________________
२०
जैनसाहित्य और इतिहास
राजाओंने, ४० वर्ष तक मुरुदय ( मौर्य ?) वंशने और ३० वर्ष तक पुष्यमित्रने राज्य किया। फिर ६० वर्षतक वसुमित्र अमिमित्रने, १०० वर्षतक गर्दभिल्ल राजा
ओंने और ४० वर्ष तक नरवाहन राजाने राज्य किया। इसके बाद भ्रत्यान्धे राजा हुए जिनका राज्य २४२ वर्षतक रहा । इनके बाद गुप्तोंका राज्य २३१ वर्ष तक रहा और तब कल्कि उत्पन्न हुआ। वह इन्द्रका पुत्र था और चतुर्मुख उसका नाम था । वह ७० वर्ष तक जिया और ४२ वर्ष तक उसने राज्य किया। इस तरह भी सब मिलाकर (६०+१५५+४०+३०+६०+१००+४०+२४२+२३१+ ४२=१००० ) एक हजार वर्ष होते हैं ।
आचारंगधरादो पणहत्तरिजुत्तदुसयवासेसु । वोलीणेसुं बद्धो पट्टो कक्कीसणरवइणो ॥ १०० अर्थ-आचारांगधारियों के बाद २७५ वर्ष बीतनेपर कल्कि राजा पट्टपर बैठा । अर्थात् आचारांगधारियोंके काल ६८३ में २७५ जोड़नेसे ९५८ हुए और उसमें कल्कि राज्यके ४२ वर्ष मिलानेसे पूरे एक हजार हो जाते हैं।
अह साहियूण ककी णियजोग्गे जणपदे पयत्तेण । सुकं जाचदि लुद्धो पिकं जाव ताव समणाओ॥ १०१॥
१ मेरुतुंगकी विचारश्रेणीमें वसुमित्र अग्निमित्रके बदले बलमित्र और भानुमित्र नाम दिये हैं और गद्धव्वयाके बदले गर्दमिल्ल
बलमित्तभाणुमित्ता सट्ठीवरिसाण चत्तणहवाणे ।
तह गद्दभिल्लरजं तेरस वरिस सगस्स चउवरिसा ।। ३ २ हरिवंशपुराणके कर्त्ताने 'गर्दभिल्ल' को गर्दभ मानकर उसके पर्यायवाची शब्द 'रासभ' का प्रयोग किया है । वास्तवमें गर्दभिल्ल एक राजवंश था जिसकी स्व० म० म० काशीप्रसाद जायसवालने खारवेलके राजवंशसे एकता सिद्ध की है। देखो सितम्बर १९३० का बिहार उड़ीसा रिसर्च सोसाइटीका जर्नल ।
३ ' नहपान ' को ही यहाँ नरवाहन लिखा है । मूलमें शायद ‘णहवाण ' हो ।
४ हरिवंशपुराणमें 'भत्थट्ठाणं' की जगह 'भट्टवाणस्य' लिखा है जो ठीक नहीं । मतलब आन्ध्रभृत्योंसे जान पड़ता है। ' भच्चंधाणं ' पाठ माननेसे उसकी छाया ' भृत्यान्ध्राणां' हो सकती है।