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सूत्रस्थान भाषाकासमेत ।
अर्थ-देखने छूने और पूछने से रोगी / उपशय है । जैसे कोई कहै कि एक समय की परीक्षा करै । जैसे खांसी प्रमेह आदि
भोजन करने से हमारी प्रकृति ठीक रहतीहै रोगों की परीक्षा उनका रंग देखने से, ज्वर
तो इस से जाना गया कि उस के मंदागुल्म आदि नाडी देखने तथा टटोलने से
स ग्निहै । अत एव एक समय खाना उपशयहै । शूल रोचक आदि का वृत्तान्त रोगी से पूछ
__प्राप्ति, निवृत्ति, संप्राप्ति, आगति और ने पर जाना जाता है।
जातिये संप्राप्तिके पर्यायवाची शब्द हैं रोगविशेष की परीक्षा का उपाय।
जैसे अमुकदोष अमुकरीतिसे दूषित होकर रोग निदानप्रायूपलक्षणोपशयाप्तिभिः । अर्थ-निदान, पूर्वरूप, लक्षण, उपशय
अमुकस्थान में स्थित होगया है, अथवा और संप्राप्ति इन पांच प्रकारों से रोग की
| अमुक मार्गसे अमुक कुचेष्टा होनेस रोग उत्पपरीक्षा करनी चाहिये । रोगके कारण वा
| न्न हुआहै इस कल्पना का नाम संप्राप्ति है हेतु को निदान कहते हैं। यह निदान आस
देशभेद । न्न ( निकटवर्ती ) और विप्रकृष्ट ( दूरबर्ती)
भूमिदेहप्रभेदेन देशमाहुरिह द्विधा ॥२२॥ इन भेदों से दो प्रकार का है । आसन्न
___ अर्थ- आयुर्वेद के आचार्यों ने देश दे। निदाक के भी दो भेद हैं एक निकट, दूसरा प्रकार के कहे हैं एक देह देश, दूसरा भूमि अतिनिकट । जैसे किसी पदार्थ के देश । हाथ, पांव, सिर, आदि में देहदेश हैं। खाने से बात दोष कुपित होकर विकार क
भूमिदेश का वर्णन । रता है तो वह पदार्थ निकट का कारण है
| जागलं वातभूयिष्ठमनूपं तु कफोल्बणम् ।
साधारणं सममलं विधाभूदेशमादिशेत् २३ और वात दोष अतिनिकट का कारण है।
| अर्थ--भूमिदेश तीन प्रकार का होता है इसी तरह अजीर्ण में भोजन करना आमवात
जल वन त मोटे होते का कारण है । परन्तु उस भोजन से पहिले । हैं उसे जांगलदेश कहते हैं। जांगलदेश अजीर्ण, पछि अतिसार और पीछे आमवात में वादी वहुत होती है और इस देश में उत्पन्न उत्पन्न होता है । इस से यह दूर का होने वाले पशु पक्षी औषधादिक वातकारण है।
प्रधान होते हैं । ____ व्याधि का अप्रकाशित चिन्ह उसका जहां जल और वृक्ष वहुत होते हैं, । पूर्वरूप है जैसे ज्वर व्याधि है और ज्वर से । वायु कम चलती है, धूप कम आती है उसे पहिले होने वाले आलस्य, अंगडाई, नेत्रदा- आनूपदेश कहते हैं. यह देश कफप्रधान हादिक पूर्वरूप है। व्याधि के प्रकाशित होता है तथा यहां उत्पन्न होने वाली औषधा अर्थात् स्फुटरूप को लक्षण कहते हैं जैसे । दिक कफकारक होती हैं। ज्वर में देहका गर्म होना ज्वर के लक्षण हैं। जिस के लक्षण जांगल और आनूपदेश
सुखानुबन्धी आहार के उपयोगका नाम दोनों के मिले हुए हैं, जहां वातादिक दोष
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