Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
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एक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे,
फल अनेकांत किरिया करी बापड़ा, रड़बड़े चार गतिमाहे लेखे-धा. गच्छना भेद बहु नयण निहालता, तत्वनी बात करता न लाजे,
उदरभरणादि निज काज करता थका, मोह नड़िया कलिकाल राजे-धा. वचन निरपेक्ष व्यवहार जूठो कह्यो, बचन सापेक्षा व्यवहार साचो,
वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभली श्रादरी काइ राचो-धा. देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे किम रहे, शुद्ध श्रद्धान प्राणो,
शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी, छार पर लींपणु तेह जाणो-धा. पाप नहीं कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोइ जग सूत्र सरिखो,
सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहनु शुद्ध चारित्र परिखो-धा. एह उपदेशनो सार संक्षेप थी, जे नरा चितमां नित्य ध्यावे, ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत 'श्रानन्दघन' राज गावे-धा.
[राग-गुर्जरी-रामकली ] कुथुजिन ! मनडु किम ही न बाझे हो कुथुजिन, मनडु किम ही न बाझे,
जिम जिम जतन करीने राखु, तिम-तिम अलगु भाजे हो-कु. रजनी वासर वसति उज्जड, गयण पायाले जाय,
साप खाये ने मुखडु थोथु, एह उखाणो न्याय हो-कु. मुगतितणा अभिलाषी तपिया, ज्ञान ने ध्यान अभ्याले,
. वयरीडू काइ एहेवु' चिते, नाखे अवले पासे हो-कु० आगम आगमधरने हाथे, नावे किणविधि श्राकु,
किहां कणे जो हठ करी हटकु, तो व्यालतणी परे वांकु हो–कु० जो ठग कहु तो ठगतो न देखु, साहुकार पण नाहि,
सर्वमाहे ते सहुथी अलगु, ए अचरिज मनमाही हो-कु. जे-जे कहु ते कान न धारे, आप मते रहे कालो,
___ सुर नर पंडित जन समजावे, समजे न मारो सालो हो-कु. में जाण्यु ए लिंग नपुसक, सकल मरदने ठेले,
बीजी वाते समरथ छे नर, एहने कोइ जेले हो–कु. मन साध्यु तेणे सघलु साध्यु, एह बात नहीं खोटो,
एम कहे साध्युते नवि मानु, ए कही बात छे मोटी हो कु. मनडुदुराराध्य तें वश पाण्यु, ते पागमथी मति प्राणु',
'आनन्दघन' प्रभु माहरु प्राणो तो सांचु करी जाणु हो–कु.
[राग-राग आशावरी] षड् दर्शन जिन-अंग भणीजे, न्यास षडंग जो साधे रे,
नमि जिनवरना चरण उपासक, षड्दरशन पाराधे रे-षड्।
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