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भगवती सूत्र - श. १ उ. १ चलमाणे आदि प्रश्न
णिज्जरिज्जमाणे णिजिणे, एए णं पंच पया णाणट्टा, णाणाघोसा णाणावंजणा, विगयपक्खस्स ।
शब्दार्थ-भंते-हे भगवन् ! एए-ये, णव-नौ, पया-पद, कि- क्या, एगट्ठा- एक अर्थ वाले हैं, ? णाणाघोसा - नानाघोष वाले हैं ? णाणावंजणा - नाना व्यञ्जन वाले हैं ? उदाहु - अथवा, णाणट्ठा - नाना अर्थ वाले हैं ? णाणाघोसा-नाना घोष वाले हैं ? णाणावंजणा - नाना व्यञ्जन वाले हैं ?
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गोयमा - हे गौतम! चलमाणे चलिए -चलमान चलित, उदीरिज्जमाणे उदीरिएउदीर्यमाण उदीरित, बेइज्जमाणे बेइए-वेद्यमान वेदित, पहिज्जमाणे पहिये - प्रहीयमाण प्रहीण, एए ये चत्तारि चार, पया-पद, उप्पण्णपक्खस्स - उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से, एगट्ठा - एकार्थक हैं, गाण्राघोसा - नाना घोष वाले हैं, णाणावंजणा-नाना व्यञ्जन वाले हैं । छिज्जमाने छिण्णे-छिद्यमान छिन्न, भिज्जमाणे भिण्णे-भिद्यमान भिन्न, दडमाणे दड्ढेदह्यमान दग्ध, मिज्जमाणे मंडे - म्रियमाण मृत, णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिणे - निर्जीर्यमाण निर्जीर्ग, एए-ये, पंच-पांच, पया-पद, विगयपक्खस्स - विगत पक्ष की अपेक्षा, गाणट्ठा - नाना अर्थ वाले, गाणाघोसा-नाना घोषवाले और णाणावंजणा-नाना व्यञ्जन वाले हैं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ये नौ पद क्या एक अर्थ वाले, नाना प्रकार के घोष वाले और नाना प्रकार के व्यञ्जन वाले हैं ? अथवा नाना अर्थ वाले, नानाघोष वाले और विविध प्रकार के व्यञ्जन वाले हैं ?
उत्तर- हे गौतम ! चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित प्रहीयमाण प्रहीण, ये चार पद उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक हैं, नाना घोष वाले हैं और नाना व्यञ्जन वाले हैं ।
छिद्यमान छिन्न भिद्यमान भिन्न दह्यमान दग्ध, त्रियमाण मृत और निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण, ये पांच पद विगत पक्ष की अपेक्षा नाना अर्थ वाले, नाना घोषवाले और नाना व्यञ्जन वाले हैं ।
विवेचन - पहले 'चलमाणे चलिए' इत्यादि नौ पद कहे गये हैं, उनके विषय में अब • गौतम स्वामी का पूछना यह हैं कि इन पदों में घोष और व्यञ्जन तो अलग अलग हैं, किन्तु
x '' यह अव्यय है और वाक्यालङ्कार में आता है । इसका स्वतन्त्र अलग कोई अर्थ नहीं है ।
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