Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IA-- - श्रीमद बुद्धिसागरसूरिजी प्रथमाला ग्रंथांक ५७-५८ पाटित श्री लेवलंब्रजीकृत आगमसासेडार. तथा अध्यात्मगीता. श्री कुवरविजयजी (अमीकुवर) कृत टबासह. शा, छगनलाल लक्ष्मीचंद-बडुना. शा. प्रेमचंद दलसुखान-पादराना एमनीय रहायथी छपाने प्रसिद्ध करनार श्री अमात्मज्ञानप्रसारक मंडल हा. वकील महनलाल. हीमचंद्र-पादरा सं. १९७८ सन १९३२ किमत ०-६-० www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक मळवार्नु ठेकाणु:वकील मोहनलाल हीमचंद मु. पादरा ( गुजरात ). वडोदरा-शियापुरामा लुहाणामित्र स्टीम प्रेसमा विठ्ठलभाई आशाराम ठक्करे प्रकाशकने माटे ता. २६-५-२१ ना रोज छापी प्रसिद्ध कयु. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मज्ञानरसीक द्रव्यानुयोगना समर्थ ज्ञाता श्रीमद् देवचंद्रजी महाराजनुं नाम भाग्येन कोइ जैनथी अजाण्युं हशे, आगम ज्ञाननी कुंचीरुप आगमसार नामनो ग्रंथ तेओश्रीए संवत १७७६ ना फागण मासमां मोटाकोटमरोट-मां चोमासु रहीने बनावेल छे. आ ग्रंथनी उत्तमता ग्रंथ पोतेज सिद्ध करे छे तेनी प्रसंशा करवी ते सोनाने गील्ट करवा जेतुं छे जे ग्रंथ वांचवाथी जणाइ आवशे. आ ग्रंथ अध्यात्मज्ञानरसिक श्रीमद् बुद्धिसागर मूरिजी महाराजना सदुपदेशथी वडु तालुके पादराना शा. छगनलाल लक्ष्मीचंद ता. पादराना शा. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेमचंद दलसुखभाइए सं. १९६७ नी सालमा छपावी तेनी १०००) नकल भेट तरीके आपी हती तमाम नकल खपी जवाथी अने तेनी घणी मागणी चालु रहेवाथी उक्त सूरिजी महाराजना सदुपदेशथी तेनी आ बीजी आती पोतानाज खर्चे छपाक्वा सदर बंने ग्रहस्थोनी इच्छा थवाथी मंडळे आ अती उपयोगी ग्रंथनी बीजी आवृती बहार पाडी छे ते माटे ते बंने ग्रहस्थोने धन्यवाद घटे छे. आ ग्रंथ प्रकरण रत्नाकर पहेला भागमा छपायलो छे तेमां तथा पहेली आवृतीमां प्रतिमापूजा तथा गुणस्थानक विचार नामना अगत्यना विषयो छपायला नहोता पण ते पछी श्रीमद् देवचंद्रजी महाराजना बनावेला www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तमाम ग्रंथो छपाववानी प्रवृती करतां आगमसार ग्रंथनी घणी प्रतो भेगी करी जेमां सुरतना श्री मोहनलालजी महाराजना भंडारमांथी बे प्रतो नं. ४०९-५६३ नी मळी तथा पं० श्री लाभविजयजी पासेथी एक प्रत तेमज पादराना भंडारमांथी एक प्रत मळी ते चारे प्रतोमां आ ग्रंथना पृष्ट ५५ नी पहेली लीटीथी शरु थतो प्रतिमापूजानो तथा पृष्ठ २०४ थी शरु थतो गुणस्थानक विचार ए बंने विषयो दाखल हता तेथी आ ग्रंथमां ते जे ते स्थळे दाखल करी लेवामां आवेला छे पादराना भंडारनी प्रत तथा पं. लाभविजयजी वाली प्रत तेओश्रीना पादराना संग्रहमां मोजुद छे. हालनी मोघवारीना लीधे आ ग्रंथनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडतर किंमत ०-१०-० आवेल छतां तेनो विशेष लाभ लेवाय तेटला माटे मंडळना नियम मुजब पडतरथी ओछी मात्र रु. ०-६.० किमत राखवामां आवी छे आत्मार्थी जनो तेनो सारी रीते लाभ लेशे एवी आशा छे. आगमसारनी पहेली आतीमां श्रीमद देवचंद्रजी महाराजनो बनावेल अध्यात्मगीता ग्रंथ टबा सह दाखल कर्यो हतो पण हालमा सदर ग्रंथ उपर श्री कुवरविजयजी अपर नाम अमीकुवरजी माहाराजनो बनावेलो टबो मळी आववाथी ने ते बिस्तारपूर्वक उत्तम रीते लखायलो होवाथी तेटबो आ ग्रंथमा दाखल करवा अमारा परोपकारी गुरु महाराज श्रीमद् बुद्धिरणगर सूरिजी महाराजे प्रेरणा करवाथी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते दाखल करेल छ ने ते एक वखत अवश्य वांची जवा आग्रहपुर्वक भलामण छे. आ ग्रंथ छपाववामां उमेटाना शेठ फुलभाइ मानभाइ जेओ आत्मज्ञाननी रुची वाळा छे तेओए रु. १००) आपेला छे तेमनो तेमज गाम उछदनी बाइ माणेक ते शा. नेमचंद मोतीचंदनी दीकरीए रु. ५०) आपेला छे तेमनो आभार मानवामां आवे छे. छेवटे आ उपयोगी ग्रंथ बहार पाडवा माटे प्रेरणा करनार परम पुज्य गुरु श्री बुद्धिसागरसूरिजी माहाराजनो उपकार मानी आ प्रस्तावना पुर्ण करवामां आवे छे. पादरा-अक्षय । वकील मोहनलाल तृतिया १९७८. हीमचंद. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका. १. आगमसार अणकरण ... ज्ञानस्वरूप ... छ द्रव्यनु स्वरूप आठ पक्षी सात नय , चार निक्षेप , प्रतिमा पूजा चार प्रमाण , सप्तभंगी निगोद , बार व्रत चारित्र, ... चार ध्यान , भावना , ... समकित पंचसमवाय , गुणस्थानक विचार ... २ अध्यात्मगीता :::::::::::::::: www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्धिपत्रक. पृष्ट लीटी अशुद्ध शुद्ध १८ १३ गुण अनंता छे गुण एक छे गुण अनंता छे १९ ५ पर्याय छे पर्याय छे ते अनेक पणुं छे २३ ९ नथी नथी, एमज आकाशास्तिकायने विषे आकाशनाज स्व द्रव्यादिक चार छे पण बीजामां पांच द्रव्यना नथी स्वक्षेत्र ३० १४ द्रव्यक्षेत्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra الله الله الله الله الله ३१ ३३ १४ विछेडशे ३६ ११ क्रव्यार्थिक ३७ 6 ८ अलोकाश २ द्रव्ययम् ३७ ११ द्रव्य ते ३४ ४ भव्यपणं ४४ ५० ५ द्रव्य www.kobatirth.org ५१ १२ घोटा ५४ २ पण ५४ ८ पाखे ६८ १४ भमवती < ९ खास २ एक विरति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ܘܐ अलोकाकाश विछडशे ते नित्ययार्थिक द्रव्यं क्रय एक छे भव्यपणं सिद्धपणं एक सर्व विरति द्रव्य वचनथी ग्रा जाय नहीं पण घोडा पण नाम साखे भगवती साख For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम ९७ १४ ( छेडे उमेधू) एम नयचक्रसारमा कडं छे ९८ ११ नैगमें शुद्ध नैगमे १०३ १० निर्गुणगो निर्गुणनो १०६ २ माटे माटे ११० २ परद्रव्यना परद्रव्यना ११२ ११ युगगत युगपत ११५ १२ रह्यो छे रह्यो छे तथा अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश रह्यो छे ११५ १४ कोइ द्रव्य कोइ द्रव्य कोइ द्रव्य ११६ ७ धर्मास्किाय धर्मास्तिकाय १२४ ९ सागरोपमना सागरोपमनुं छे तेना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४३ ११ पोषाने १४५ ३ उत्सर्ग १६४ ८ तेना १६७ ७ चारित्रनुं १७१ १३ ५ दे २११ ८ एहवी २१२ १३ तेडनो २२१ ११ अव्याक २५४ ७ धन्य २६१ पूर्ण www.kobatirth.org ७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર पोषीने उत्सर्ग अने ते तेवा चारित्र ते मोक्षनुं ५ गणिविजय ६ एहनी तेहनो अव्यापक स्कंध पूर्व For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી અધ્યાત્મજ્ઞાનપ્રસારક મંડળ તરફથી મીમદ્ બુદ્ધિસાગરસૂરિજી ગ્રન્થમાળામાં પ્રગઢ થયેલા અન્યા. પ્રથાંક ૧૪ ૧. જ ભજન સંગ્રહ ભાગ ૧લેા. ૨૦૦ × ૧. અધ્યાત્મ વ્યાખ્યાનમાળા. ૨૦૬ × ૨. ભજનસંગ્રહ ભાગ ૨ જો × ૩. ભજનસમઠુ ભાગ ૩ જો. × ૪. સમાધિ શતકમ્ ૩૩૬ ૨૧૫ ૦-૮૦ ૩૪૦ sa 0--2--0 .****0 * {ve ૦-૧૨૦ ૦-૧૨૦ 0*X*2 0--9--0 × ૫. અનુભવ પચ્ચિશી, ૬. આત્મપ્રદીપ. × ૭, ભજનસમહ ભાગ ૪ થા ૮. પરમાત્મદર્શીન. www.kobatirth.org ૨૪૮ ૩૧૫ ૩૦૮ ૪૩૨ ૫૦૦ × ૯. પરમાત્મજ્યંતિ. × ૧૦. તત્ત્વબિંદુ. ૨૩૦ × ૧૧. ગુણાનુરાગ. (આવૃત્તિ ખી૭) ૨૪ × ૧૨-૧૩. ભજનસમઠુ ભાગ ૫ મે તથા જ્ઞાનદીપિકા, ૧૫૦ મિત 0-7-0 0--X--0 0--(~0 0-1-0 For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ૧૪. તીર્થયાત્રાનું વિમાન (આ બીજી;૬૪ ૦-૧૦૦ ૪ ૧૫. અધ્યામ ભજન સંગ્રહ ૧૯૦ ૦ -૬-૦ X ૧૬. ગુરૂધ. ૧૨ ૦-૪-૦ * ૧૭. તત્વજ્ઞાનદીપિકા ૧૨૪ ૦-૬-૦ ૧૮. ગહુલીસંગ્રહ ભા. ૧ ૧૧૨ ૦૯-૩-૦ ૪ ૧૮-૨૦ શ્રાવકધર્મસ્વરૂપ ભાગ ૧ –૨ (આવૃત્તિ ત્રીજી) ૪૦-૪૦-૧-૦ ૪ ૨૧૦ ભજન પદ સંગ્રહ ભાગ ૬ છે. ૨૦૮ ૦-૧૨-૦ ૨૨. વચનામૃત. ૩૦૮ ૦- ૧૦ ૨૩. યોગદીપક ૨૬૮ ૦-૧૪-o ૨૪. જન અતિહાસિક રાસમાળા. ૪૦૮ ૧–૦-૦ ૪ ૨૫. આનન્દઘન પદસંગ્રહ ભાવાર્થ સહિત. ૮૦૮ ૨-૮--૦ * ૨૬. અધ્યાત્મ શાન્તિ (આવૃત્તિ બીજી) ૩૨ ૦-૩-૦ ૨૭. કાવ્યસંગ્રહ ભાગ ૭ મે, ૧૫૬ ૦-૮-૦ * ૨૮. જૈનધર્મની પ્રાચીન અને અર્વાચીન સ્થિતિ. ૮૬ ૦- ૨૦ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ૨૯ કમારપાલ ચરિત્ર (હિદી) ૨૮૭ ૦-૬૦૦ ૩૦. થી ૩૪. સુખસાગર ગુરૂગીતા. ૩૦૦ ૦-૪-૦ ૩૫. બદ્રવ્ય વિચાર. ૨૪૦ ૧-૪-૦ ૪ ૩૬. વિજાપુર વૃતાંત. ૯૦ ૦-૪૦ ૩૭. સાબરમતી કાવ્ય ૧૯૬ ૦૬-૦ ૩૮. પ્રતિજ્ઞા પાલન. ૧૧૦ ૦૫-૦ ૩૯-૪૦-૪. જેનગમત પ્રબંધ. સંધપ્રગતિ. જૈનગીતા. ૧-૦-૦ ૪૨. જેન ધાતુ પ્રતિમા લેખ સંગ્રહ. ૧-૦-૦ ૪૩. મિત્રમૈત્રી. ૦-૮૦ ૪ ૪૪. શિષ્યોપનિષ ૦-૨૦ ૪૫. જૈનોપરિષ. ૪૮ ૯-૨૦-૦ ૪૬-૪૭, ધાર્મિક ગદ્ય સંગ્રહ તથા પત્ર સદુપદેશ. ભાગ ૧ લો. ૮૭૬ ૩-૦૦ ૪૮. ભજન સંગ્રહ ભા. ૮ ૪૦૪ ૩-૦-૦ ૪૯. શ્રીમદ્ દેવચંદ્ર ભા. ૧ ૧૦૨૮ ૨-૦-૦ ૫૦. કર્મવેગ ૧૦૧૨ ૩૦૦૦ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૫૧. આત્મતત્વ દર્જન ૧૨ ૦૦૦ ૫૨. ભારત સહકાર શિક્ષણ ૧૬૮ ૦-૧૦-૨ ૫૩. શ્રીમદેવચંદ્ર ભા. ૨ ૧૨૦૦ ૩-૮૦ ૫૪. ગડુલી સંગ્રહ ભા ૨ ૧૭૦ ૦૦૪-૦ ૫૫. કર્મપત્તિરીકાભાષાંતર ૮૦૦ ૩-૦૦ ૫૬. ગુરૂગીત ગુહલી સંગ્રહ ૧૯૦ ૦- ૨- ૫૭-૫૮ આગમસાર અને અધ્યાત્મગીતા, ૪૭૦ ૦-૬-૦ ૪ આ નીશાની વાળા ગ્રંથ સીલકમાં નથી ઉપરનાં પુસ્તકે મળવાનું ઠેકાણું વકીલ મોહનલાલ હીમચંદ (ગુજરાત) પાદરા www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्रीमत्पंडितश्रीदेवचंद्रजीकृत ॥ आगमसार. भव्यजीवने प्रतिबोधवा निमित्ते मोक्षमार्गनी वचनिका कहे छे. तिहां प्रथम जीव अनादिकालनो मिथ्यात्वी हतो ते काललब्धि पामीने त्रण करण करे छे. तेनां नाम-पहेलं यथाप्रवृत्ति करण, बीजुं अपूर्व करण, अने त्रीजु अनिवृत्ति करण, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तेमां पहेलुं यथाप्रवृत्ति करण कहे छे. १ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ अंतराय, ए चार कर्मनी त्रोस कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी ओगणत्रीस कोडाकोडी खपावे अने एक कोडाकोडी वाकी राखे, तथा १ नामकर्म, २ गोत्रकर्म, ए बे कर्मनी वीस कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, तेमांथी ओगणीस खपावे अने एक कोडाकोडी राखे, अने मोहनीयकर्मनी सित्तेर कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे. तेमांथी अगणोतेर खपावे, बाकी एक कोंडाकोडी शेष राखे । एवी रीते एक आयुकर्म वर्जीने बाकी साते कर्मनी एकपल्योपमना असंख्यातमा भागेन्यून एक कोडाकोडी सागरोपमनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, स्थिति राखे, एवो जे वैराग्यरूप उदासी परिणाम तेने यथाप्रवृत्तिकरण कहिये. ए पहेलं करण, सर्वसंज्ञी पंचेंद्रीजीव अनन्तीवार करे छे. __ हवे बीजं अपूर्वकरण कहे छे. ते एक कोडाकोडी सागरोपमनी स्थितिमा हेथी एक मुहूर्त अने अनादि मिथ्यात्व जे अनंतानुबंधीआनी चोकडी ते खपाववाने अज्ञान हेय ते छोडवू, अने ज्ञान उपादेय एटले आदरवू, ए वांछारूप अपूर्व कहेतां पहेलां क्यारे न आव्यो एवो जे परिणाम ते अपूर्व करण कहीये, ए बीजं करण ते समकितयोग्य जोवने थाय. हवे त्रीजुं अनिवृत्ति करण कहे छे. ते महर्तरूप स्थिति खपावाने निर्मल शुद्ध सम www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कित पामे मिथ्यात्वनो उदय मटे त्यारे जीव उपशम समकित पामे, एवो जे परिणाम ते. अनिवृत्ति करण कहिये. ए करण कीधाथी गंठीभेद थयो कहीये. उक्तंश्च आवश्यकनियुक्तौ " जा गंठी ता पढमं । गंठीसमय छेओ भवेबीओ ॥ अनिअट्टिकरणं पुण। समत्तपुरक्खडेजीवे ॥ १ ॥ ऊसर देसं दढलियं च । विज्जाइ वणदवो पप्प इय ॥ मिच्छत्तस्साणुदए। उवसमसम्मं लहइ जीवो ॥ २ ॥ एम मिथ्यात्वनो उदय मट्याथी जीव समकित पामे, ते समकितनी सद्दहणाना वे भेद छे, एक व्यवहार समकित सदहणा, बीजी निश्चय समकित सदहणा. देवश्रीअरिहंत देवाधिदेव, अने गुरु www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऑगमसार सुसाधु जे सूधो अर्थ कहे ते, तथा धर्म केवलीनो प्ररुप्यो जे आगमयां सातनय तथा एक प्रत्यक्ष बीउँ परोक्ष ए वे प्रमाण अने चार निक्षेपे करी सहहे, एवी सद्दहणा ते व्यवहार समकित कहिये. ए पुण्य, कारण तथा धर्म प्रगट करवाचं कारण छे एत्री रुचि ज्ञानविना पण घणा जीवोने उपजे. बीजु निश्चयसमकित ते आवी रीते जे निश्चय देव ते आपणोज आत्मा जीव निष्पन्नस्वरूपी सिद्ध ते संग्रहनयनी सत्तागवेपतां, तथा निश्चयगुरु ते पण आपणो आत्मान तत्त्वरमणो, अने निश्चयधर्म ते आपणा जोमानो सभावज छे एवी सद्दहणा ते मोक्ष कारण छे केनके जीव स्वरूप ओलख्या चिना कार्य खपे नहीं www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ आगमसार. एवी शुद्ध सद्दहणा ते निश्चयसमकित . हवे ज्ञाननुं स्वरूप कहे छे ते ज्ञानना वे भेद छे. एक व्यवहारज्ञान, बीजुं निश्चयज्ञान, तेमां अन्यमतिनां सर्वशास्त्र जाणवां अथवा जैनागममध्ये कला जे एकगणितानुयोग ते क्षेत्रमान, बीजो चरणकरणानुयोग ते क्रियाविधि, त्रीजो धर्मकथानुयोग ए त्रण अनुयोगनुं जाणवापशुं ते सर्व व्यवहारज्ञान छे अथवा अन्तरउपयोगविना जे सूत्रना अर्थ करवा ते पण व्यवहारज्ञान कहियें. हवे निश्चयज्ञान ते छ द्रव्य तथा तेना गुण अने पर्याय सर्वने जाणे तेमां पांच अजीव द्रव्य छे ते हेय-कहेतां छांडवायोग्य जाणी छांडवा, अने एक जीवद्रव्य ते निश्चयेंकरी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. सिद्धसमान मोक्षमयी मोक्षनो जाणनार मोक्षनुं कारण मोक्षनो जावावालो मोक्षमांज रहे छे एहवो आपणो जीव अनंतगुणी अरूपी छे तेनेज ध्यावे ते निश्चयज्ञान कहियें. एक धर्मास्तिकाय बीजो अधर्मास्तिकाय, त्रीजी आकाशास्तिकाय, चोथो पुद्गलास्तिकाय, पांचमो जीवास्तिकाय, अने छट्टो काल ए छ द्रव्य शाश्वता छे. तेनुं ज्ञान कहे छे. ए छ द्रव्य मध्ये पांच अजीव द्रव्य छे अने एक जीव द्रव्य ते चेतनालक्षणवंत छे. उपादेय छे. www.kobatirth.org हवे ए छ द्रव्यना गुण कहे छे. पहेलो धर्मास्तिकायना चार गुण एक अरूपी, बीजो For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अचेतन, बीजो अक्रिय, चोथो गतिसहायगुण. वीजा अधर्मास्तिकायना पण चार गुण छे. एक अरूपी, बीजो अचेतन त्रीजो अक्रिय, अने चोथो स्थितिसहायगुण. त्रीजा आकाशास्तिकायद्रव्यना चार गुण छे. एक अरूपी, बीजो अचेतन, त्रीजो अक्रिय, चोथो अवगाहना दानगुण. हवे कालद्रव्यना चार गुण कहे छे. एक अरूपी, बीजो अचेतन, त्रीजो अक्रिय, चोथो नवापुराणवर्त्तनालक्षण. हवे पुद्गलद्रव्यना चार गुण कहे छे. एक रूपी, बीजो अचेतन, त्रीजो सक्रिय, चोथो मिलणविखरणरूप पूरणगलन गुण. हवे जीवद्रव्यना चार गुण कहे छे. एक अनंतज्ञान, बीजो अनंतदर्शन, बीजो अनन्तचारित्र, चोथो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अनंतवीर्य, ए छ द्रव्यना गुण का ते नित्य ध्रुव छे. हवे छ द्रव्यना पर्याय कहे छे. धर्मास्तिकायना चार पर्याय छे. एक खंध, वीजो देश, त्रीजो प्रदेश, चोथो अगुरुलघु, अवर्मास्तिकायना चार पर्याय. एक खेत्र, वोजो देश, त्रीजो प्रदेश, चोथो अगुरुलघुः पुद्गलद्रव्यना चार पर्याय. एक वर्ण, बोजो गंध, चीजो रस, चोथो स्पर्श अगुरुलघुसहित; तथा आकाशास्तिकायना चार पर्याय. एक खंध, बीजो देश, बीजो प्रदेश, चोथो अगुरुलघुः कालद्रव्यना चार पर्याय. एक अतीत काल, बोजो अनागत काल, बीजो वर्तमान काल, चोथो अगुरुलघुः अने जीव द्रव्यना चार पर्याय. