था. मारोहन्त्याः दमयन्त्याश्चित्रं निर्माय नलोऽवलोकितवानिति भावः // 38 // व्याकरण-यौवनीय युवत्या भाव इति युवति + अण, पुंवद्भावे योवनम् यौवनस्येति यौवन + छ, छ को ईय / 0 स्थाम् स्था + क + टाप / परिचेतुकामा तुम्-काम-मनसोरपि से म का लोप / कौमार कुमारी + अण् ( पुंवद्भाव ) / ऐक्ष्यत /ईक्ष् + लङ् ( कर्मवाच्य ) /