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क्या इनका अर्थ भी भिन्न-भिन्न है, या एक ही है, अर्थात् ये पद एकार्थक हैं या भिन्नार्थक ? एकार्थक पद दो प्रकार के होते हैं- प्रथम तो एक ही विषय को प्रतिपादन करने वाले शब्द एकार्थक कहलाते हैं। दूसरा - जिन पदों का अर्थ (तात्पर्य ) एक हो वे भी एकार्थक कहलाते हैं ।
घोष तीन प्रकार के होते हैं- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित । जो उच्च स्वर से बोला जाय उसे 'उदात्त' कहते हैं। जो नीचे स्वर से बोला जाय उसे 'अनुदात्त' कहते हैं । जो न तो विशेष ऊँचे स्वर से बोला जाय और न विशेष नीचे स्वर से बोला जाय, किन्तु मध्यम स्वर से बोला जाय उसे 'स्वरित' कहते हैं ।
शास्त्रकार ने एकार्थक और नानार्थक की एक चौभंगी बतलाई है । वह इस प्रकार
है-
भगवतीसूत्र - श. १ उ. १ चलमाणं आदि प्रश्न
(१) समानार्थक समान व्यञ्जन ।
(२) समानार्थक भिन्न व्यञ्जन ।
(३) भिन्नार्थक समान व्यञ्जन ।
(४) भिन्नार्थक भिन्न व्यञ्जन ।
कई पद समान अर्थ वाले और समान व्यञ्जन (अक्षर) वाले एवं समान घोष बाले होते हैं । जैसे क्षीर, क्षीर। इन दोनों पदों का अर्थ 'दूध' है और दोनों पदों में अक्षरों की भी समानता है । अतः यह 'समानार्थक समान व्यञ्जन' नामक पहला भंग है । कई पद समान अर्थ वाले और भिन्न व्यञ्जन वाले होते हैं । जैसे-क्षीर, पयः । इन दोनों पदों का अर्थ 'दूध' है, किन्तु इनके व्यञ्जन (अक्षर) भिन्न-भिन्न हैं । अतएव घोष भी भिन्न-भिन्न हैं । यह दूसरा भंग हुआ ।
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कई पद ऐसे होते हैं कि उनका अर्थ तो भिन्न-भिन्न होता है, किन्तु व्यञ्जन समान होते हैं । जैसे अर्क-क्षीर (आक का दूध) और गोक्षीर (गाय का दूध) । इन पदों में क्षीर शब्द समान व्यञ्जन वाला है, किन्तु उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है । अतः यह तीसरा भंग हुआ । कई पद ऐसे होते हैं कि जिनका अर्थ भी भिन्न होता है और व्यञ्जन भी भिन्न होता हं । घट (घड़ा) पट ( कपड़ा ) लकुट ( लकड़ी) आदि । इन शब्दों का अर्थ भी भिन्न है और व्यञ्जन भी भिन्न हैं । यह चौथा भंग हुआ ।
गौतम स्वामी ने प्रश्न करते हुए - यहाँ चौभंगी के दूसरे और चौथे भंग को ग्रहण किया है । पहले और तीसरे भंग का इन नौ पदों में समावेश नहीं होता है, क्योंकि इन नौ
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