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. एक अव्यावाध, बीजो अनवगाह, त्रीजो अमूर्तिक, चोथो अगुरुलघु. ए छ द्रव्यना पयोय कह्या. हवे छ द्रव्यना गुणपर्यायनुं साधर्म्यपणुं कहे छे. अगुरु लघुपर्याय सर्वद्रव्यमां सरीखो छे अने अरूपीगुण पांच द्रव्यमा छे. एक पुद्गलद्रव्यमां नथी; तथा अचेतनगुण पांच द्रव्यमां छे. एक जीवद्रव्यमां नथी, अने सक्रियगुण जीव तथा पुद्गल ए बे द्रव्यमा छे. बाकी चार द्रव्यमा नथी; तथा चलणसहायगुण एक धर्मास्तिकायमां छे, बीजा पांच द्रव्यमां नथी; वली स्थिरसहायगुण एक अधर्मास्तिकायमांछे. बीजा पांच द्रव्यमां नथी; तथा अवगाहनाराण ते एक आकाशदव्यमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार छे, बीजा पांच द्रव्यमां नथी; अने वर्तनागुण ते एक कालद्रव्यमांज छे, बीजा पांच द्रव्यमां नथी; तेमन मिलणविखरणगुण ते पुद्गलमांछे, बीजा द्रव्यमां नथी तथा ज्ञान-चेतना गुण ते एक जीव द्रव्यमां छे, पण वीजा द्रव्यमां नथी. ए मूलगुण कोइ द्रव्यना कोइ द्रव्यमां मिले नही. एक धर्म वीजो अधर्म, त्रीजो आकाश, ए त्रण द्रव्यना त्रण गुण तथा चार पर्याय सरिखा छे अने त्रण गुणें करी तो काल द्रव्य पण ए समान छे. हवे वली अग्यार बोले करी छ द्रव्यना गुण जाणवाने गाथा कहे छे. परिणामी जीव मुत्ता, सपएसा एग खित्त किरिआय। निच्चं कारण कत्ता,सवगय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર इयर अपवेसे | १ | अर्थ - निश्रयनयथी आप आपणा स्त्रभावे छए द्रव्य परिणामी छे अने व्यवहारनयथी जीव तथा एल ए वे द्रव्य परिणामी छे तथा एक धर्म, वोजो अधर्म, बीजो आकाश अने चोथो काल, ए चार द्रव्य अपरिणामी छे. तथा छ द्रव्यमां एक जीव द्रव्य ते जीव छे, बीजा पांच द्रव्य अजीव छे तथा छ द्रव्यमां एक पुद्गल रूपीछे अने पांच द्रव्य अरूपी छे. छ द्रव्यमां पांच द्रव्य सप्रदेशी छे, अने एक काल द्रव्य अमदेशी छे. तेमां एक धर्मास्तिकाय वीजो अधर्मास्तिकाय ए वे द्रव्य असंख्यात प्रदेशी छे अने एक आकाशद्रव्य अनंतप्रदेशी छे. जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी For Private And Personal Use Only www.kobatirth.org आगमसार. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. छे, पुद्गलपरमाणु * अनंतप्रदेशी छे, परमागुओ अनंता छे एम पांच द्रव्य सप्रदेशी छ अने छटो काल अप्रदेशी छे. छ द्रव्यमां एक धर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय, त्रीजो आकाशास्तिकाय ए त्रण ते एकेक द्रव्य छे, तथा एक जीव द्रव्य बीजो पुद्गल द्रव्य त्रीजो कालद्रव्य ए त्रण अनेकअनेक छे, छ द्रव्यमां एक आकाशद्रव्य क्षेत्र छे, अने बीजा पांच द्रव्य क्षेत्री छे निश्चयनयथी छ द्रव्य पोतपोताना कार्ये सदा प्रवर्ते छे माटे सक्रिय छ; अने व्यवहारनयथी जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य सक्रिय छे, तेमां पण पुद्गल सदा सक्रिय छे, अने जीव द्रव्य * पुद्गलास्तिकायना स्कन्धो पर्यायो अनन्तप्रदेशी छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तो संसारी थको सक्रिय छे; पण सिद्धअवस्थायें थको संसारी क्रिया करवाने अक्रिय छे तथा बाकीना चार द्रव्य तो अक्रिय छे निश्चयनयथी छ द्रव्य नित्य छे. ध्रुव छे अने उत्पादव्ययें करी अनित्यपणे पण छे तथा व्यवहारनयें जीव अने पुद्गल ए वे द्रव्य अनित्य छे, बाकीना चार द्रव्य नित्य छ, यद्यपि उत्पादव्ययध्रुवपणे सर्व पदार्थ परिणमे छे नोपण एक धर्म, बीजो अधर्म, त्रीजो आकाश, चोथो काल, ए चार द्रव्य सदा अवस्थित छे ते माटे नित्य कह्यां. छ द्रव्यमा एक जीव द्रव्य अकारण छ अने पांच द्रव्य कारण छे. केमके पांचे द्रव्य जीवने भोगमां आवे छे मादे कारण कहिये. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. केमके धर्मास्तिकाय चालवामां साह्य आपे छे. अधर्मास्तिकाय थिर रहेवामां साह्य आपे छे. आकाशास्तिकाय अवकाश आपे छे. पुद्गलास्तिकाय जीवने मधुरादि, सुरभिगंधादिक तथा सकोमल स्पर्शादिक भोगपणे थाय छे तथा कालद्रव्य ते जीवने जरा, बाल, तारुण्य अवस्था दिएछे, तथा अनादि संसारी जीव भवस्थिति परिपाक छतां एक अंतमुहूर्तकालमां सकलकर्म निर्जरी मोक्ष पहोंचे तिहां सिद्ध अवस्थायें अनंतोकाल पर्यंत जीव अनंता सुखने विलसे माटे कालद्रव्य पण जीवने भोग थाय छे. पण एक जीव द्रव्य कोइने भोग आवतो नथी माटे अकारण कयुं अने पांच द्रव्य भोग आवे माटे कारण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ कां तथा घणी प्रतोमां तो संक्षेपे एटलं छे जे छ द्रव्यमां एक जीव द्रव्य कारण छे. पांच द्रव्य अकारण छे ए पण वात घणी रीतें मलती छे. माटे जे बहुश्रुत कहे ते खरुं. मारी धारणा प्रमाणे जीवद्रव्य कारण अने पांच द्रव्य अकारण एम संभवे छे " निश्वयनयथी छए द्रव्य कर्त्ता छे अने व्यवहारनये एक जीवद्रव्य कर्त्ता छे. बाकी पांच द्रव्य अकर्त्ता छे. छ द्रव्यमां एक आकाशद्रव्य सर्वव्यापी छे, अने पांचद्रव्य लोक व्यापी छे. छए द्रव्य एक मां एकठां रह्यां छे पण एक बीजा साथे मली जाय नहीं एछ द्रव्यनो विचार कहो. हवे एकेका द्रव्यमां एक नित्य, बीजो www.kobatirth.org आगमसार. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अनित्य त्रीजो एक चोथो अनेक, पांचमो सत् , छठो असत् , सातमो वक्तव्य, आठमो अवक्तव्य, ए आठ आठ पक्ष कहे छे, धर्मास्तिकायना चार गुण नित्य छे तथा पर्यायमां धर्मास्तिकायनो एक खंध नित्य छे. बाकीना देश प्रदेश तथा अगुरुलघु पर्याय अनित्य छे. अधर्मास्तिकायना चार गुण तथा एक लोकप्रमाण खंध नित्य छे अने एक देश, बीजो प्रदेश, त्रीजो अगुरुलघु ए त्रण पर्याय अनित्य छे. तथा आकाशास्तिकायना चार गुण तथा लोकालोकामाणखंध नित्य छे अने एक देश, बीजो प्रदेश, त्रीजो अगुरुलघु ए पर्याय अनित्य छे. तथा कालद्व्यना चार गुण नित्य छे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अने चार पर्याय अनित्य छे. पुद्गल द्रव्यना चार गुण नित्य अने चार पर्याय अनित्य छे. जीवद्रव्यना चार गुण तथा त्रण पर्याय नित्य छे अने एक अगुरुलघु पर्याय अनित्य छे. ए रीते नित्यानित्यपक्ष कह्यो. हवे एक अनेकपक्ष कहे छे. एक धर्मास्तिकाय बीजो अधर्मास्तिकाय. ए बे द्रव्यनो खंध लोकाकाशप्रमाण एक छे अने गुण अनेक छे. पर्यायअनंता छे. प्रदेश असंख्याता छे, तेणे करी अनेक छे, आकाशद्रव्यनो लोकालोकप्रमाणबंध एक छे अने गुण अनंता छे. पर्याय अनंता छे. प्रदेशअनंता छे. माटे अनेक छे, काल द्रव्यनो वर्तनारुप गुण अनंता छ, पर्याय अनंता छे, केमके समय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अनंता छे. अतीत काले अनंतासमय गया अने अनागतकाले अनंता समय आवशे. तथा वर्तमानकाले समय एक छे माटे अनेक पक्ष छे. पुद्गलद्रव्यना परमाणु अनंता छ ते एकेक परमाणुमां अनंतागुण पर्याय छे अने सवे परमाणुमां पुदलपणु ते एकज छे माटे एक छे. जीवद्रव्य अनंता छे. एकेका जीवमां प्रदेश असंख्याता छे. तथा गुण अनंता छे. पर्याय अनंता छे ते अनेकपणुं छे पण जीवितव्यपणुं सर्वजीवनु एकसरी छे माटे एकपणुं छे. इहां शिष्य पुछे छे जे सर्व जीव एक सरीखा छे तो मोक्षनाजीव सिद्ध परमानंदमयी देखाय छे अने संसारीजीव कर्मवश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० आगमसार. पड्या दुःखी देखाय छे अने ते सर्व जुदा जुदा देखाय छे ते केम ? तेहने गुरु उत्तर कहे छे के निश्चयनये तो सर्व जीव, सिद्ध समान छे माटेज सर्व जीव कर्म खपावीने सिद्ध थाय छे तेथी सर्व जीवनी सत्ता एक के. फरि शिष्य पुछे छे के जो सर्व जीव सिद्ध समान कहो छो तो अभव्य जीव पण सिद्ध समान छे एम ठेरयुं (ठ) अने ते तो मोक्षे जता नथी, तेहने ए उत्तर जे अभव्यमां परावर्त्त धर्म नथी तेथो सिद्ध थता नथी माटे तेनो एहवोज स्वभाव छे जे मोक्षे जवंज नथी अने भव्यजीवमां परावर्त्त धर्म छे माटे कारण सामग्री मिले पलटण पामे, गुणश्रेणि चढो मोक्ष करी सिद्ध थाय पण जीवना मुख्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. आठ रुचक प्रदेश जे छे ते निश्चयनयथी भव्य तथा अभव्य सर्वना सिद्ध समान छे माटे सर्व जीवनी सत्ता एक सरीखी छे केमके ए आठ प्रदेशने बिलकुल कम लागतां नथी ते " श्री आचारांग सूत्रनी श्री सिलांगाचार्य कृत टीकाना लोकविजयाध्ययने प्रथमोद्देशके साख छे तिहाथी सविस्तरपणे जोQ. " हवे सत् तथा असत् पक्ष कहे छे. ए छ द्रव्य ते स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, अने स्वभावपणे सत् एटले छता छे अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल तथा परभावपणे असत् एटले अछता छे तेनी रीत बताववाने अर्थे छए द्रव्यना द्रव्य क्षेत्र काल भाव कहिये ,ये. धर्मास्तिकायनो मूलगुण चलण सहाय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨ पणो ते स्वद्रव्य, अधर्मास्तिकायनो मूलगुण स्थिति सहायपणो ते स्वद्रव्य, आकाशास्तिकायनो मूल गुण अवगाहपणो ते स्वद्रव्य, कालद्रव्यनो मूल गुण वर्त्तनालक्षणपणो ते स्वद्रव्य, तथा पुद्गलनो मूलगुण पुरणगलनपणो ते स्वद्रव्य अने जीवद्रव्यनो मूलगुण ज्ञानादिक चेननालक्षणपणो ते स्वद्रव्य ए छद्रव्यनो स्वद्रव्यपणो कह्यो. आगमसार. www.kobatirth.org हवे स्वक्षेत्र ते यो प्रदेशपणो छे ते देखाडे छे. तिहां एकधर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय. ए वे द्रव्यनो स्वक्षेत्र असंख्य प्रदेश छे अने आकाशद्रव्यनो स्वक्षेत्र अनंत प्रदेश छे. कालद्रव्यनो स्वक्षेत्र समय छे. पुनलद्रव्यनो स्वक्षेत्र एक परमाणु छे ते परमाणु For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अनंता छ. जीवद्रव्यनो स्वक्षेत्र एक जीवना असंख्याता प्रदेश छे. हवे स्वकाल ते छए द्रव्यमा अगुरुलघुनोज छे अने ए छ द्रव्यना पोतपोताना गुण पर्याय ते सर्व द्रव्यनो स्वभाव जाणवो. एटले धर्मास्तिकायमा पोतानाज द्रव्य क्षेत्र काल भाव छे पण बीजा पांच द्रव्यना नथी. तथा अधर्मास्तिकाय द्रव्य मध्ये पण स्वद्रव्यादिक्क चार छे. पण बीजा पांच द्रव्यना नथी. कालद्रव्यमां कालना द्रव्यादिक चार छे बीजापांच द्रव्यना नथी अने पुद्गलना द्रव्यादिक चार ते पुद्गलमांज छे पण बीजा पांच द्रव्यना नथी स्था जीव द्रव्यना स्वसादिक चार ते जीवमां छे पण बीजा पनि बगाना नथी. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जे द्रव्य ते गुण पर्यायवंत, द्रव्यथी अभेदपर्याय होय ते द्रव्य कहिये तथा स्वधर्मनो आधारवंतपणो ते क्षेत्र कहियें अने उत्पाद व्ययनीवर्तना ते काल कहिये तथा विशेष गुण परिणति स्वभाव परिणति पर्याय प्रमुख ते स्वभाव कहियें. ए रीते छ ए द्रव्य स्वगुणे सत् छे अने पर गुणे असत् छे. हवे वक्तव्य तथा अवक्तव्य पक्ष कहे छे. ए छ द्रव्यमां अनंता गुणपर्याय ते वक्तव्य एटले वचने कहेवा योग्य छे अने अनंता गुणपर्याय ते अवक्तव्य एटले वचने कह्या जाय नहीं एवा छे. तिहां केवली भगवंते समस्त भाव दीठा तेने अनंतमे भागे जे वक्तव्य एटले कहेवा योग्य हता ते कया वली तेनो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसाग. अनंतमो भाग श्रीगणधरे मूत्रमा गुंथ्यो तेना असंख्यातमे भागे हमणां आगम रह्यां छे ए आठपक्ष कह्या. इहां १ भेद स्वभाव, २ अभेदस्वभाव ३ भव्यस्वभाव. ४ अभव्यस्वभाव. ५ परमस्वभाव. ए पांच स्वभाव कहेवा. तेमां द्रव्यना सर्व धर्मने पोतपोताना स्वस्वकार्यने करवे करी भेद स्वभाव छे अने अवस्थानपणे अभेद स्वभाव छे. अणपलटण स्वभावे अभव्य स्वभाव छे. तथा पलटण स्वभावे भव्य स्वभाव छे अने द्रव्यना सर्व धर्म ते विशेष धर्मने अ. नुयायीज परिणमे ते माटे ते परम स्वभाव कहिये. ए सामान्य स्वभाव जाणवा. हवे नित्य तथा अनित्य पक्षथी चौभंगी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ आगमसार. उपनी ते कहे छे एक जेनी आदि नथी अने अंत पण नथी ते अनादि अनंत पहेलो भांगो अने जेनी आदि नथी पण अंत छे ते अनादि सांत बीजो भांगो तथा जेनी आदि पण छे अंत एटले छेहेडो पण छे ते सादि सांत बीजो भांगो वली जेहने आदि छे पण अंत नथी ते सादि अनंत नामे चोथो भांगो जाणवो. हवे ए चार भांगा छ द्रव्यमां फलावी देखाडे छे. जीव द्रव्यमां ज्ञानादिक गुण ते अनादि अनंत छे नित्य छे, अने भव्य जीवने कर्म साथ संबंध तथा संसारीपणानी आदि नथी पण सिद्ध थाय तेवारे अंत आव्यो तेथी ए अनादि सांत भांगो छे, अने देवता तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ नारकी प्रमुखना भव करवा ते सादि सांत भांग के अने जे जीव कर्म खपावी मोक्ष गया तेनी सिद्धपणे आदि छे अने पाछो संसारमां कोइ काले आववुं नथी माटे अंत नथी तेथी ए सादि अनंत भांगो छे. ए जीव द्रव्यमां चौभंगी कही. जीव द्रव्यना चार गुण अनादि अनंत छे. जीवने कर्म साथै संयोग ते अनादि सांत छे केमके केवारे पण कर्म छूटे छे. 