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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
चारक, और हर एक चार चार गुणवाला है । इस तरह वैद्य लोग चिकित्सा को सोलह गुणवाली कहते हैं ( इन में से एक भी ठीक न होने से चिकित्मा में अंतर आजाता है ।
वैद्यके चार गुण | दक्षस्तीर्थात्तशास्त्रार्थोदृष्टकर्मा शुचिर्भिषक अर्थ- दक्षः ( अपने काममें चतुर ), तीर्थात्तशास्त्रार्थः ( गुरुसे अच्छी तरह शास्त्र को पढ़ा हुआ ],दृष्टकर्मा [ सैंकड़ों प्रकार के रोगी और रोगों को देखकर अभ्यास प्राप्त किया हुआ, अर्थात् अनुभवी ] शुचि [ मन बाणी शरीर से मलीन व्यापार न करने वाला अर्थात् धनोपार्जन के लिये चिकित्सा न करनेवाला और केवल धर्म के लिये चिकित्सा करनेवाला ] ये वैद्य के चार गुण हैं।
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४ रोगी । और इनमें से
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औषध के चार गुण । बहुकल्पं बहुगुणं सम्पन्नं योग्यमौषधम् । अर्थ - बहुल [ स्वरस, काथ, चूर्ण आदि अनेक प्रकार के रोगनाशक कल्पजिससे बन सकते हैं ] बहुगुण : अनेक रोगों को नाश करनेवाले गुरु मन्दादिक
अनेक गुणों से युक्त ], संपन्न [ प्रशस्त भूमिदेश में उत्पन्न हुई अनेक पाकादि संस्कार की संपत्तियुक्त ] और योग्य [ व्याधि, देश, काल, दोष, दूष्य, देह, वयबल आदि को जानकर देने योग्य ] । ये चार गुण औषध के हैं ।
परिचारक के चार गुण । अनुरक्तः शुचिर्दक्षो बुद्धिमान्परिचारकः २८
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( ११ )
अर्थ --अनुरक्त ( रोगी से प्रेम रखने वाला, शुचि ( मन, बाणी और शरीर से पवित्र, ) दक्षः [ सब काम में चतुर ] और बुद्धिमान [प्रवीण ] ये परिचारक के चार लक्षण हैं ।
रोगी के चार गुण |
आढ्यो रोगी भिषग्वश्यो ज्ञापकः सत्ववानीप अर्थ--रोगी के चार गुण हैं: - आढय ( धनवान ), भिपग्वश्य (वैद्यका आज्ञाकारी), ज्ञापक ( रोग, आहार, विहार के फेरफार तथा विदान आदि को वैद्य से कहने में समर्थ ); तथा सत्यवान ( धीरजवाला और मोह रहित ) |
सुखसाध्य व्याधि |
सर्वोक्षमे देहे यूनः पुंसो जितात्मनः ॥ २९ ॥ अमर्मगोऽल्पहेत्वग्ररूपरूपोऽनुपद्रवः । अतुल्यदूष्यदेशर्तुप्रकृतिः पादसम्पादे ॥३०॥ ग्रहेष्वनुगुणेष्वेकदोषमार्गो नवः सुखः ।
अर्थ - ( १ ) उस रोगी के देह में उत्पन्न हुई व्याधि सुख साध्य है जिसका शरीर तीक्ष्ण, मध्य, मृदुरून, अनेक देशों में उत्पन्न हुई, संशमन कर्ता, संशोधन कर्ता और विष क्षारादि, प्रयोग को सहसक्ता है । ( २ ) तरुण अवस्था वाला रोगी । ( ३ ) रोगी पुरुष हो स्त्री न हो ( स्त्रियों का निषेध इस लिये है कि ये डरपोकनी और मूर्ख होती है इस लिये रोगी के यथोक्त गुण नहीं होते और सुकुमार होने के कारण तीक्ष्ण उष्ण आदि औषधियों को नहीं सह सकती ); ( ४ ) जिसने अपना मन अपने बस में कर रक्खा हो और विषयादि की
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