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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ चलमाणे आदि प्रश्न
बात नहीं हो सकती अर्थात् उनमें कुछ न कुछ अनाभोग (अपूर्णता) रहता ही है । क्योंकि ज्ञान को ढकने का स्वभाव वाला ज्ञानावरण कर्म उनके मौजूद है। जितने अंश में उसने ज्ञान को ढक रखा है उतने अंश में उसमें अपूर्णता रहती है। इसलिए गौतम स्वामी ने ये प्रश्न किये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
अथवा-कदाचित् गौतम स्वामी इन प्रश्नों का उत्तर जानते भी हो तथापि अपने ज्ञान में अविसंवाद लाने के लिए, निश्चयता लाने के लिए तथा अपने द्वारा जाने हुए विषय पर भी भगवान् द्वारा अधिक प्रकाश डलवाने के लिए गौतम स्वामी ने ये प्रश्न किये हैं।
अथवा-अनजान लोगों को बोध कराने के लिए तथा शिष्यों को अपने वचन में प्रतीति कराने के लिए अथवा सूत्र रचना के कल्प संपादन के लिए गौतम स्वामी ने ये प्रश्न किये हैं। क्योंकि सूत्र रचना का क्रम गुरु शिष्य के प्रश्नोत्तर से ही होता है।
उपर्युक्त कारणों में से किसी भी कारण से प्रेरित होकर गौतम स्वामी ने प्रश्न पूछे हैं।
गौतम स्वामी के इन प्रश्नों के उत्तर में भगवान् ने 'हंता' शब्द का प्रयोग किया है। 'हंता' शब्द का अर्थ आमन्त्रण अर्थात् संबोधन करना है । और स्वीकार रूप 'हाँ' अर्थ भी है। .. पाठ का संकोच करने के लिए 'जाव-यावत्' शब्द का प्रयोग होता है । 'चलमाणे चलिए' यह प्रश्न का प्रथम पद कह कर 'णिज्जरिज्जमाणे णिज्जरिए' यह अन्तिम पद कहा गया है । इनके बीच के सब पदों का ग्रहण 'जाव-यावत्' शब्द से हुआ है । 'जाव' शब्द का अर्थ है ‘से लगा कर' अर्थात् 'वहां से लेकर वहाँ तक' । यह 'जाव-यावत्' शब्द का अर्थ है।
" २ प्रश्न-एए णं भंते ! णव पया किं एगट्ठा गाणाघोसा ? णाणावंजणा ? उदाहु णाणट्ठा ? णाणाघोसा ? णाणा वंजणा ? ___२ उत्तर-गोयमा ! चलमाणे चलिए, · उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेइज्जमाणे वेइए, पहिज्जमाणे पहीणे, एए णं चत्तारि पया एगट्ठा, णाणाघोसा, णाणावंजणा, उप्पण्णपक्खस्स । छिज्जमाणे छिण्णे, भिज्जमाणे भिण्णे, दटमाणे दड्ढे, मिज्जमाणे मडे
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