2 www.kobatirth.org आगमसार. वे धर्मास्तिकायम चार गुण तथा खंधपणो ते अनादि अनंत छे अने अनादि सांत भांगो नथी तथा १ देश २ प्रदेश ३ अगुरुलघु ए सादि सांत भांगो छे. तथा सिद्धना जीवमां धर्मास्तिकायना जे प्रदेश रह्या छे ते प्रदेश आश्रयीने सादि अनंत भांगो छे For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ आगमसार. एवीज. रीते अधर्मास्तिकायमां पण चौभंगी जाणवी अने आकाश द्रव्यमा गुण तथा खंध अनादि अनंत छे बीजों भांगो नथी अने १ देश २ प्रदेश तथा ३ अगुरुलघु सादि सांत छे तथा सिद्धना जीवनी साथ संबंध ते सादि अनंत छे. पुद्गल द्रव्यमा गुण अनादि अनंत छे. जीव पुद्गलनो संबन्ध अभव्यने अनादि अनंत छे.* भव्य जीवने अनादि सांत छे पुदलना खंध सर्व सादि सांत छे जे खंध बांध्या ते स्थिति प्रमाणे रही खरे छ वली नवा बंधाय छे माटे सादि अनंत भांगो पुद्गलमां नथी. * एसंततिपणे जाणनो-आ शब्दो जुनी प्रतमा छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कालद्रव्यमां गुण चार अनादि अनंत छ, पर्यायमां अतीतकाल अनादि सांत छे अने वर्तमानकाल सादि सांत छै; अनागतकाल सादि अनंत छे. ए कालनुं स्वरूप ते सर्व उपचारथी छे. ए रीते कालद्रव्यमां चौभंगी कही. हवे द्रव्य क्षेत्र काल तथा भावमां चौभंगी कहे छे. जीव द्रव्यमा स्वद्रव्यथी ज्ञानादिक गुण ते अनादि अनंत छे.स्वक्षेत्रे जीवना प्रदेश असंख्याता छे ते सादि सांत छे तप्तोदक उद्वर्त्तनापणे फरे छे ते माटे अथवा अवगाहना माटे सादि सांत छ पण छतीपणे तो अनादि अनंत छे. स्वकाल अगुरु लघुने गुणे अनादि अनंत छे अने अगुरु लघु गुणनो उपजवो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० आगमसार. तथा विणशवो ते सादि सांत छ. तथा स्वभाव ( सर्व भाव ) गुण पर्याय ते अनादि अनंत छे अने भेदान्तरे अगुरुलघु ते सादि सांत छे. धर्मास्तिकायमा स्वद्रव्य जे चलण सहाय गुण ते अनादि अनंत छे अने स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश लोक प्रमाण छे ते अवगाहनापणे सादि सांत छ. स्वकाल ते अगुरुलघु गुणे करी अनादि अनंत छे अने उत्पाद व्यय ते सादि सांत छे स्वभाव ते चार गुण अगुरुलघु अनादि अनंत छे १ खंघ २ देश ३ प्रदेश ते अवगाहनाने प्रमाणे सादि सांत छ एम अधमास्तिकायना पण द्रव्यादि चार भांगा जाणवा तथा आकाशास्तिकायमा स्वद्रव्य अवगाहनादान गुण ते अनादि अनंत छे अने द्रव्यक्षेत्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. लोकालोक प्रमाण अनंत प्रदेश ते अनादि अनंत छे. स्वकाल ते अगुरुलघुगुण सर्वथापणे अनादि अनंत छे अने उपजवे तथा विणसवे सादि सांत छे स्वभावते चार गुण तथा खंध अने अगुरुलघु ते अनादि अनंत छे तथा देश प्रदेश ते सादि सांत छे ते आकाश द्रव्यना बे भेद छे एक चौदराज लोकनो खंध लोकाकाश ते सादि सांत छे बीजो अलोकाशनों खंध ते सादि अनंत छे.* ____ * चउदराज लोकनो खंध लोकाकाश सादि सांत छे ते आवी रीते जे लोकना मध्यभागे आठ रुचक प्रदेशथी मांडीने सादि छे जिहां चउदराज लोकनो अंत आवे तिहां सांत तथा चउदराज लोकनो छेलो प्रदेश मूकीने पछे अलोकनी आदि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. काल द्रव्यमा स्वद्रव्य जे नवा पुराणवतैना गुण ते अनादि अनंत छे स्वक्षेत्र समय (काल) ते सादि सांत छे केमके वर्तमान समय एक छे ते माटे तथा स्वकाल ते अनादि अनंत छे. स्वभाव ते गुण चार अने अगुरुलघु अनादि अनंत छे. अतीत काल अनादि सांत छे अने वर्तमानकाल सादि सांत छे अनागत काल सादि अनंत छे. पुद्गल द्रव्यमां स्वद्रव्य ते द्रव्यपणे जे पूरणगलन धर्म ते अनादि अनन्त छे अने स्वक्षेत्र परमाणु ते सादि सांत छे. स्वकाल स्थिति अगुरुलघु गुण ते अनादि अनंत छे. लेवी पण अलोकनो अंत नथी माटे सादि अनंत कां छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अगुरुलघुनो उपजवो विणसवो ते सादि सांत छे. स्वभावते गुण चार अनादि अनंत छे. वर्णादि पर्याय चार एटले वर्ण गंध रस स्पर्श ते सादि सांत छे. ए द्रव्यादि चारमा चौभंगी कही. ___ हवे छ द्रव्यना संबन्ध आश्री चौभंगी कहे छे, तिहां प्रथम आकाश द्रव्य छे तेमां अलोकाकाशमां कोइ द्रव्य नथी अने लोकाकाशमां छ द्रव्य छ, तिहां लोकाकाश द्रव्य तथा बीजु धर्मास्तिकाय द्रव्य अने त्रीजु अधर्मास्तिकाय द्रव्य ते अनादि अनंत संबंधी छे जे लोकाकाशना एकेक प्रदेशमा धर्म द्रव्य तथा अधर्म द्रव्यनो एकेक प्रदेश रह्यो छे ते पण किवारे विछेडसे नहीं मादे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, अनादि अनंत संबंधी छे. आकाश खेत्र लोक सर्व अने जीव द्रव्यनो अनादि अनंत संबंध छे, अने संसारी जीव कर्म सहित तथा लोकना प्रदेशनो सादि सांत संबन्ध छे. लोकांत सिद्ध क्षेत्रना सिद्ध जीवोनो आकाश प्रदेश साथे सादि अनंत संबन्ध छे, लोकाकाश अने पुगल द्रव्यनो अनादि अनंत संबन्ध छे, आकाश प्रदेशनी साथे पुद्गल परमाणुनो सादि सांत संबन्ध छे. एम आकाश द्रव्यनीपरे धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्ति कायनो पण सर्व संबन्ध जाणवो. जीव अने पुद्गलना संबन्धमां अभव्य जीवने पुद्गलनो अनादि अनंत संबंध छे, केमके अभव्य जीवनां कर्म किवारें खपशे नहीं मादे, अने भव्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'आगमलार. जीवने कर्मन लागवू अनादि कालर्नु छ पण ते किवारेक छुटशे माटे भव्य जीवने पुद्गल संबंध अनादि सांत छे. तथा निश्चयनयेकरी छ द्रव्य स्वभाव परिणाम परिणम्या छे ते परिणामीपणो सदा शाश्वतो छे ते माटे अ. नादि अनंत छे अने जीव तथा पुद्गल बेहु द्रव्य मलि बंध भाव पामे छे ते पर परिणामीपणो छे ते परपरिणामिपणो अभव्य जीबने अनादि अनंत छे अने भव्य जीवने अनादि सांत छे अने पुद्गलनो परिणामी पणो ते सत्ताये अनादि अनंत छे अने पुद्गलनो मिलवो विछडवो ते सादि सांत के एटले जीव द्रव्य पुद्गल साथे मिल्यो सक्रिय के अने पुद्गल कर्मथी रहित थाय तेवारे जीव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ आगमसार. द्रव्य अक्रिय छे अने पुद्गल द्रव्य सदा स. क्रिय छे. हवे एक, अनेक-पक्षथी निश्चय ज्ञान कहेवाने नय कहे छे, सर्व द्रव्यमां अनेक स्वभाव छे, ते एक वचनथी कह्या जाय नहीं माटे माहोमांहे नये करी संक्षेपपणे कहे छे, तिहां मूल नयना बे भेद छे, एक द्रव्यार्थिक बीजो पर्यायार्थिक, तेमां उत्पाद व्यय पर्याय गौणपणे अने प्रधानपणे द्रव्यनो गुण सत्ताने आहे ते द्रव्यार्थिक नय कहिये तेना दश भेद छे, सर्व द्रव्य नित्य छ, द्रव्यार्थिक २ अगुरु लघु अने खेत्रनी अपेक्षा न करे मूल गुणने पिंडपणे ग्रहे ते एक द्रव्यार्थिक ३ ज्ञानादिक गुणे सर्व जीव एक सरीखा छे माटे सर्वने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ एक जीव कहे, स्वद्रव्यादिकने ग्रहे ते सत् द्रव्यार्थिक. जेम सत्लक्षणं द्रव्ययम् ४ द्रव्यमां कहेवा योग्य गुण अंगीकार करे ते वक्तव्य द्रव्यार्थिक ५ आत्माने अज्ञानी कहेवो ते अशुद्ध द्रव्यार्थिक ६ सर्व द्रव्य गुण पर्याय सहित छे एम कहेतुं ते अन्वय द्रव्यार्थिक ७ सर्व जीव द्रव्यनी मूल सत्ता एक छे ते परमद्रव्यार्थिक नय ८ सर्व जीवना आठ प्रदेश निर्मल छे ते शुद्ध द्रव्यार्थिक नय १ सर्व जीवना असंख्यात प्रदेश एक सरीखा छे ते सत्ता द्रव्यार्थिक नय, १० गुणगुणी द्रव्य ते परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक. जेम आत्मा ज्ञानरूप के. इत्यादिक ए व्यार्थिक नयना दश भेद का. www.kobatirth.org आगमसार. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार पर्यायार्थिक नयना छ भेद कहे छे. जे पर्यायने ग्रहे ते पर्यायर्थिक नय कहिये, तेना छ भेद छे १ द्रव्य पर्याय ते जीवने भव्यपणुं कहे, २ द्रव्य व्यंजन पर्याय ते द्रव्यनुं प्रदेशमान, ३ गुण पर्याय जे एक गुणी अनेकता थाय जेम धर्माधर्मादिद्रव्य पोताना चलण सहकारादि गुणथी अनेक जीव तथा पुद्गलने सहाय करे, ४ गुण व्यंजन पर्याय जे एक गुणना घणा भेद छे ५ स्वभाव पर्याय ते अगुरुलघु पर्यायथी जाणवो. ए पांच पर्याय सर्व द्रव्यमां छे अने छट्टो विभाव पर्याय ते जीव पुद्गल ए वे द्रव्यमां छे. तिहां जीव जे चार गतिना नवा नवा भव करे ते जीवमां विभाव पर्याय तथा पुद्गलमां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. खंधपणुं ते विभाव पर्याय जाणवो. हवे पर्यायना बीजा छ भेद कहे छे ? अनादि नित्य पर्याय ते जेम पुद्गल द्रव्यनो मेरु प्रमुख, २ सादि नित्य पर्याय ते जीव द्रव्यनुं सिद्धपणुं, ३ अनित्य पर्याय ते समय समयमां द्रव्य उपजे विणशे छे, ४ अशुद्ध अनित्य पर्याय ते जन्म मरण थाय छे तेणे करी कहेवं, ५ उपाधि पर्याय ते कर्म संबंध, ६ शुद्ध पर्याय जे मूल पर्याय सर्व द्रव्यना एक सरीखा छे ए पर्यायार्थिकनुं स्वरूप कयु. ___ हवे सात नय कहे छे १ नैगम, २ संग्रह, ३ व्यवहार, ४ ऋजु सूत्र, ५ शब्द, ६ समभिरुढ, ७ एवं भूत-ए सात नयना नाम जाणवां, तेमां पहेलो नैगम नय कहे थे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ة Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. नथी एक गमो ते नैगम कहियें. गुणनो एक अंश उपन्यो होय तो नैगमनय कहियें. दृष्टान्त जेम कोइक मनुष्यने पाली लाववानो मन थयो, ते वारें जंगलमां लाकडुं लेवा चाल्यो, रस्तामा कोइक मनुष्य मल्यो तेणें पूछयुं तुं क्यों जाय छे, तेवारें तेणें कां जे पाली लेवा जाउं छं. ते पाली तो हजी घडी नथी पण मनमi faaat a थइ एम गण्युं तेम नैगम नय, सर्व जीवने सिद्ध समान कहे, केमके सर्व जीवना आठ रुचक प्रदेश निर्मल सिद्ध रूप छे तेथी एक अंशे सिद्ध छे ते माटे सिद्ध समान सर्व जीव का. ते नैगम नयना त्रण भेद छे ? अतीत नैगम २ अनागत नैगम ३ वर्तमान नैगम, ए नैगम नय कह्यो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार हवे संग्रह नय कहे छे. सत्ताग्रहे ते संग्रह. जे एक नाम लीपाथी सर्व गुण पर्याय परिवार सहित आवे ते संग्रह नय जाणवो. तेनो दृष्टान्त-जेम कोइक मनुष्ये प्रभातें दातण करवाने अर्थे पोताना धरना बारणे बेशीने चाकर पुरुषने कह्यु जे दातण लइ आवो, ते वारं ते चाकर मनुष्य पाणीनो लोटो तथा रुमाल अने दातण एम सर्व चीज लइ आव्यो. हवे शेठे तो एक दातण नाम लइने मंगाव्यु हतुं पण सर्वनो संग्रह करी चाकर लइ आव्यो तेमज द्रव्य एवं नाम कयुं तो द्रव्यना गुण पर्याय सर्व आव्या. ए संग्रह नयना बे भेद छे. एक जे द्रव्यपणो सामान्यपणे बोलतां जीव तथा अजीव द्रव्यनो भेद पड्यो नही ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. पेहेलो सामान्य संग्रह, तथा बीजो विशेषताने अंगीकार करे छे, जे जीव द्रव्य एम कर्दा तो अजीव सर्व टल्या ते विशेष संग्रह. हवे व्यवहार नय कहे छे. जे बाह्यस्वरूप देखीने भेदनी वेहेचण करे अने जे बाहेर देखता गुणनेज माने पण अंतरंग सत्ता न माने एटले ए नयमां आचार क्रिया मुख्य छे. अंतरंग परिणामनो उपयोग नथी केमके नैगम तथा संग्रह नय ते ज्ञान रूप ध्यानना परिणाम विना अंश तथा सत्ता ग्राही छे, तेम इहां करणी मुख्य छे ते व्यवहारनये (पणे) जीवनी व्यवस्था अनेक प्रकारे छे. तिहां नैगम तथा संग्रह नये करी सर्व जीव सत्तायें एक रूप हे पण व्यवहार नयथी जीवना बे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. भेद छे. एक सिद्ध, बीजा संसारी. ते वली संसारी जीवना बे भेद छे. एक अयोगी चौदमा गुणठाणावाला तथा बीजा सयोगी ते सयोगीना बे भेद एक केवली वीजो छद्मस्थ, छद्मस्थना बे भेद. एक क्षीण मोही बारमा गुणठाणे वर्तता मोहनीय कर्म खपाव्यु ते, बीजो उपशान्तमोहते उपशान्त मोहना बली बे भेद, एक अकषायी इग्यारमा गुणठाणाना जीव; बीजा सकषायीना वे भेद छे, एक सूक्ष्म कषायो दशमा गुणठाणाना जीव बोजा वादर कषायी. ते बादर कषायीना वली वे भेद छे. एक श्रेणि प्रतिपन्न, वीजो श्रेणि रहित ते श्रेणी रहितना बे भेद. एक अप्रमादी बीजो प्रमादी ते प्रमादीना बे भेद www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. एक विरति परिणामि बीजो देश विरति, देश विरतिना बे भेद, एक विरति परिणामि अमे बीजा अविरति परिणामि, अविरतीना बे भेद एक अविरति समकीति बीजा अविरति मिथ्यात्वी ते मिथ्यात्वीना बे भेद, एक भव्य बोजा अभव्य, ते भव्यनाबे भेद एक ग्रंथिभेदी बीजा ग्रंथी अभेदी ( अभेद ग्रन्थि ) एवी रीते जे जीव जेवो देखाय तेने तेवो माने ए व्यवहार नय छे, एमज पुद्गलना भेद करवाते कहे छे. पुद्गल द्रव्यना बे भेद छे. एक परमाणु बीजो खंध, खंधना बे भेद एक जीवने लाग्या ते जीव सहित, बीजा जीव रहित ते घडो प्रमुख अजीवनो खंध, हवे जीव सहित खंधना घे भेद छे एक सूक्ष्म खंध पीजो बादर खंध. