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जैन साहित्य और इतिहास
अर्थ - वीर भगवान के मोक्षके बाद जब ४६१ वर्ष बीत गये, तब यहाँपर शक नामका राजा उत्पन्न हुआ । अथवा भगवानके मुक्त होनेके बाद ९७८५ वर्ष ५ महीने बीतनेपर शक राजा हुआ । ( यह पाठान्तर है । ) अथवा वीरेश्वर के सिद्ध होनेके १४७९३ वर्ष बाद शक राजा हुआ । ( यह पाठान्तर है | ) अथवा वीर भगवान के निर्वाणके ६०५ वर्ष और ५ महीने बाद शक राजा हुआ ।। ८६-८९ ॥
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णिव्वाणगदे वीरे चउसद - इगिसट्ठि वासविच्छेदे । जादो य सगणरिंदो रज्जं वस्सस्स दुसय बादाला ॥ ९३ ॥ दोष्णिसदा पणवण्णा गुत्ताणं चउमुहस्स बादालं । वस्सं होदि सहस्सं केई एवं परुवंति ॥ ९४॥
अर्थ — वीर- निर्वाणके ४६१ वर्ष बीतनेपर शक राजा हुआ और इस वंशके राजाओंने २४२ वर्ष राज्य किया । उनके बाद गुप्त वंशके राजाओंका राज्य २५५ वर्ष तक रहा और फिर चतुर्मुख ( कल्कि ) ने ४२ वर्ष तक राज्य किया । कोई कोई इस तरह ( ४६१+२४२+२५५+४२ = १००० ) एक हजार वर्ष प्ररूपण करते हैं ।
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जं काले वीरजिणो णिस्सेयससंपयं समावण्णो । तक्काले अभिसित्तो पालयणामो अवंतिसुदो ॥ ९५ ॥ पालकरजं सट्ठि इगिसयपणवण्ण विजयवंसभवा । चालं मरुदयवंसा तीसं वंसा सु पुस्तमित्तंमि ॥ ९६ ॥
१ इन गाथाओंसे मालूम होगा कि इस समयसे लगभग १४०० वर्ष पहले भी महावीर
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भगवानके निर्वाण-काल के विषय में सन्देह था। एक मत था कि उनका निर्वाण शकके ४६१ वर्ष पहले हुआ है और दूसरा था कि नहीं ६०५ वर्ष पहले हुआ है (त्रैलोक्यसार और हरिवंशपुराण आदिमें यह दूसरा ही मत माना गया है ।) इसके सिवाय तीसरे और चौथे मत भी थे जो बहुत ही विलक्षण थे । उनके कल्पना ही नहीं की जा सकती। उनके अनुसार शकसे हजार पाँचसौ नहीं किन्तु नौ हजार और चौदह हजार वर्ष पहले भगवानका निर्वाण हुआ था और बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि उक्त मतभेद उस समय एक महान् ग्रन्थमें भी उल्लेख योग्य समझे गये !
विषयमें तो कोई