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, इहां वर्गणानो विचार लखीये छये, तिहां पुद्गलनी वर्गणा आठ छे १ औदारिक वर्गणा २ वैक्रिय वर्गणा ३ आहारक वर्गणा ४ तैजस वर्गणा ५ भाषा वर्गणा ६ श्वासोच्छास वर्गणा ७ मनो वर्गणा ८ कार्मण वर्गणा-ए आठ वर्गणानां नाम कयां. बे परमाणु भेला थाय त्यारे द्वयणुकखंध कहेवाय. जग परमाणु भेला थाय तेवारे व्यणुकखंध थाय. एम संख्याता परमाणु मिले संख्यातागुफखंध थाय, तेमज असंख्याते असंख्यातागुकखंध थाय, तथा अनंता परमाणु मिले अनंताणुकखंध थाय. ए खंध ते सर्व जीवने अग्रहण योग्य छे, अने जेवारें अभव्यथी अनंतगुण अधिक परमाणु भेला थाय तेबारे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, औदारिक शरीरने लेवा योग्य वगर्णा थाय. एमज औदारिकथी अनंतगुणा अधिक वर्गणामां दल भेलां थाय तेवारे वैक्रिय वर्गणा थाय, वली वैक्रिय थकी अनंतगुणा परमाणु मिले तेवार आहारक वर्गणा थाय. एम सर्व वर्गणाना एकेकथी अनंतगुणा अधिक परमाणु मिले तेवारे ते वर्गणा थाय. एटले पहेलीथी बीजी वर्गणा, बीजीथी त्रीजी एम सातमी मनोवर्गणाथी आठमो कार्मण वर्गणामां अनंतगुण परमाणु अधिक छे. इहां १ औदारिक, २ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तेजस, ए चार वर्गणा बादर छे तेमां पांचवर्ण-वे गन्ध-पांच रस, आठ स्पर्श ए वीस गुण छे, तथा १ भाषा २वासोच्छास ३ मन ४ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कार्मण ए चार वर्गणा सूक्ष्म छे एमां पांचवर्ण वे गन्ध, पांचरस - चार स्पर्श - ए सोल गुण छे, अने एक परमाणुमा एक वर्ण-एक गंधएक रस-बे स्पर्श ए पांच गुण के. एम पुद्गल खंधना अनेक भेद छे. www.kobatirth.org ४७. ए व्यवहार नयना छ भेद छे. १ शुद्ध व्यवहार ते आगला गुणठाणानुं छोडं अने उपरना गुणठाणानुं ग्रहण करवुं अथवा ज्ञानदर्शन - चारित्र गुण ते निश्वयनय एकरूप छे. पण ते शिष्यने समजाववाने जूदा जूदा भेद कवा ते शुद्ध व्यवहार छे. २ जीवमां अज्ञान राग द्वेष लाग्या छे ते अशुद्धपणुं छे माटे अशुद्ध व्यवहार. ३ जे पुण्यनी क्रिया करवी ते शुभ व्यवहार ४ जेथकी जीव पापरूप For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, अशुभ कर्म करे ते ५ अशुभ व्यवहार. धनघर-कुटुंब प्रत्यक्ष सर्व आपणाथी जुदा जुदा छे पण जीवे अज्ञानपणे आपणा करी जाण्या छे ते उपचरित व्यवहार. ६ शरीरादिक परवस्तु यद्यपि जीवथी जुदी छे तोपण परिणामिकभाव लोलीपगे एकठा मिली रह्या छे तेने जीव आपणा करी जाणे छे ते अनुपचरित व्यवहार जाणवो. ए व्यवहार नय कह्यो. __ हवे ऋजु सूत्र नयनो विचार कहे छे. जे अतीत काल अने अनागत कालनी अपेक्षा न करे पण वर्तमान काले जे वस्तु जेवा गुण परिणामे वर्ते ते वस्तुने तेज परिणामे माने मादे ए नय परिणामग्राही छे, जेम कोइक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. जीव गृहस्थ छे पण अंतरंग साधुसमान परिणाम छे तो ते जीवने साधु कहे अने कोइक जीव साधुने षे छे पण मनना परिणाम विषयाभिलाष सहित छे तो ते जीव अव्रतीज छे एम ऋजु सूत्रनुं मानवु छे. ते ऋजु सूत्रना के भेद छे एक सूक्ष्म ऋजु सूत्र ते एम कहे जे सदाकाल सर्व वस्तुमा एक वर्तमान समय वर्ते के एटले जे जीव गया काले अज्ञानी हतो अने अनागत काले . अज्ञानी भावे अज्ञानी थशे एम बेहु कालनी अपेक्षा न करे पण एक वर्तमान समये जे जेवो तेने तेवो कहे ते सूक्ष्म ऋजुसूत्र कहिये अने महोटा बाह्यपरिणाम आहे ते स्थूल ऋजु सूत्र नय जाणवो एटले रुजु सूत्र नय कह्यो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार हवे शब्दनय कहे छे. जे वस्तु गुणवंत अथवा निर्गुण से वस्तुने नाम कही बोलावियें जे भाषा प्रणाथी शब्द पणे वचन गोचर थाय ते शब्दनय जे कारणे अरूपी द्रव्य वचनथी कहेवा ते शब्दनय कहिये. इहां जे शब्दनो अर्थ होय ते पणो जे वस्तुमां वस्तुपणे पामियें ते वारे ते वस्तु शब्दनय कहिये जेम घटनी चेष्टाने करतो होय ते घट. ए शब्दनयमां व्याकरणथी नीपना अने बीजा पण सर्व शब्द लीधा ते शब्दनयना चार भेद छै १ नाम २ स्थापना ३ द्रव्य ४ अने भाव चार निक्षेपाना पण एहिज नाम छे. १ पहेलो नाम निक्षेपो ते आकार तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, ५१ गुणरहित वस्तुने नाम करी बोलाववो. जे एक लाकडीनो कटको लेइने कोइके तेहने जीव एवू नाम कह्यं रो नाम जीव जाणवू जेम काली दोरीने सापनो बुद्धिये करी घावे हणे तेहने सापनी हिंसा लागे ए नाम सर्प थयु. एवीज रीते नाम तप अथवा नाम सिद्ध जेम वड प्रमुखने सिद्धवड एम कही बोलावे छे ते नाम निक्षेपो कहियें ए सूत्र साखे छे. २ स्थापना निक्षेपो कहे छे. जे कोइक वस्तुमा कोइक वस्तुनो आकार देखीने तेहने ते वस्तु कहे जेम चित्रामण अथवा काष्ठ पापाणनी मूर्ति तेने घोढा-हाथीनो आकार के तो ते घोडा-हार्थी कहेवाय ते स्थापना जागबी. ए स्थापना निक्षेपो नाम निक्षेपें सहित www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. होय जैम स्थापना सिद्ध जिनप्रतिमा प्रमुख ते सद्भाव स्थापना पण होय अने असद्भाव स्थापना पण होय. अकृत्रिम जिन प्रतिमा ते नंatara प्रमुख विषे अने जेह इहांनी जिन प्रतिमा ते कृत्रिम ते सर्व स्थापना जाणवी. जेम चित्रामनी स्त्री जिहां मांडी होय तिहां साधु रहे नही. कारण के स्थापना स्त्री छे ते स्त्री तुल्य जाणवी. तेमज जिन प्रतिमा जिन समान जाणवी. इहां कोइक अज्ञानी जीव कहे ले जे, स्थापनामां ज्ञानादि गुण नथी तेथी स्थापनाने मानवी पूजवी नहीं तेने उत्तर कहे छे के स्थापना रूप स्त्रीमां स्त्रीपणाना गुण नथी तो पण ते विकारनुं कारण थाय छे. तेज जिनमतिमा पण ध्याननुं कारण के अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३ आगमसार. जे एम पुछे के हिंसा थाय छे अने भगवंते तो दयाने धर्म को छे तेहने एम कहे जे परदेशी राजा केसी गुरुने वांदवाने अथें बीजे दीवसे मोहोटा आर्डरथी आव्यो ते वंदनामां हिंसा थइ पण लाभ कारण गणतां त्रोटो न थयो. वीजो मल्लिनाथजीयें छ मित्र प्रतिबोध - वाने पुतलीनो दृष्टान्त कह्यो, ते हिंसा तो घणी थइ पण ते लाभना कारणमां गणी के एम भाव शुद्ध होय तिहां हिंसा लागती नथी, अथवा कोइक एम कहे छे जे अमे आपणे स्थानके बैठा नथ्थुणं कहिसुं अमने लाभ थासे ते खरो पण भगवती सूत्रमां भगवानने वंदनाने अधिकारे तो तिहां जइ वंदना करबानुं फल मोडुं कथं छे तथा निक्षेपाने अधि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कारें कडं जे भाव निक्षेपो एकलो थाय नही पण स्थापना तथा द्रव्य एत्रण मिल्या भाव निक्षेपो थाय माटे स्थापना अवश्य मानवी. हवे जे स्थापना न माने तेने कहिये जे चित्रामनी मूर्ति ते हिंसाना परिणामथी फाडे तेहने हिंसा लागे छे तेमज जिनवरना ध्याने जिनप्रतिमा पूजतां लाभ थाय छे एम युक्ति करतां तथा आगमनी पाखे पण जिन प्रतिमाने जिन समान माने से आराधक अने जे जिन प्रतिमाने न माने तेणे स्थापना निक्षेपो उथाप्यो अने स्थापना उथापी तो द्रव्य तथा भाव निक्षेपो स्थापना विना थाय नही माटे द्रव्य तथा भाव पण उथाप्यो एम त्रण निक्षेपा उथाप्या वे. वारे सिद्धान्त उथाप्यांज मादे जे जिनम www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. तिमाने नही माने ते विराधक जाणवो. तथा कोइ पूछे जे प्रतिमानो पूजा तो पहेला आत्रव मध्ये लखी छे तेने कहीये जे तुम्हे मृषावाद बोलो छो, इहां प्रश्न व्याकरण मूत्रमा पाठ इम छे नही तिहां पाठ छे ते लिखीये छ । अविजाणओ परिजाणओ विसयहेउ इमेहिं कारणेहि किं ते करीसण पोरकरणी वा विवप्पणीकूवसरतलाग चितिवेति खाति आराम विहार, थूभ पागार, दार गोपूर अट्टालगचरीय सेतुसंकमपासायविकप्पभवणघरसरणिले आवणचेइयदेवकुलचित्तसभाएवाआयतणवसई भूमिघरमंडवाणकएहीसंतिइहां पांच थाघरना पांच आलावा छे तेहने छेडे कोहा, भाणा, माया, लोभा, हिंसा, रती इत्यादि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ आगमसार. पाठ छे. ते जे जीव इंद्रीना सवादने माहे चेई कहेतां प्रतिमादिक करे ते आश्रव खाते ए पाठ छे पण पूजानो पाठ नथी ते मृषाण्ये (शा माटे) बोलो छो, तथा प्रश्न व्याकरणसूत्रे बीजे संवरद्वारे जे आलावो छे ते लिखीये छे. खवगयवत्ति आयरीय उवज्झाय सेह साहंमीए तवसि सिस वुढ कुल गण संघ afra निज्झरठी वेयावच्चं अणस्सीओदसविबहुविकरेई एआलावे आचारज प्रमुखचेईय कहेतां जिनप्रतिमानो वैयावच्च करे निर्जराना अर्थी अणस्सीओ कहेतां जस कीर्तिनी वांछा रहितको वैयावच्च दश प्रकार तथा अनेक प्रकारनो करे, इहां चेई कहेतां प्रतिमा है तो खोटी कलपना स्यामाटे करो छो ? तथा बीजे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. प्रश्ने पूछयो जे अहिंसानां ६० नाम कहां छे, अभओसबस्सविअनाघाओचुरकाय वित्तीपूया विमलप्पभा निम्मलकरीत्ति एव माइणीनियगुणनिम्मियाइं पज्जयनामाणिहुँतिअहिंसाए ॥ तिहां प्रतिमा तथा पूजानो नाम नथी तेहनो उत्तर तिहां अहिंसानो नाम जाणो तेहनो अर्थ देवपूजा छे पूजा एहवो दयानो नाम छे तो अजाण्योइमस्यें प्ररुपणा करो छो ? बीजं पूजातो श्रीअरिहंत प्रतिमानी ते तो विनय तथा पेयावच ते अम्भितर तपना भेद छे. ते तप मोक्षनो मार्ग छे. श्रीउत्तराध्ययन सूत्रे २८ मे अध्ययने तपने मोक्षनां च्यार कारण कयां ते मध्ये गण्यो छे. तथा तो पस्ये पुछयो जे बोलनी खबर न हो ते विचारी बोलीय. तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ आगमसार. श्रावके कोणे देहरा कराव्यां? तथा प्रतिमा पूजी ? तेहनो उत्तर श्रीसमवायांगसूत्रे तथा नंदीसूत्रे सर्व आगमनो नूंध छ तेमध्ये ए पाठ छे तिहां उपासकदशानो नोंध छे ते आलावो छे ते लखीए छे. सेकिंते उवासगदसाओ उवासगदसामूणं समणोवासगाणं नगराईउज्झाणाई चेइआई वणसंडाई समोसरणाई रायाणोअम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइ आ पारलोईया इढिविसेसा भोगापर आड सुअपरिग्गहीआ तवोवहाणाइसीवयगुणवेरमणपञ्चख्खाणपोसहोववासपडिवझणापडिमा ओ उबसग्गसंलिहणाओ भत्तपच्चरकाणइयाउवगमणं देवलोगगमणं सुकुलपञ्चायापुणबोहिलाभो अंतकिरीयाआधरिझंति ए पाठ छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. इहां चेइयाइशब्द देहरा तथा जिन प्रतिमा जाणज्यो. इहां चेइय एहनो अर्थ बोजो थाये नही, जे वननो अर्थ करे तो उद्यानवनखंडनो पाठ जदो छे. कोइ साधुनो अर्थ करे ते धम्मायरीया ए पाठ जृदो छे. ज्ञाननो अर्थ करे ते सुयए पाठ जुदो ले. तेमाटे चेइय शब्दे जिनप्रतिमानो अर्थ छे तथा तुम्हे पुछो जे द्वारकां राजग्रहमें देहरा तथा प्रतिमानो पाठ किहां छे ? तेहनो उत्तर नंदीसूत्रे अणुत्तरो. ववाइ तथा अंतगडना नोंधनो पाठ जोज्यो. तथा तुम्हे कोस्यो इतला बोल उपासकदशाप्रमुखे दीसता नथी तेहनो उत्तर जे नंदी तथा समवायांगमे जे पाठ तेहनो कोण उत्थापी शके ते जोज्यो. तथा पुछा जे किणे श्रावके www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. प्रतिमा पुंजी छे ? तेहनो उत्तर घणे श्रावके प्रतिमा पुंजी छे. ते पाठ श्रीभगवती सूत्रे तुंगीया नगरीना श्रावको वरणव्या. तिहां अभिगयजीवाजीवा इत्यादिक पाठ घणा छे. तिहां एहवो पाठ है. असहिझदेवासुरनाग सुवन्नजरकररकसर्किन्नर किंपुरिसगरुलगंधवं महोरगादीएहि देव गणेहिं निग्गंथाओपावयणाओ अणतिकम्मणिज्झा निग्गंथे पात्रयणेनिस्संकीया निक्कंखीया लट्ठा गहीया इत्यादि जे श्रावक कोई जातिना देवतानो सहाज वांछता नथी तो कोई बोजा देवतानी पूजा किम करे ? एहवा श्रावक जे देवने देव बुद्धि मानता हवे तेहनेज पूजे ते श्रावक, थिवर आव्या तेवारे एकवार सर्व एकटा मिल्यां एहवो विचार www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org आगमसार. ६.२ कह्यो जे एहवानिग्रंथनो नाम सांभल्यानो पिण महा लाभ छे तो तेने वांदवा जातां सेवा करतां तो महानिर्झरा महापर्यवसान कहतां मोक्ष थयो इम विचारी पोते पोताने घरे गया पछी सूत्रे पाठ छे. पहायाकयवलिकम्मा कयको जयमंगलपायछित्ता शुद्धापावेसाइपवरपरिहीआ अप्पमहग्घाभरणालंकीयशरीरा सयाओ गिहाओ पडिनिरकमति तिहां नाह्या ते अंघोल कीधा, कयबलिकम्माते देव पूजा कीधी; कयकोउयमंगल ते तिलकादिक कर्या पछी व पेहरीने आभरणअलंकार पहेर्या, वरथी निकल्या ए रीते सिद्धार्थ राजा तथा रुख भदत्त, सुदरशन शेठ इम सुभद्द शुत्र श्रावकसंखपुष्कली श्रावक कार्तिक शेद For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगममार. वांदवा गया छे तेवारे कयबलिम्मा तथा पछी घरे आवी साहमीवछल करीने दीक्षा लेवा निकल्या तेवारे न्हाया कयबलिकम्मा ए पाठ छे, इत्यादिक श्रावक अन्य देवनी पूजा न करे गोत्रज न पूजे, अरिहंत देवनेज पूजे, तथा कोइ कहेस्ये कयबलिकम्मा पाठ कठीयारा प्रमुख अनेक थानके छे ते मां स्याना छ ? पोते जेहने देवबुद्धे माने ते तेहने पुंजे तथा देवदत्त बालके कीम पुंजा करी हशे तेतो बालकने मावीत्रे पूजा करावी तो कां न करे ? आज पण बालक पुजा करता दीसे छे तो कयबलीकम्मा ए पाठनो बीजो अर्थ शाने करो छो ? तथा दीक्षा महोच्छच घणा दीसे छे पण तिहां देहरा प्रतिमानो पाठ नथी. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तेहनो उत्तर जे दीक्षाने उनावला थया तेवा साधुने वहोराववा रहा नथी तो देहरा करावा तो घर स्याने रहे ? अने पहलां देहरा प्रतिमा छ तेती नदीसत्रे आगमनाधनो पाठ जोरो तो सर्व समो पडशे. तथा तुम्हे पुछयुं जे तीर्थकरग्रहस्थपणे छतां साधु साधी श्रावक श्राविकाए बांद्या नथी सेनो उत्तर या छे. ते पाठ ज्ञानापत्रमा छे तथा तुमे लख्या जे प्रतिमा एकेन्द्रिदल छे तेहवो वचन संसारनो जहने भान हुवे ते बोले ? जे कारण श्रीभगानाजी ता जिणपडिमा कही बोलावी छे. देहराने सिद्धायतन कही बोलायो तो तुमे कठोर वचन स्याने बोलो छो ? तथा तसे दिसी वंदना करो छो ते दीसी तो अजीव घणार www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir દુઃ आगमसार. छे तो कीम वांदो छो ? तिहां तुम्हे कहेस्यो जे आम्हारा मनमें तो सिद्ध छे तो जिनपडिमा वदतां पिण अमारा मनगां सिद्ध छे. तथा सूत्रमध्ये गुरुनी पाटनी आशातना टालवी कही छे, ते पाट अजीव छे. पीण सर्व गुरुनो बहुमान छे, प्रतिमानें बहुमाने सिद्धनो बहुमान छे तथा सुवर्मासभामांहि जिननी दादा छे ते वंदनीक पूजनीक छे. तो अजीव स्कंध छे तथा तुमे लख्यो जे परदेशा राजाए प्रतिमा कां न करी ? ते परदेशी श्रावक थया पछी केटलोक जीव्या छे ते तथा सर्व श्रावक एकज करणी करे ए स्यो नियम छे ? तथा परदेशीए तथा आनंद श्रावके कोइक साधुने पडिलाभ्या नथी ते माद्रे तुझे साधुनी वीहराव्याने दोष www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ६५ मानस्यो ? ए विचारी ज्यो ज्यो, तथा लख्यु छे जे सूरीआभे जे प्रतिमा पूजी ते राजधानीना मंगलीक माटे पूजा करी तेतो खोटुं बोलो छो, ए पाठ मूत्रमें नथी. सूत्रमें तो एहवो पाठ छे “हीयाए सुहाए खेमाए निस्सेसाए आणुगाभीयत्ताए भविस्सइ निश्रेयस कहेता मोक्षभणी ए अर्थ छे, तथा पच्छा शब्दे जे इहलोकनो अर्थ छे इंम कहे छे ते मूढ छ, ददुर देवताने अधिकार पच्छा शब्दे आवता भवनो अर्थ छे. तथा आचारांगसूत्रे जस्सपूचियिनो तस्सपछायिनो इहां पूर्व शब्दे पूंठलो भव पछा शब्दे आवतो भव लोधो छे. तथा ए भवे समकितनो लाभ ते घणो छे तथा तीर्थकर वांद्याना फलनो पाठ उबवाइमध्ये www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तथा पंचमहाबत पाल्यानो पाठ आचारांग मध्ये तिहां पण हियार इत्यादिक पाठ छे ते बे ठेकाणे लाभ मानो छो तो जिनप्रतिमा ठामे ना स्याने कहो छो ? अने किहां जिनप्रतिमा पूजानो पाप कह्यो नथी अने होय तो देखाडो. तुंमे लिगुं जे भगवंते हिंसानी ना कही छे तो अमे किहां कहुर्छ जे हिंसा करवी, पण भगवंते किसे सूत्रे प्रतिमा पूजानी ना कही नथी. प्रतिमानी १७ प्रकारनी पूजा सूत्रे कही छे.तथा तुमे प्रतिमानी पूजा हिंसामें गणो छो ते इम नथी. प्रतिमानी पूजा तो विनय तथा वेयावञ्च धर्ममा छे. तथा पूजा हिंसामे गणी तो गणांगे नदीमें पडती साध्वीने साधु काढे तेमां हिंसा गणी नहीं, तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. आचारांगमूत्रे बीजा साधु अजाणे पण शर्करानी भूले लूण वीहरीने पछे जाणे जे लूण वीहराव्यो ते जाणी ते पोते खाये ते पोते पीये. तथा बोजा साधु संभोगीने आपे ते खाये पीए तथा विषमवाटे वेलने रूखने लताने गूछाने अवलंबी उत्तरे जे पाठ आचारांगसूत्रे छे. तथा भगवती सूत्रमे साधुना हरस काढे तेहने क्रियाकर्म लागे नहीं. तथा मल्लिनाथजी पूतलीमे कवल गुंक्या तेमाटे धर्म माटे हिंसा करी तथा सुबुद्धि मंत्रिए पाणी पलटाव्यो ते धर्म माटे करी पिण मंद. बुद्धी न कह्या छे भगवतीसूत्रे २५ मे शतके साधु शासन माटे तेजोलेश्या मुके लेहने आराधक कह्यो, तथा जंबूद्वीपपन्नत्तीए निर्वाण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, महोच्छच कर्यो छे. थूभकर्याते जिणभत्तिए धम्मेत्तिए पाठ छे. इंम केटला पाठ लीखीर ? अनेक पाठ छे ॥ तथा नंदी सूत्रे जे आगम कह्यो ते उत्थापीने ३२ मानो छो ते केनी आज्ञा छ ? तथा आवश्यक सूत्रपडिकमणा विना साधुपणो श्रावकपणो हुवेन नही ते तुम्हे आवश्यक सूत्रपडिकमणो मानता नथी तो श्रावकपणो ने साधुपणो केम धरावो छो? श्रीभगवतीसूत्रे साधु साध्वी श्रावक श्राविका पंचमआराना छेहडा पर्यंत कह्या छ ते तुमारी श्रद्धा हिवणां साधु साध्वी कोण छे ? तथा सूत्रे आचारज उपाध्याय कुलगणनीनिश्राये विचरे ते आराधक ते तमे कोनी निश्राये विचरो छो ? ते लिखज्यो, तथा श्रीभमवती www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ६९ सूत्रे गाथा छ । पदमोगीयस्थविहारो बीयोगीयत्थनिसीओभणिओ। इत्तोतइयविहारो नाणुनाओजिणवरेहिं ॥ १ ॥ एहनो. अर्थ गीतार्थ होय ते पोते विहार करे अथवा गीतार्थनी निश्राये विहार करवो एथी तिजा विहारनी अरिहंते आज्ञा दीधी नथी ते माटे तुमे किस्या गीतार्थनी निश्राये विहार करो छो? तथा योग उपाधानवहीने सिद्धांत भणे तेपण श्रावक आचारांगादिक सूत्र भणे नही ते निशीथमां कह्यो छे । जे भिक्खुअन्नत्थीयं वा गारत्थियंवा वायणं वायजत्तं साइजति तस्सचोमासीयपरिहारठाणं जे ग्रहस्थने सूत्र बंचाने अथवा वांचताने अनुमोदे तेहने चारमासनो पाल्यो चारित्र जाये तथा प्रश्न व्याकरणसूत्रे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० आगमसार. अहकरिसीयंपुणसवन्नुभासियवं जत्थदहिगुणेहिपज्जवेहिं कम्मेहिं बहुविहेहिं आगमेहिं नामरकाय निवाय उवसग्ग तद्धि समास संधिपद जोग उणादि कीरीयावी होणसरधाउसर विभत्ति वन्न जुत्तं भासियत्वं तथा अनुयो. गद्वारे ७ नय ४ निक्षेपाकाल तिन, लिंग तीन, जाण्या विना उपदेश देवा ते मारग नथी इत्यादिक अनेक बोल छे. ते गीतार्थनी सेवनाथी पामोए इतिभद्रं ॥ जे केइ श्रीजिन प्रतिमानी पूजा मध्ये फूल पूजानी शंका करे तेहने कहीये जे श्रीरायपसेणीसूत्रे १७ भेद पूजाना पाठ छे. पुप्फारुहणं १ मालारुहणं २ तहवनयारुहणं ३ तथा पुष्फपगिह ४ पुप्फपगरं ५ एतली पूजा फूलनी के तेमाटे पूजा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ७१ जलय थलय फूलनी ते प्रमाण छे. तथा श्रीभगवती सूत्रे पण सूरीआमनी पेरे पूजानी भलामणना पाठ अनेक छे. तथा ज्ञातासूत्रे द्रौपदीने अधिकारे १७ प्रकारी पूजाना पाठ छे. समवायांगसूत्रे चोवीस अतिशयने अधिकारे “ भासुरदसद्धवन्नेणंजाणुस्सेहप्पमाणमित्तेनं पुष्फपूजोवयारकरे इत्यादि पाठ के " इहां समवायांग सूत्रमे देवता मनुष्यनो नाम को नथी. तथा श्रीउववाईसूत्रे कोणिकने अधिकारे श्रीवीर समोसर्या तेवारे अनेकजन चंपाथी निकल्या जे " अप्पेगइयावंदणवत्तियाए अपेगइयाप्यणवत्तियाए अपेगइयासुर्यसुयस्सामो अप्पेगइयाविउलाइ अाओओआई अक्षिणाइग हिस्सामो " इत्यादि पाठ छे. तिहां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ૭૨ पूयणवत्तीयाए ए पाठनो अर्थ टीकामध्ये पूजने पुष्पमालादिना इंम कह्यो छे. इहां श्रीतीर्थकरने पूप्पनी पूजा दीसे छे ए पाठ श्रीभग. वतीसत्रे पण छे. तथा नंदीसूत्रे श्रुतज्ञानने पाठे जेइमं अरिहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्ननाणदसणघरेहिं तिल्लुक्कनिरक्खीय महीअपूईएहं पाठनो अर्थ टीकाकारे पिण महीय शब्दे चंदनादि, पुइएहिं पुप्फमालादिके करीने ए पाठ अनुयोगद्वारमध्ये पण छे. इंम पुप्फपूजाना अनेक पाठ छे, ते माटे शंका न करवी. वली केइक इम कहे छे जे फूल चाता जडे ते चढाववा पण पोते चूंटी चढाववां नही तेपण अजाण्यु कहे छ जे " श्रीजीवाभिगमसूत्रे " ततेणं से विजएदेने पोन्थपरयणंगिहइ पो. २ गि. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org आगमसार. पोत्थयरयणंमुयति पो. २ ता पोत्थयरयणंविहाडेति पो. २ ता पोत्ययरयणंवाइए पो. २ त्ता धम्मियंत्र सायंपिण्डेति ध. २ ता पोत्थयरयणपडिनिख्खमति पो. २ ता सीहासणतोअम्भुट्टेति सी. २ ता ववसायसभातोपुरत्थिमिल्लेणं दारेणंप डिनिख्खम पु. २ ता जेणेव णंदापुत्रखरणी तेणे व उवागच्छति उ. २ ता णंदापुख्खरिणं अणुप्पयाणिकरमाणे पुरस्थिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसति अ. २ ता पुरथिमिल्लेणं तिसोपाणेपडिरूयेणं पच्चोरुहति प० २त्ता हत्थपादं पख्खालेति ह. २ ता एगंमहंसेतंरजतामयं विमलसलिल पुण्णमत्तमहामुहागिई समाणभिंगारं परिहति प. २ ता जाईतत्थ उप्पलाइप उमाइजाबसन्तपत्तासह ७३ For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir eg आगमसार. रसपत्ताई ताई गेहति २ ताणंदातो पुरुखरिणिओ पच्चुत्तरेई प. २ ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पाहारेत्थगमणाइ तरणंतं विजयंदेवंचत्तारि सामाणियसाहस्सी ओजाव अण्णेबहवेवाणमंतरादेवादेवीओ अप्पेगतिया उप्पलहत्थगता जाव सतसहस्सपत्तहत्थगया विजयदेवंपिओअणुगच्छत्ता " इहां फूल चूंटी लीधां ले. ए आलावे विजयदेवे पोते वावडीमें उतरीने फूल चूंटी लीधां तथा सामानिक देवता तथा बीजे देवताये पण फूल पोताना हाथथी लीयां छे. इहां कोई पूछस्ये जे तिहां कोई माली नथी ते माटे पोते लियां तेहनो उत्तर जे माली नथी पिण देवता चाकर लोक घणा छे, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तेहनेज पासे कां न मंगाने ? जो पुष्प आण्यानो विधि होने तोपण पोताना हाथथी लीधानो विधि छे तेमाटे पोते वावडी मध्ये उतरी लीयां छे तथा श्रीरायपसेणीसूत्रे मूरीआभाधिकारे “ततेणं से मूरियाभेदेने पोत्थरयणंगिराहइ, पो. र. गि. त्ता पोत्थरयणं मुयइ, पोत्थरयणविहाडेइ, त्ता २ पोत्थरयणंवाएति, त्ता २ धम्मियंववसायंगिण्हइ, २ ता पोत्थरयणंपडिणिकखमति २ ता सिंहासणाओअब्भुढेइ २ ता ववसायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणे पडिणिकखमइ २ त्ता जेणेव दापोरकरिणि तेणेव उवागच्छइ २ त्ता णदापोकखरिणी पुरस्थिमल्लेणं तोरणेणंतिसोयाणपडिरूवेणं प. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. चोरुहत्ति २ त्ता हत्थपायंपकरखालेइ २ त्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए एगसेयमहरययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमुहागितिसमाणभगारं पगिण्हति पचोरुहइ २ ता जाइंतस्थ उपलाइंजावसयसहस्सपत्ताइंगिण्हति गंदा ओ पुक्खरिणीओ पच्चोरुहइ २ ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेगमणार तएणं तं मूरिया देवं चत्तारिसामाणियसाहस्सीओ जाव सोलसआयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णेयबहने सूरियात्रिमाणे जाव देवा देवीओअप्पेगइया उप्पलहत्थगया जावसत्तसहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवंपिट्टओसमणुगच्छंति ततेणं सरिया देवंबहनेआभिओगिय देवाय देवीओ य अप्पेगइयाकलसहत्थगयाओ जावअप्पेगइया www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ७७ धृवकडच्छहत्थगया हतुहाजावजासूरियाभं देवंपिओसमणुगच्छंति तेतेणं णे सूरियाभेदेवे चरहिं सामाणियसाहस्सीहिं जावअण्णेहियबहहिंसूरियाभविमाणवासीहिं देवेहि देवीहिंयसद्धि संपरिवुटे सबढीए जाव णाइयरवेणं जेणेव सिद्धाययणे तेणेव उवा गच्छइ सिद्धवायगंपुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसंति २ ता जेणेव जिण पडिमाउ तेणेव उवागच्छइ, जिणपडिमाणंआलोए पणामंकरेति २ त्ता लोमहस्थगंगिण्हइ २ त्ता जिणपडिमाण लोमहत्थएणं पमज्झइ २ ता जिणपडिमाओमुरभिणागंधोदएणण्हाणेति हाणित्ता सरसेणं गोसीसचंदणणंगायाणं अणुलिप्पइ २ त्ता जिणपडिमाणंभहियांदेवदूसाई जुयलाई णियंसेइ २ ना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. पुप्फरुहणं मल्लारहणं चूण्णारूहणं गंधारुहणं वण्णारुहणं चुण्णरहणं वत्थारुहणं आमरुहणं करेइ करेताआसत्तासत्तविउलवग्यारियमल्लदामंकलावं करेइ २ ता कयग्गहगहितकरयल पभ्भ विप्पभुकेणं दसडवणेणं कुसुमेणं मुक्कपुष्फपुंजोक्यारकलियं करेति करता जिगपडिमाणं पुरतोअच्छेहि सण्हेहि सएहिं रयणामरहिं अच्छरसतंदुलेहि, अहटमंगले आलिहइ तंजहासत्थियजावद प्पणतयाणं तरंचणेचंदप्पहरयणवइरनेरुलियविमलदंडकंचगमणिरयणभत्तिचित्तकालागुरुपवरकुंदरुक तुरुक्कधुवमघमघंतगंधत्तामाणुचिट्ठति ववर्टिविणिमुयंत वेरुलियमयंकडुछखं पग्गहियपयतेणं धूवंदाऊणं जिणवराणं असयविसुद्धगंधजुत्तेहिं www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमलार. अपुणरत्तेहि. महाचित्तेहि संथगइ सत्तष्ट्रपयाहि पच्चोरूहइ १ ता वामंजा[अंचेइ दाहिणं जाणुंधरणितलं सिनिहट्टतिक्खूत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि णियोडेत्ति २ त्ता इसंपच्चूण्णमइ इसिंपच्चूणमित्ता करयलपरिग्गहियंसिरसावत्तं मत्थरयंज एवंषयासी णमोत्थुणंअरिहताणंजावसंपत्तागंवंदति णमंसइ २ ता ए रायपसेणीसूत्रे पाठ छे. सूरीयाभे पोते हाथे फूल चूंटी लीधा छ, सामानीक प्रमुख पासे मंगाव्या नथी. तथा जंबुद्वीपपन्नतीमे जन्माभिषेक जेणेवरखीरोदसमुद्दे तेणेव आगमखीरोदगं गिण्हंति २ ता जाइंतत्थउपलाई पउमाइ जावसहस्सपत्ताई ताबगिण्हंति २ 'प. इत्यादि सूत्रमे पाठ हाथना चूट्या फूल www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. लेवाना छे. तथा कोइक कहेसे जे एतो चूट्या नथी सहेजे पडया लीघां छे तेहने कहीये छे, जे हज्जारगमे सहेजे पडयां वावडीमध्ये हवेज नही, तथा निगाइने अधिकारे निगाइ राजाए आंबानी मांजरीयो पोते चुटी लीधी तेवारे कटक बधे चुंटी लीधी ते पाठ उववायीमध्ये जोजो. अन्नयाणुजुत्तनिग्गओपेछइ कुसुमाचुअ राइणायेगामंजरोगहीयाएवंरकंधावरेणंलयतेगं मंजरीपत्त पवाललयाइ कट्टाविसेसो को पडिनियत्तओपुच्छइ कहे सोरुक्खोअमञ्चणादंसाओ कहए सयावेत्थोभणइ तुम्हेहिं एगामंजरीगहीयापच्छसव्वणंगहेतेगं एवंकओ ॥ इहां गहीय शब्दे चूठ्यानो अर्थ छ, तथा कोइ कहेस्ये जे एतो देवताये कर्यो छे ते श्रावके www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ८१ कहीये जे करवी तो करचानो किहां पाठ नथी, तेहने जो देवतानी करणी ताहरे न शक्रस्तव कम करे छे ? तथा स्नात्र कॅम मानो छो ? स्नात्र नो कलस ढोलो छो ते देवतानी करणीज छे, तथा सूरीयाभनी पूजानी भलामण द्रौपदीने पाठे छे. देवतानी पूजाकरणी तथा मनुष्यनो पाठ एकज के तेमाटे देवतानी करणी श्रावक करे ए श्रद्धाप्रमाण छे तथा जे फूल चुटवानी ना कहे ते वींटना जीवनि कीलामना माटे वारे फूलनी पूजा किम करी शके ? अने फूलनी पूजानो तो सूत्रे पाठ है. तथा जे पूजाने हिंसामें गणे तेहने कहीये जे श्री प्रश्नव्याकरण सूत्रे प्रथम संवरद्वारे अहिंसाना ६० नाम कद्यां ले. तिहां पूजां ते दया www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. कही छे. ते पाठ लिखीइ छे. अभउसनस्स. विअनाघाओ चुरकापव्यत्तीपूयाविमलप्पभानिम्मलकरत्ति एवमाइणिनियगुणनिम्मियाइ. पज्झायनामाणिहुंति अहिंसाए भगवइए इत्यादि पाठे पूजा ते अहिंसामें गणी छे, तो तुम्हे हिंसामे किम गणो छो ? तथा भगवती सूत्रे " मुभयोगपडुच्चअणारंभा" ए पाठ शुभयोग प्रवृत्तिने आरंभनी ना कही छे. विनय तथा यावच्च ते तपना भेद छे. तप ते मोक्षमार्गमध्ये श्रीउत्तराध्ययने २८ मे अध्ययने कह्यो, ते तुमे हिंसामें केम कहो छो ? तथा विवहारसूत्रे सिद्धवेयावच्चेणं महानिजरामहापज्झवसाणंभवति " तेमाटे सिद्धवै यावच्च ते पूजा छ, तथा कोइ पूछे जे श्रावके प्रतिमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ८३ किहां पुंजी छ ? तेहने केहवो जे श्रीभगवतीसूत्रे तुंगीया नगरीने श्रावके पूंजा करी छे. शंख पुष्कलीये पूजा करी छे. तथा समवायांगसूत्रे द्वादशांगीनी हूंडीने अधिकारे उपासकदशानी हंडीमध्ये दश श्रावकनां चैत्य एहवो पाठ छे. ए पाठमे चैत्य तो साधु थाय नहीं, ज्ञान थाय नहीं ते सर्वना पाठ जुदा छ, तथा नंदीसत्रे पिग पाठ छे तथा नंदीमध्ये जे आगम कह्या ते सर्व माने तेज समकिती जाणवो. श्रीअनुयो गद्वारसूत्रे नियुक्तिनी हा कही छे ते नियुक्तिमध्ये पूजाना अनेक अधिकार छे, तथा तंदूलोयालीपयन्नानी टीकामध्ये समवसरणना फूल सचित्त ते उपर साधु साध्वी चाले. प्रवचनसारोद्धार टोकाये पण ए मत छ, तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ आगमसार. कोइ कहेस्ये जे फूलने पोइ (परोक्वा ) नहीं तेहने कहीये जे हीरप्रश्नमध्ये पाठ छे. तथा वनगंधोवमेहेंचेतिः श्लोकव्याख्यायते श्राद्ध दिनकृत्ये प्रोतपु पजाक्षराणिवतते तथा आद्यपक्षेतु जिनवल्लभसूरि कृत पूजाकुलकेपि प्रोत पुष्पाक्षराणि संति तथा हरिभद्रसरि कृत पूजा पंचासके जहरेहईतकीरइ ", ए गाथाना आसयथी पिण प्रोया फुलनी हा जणाय छे. तथा उमास्वातिवाचक कृत पूजा पटलमांपिग एमज जणाय छे. ते स्थापना इतर अने यावत्कथिक ए बे भेदें छे ... ३ द्रव्य निक्षेपो कहे छे, जेनो नाम पण होय तथा आकार थापना गुण पण होय अने लक्षण होय पण आत्मोपयोग न मिले ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. द्रव्य निक्षेपो जाणवो एटले अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्य जीव छ " अणुवओगो दई" इति अनुयोगद्वार वचनात्. वली कह्यं छे जे सिद्धान्त वांचतां पूछतां पद अक्षर मात्रा शुद्ध अर्थ करे छे अने गुरु मुखे सद्दहे छे ते पण शुद्ध निश्चये सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्य निक्षेपामां छे. जे भाव विना द्रव्यपणो छे ते पुण्य बंधनु कारण छे पण मोक्षद् कारण नथी एटले ज करणी रूप कष्ट तपस्या करे के अने जीव अजीव सत्ता ओलखी नथी तेने भगवती मूत्रमा अवती तथा अपञ्चख्खाणी कह्या छे, तथा जे एकली पाय करणी करे छे अने पोते साधु कहेवरावे ते मृषवादी छ एम उत्तराध्ययन सूत्रमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. का छ "न मुणी रनवासेणं" ए वचनें “ना. ण य मुणी होइ" ए वचनथी जे ज्ञानवान् ते मुनि छे अने जे अज्ञानी ते मिथ्यात्वी छे. तथा कोइक गणितानुयोगना नरक देवताना बोल अथवा यति श्रावकनो आचार जाणीने कहे जे अमे ज्ञानी छैयें ते पण ज्ञानी नथी, पण जे द्रव्य गुण पर्याय जाणे तेने ज्ञानी कहिये. श्री उत्तराध्ययने मोक्ष मार्गे कह्यो छे. गाथा, एयं पंच विहंनाणं दवाणय गुणाणय, पज्जवाणय सबसिं, नाणं नाणी हिं दंसियं ।.१ माटे वस्तु सत्ता जाण्या विना ज्ञानी नही अने नवतत्व ओलखे ते समकीति अने एहवा ज्ञान दर्शन विना जे कहे के अमे चारित्रिआ छयें ते पण मृषावादी छे, कारण के श्री उत्तराध्ययन www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. सूत्र मध्ये कधुं छे जे “ नादंसणस्सनाणं नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा " ए वचन छे ते माटे आज केटलाक ज्ञानहीन क्रियानो आडंबर देखाडे छे ते ठग छे तेहनो संग करवो नही. ए वाह्य करणी अभव्य जीवने पण आवे माटे ए बाह्य करणी उपर राचबुं नही अने आत्मानुं स्वरूप ओलख्या विना सामाas पडिकमणा पच्चखखाण करवां ते सर्व द्रव्पनिक्षेपामां पुण्याश्रवले पण संवर नथी. श्रीभगवती सूत्र मध्ये कधुं छे के “आया खलु सामाइयं " ए आलावाथी जाणजो तथा जीव स्वरूप जाण्या विना तप संयम पुण्य प्रकृति ते देवताना भवनुं कारण ले “ पुत्र तवेणं पुत्र संयमेणं देवलोए उववज्जंति नो चेवणं www.kobatirth.org یس For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. आय भाववत्तव्ययाए" ए आलावो भगवतीमां कह्यो छे. तथा जे क्रियालोपी आचार हीन अने ज्ञानहीन छ मात्र गच्छनी चालें सिद्धान्त भणे छे वांचे छे व्रत पञ्चख्खाण करे छे ते पण द्रव्य निक्षेपो जाणवो. एम श्री अनुयोगद्वारमा कयुं छे. जे इमे समण गुणमुक्कजोगी छक्काय निरणुकंपा ॥ हयाइव उद्दामा ॥ गयाइव निरंकुसा ॥ घट्टामट्टातुप्पोठा ॥ पंडुरयाउरणा जि. णाणं आणाए सच्छंद विहरिउण उभओकालं आवस्सग्गस्स उवट्ठति ॥ तं लोगुत्तरियं दवावस्स्सयं ।। __अर्थ-जेने छ कायनी दया नथी, घोडानी पेरें उन्मत्त छ, हाथीनी पेठे निरंकुश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. छे, पोताना शरीरने धोवतां मसलता उजले कपडे शिणगार करी गच्छना ममत्वभाने माचतां स्वेच्छाचारी वीतरागनी आज्ञा भांजता जे तप क्रिया करे छे ते पण द्रव्य निक्षेपामां छे. अथवा ज्योतिष वैद्यक करे छे अने पोताने आचार्य उपाध्याय कहेवरावीने लोक पासे महिमा करे ( करावे छे ) छे ते पत्रीबंध खोटा रूपैया जेवा छे. घणा भव भमसे अवंदनीक छे ए खास उत्तराध्ययनमध्ये अनाथी मुनिना अध्ययनथकी जाणवी अने सूत्रना अर्थ गुरुमुखे शिख्या चिना तथा नय प्रमाण जाण्या विना निश्चय आत्मानुं स्वरूप ओलज्या विना नियुक्ति विना उपदेश आपे ते पोते तो संसारमा बुज्या के पण जे तेमनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० आगमसार. पासे बेसे ले तेमने पण संसारमां बुडावे छे एम प्रश्न व्याकरण सूत्र तथा अनुयोगद्वार सूत्रमां कां छे “ अज्जुत्थ चेव सोल समं " इत्यादि अने भगवती सूत्रमां पण कधुं छे “सुतत्थो खलु पढमो, वीओ निजुत्ति मिसओ भणिओ, इत्तो तईअणुओगो, नाणुन्नाओ जिणवरेहि " अने केटलाक एम कहे छे जे अमे सूत्र उपर * अर्थ करिये छैयें तो नियुक्ति * श्री भगवती सूत्रमां "सुतत्थोखलु पढमो, बीओनिज्जुत्ति मिसओ भणिओ ॥ इत्तो तईयणुओगो, नाणुन्नाओजिणवरेहिं " एवी रीते आगमसारनी जूढ़ी जूढ़ी त्रण प्रतोमां लख्यं हतुं माटे में पण तेमज लख्युं छे पण बीजा ठेकाणे ए भगवतीनी साख दीधी छे तिहां तो " सुतत्यो खलु www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तथा टीका प्रमुखनुं शुं काम छे ते पण मृषावाद छे केमके श्रीप्रश्नव्याकरणमां "वयणतियं लिंगतियं " इत्यादिक जाण्या विना अने नय निक्षेप जाण्या विना जे उपदेश आपे ते मृषावादी छे एग अनेक मूत्रमा कयुं छे माटे बहुश्रुत पासे उपदेश सांभलवो. श्री उत्तराध्ययन मध्ये बहुश्रुतने मेरुनी तथा समुद्रनी अने कल्पवृक्षादि सोल उपमा दीधी छे ए द्रव्य निक्षेपो कह्यो. ४ भाव निक्षेपो कहे छे. जे नाम स्थापना अने द्रव्य ए त्रण निक्षेपा ते एक भाव पढमो, बीओनिज्जुत्ति मिसओ भणिओ॥ तइओय निरविसेसो, एस विहि होइ अणुओगो" एवो पाठ छे ते. खरो जणाय छे पछे बहुश्रुत कहे ते खरुं. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. निक्षेपा विना अशुद्ध छे जे नाम तथा आकार लक्षण गुण सहित वस्तु ते भाव निक्षेपो जा. णवो " उवओगो भाव " इति वचनात् एटले पूजा, दान, शील, तप, क्रिया, ज्ञान ए सर्व भावनिक्षेपे सहित लाभर्नु कारण छे इहां कोइ कहेशे जे मनना परिणाम दृढ करीने जे करिये तेने भाव कहियें एम कहे छे ते जूठा छे एतो सुखनी वांछायें मिथ्यात्वी पण घणा करे छे ते गणवू नहीं. इहां सूत्रनी साखे वीतरागनी आज्ञाए हेय उपादेयनी परीक्षा करी अजीवतत्त्व तथा आस्रवतत्व अने बन्धतत्व उपर हेय कहेतां त्याग भाव अने जीवना स्वगुण जे संवर निर्जरा तथा मोक्ष तत्व ऊपरें उपादेय परिणाम ते भाव कहिये एटले रूपी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, गुण ते द्रव्य निक्षेप के अने अरूपीगुण ते भावनिक्षेप छे एटले मन वचन काया लेश्यादिक सर्व द्रव्य निक्षेपामा छे अने ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य ध्यान प्रमुख सर्व गुण भाव निक्षेपामां छे. ए भाव निक्षेपो ते नामस्थापना तथा द्रव्य सहित होय एटले चार निक्षेपा कह्या. हने चार निक्षेपा पदार्थ ऊपर लगाडी देखाडे छे. नाम जीव ते चेतना अथवा मांचाना एक वाणने जीव कही बोलावे छे ते नाम निक्षेपे जीव. मूर्ति प्रमुख थापियें ते स्थापना जीव. एकेंद्रियथी पंचेंद्रिय पर्यंत सर्व जीव छ पण उपयोग मिले नहि ते द्रव्य जीव. अने मूर्तिमां जीव स्वरूप ओलखी समकितना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. उपयोगमा ले ते भाव जीव. एम धर्मास्तिका. यादिक द्रव्यमां पण जाणवू. नामथी धर्मास्तिकाय कही बोलाववो ते नाम धर्मास्तिकाय. धर्मास्तिकाय एहवा अक्षर लखवा अथवा दृष्टांत कारणे काइक वस्तु थापवी ते स्थापना धर्मास्तिकाय तथा धर्मास्तिकाय जे असंख्यात प्रदेशी धर्म द्रव्य छे ते द्रव्य धर्मास्तिकाय. ए धर्मास्तिकायने जे वारें चलण सहाय गुणनी अपेक्षा सहित ओलखियं ते भाव धर्मास्तिकाय. ___ हो कोइकनो साधु एहवो नाम के ते नाम साधु अने स्थापना करिये ते स्थापना साधु तथा जे पंच महाबत पाले क्रिया अनुटान करे सुजतो आहार लिये पण ज्ञानध्याननो जेत्रो उपयोम जोइए तेवो उपयोग न www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. होय ते द्रव्य साधु. जे भाव संवरमोक्षनो सा. धक थइ भाव साधुनी करणी करे ते भाव निक्षेपे साधु कहिये. कोइकनो अरिहंत नाम छे ते नाम अरिहंत अने अरिहंतनी प्रतिमा ते थापना अरिहंत जेटला सुधी छद्मस्थ अवस्था ते द्रव्य अरिहंत अने केवल ज्ञान पाम्या पछे लोकालोकनो भाव जाणे देखे ते भाव अरिहंत एम सिद्धमां पण कहबो. कोइ जीवनो ज्ञान एहवो नाम अथवा भावें अजीवनो नाम ते नाम ज्ञान तथा जे ज्ञान पुस्तकमा लख्युं छे स्थापना ज्ञान. जे उपयोग विना सिद्धांतनो भणवो अथवा अन्य मतिना सर्व शास्त्र भणवा तथा ज्ञशरी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ आगमसारं. रादिक ते सर्व द्रव्य ज्ञान जे नवतनुं जाणवुं ते भावज्ञान. तथा कोइकनुं तप एवं नाम ते नाम तप तथा पुस्तकमां तपनी विधिनुं लेखन ते थापना तप अने पुण्यरूप मासखमणादिक करवो ते द्रव्य तप. जे परवस्तु ऊपर त्यागनो परिणाम में भाव तप. एम संवादिक सर्वमां चार चार निक्षेपा जाणवा तथा श्री अनुयोगद्वार मध्ये कां छे यतः " जत्थयजं जाणि ज्जा, निखखेवं निखिखवे निरवसेसं ॥ जत्थयनो जाणिज्जा, चउक्कयंनिखिख तत्थ || १ | ए चार निक्षेपा का एटले शब्दमय को. हने छट्टो समभिरू नय कहे छे जे वस्तुना केटलाक गुण प्रगटया के अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ९७ केटलाक गुण प्रगट्या नथी पण अवश्य प्रगहवी वस्तुने वस्तु कहे ते वस्तुना नामांतर एक करी जाणे. जेम जीव चेतन तथा आत्मा रहनो एक अर्थ कहे ते समभिरू नय कहियें, ए नय एक अंश ओछी वस्तु पूरे पूरी वस्तु कहे, जेम तेरमा गुणठाणे केवळी होय तेहने सिद्ध कहे. ए नयना भेद बिलकुल नथी ए समभिरू नय को. एवंभूतनय कहे छे जे वस्तु पोताने गुणे संपूर्ण छे अने पोतानी किया करे छे तेने ते वस्तु कही बोलावे. जेम मोक्षस्थानके ने जीव होतो सिद्ध कहे. जेम पाणीथी www.kobatirth.org * एकार्थवाची नामोनां नामभेदे भिन्न भिन्न अर्थ करे छे ते समभिरू नय कहे छे. For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. भरेलो स्वीना माथा उपर आवतो जल धारण क्रिया करतो तेने घडो कहे. ए एवंभूत नय कह्यो. हवे सात नयना दृष्टान्त श्री अनुयोगद्वारा मूत्रथी लखियें छैयं. जेम कोइक पुरुषे पीजा कोइक पुरुषने पुछयु जे तमे किंहां वसो छो तेवारे ते पुरुचे को हुँ लोकमां वसुं छ. ए अशुद्ध नैगम, वली पुछयु जे लोकना त्रण भेद छ, १ अधोलोक, २ त्रिछोलोक ३ ऊर्श्वलोक तेमां तुं किहां रहे छ तेवारें नैगमें कडं जे त्रिछालोकमां रहुंछं. वली पुछयु जे त्रिछालोकमां असंख्याता द्वीप समुद्र छे तेमां तुं कया द्वीपमा रहे छे तेवारें विशुद्ध नैगमें कह्यु जे जंबुद्वीपमा रहुंछु, से www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जंबुद्वीपमा खेत्र घणा छे, तेमां तुं कया क्षेत्रमा रहे छे, तेवारे अतिशुद्ध नैगम बोल्यो जे भरतक्षेत्रमा रहुंछं, ते भरतक्षेत्रना छ खंड छे ते महिला का खंडमां रहे छे तेवारे का जे मध्यखंडमां रहुँ छु एम क्रमे पूछतां छेल्ले कडं जे आपणा देशमा रहुं छं, तेवारें फरी पुछयुं जे देशमां तो नगरगाम घणा छे तो तुं किहां रहे छे. तेवार कयु जे हुँ अमुक गाममा रहुं छु, ते गाममां वली अमुक पाडो तथा अमुक घर बताव्युं तिहां सुधी नैगम नय जाणवो. अने संग्रह नय वालो बोल्यो जे मारा पोताना शरीरमां वसुंछ, तथा व्यवहारनयवालो बोल्यो जे संथारे बेठो छु तेटलाज www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगममार, बिछानामां रहुं छु, अने ऋजुसूत्र नयवाले कडं जे मारा आत्माना असंख्याता प्रदेशमा रहुं हुं. वली शब्दनय कहे जे मारा स्वभावमा रहुं छु, तेमज समभिरूढनय कहे जे हुं मारा गुणमा रहुं छु, अने एवंभूतनयवादी कहे जे ज्ञानदर्शन गुणमां बसं छ. ए दृष्टांत कयो सेम सर्व वस्तुमां कहे. तथा कोइके प्रदेशमात्र क्षेत्र अंगीकार करी पुछयु जे ए प्रदेश कया द्रव्यनो छे तेवाएँ नैगमनय बोल्यो जे छए द्रव्यनो प्रदेश के कैमके एक आकाश प्रदेशमध्ये छ द्रव्य भेला छे तेवार संग्रह नय बोल्यो जे कालद्रव्य तो अप्रदेशी छे ते माटे सर्व लोकमां एक समय छे पण ते एक आकाश द्रव्यना प्रदेशमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, जूदो नथी माटे काल विना पांच द्रव्यनो प्रदेश छे तेवारे व्यवहारनय बोल्यो के जे द्रव्य मुख्य देखाय छे तेहनो प्रदेश छे तेवाएँ ऋजुमूत्रनय बोल्यो के जे द्रव्यनो उपयोग देइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे. जो धर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछियें तो धर्मास्तिकायनो प्रदेश छे. जो अधर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछिये तो अधर्मास्तिकायनो प्रदेश छे. तेवारे शब्दनय बोल्यो के जे द्रव्यनो नाम लइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे. हवे समभिरूढनय वोल्यो जे एक आकाश प्रदेश मध्ये धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश छे, अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश के अने जीवना अनंता वेश छे. पुगलना अनंता पर ब्राणु प्रमुख www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ आगमसार. अस्तिकायनो एक प्रदेश छे, तेवारे एवंभूत नय बोल्यो, जे प्रदेश द्रव्यनी क्रियागुण अंगीकार करी देखीये ते समयमां ते प्रदेश ते द्रव्यनो गणिये ए प्रदेशमा सात नय कह्या. ___ हने जीवमां सात नय कहे छे. प्रथम नैगमनयने मते जे गुण पर्यायवंत शरीर सहित ते जीव एटले शरीरमां जे बीजा पुद्गल तथा धर्मास्तिकायादिक द्रव्य छे ते सर्व जीवमांज गण्या तेवारे संग्रहनय बोल्यो जे असंख्यात प्रदेशी ते जीव एटले एक आकाशना प्रदेश टल्या बीजा सर्व द्रव्य एमां गणाणा तेवारे व्यवहारनय बोल्यो, जे विषय लई काम वात संभारे ते जीव इहां धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश तथा बीजा पुद्गल www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १०३ सर्व टल्या पण पांचे इन्द्रीय तथा मन अने लेश्या ए पुद्गल छे ते जीवमां गणाणा, कारके विषयादिकतो इंद्रियो ले छे ते जीवथी न्यारा छे पण इहां व्यवहारनयमते जीव भेला लीधा छे वारे ऋजुसूत्रनय वोल्यों जे उपयो गवंत ते जीव इहां इंद्रियादिक सर्व टल्या पण अज्ञान तथा ज्ञानना भेद टल्या नहीं. हवे शब्दनय वोल्यो जे नामजीव, स्थापना जीव द्रव्यजीव भाव जीव इहां जीवमां गुण निर्गुणगो भेद पड्यो नही, तेवारें समभिरूढनय बोल्यो जे ज्ञानादिगुणवंत ते जीव तेवारें मतिज्ञान श्रुतज्ञान इत्यादिक साधक अवस्थाना गुण ते सर्व जीव स्वरूपमा आव्या हवे एवंभूतनयबोल्यो जे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ आगमसार. अनंत चारित्र, शुद्धसत्तावंत ते जीव ए नये जे सिद्ध अवस्थामा गुण हता तेज ग्रथा ए सात नये जीव द्रव्य कह्यो. हवें सातनयें धर्म कहे छे. नैगमनय बोल्यो जे सर्व धर्म छे केमके सर्व प्राणी धर्मने चाहे छे. ए नय स्वरूप धर्म नाम धर्म ने धर्म कहे. हवे संग्रहनय बोल्यो जे वडेरायें आदरयो ते धर्म, एणे अनाचार छोड्यो पण कुलाचारने धर्म कह्यो, व्यवहारनय बोल्यो जे सुखनुं कारण ते धर्म एणे पुण्य करणीने धर्म करी मान्यो. ऋजुसूत्रनयमते जे उपयोग सहित वैराग्यरूप परिणाम ते धर्म कहियें. ए नयमां यथाप्रवृत्तिकरणना परिणाम प्रमुख सर्व धर्ममां गण्या ते मिथ्यात्वीने पण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगमसार होय. हवे शब्दनसल्याजे धर्मत मूलसकित छ माटे समकितमा धर्म लेखा समभिनय बोल्यो जे जीव अजीववत तय द्रव्यने ओलखीने जीवसत्ता व्याके अजीवर्ना त्याग करे एहवो ज्ञान दर्शन चारित्रनो शुद्धनिश्चय-परिणाम ते धर्म. ए नये साधक सिद्ध परिणाम ते धर्मपणे लीधा. एवंभूतनय बोल्यो जे शुक्ल ध्यान रूपातीत परिणाम क्षपक श्रेणि कर्म क्षयना कारण ते साधन धर्म जे जीवनो मूल स्वभाव ते वस्तु धर्म जे मोक्षरूप कार्य नीपने सिद्धमा रहे ते धर्म. ए साते नये धर्म कह्यो. ___ हवे सातनये सिद्धपणो कहे छे. नैगमनयनी मते सर्व जीव सिद्ध छे केमके सर्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ आगमसार. जीवना आठ रुचक प्रदेश सिद्ध समान नि. र्मल के मांटे संग्रहनय कहे जे सर्व जीवनी सत्तासिद्ध समान छे एणे पर्यायार्थिक नयेंकरी कर्म सहित अवस्था ते टालीने द्रव्यार्थिक नयेंकरी अवस्था अंगीकार करी तेवारें व्यवहारनय बोल्यो जे विद्या लब्धि प्रमुख गुणे करी सिद्ध थयो ते सिद्ध. ए नये बाह्य तप प्रमुख अंगीकार करवा, हवे ऋजुमूत्रनय बोल्यो के जेणे पोताना आत्मानी सिद्धपणानी सत्ता ओलखी अने ध्याननो उपयोग पण तेज व छे ते समये ते जीव सिद्ध जाणवो. ए नये समकीति जीव सिद्ध समान है एम कयुं हवे शब्दनय बोल्यो जे शुद्ध शुक्र ध्यान परिणाम नामादिक निक्षेपे ते सिद्ध. तेवारें www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार १०७ समभिरूढनय बोल्यो जे केवलज्ञान केवलदर्शन, यथाख्यातचारित्र ए गुणे सहित ते सिद्ध जाणवा. ए नये तेरमा चउदमा गुणठाणाना केवलीने सिद्ध कह्या अने एवंभूतनय कहे छे के जेना सकल कर्म क्षय थया लोकने अंते विराजमान अष्टगुण संपन्न ते सिद्ध जाणवा. ए रीते सिद्ध पदे सात नय कह्या. एम सात नय मिल्या मुमकीति छे अने जे. एक नयने ग्रहण करे ते मिथ्यात्वी छे. ए साते नय सिद्ध ते वचन प्रमाण छे अने ए सात नयमां कोइ पण नयने उत्थापे तेनुं वचन अप्रमाण छे. ___ हवे प्रमाणनो विचार कहे छे. प्रमाणना बे भेद छे. एक प्रत्यक्ष प्रमाण बीजं परोक्ष www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. प्रमाण तेमा जे जीव पोताना उपयोगथी द्रव्यने जाणे ते प्रत्यक्ष प्रमाण कहिये. जेम केवली छ द्रव्य प्रत्यक्ष प्रमाणे जाण तथा देखे ते माटे केवलज्ञान ते सर्वथी प्रत्यक्ष ज्ञान छे, अने मनः पर्यवज्ञान ते मनोवर्गणा प्रत्यक्ष जाणे तथा अवधिज्ञान ते पुद्गल द्रव्यने प्रत्यक्ष जाणे माटे ए वे ज्ञान देश प्रत्यक्ष छे. बीजु छअस्थज्ञान ते सर्व परोक्ष प्रमाण छे. हवे परोक्ष प्रमाण कहे छे. मतिज्ञाननो अने श्रुतज्ञाननो उपयोग परोक्ष प्रमाण छे केमके जे शास्त्रना बलथी जाणे ते परोक्ष प्रमाण कहिये. ते परोक्ष प्रमाणना व्रण भेद छे. १ अनुमान प्रमाण, २ आगम प्रमाण, ३ उपमान प्रमाण. तेमां अनुमान एटले कोइक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, सहिनाण देखीने जे ज्ञान थाय. जेम धुमाडो देखीने अग्निर्नु अनुमान थाय अने आगम एटले शास्त्रनी साखथी जे वात जाणियें. जेम देवलोक तथा नरक निगोद विगेरेनो विचार आगमथी जाणियें छैये ते आगमप्रमाण अने कोइक वस्तुनो दृष्टान्त आपीने वस्तुने ओलखाववी ते उपमान प्रमाण जाणवो. ए प्रमाण कथा. हमें सत् असत् पक्षथी सप्तभंगी ___ ? स्यात् केहता अनेकांतपणे सर्व अपेक्षा लेइ जीवद्रव्यमां आपणो द्रव्य आपणो खेत्र आपणो काल आपणो भाव एम आपणे गुण पर्यायें जीव छे तेम सर्व द्रव्य आपणे मुणपर्यायं छे ते स्यात् अस्ति नामा पहेलो भांगो थयो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० आगमसार. द्रव्य २ २ जे जीवमां बीजा पांच द्रव्यना १ खेत्र ३ काल ४ भाव ते पद्रव्यना गुणपर्याय जीवमां नथी एटले परद्रव्यना गुनो नास्तिपणो सर्व द्रव्यमां छे. ए स्यात् नास्ति बीजो भांग थयो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ द्रव्य स्वगुणे अस्ति अने पर गुणे नास्ति ए वे भांगा एक समये द्रव्यमां छे. जेम जे समये शुद्ध स्वगुणनी अस्ति छे तेज समयें परगुणनी नास्ति पण छे, माटे अस्ति नास्ति ए बेहु भांगा भेला छे तेस्यात् अस्ति नास्ति त्रीजो भांगो थयो. ४ अस्ति अने नास्ति ए बेहु भांगा एक समयमा छे तो वचने करी अस्ति एटलो बोलतां असंख्यता समय लागे तेथी नास्ति www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १११ भांगो तेज वखते कहेवाणो नही अने जो नास्ति भांगो को तो अस्तिपणो नान्यो माटे एकज अस्ति कहेतां थकां नास्तिपणो तेज समये द्रव्यमां छे ते नही कहेवाणो माटे मृषावाद लागे तेमज नास्ति कहेतां अस्तिनो मृषावाद लागे माटे बचने अगोचर छे एक समयमा बेहु वचन बोल्या जाय नही केमके एक अक्षर बोलतां असंख्याता समय लागे छ माटे वचनी अगोचर छे ते स्यात् अवतव्य ए चोथो भांगो कह्यो. ५ ते अवक्तव्यपणो ए वस्तुमां अस्तिधर्मनो पण छे माटे स्यात्अस्ति अवक्तव्य पांचमो भांगो कह्यो. ६ तेमज नास्ति धर्मनो पण अवक्तव्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ आगमसार. पणो वस्तु मध्ये ले माटे स्यात् नास्ति अव तव्व छट्टो भांगो जाणवो. ७ ते अस्तिपणो तथा नास्तिपणो बेहु धर्म एकसमये वस्तु मध्ये ले पण वचनथी अवक्तव्य के माटे स्यात् अस्तिनास्तियुगपत् अवक्तव्य ए सातमो भांगो को. हवे ए सात भांगा नित्य तथा अनित्यपणामां लगाडे हे १ स्यात् नित्यं २ स्यात् अनित्यं ३ स्यानित्यानित्यं ४ स्यात् अवक्त व्यं ५ स्यात् नित्यं वक्तव्य ६ स्यात् अनित्यं अवक्तव्यं ७ स्यात् नित्यानित्यं युगगत अब - क्तव्यं, एमज एक अनेकना सात भांगा कहेवा तथा गुणपर्यायां पण कहेवा केमके www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १.१.३ सिद्ध मध्ये नय नथी तोपण सप्तभंगी तो सिद्ध मां है. हवे सत्ता ओळखावाने त्रिभंगी कहे छे. १ मिथ्यात्व दशा ते वाधकदशा २ समकित गुणठाणार्थ मांडीने अयोगी केवली गुडाणा खुपी साधक दशा जाणवी. ३ सर्व कर्मथी रहित ते सिद्ध दशा. १ ज्ञाननो जागपणो वे जीव गुण २ तेनो ज्ञाता ते जीव. ३ ज्ञेय ते सर्व ध्यान ते जीवना स्वरूपनो २ ते ध्याननो ध्याता जीव ३ ध्येय आत्मानो स्वरूप १ कर्त्ता ते जीव २ कर्म ते एक मोक्ष बीजो वन्य ३ क्रिया ते एक संवर वीजी maa. १ कर्म ते चेतनाने कर्म बंधना परिणाम २ कर्मनुं फल ते चेतनाने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ आगमसार. जे कर्म उदयना परिणाम ३ ज्ञान चेतना ते जीवनो स्वगुण. ते आत्माना त्रण भेद छे १ अज्ञानी जीव शरीरादिक परवस्तुने आत्मबुद्धियें करी माने छे ते पहेलो बहिरात्मा २ जे देह सहित जीव छे ते पण निश्वये सत्तागुण सिद्ध समान के एटले पोताना जीवने सिद्ध समान करी ध्यावे ते वीजो अंतरात्मा जाणवो. ३ कर्म खपावी केवलज्ञान पाम्या ते अरिहंत तथा सिद्ध सर्व परमात्मा जाणवा. ए त्रिभंगीनो विचार को एटले आठ पक्षनो विचार को. हवे एकेक द्रव्य मध्ये छ सामान्य गुण हे ते कहे छे. पहेलो अस्तित्व ते जे छ द्रव्य आपणा गुण पर्याय प्रदेश करी अस्ति www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ११५ मां धर्म, अधर्म, आकाश अने जीव ए चार द्रव्यनो असंख्याता प्रदेश मिल्या संध थाय छे अने पुद्गलमां खंध थवानी शक्ति के माटे ए पांच द्रव्य अस्तिकाय छे अने छट्टो काल द्रव्यनो समय कोइ कोइथी मिलतो नथी केमके एक समय विणस्या पछे बीजो समय आवे छे माटे काल अस्तिकाय नथी. द्रव्यमां ए अस्तित्वपणो को. २ वस्तु कतां वस्तुपणो कहे छे ते द्रव्य छए एकठा एक क्षेत्र मध्ये रह्या छे, एक आकाश प्रदेशमां धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश रह्यो छे तथा अनंतात्माना अनंता प्रदेश रह्या छे. पुद्गल परमाणु अनंता रह्या छे. ते सर्व पोतानी सत्ता लीघा थका रह्या छे पण कोइ द्रव्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. साथे मिली जातो नथी ते वस्तुपणो. ३ द्रव्यत्व केहतां द्रव्यपणो ते सर्व द्रव्य पोतपोतानी क्रिया करे एटले धर्मास्तिकायमां चलनगुण ते सर्व प्रदेश मध्ये छे सदा काले पुद्गल तथा जीवने चलावारूपक्रिया करे छे, इहां कोइ पुछे जे लोकान्त सिद्धक्षेत्रमा धर्मास्किाय छे ते सिद्धना जीवने चलाक्वापणो करतो नथी लेने के ने उत्तर कहे छे जे सिद्धना जीव अक्रिय छे माटे चालता नथी पण ते क्षेत्रमा जे सूक्ष्म निगोदना जीव तथा पद्ल छेहने धर्मास्तिकाय चलाने छे माटे पोतानी क्रिया करे छ, तेमज अधर्मास्तिकाय जीव तथा पुद्गलने स्थिर राखबानी क्रिया करे छे, तथा आकाश द्रव्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ते सर्व द्रव्यने अवगाहनारूपकार्य करे छे. इहां कोइ पूछे जे अलोकाकाशमांतो बीजुं कोइ द्रव्य नथी तो अलोकाकाश कया द्रव्यने अवगाहदान आपे छे तेने उत्तर कहे छे जे अलोकाकाशमां अवगाह करवानी शक्ति तो लोकाकाश जेवीज छे परंतु तिहां अवगाहनो दान लेनार द्रव्य कोइ नथी माटे अवगाहदान करतो नथी अने पुद्गल द्रव्य मिलवा विखखारूप क्रिया कर छे तथा कालद्रव्य वत्तेना रूप क्रिया करे छे अने जीव द्रव्य ज्ञान लक्षण उपयोगरूप क्रिया करे .एम सब द्रव्य पोताने परिणामी स्वसत्तानी क्रिया करे छे ए द्रव्यत्वपणो कह्यो. ४ प्रमेयत्वं कहेता प्रमेयपणो जे छ द्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮ आगमसार. व्यमां प्रमेयपणो छे, तेनो प्रमाण केवली पोताना ज्ञानथी करे छे, जे धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकाय एकेक द्रव्य छे अने जीवद्रव्य अनंता छे तेहनी गणति कहे छे. संज्ञी मनुष्य संख्याता छे, असंज्ञी मनुष्य असंख्याता छे, नारकी असंख्याता छे, देवता असंख्याता छे, तिर्यच पंचेन्द्रिय असंख्याता छे, बेइन्द्री असंख्याता, तेईन्द्री चौरेंद्रीय असंख्याता छे पृथ्वीकाय असंख्याता, अपकाय असंख्याता, तेउकाय असंख्याता, वायुकाय असंख्याता, प्रत्येक वनस्पति जीव असंख्याता, ते थकी सिद्धना जीव अनंता ते थकी बादर निगोदना जीव अनंतागुणा एटले बादर निगोद ते कंदमूल www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. आदु सूरण प्रमुख एहने सुइने अग्रभागें अनंता जीव छे ते सिद्धना जीवथी अनंतगुणा छे अने सूक्ष्मनिगोद सर्वथी अनंत गुणा छे. सूक्ष्मनिगोदनो विचार कहे छे जेटला लोकाकाशना प्रदेश तेटला गोला छे ते एकेक गोलामां असंख्याता निगोद छे. निगोद शब्दनो अर्थ ए ले जे अनंता जीवनो पिंड भूत एक शरीर तेहने निगोद कहिये. ते एकेकी निगोदमध्ये अनंता जीव छे ते अतीत कालना सर्व समय तथा अनागतकालना सर्व समय अने वर्तमान कालनो एक समय तेने भेला करी अनंत गुणा करीये एटला एक निगोदमां जीव छे एटले अनंता जीव छे ए ए संसारी जीव एकेकाना असंख्याता प्रदेश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १२० छे अने एकेका प्रदेशे अनंति कर्म वर्गणा लागी छे. ते एकेक वर्गणा मध्ये अनंता पुद्गल परमाणु छे एम अनंता परमाणु जीव साथे लाग्या छे ते थकी अनंत गुणा पुद्गल परमाणु जीवथी रहित छुटा छे. गोलाय असंखिजा, असंख निगोयओ हवइ गोलो ।। इकिमि निगोए, अणंतजीवा मुणेयवा ॥१॥ अर्थ-लोक माहे असंख्याता गोलाछे, एकेका गोला मध्ये असंख्याति निगोद छे. एकेक निगोदमां अनंता जीव छ ।। सत्तरस समहियाकिरी। इगाणुपाऍमि हुँति खुड्डभवा ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. सगतीससयतिहुँत्तर। पाणु पुण इग मुहुत्तमि ॥ १॥ अर्थ-निगोदिया जीव ते मनुष्यना एक उसासमां सत्तर १७ भव जाजरा करे छे अने सडत्रीससो तिहुँतेर ३७७३ श्वासोच्वासे एक मुहूर्तमां थाय. पणसहि सहस्स पणसय । छत्तिसा इग मुहुत्त खुडुभवा ।। आवलियाणं दो सय। छपन्ना एग खुड्डभवे ॥ १॥ अर्थ-निगोदना जीव एक मुहूर्त्तमां ६५५३६ मा करे अने निगोदनो एक भव २५६ आवलीनो छे. क्षुल्लक भवनो ए प्रमाण छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अस्थि अणंताजीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो ॥ उवजतियचयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव ॥ १ ॥ अर्थ-निगोदमां अनंता जीव एहवा छे, जे जीव सपणो पहेला किवारें पाम्या नथी अनंतो काल पूर्व गयो अने अनंतो काल जाशे पण ते जीव वारंवार तिहांज उपजे छे अने तिहांज चवे छे एम एक नि. गोदमां अनंता जीव छे ते निगोदना वे भेद छे. एक व्यवहार राशी निगोद अने बीजो अव्यवहारराशी निगोद. तेमां जे बादर एकेन्द्रियपणो भावे त्रसपणो पामीने पाछा निगोदमां जाइ पड्या छे ते निगोदिया जीवने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १२३ व्यवहार राशिया कहियें, अने जे जीव कोइ पण काले निगोदमांथी निकल्या नथी ते जीव अव्यवहारराशीया कहियें अने इहां मनुष्यपणाथी जेटला जीव कर्म खपावीने एक समयमां मोक्ष जाय छे तेटला जीव तेज समये अव्यवहारराशी सूक्ष्म निगोदमांथी निकलीने उंचा आवे छे. जो दश जीव मोक्ष जाय तो दश जीव निकले. कोइक वेलाए भव्य जीव ओछा निकले तो ते ठेकाणे एक वे अभव्य निकले पण व्यवहारराशीमां जीव कोइ वधे घटे नहीं. एवा निगोदना असंख्याता लोकमांहेला गोला ते छदिशीना आव्या पुद्गलने आहारादिपणे ले छे ते सकल गोला कहेवाय अने लोक अंतना प्रदेशे जे निगोदना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १२४ गोला रह्या छे तेने व्रण दिशीना आहारनी फरशना छ माटे विकल गोला कहिये. ए सूक्ष्म निगोदमां पांच थावरना सूक्ष्म जीव ते सर्व लोकमां काजलनी कुंपलीनी पेरे भरया थका व्यापी रह्या छे अने साधारणपणो ते मात्र एक वनस्पतिमांज छे पण चार थावरमां नथी. ए सूक्ष्म निगोदमां अनंतु दुःख छ तेनुं उदाहरण कहे छे. सातमी नरकनुं आयुष्य तेत्रीस सागरोपमना जेटला समय थाय तेटला वखत सातमी नरकमां उत्कृष्टो तेत्रीस सागरोपमने आयुषे कोइक जीव उपजे तेटला ( असंख्याता) भवमां जेटलं छेदन भेदनदुःख थाय ते सर्व एकटुं करिये तेथी अनंतगणुं दुःख निगोदना जीव, एक समयमां भो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. गवे छे. दृष्टान्त जेम कोइक मनुष्यने साडा त्रण क्रोड लोढानी सुइने अग्निथी तपावीने कोइक देवता समकाले चांपे तेने जे वेदना थाय तेथी अनंत गुणी वेदना निगोद मध्ये छ अने भव्य जीवने निगोदनुं कारण ते अज्ञान दशा के माटे तेहनो त्याग करो. ए निगोदनो विचार कह्यो. ए सर्व प्रमेयनो प्रमाता आत्मा पोताना ज्ञान गुणे करी प्रमेयनो प्रमाण करे ए प्रमेयपणो कयो. ५ सत्त्वपणो ते छ द्रव्य एक समयमां उपजे विणसे छे अने स्थिरपणे छे. उत्पाद व्यय ध्रुवपणो तेहिन सत्पणो. उत्पाद व्ययध्रुवयुक्तं सत् इति “ तत्त्वार्थ वचनात् " ते विस्तारथी कही देखाडे छे. जे धर्मास्तिका www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १२६ यना असंख्याता प्रदेश के तिहां एक प्रदेशमा अगुरुलघु असंख्यातो छ अने बीजा प्रदेशमा अनंतो अगुरुलघु छ, त्रीजा प्रदेशमां संख्यातो अगुरुलघु छे एम असंख्याता प्रदेशमा अगुरुलघुपर्याय घटतो क्यतो रहे छेते अगुरुलघु पर्याय चल छे ते जे प्रदेशमा असंख्यातो छे ते प्रदेशमा अनंतो थाय छे अने अनंताने ठेकाणे असंख्यातो थाय छे एम लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशमां शरीखो समकाले अगुरु लघु पर्याय फिरे छे ते जे प्रदेशमा असंख्यातो फिटीने अनंतो थाय छे ते प्रदेशमा असंख्यातपणानो विनाश छे अने अनंतपणानो उपजवो छे अने अगुरुलघुपणे गुण ध्रुव छ एम उपजवो विणसवो अने ध्रुव ए त्रणे परिणाम 2. अधर्मा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १२७ स्तिकायमां पण ए त्रणे परिणाम असंख्यात प्रदेशे सदा समय समयमा परिणमी रह्या छे. तेमां पण उपजे विणशे अने थिर रहे छे. एम आकाशना अनंता प्रदेशमां पण एक समये त्रण परिणाम परिणमे छे अने जीवना असंख्याता प्रदेश छे ते मध्ये पण उपजे विणशे थिर रहे (छे.) तथा पुद्गल परमाणुमां पण समये समये थाय छे अने कालनो वर्तमान समय फिटीने अतीतकाल थाय छे तो ते समयमा वर्तमानपणानो विनाश छे अने अतीतपणानो उपजवो छ काल पणे ध्रुव छ. ए स्थूल थकी उत्पाद व्यय ध्रुवपणो कह्यो अने वस्तुगते मूलपणे ज्ञेयने पलटवे जाननो पण ते भासनपणे परिणमयो थाय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ ते पूर्व पर्याय भासननो व्यय अने अभिनव ज्ञेयना पर्याय भासननो उत्पाद तथा ज्ञानपणानो ध्रुव ए रीते सर्व गुणना धर्मनी प्रवृत्तिरूप पर्यायनो उत्पाद व्यय श्रीसिद्धभगवन्तमां पण थइ रह्यो छे. एमज धर्मास्तिकायना प्रदेशे ते क्षेत्र गत पुद्गल तथा जीवने पहेले समये असंख्यात चलण सहायीपणो परिणमतो हतो अने बीजे समये अनन्त परमाणु तथा अनन्ता जीव प्रदेशने चलन सहायी थयो नेवारें असंख्याता चलन सहायनो व्यय अने अनंता चलन सहायनो उपजवो अने गुणपणे ध्रुव एम धर्मद्रव्यमध्ये उत्पाद व्यय थइ रह्यो छे तेमज अधर्मादिक द्रव्यने विषे पण भावj. तथा वली कार्य कारणपणे www.kobatirth.org आगमसार, For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. उत्पाद व्यय तथा अगुरुलघुना चलननो उत्पाद व्यय पंचास्तिकायने विषे कहेवो. तथा कालद्रव्य ते उपचार के तेनुं स्वरूप सर्व उपचारथीज कहे. ए रीते सर्व द्रव्यमां सतपणो छ जो अगुरुलघुनो भेद न थाय तो पछे प्रदेशनो माहोमांह भेद केम थाय ? ते माटे अगुरुलघुनो भेद सर्वमा छे अने जेनो उत्पाद व्यय रूप सत्पणो एक छे ते द्रव्य एक छे. तथा जेनो उत्पाद व्यय सत् पणो जूदो ते द्रव्य पण जूदो छे एटले सत् केहतां सत्त्वपणो कह्यो. ६ अगुरुलघुपणो कहे छे. जे द्रव्यनो अगुरुलघु पर्याय छे ते छ प्रकारनी हानि वृद्धि करे छे. तेमां छ मकारनी वृद्धि छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० आगमसार. १ अनन्त भागवृद्धि, २ असंख्यातभागद्धि, ३ संख्यातभागवृद्धि, ४ संख्यातगुणद्धि, ५ असंख्यातगुणवृद्धि, ६ अनंतगुणवृद्धि. हवे छ प्रकारनी हानि कहे छ. १ अनंतभागहानि, २ असंख्यातभागहानि, ३ संख्यातभागहानि, ४ संख्यातगुणहानि, ५ असंख्यातगुणहानि, ६ अनंतगुणहानि. ए रीते छ प्रकारनी वृद्धि तथा छ प्रकारनी हानि ते सर्व द्रव्यमां सदा समय समय थइ रही छे. वृद्धि ते उपजवो अने हानि ते व्यय कहिये. ए अगुरुलघुपणो कह्यो. नहीं गुरु तथा नहीं लघु ते अगुरुलघु स्वभाव कहिये. ए सर्व द्रव्य मध्ये छे, ते श्री भगवती सूत्रे “ सव्वदव्या सव्वगुणा सव्वपएसा सव्वपज्जवा सम्बद्धा अगुरुलहुआए" www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अगुरुलघु स्वभावने आवरण नथी तथा आत्या मध्ये जे अगुरुलघुगुण ते आत्माना सर्व प्रदेशे क्षायिक भाव थये सर्व गुण सामान्यपणे परिणमे पण अधिका ओछा परिणमे नही ते अगुरुलघुगुण- प्रवर्तन जाणवू. ते अगुरुलघु गुणने गोत्रकर्म रोके छे ए अगुरुलघु स्वभाव ते सर्व द्रव्यमां छे. ____ हवे गुणनी भावना कहे छे. तिहां जेटला छए द्रव्यमां सरीखा गुण छे ते सामान्य गुण कहिये, अने जे गुण एक द्रव्यमां छे अने बीजा द्रव्यमा नथी ते विशेष गुण कहिये. जे गुण कोइक द्रव्यमां छे अने कोइक द्रव्यमां नथी ते साधारण असाधारण गुण कहिये. एम ए छ द्रव्यमां अनंतगुण, अनन्त पर्याय, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमलार. अनन्त स्वभाव सदा शाश्वता छे. जेम श्री केवली भगवंते प्ररूप्या ते सर्व जे रीतें छे ते रीते सद्दहणा पूर्वक यथार्थ उपयोगथी श्रुतज्ञानादिकथी यथार्थपणे जाणवा. सहहवा ए निश्चयज्ञान मोक्षनुं कारण छे. जे जीव ज्ञान पाम्यो ते जीव विरति करे छे ते चारित्र कहिये. ज्ञान- फल विरतिपणो छे ते मोक्षनुं तत्काल कारण छे. ___ हवे निश्चय चारित्र अने व्यवहार चा. रित्रनो विचार कहे छे. तेमां प्रथम व्यवहार चारित्र ते जे प्राणातिपातविरमण प्रमुख पंचमहाव्रतरूप ते सर्व विरति कहिये अने स्थूलप्राणातिपातविरमण व्रतादिक श्रावकना बार व्रत ते देश विरति चारित्र जाणवू. ए व्यव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, हार चारित्र सुखनुं कारण छे एवी करणीरूप श्रावकना बार व्रत अने यतिनां पांच महाव्रत ते अभव्यने पण आवे तेथी देवतानी गति पामे पण सकाम निर्जरानुं कारण न थाय. इहां कोइ पूछे के मोक्षनुं कारण नथी तो एटलं कष्ट शा वास्ते करियें ? तेने उत्तर जे त्याग बुद्धि निश्चय ज्ञान सहित चारित्र ते मोक्षनुं कारण छे माटे निश्चय चारित्र सहित व्यवहार चारित्र पालq ते निश्चय चारित्र कहे छे. शरीर, इन्द्रिय, विषय, कषाय, योग ए सर्वे परवस्तु जाणी छोडवा तथा आहार ते पुद्गल वस्तु जाणी छांडवो. आत्मा अणाहारी छे ते मांटे मुजने आहार करवो घटे नहीं. आहार ते पुद्गल छे, आत्मा अपुद्गली www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. छे ते माटे त्याग करवो. तद्रप जे तप ते तप निश्चय चारित्रमा जाणवू. चारित्र कहेतां चंचलता रहित थिरताना परिणाम अने आत्मस्वरूपने विषे एकत्वपणे रमण तन्मयता स्वरूप विश्रांति तत्त्वानुभव ते चारित्र कहिये. ते चारित्रना बे भेद छे एक देशविरति, बीजूं सर्व विरति. तिहां देश विरति कहेतां श्रावकनां बार व्रत ते बार व्रत निश्चय तथा व्यवहारथी कहे छे. १ प्राणातिपात विरमण व्रत ते परजीवने आपणा जीव सरीखो जाणी सर्व जीवनी रक्षा करे ते व्यवहार दया थइ माटे व्यवहार प्राणातिपात विरमण व्रत जाणवू अने जे आपणो जीव कर्म वश पड्यो दुःखी थाय छे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ते आपणा जीवने कर्मबंधनथी मुकावतुं अने आत्म गुण रक्षा करी गुण वृद्धि करवी ते स्वदया बंधहेतु परिणति निवारि स्वरूप गुणने प्रगटपणे करवा जे गुण प्रगट थयो ते राखवो एटले ज्ञाने करी मिथ्यात्व टाली आपणा जीवने निर्मल करे ते निश्चयथी प्राणातिपात विरमण व्रत कहिये. २ मृषावाद विरमणव्रत कहे छे. जूटुं वचन बिलकुल बोलवू नही ते व्यवहार मृपावाद विरमणव्रत, हवे निश्चय कहे छे जे पर पुद्गलादिक वस्तुने आपणी कहेवी ते मृषावाद वचन छे. अने जीवने अजीव कहे तथा अजीवने जीव कहे इत्यादिक अज्ञान ते भाव सुषावाद छे. अथवा सिद्धान्तना अर्थ खोटा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कहे ए मृषावाद जेणे छांड्यो ते निश्चय मृषावाद विरमणव्रत कहिये, एटले बीजा अदत्तादानादिक व्रत जो भांजे ( भांगे ) तो तेनो मात्र चारित्र भंग थाय पण ज्ञान दर्शननो भंग न थाय अने जेणे निश्चय मृषावाद विरमणनो भंग करयो तेणे समकित तथा ज्ञान अने चारित्र ए त्रणेनो भंग करचो. तथा आगममां एम कयुं छे जे एक साधुयें चोथो व्रत भंग करयो अने एक साधुयें बीजो मृषावाद व्रत भंग करयो तो जेणे चोथो व्रत भंग करयो ते आलोयण लेइ शुद्ध थाय पण जे सिद्धान्तना अर्थनो मृषा उपदेश आपे ते आलोयण लीधे पण शुद्ध थाय नहीं. ३ अदत्तादान विरमण व्रत कहे छे. HIP www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जे पारकुं धन वस्तु छुपावे; चोरी करे; ठगबाजी करी लीये ते चोरी छे, एटले पारकी वस्तु धणीना दीधा विना लेवी नही ए व्यवहारथी अदत्तादानविरमण व्रत जाणवू अने जे पांच इंद्रियना वीस विषय, आठ कर्मवर्गणा इत्यादिक परवस्तु लेवी नहीं तथा तेनी वांछा न करवी ते आत्माने अग्राह्य छे माटे ते निश्चयथी अदत्तादानविरमण व्रत कहिये. इहां कोइ पूछे जे विषयनी अने कर्मनी वांछा कोण करे छे ? तेने उत्तर जे पुण्यने भेलो लेवा योग्य कहे छे ते जीव कर्मनी वांछा करे छे. जे पुण्यना ४२ भेद छे ते चार कर्मनी शुभ प्रकृति के एटले जे व्यव हार अदत्तादान तो नथी लेता पण अंतरंग www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ आगमसार. पुण्यादिकनी वांछा छेतेने निश्चय अदत्तादान लागे छे. ४ मैथुन विरमणत्रत कहे छे. जे पुरुष परस्त्रीनो परिहार करे तथा जे स्त्री परपुरुषनो परिहार करे. इहां साधुने स्त्रीनो सर्वथा त्याग छे अने गृहस्थाने परणेली स्त्री मोकली छे. परस्त्रीनो पञ्चखाण छे ते व्यवहारथी मैथुननुं विरमण कहियें अने जे विषयना अभिलाषनुं तथा ममता तृष्णानो त्याग, परभाव वर्णादिक परद्रव्यना स्वामित्वादिक तेनो अभोगीपणो आत्मा स्वगुण ज्ञानादिकनो भोगी के अने ए पुलसंध ते अनंता जीवनी एंठ के तेने केम भोगवे ? ए रीते त्याग निश्चयथी मैथुन विरमण कहियें. जेणे बाह्य विषय छांड्यो छे अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १३९ अंतरंग लालच छुटी नथी तो तेहने ते मैथुनना कर्म लागे छे. ५ परिग्रह परिमाणवत कहे छे. परिग्रह धन-धान्य-दास-दासी-चतुष्पद-जमीन-वस्त्र आभरणनो त्याग तेमां साधुने तो सर्वथा परिग्रहनो त्याग छे तथा श्रावकने इच्छा परिमाण छे जेटछी इच्छा होय तेटलो परिग्रह मोकलो राखे. बीजानी विरति करे ए व्यवहारथी कह्यो अने जे भाव कर्म रागद्वेष अज्ञान द्रव्य कर्म ज्ञानावरणीय प्रमुख आठ कर्म अने शरीर इन्द्रियनो परिहार एटले कर्मने जाणी छांडवो ते निश्चयथी परिग्रहनो त्याग एटले परवस्तुनी मूर्छा छांडवी क्षेणे मूर्छा छोडी तेणे परिग्रह छोडयोज www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .१४० आगमसार. छ एम जाणवू. ६ दिशिपरिमाण व्रत कहे छे. तिहां तिरछि चार दिशी पांचमी अधो छटी उर्व ए छ दिशिना क्षेत्रनो मानकरी मोकलो राखे ते व्यवहारथी दिशिपरिमाण कहियें अने चारगतिमां भटकवू ते कर्मनुं फल छे एम जाणी तेथी उदासीपणो अने सिद्ध अवस्था (नो) शुं उपादेयपणो ते निश्चय दिशिपरिमाण व्रत कहिये. ७ भोगोपभोगपरिमाण व्रत कहे छे. जे एकवार भोगवq ते भोग अने जे वारंवार भोगव, ते उपभोग तेनो परिमाण करे ते व्यवहार भोगोपभोगत्रत कहिये, अने जे व्यवहारनय कर्मनो कर्ता भोक्ता जीव छे अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ निश्वयनये तो कर्मनो कर्त्ता कर्म छे. आत्मा अनादिनो परभाव भोगी थयो छे तेथी परभावग्राहक अने परभावरक्षक थयो एटले आत्मानी ज्ञायकता, ग्राहकता, भोग्यता, रक्षकता बीगडे कर्त्ता पणो बीगड्यो तेवारें परभाव कर्त्ता थयो तेथी परभाव रंगीपणें आठ कमनो कर्त्ता थयो छे पण सत्तायें तो स्वभावनो कर्त्ता छे पण उपकरण अवराणा तेथी स्वकार्य करी शकतो नथी. विभावने करे छे, अज्ञानपणे जीवनो उपयोग मल्यो छे. पोताना ज्ञानादिक गुणनो कर्त्ता भोक्ता छे एहवो स्वरूपा - नुयायी परिणाम ते निश्चयभोगोपभोगवत त्याग जाणवो. ८ अनर्थदण्डविरमणन्नत कहे छे. काम www.kobatirth.org आगमसार. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કર आगमसार. विना जीवनो वध करवो. पारका वास्ते आरंभ प्रमुख करवानी आज्ञा प्रमुख आपवी ते व्यवहार अनर्थदंड अने शुभाशुभ कर्म ते मिथ्यात्व अविरति कषाय योगथी बंधाय छे तेने जीव आपणा करी जाणे ए निश्चयथी अनर्थदंड. ९ सामायिक व्रत कहे छे. जे मन वचन कायाने आरंभथी टालीने तेने निरारंभपणे वर्ताये ते व्यवहार सामायिक जाणवो. अने जे जीव ज्ञान, दर्शन, चारित्र गुण विचारे सर्व जीव सत्ता गुण एकसमान जाणी सर्व स्युं समतापरिणाम ते निश्चय समतारूप सामायिक कहिये, १० देशावगाशिक व्रत कहे छे. जे मन www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १४३ वचन काय योग एक ठोर करी एकस्थानकें बेसी धर्म ध्यान करवो ते व्यवहार देशावगाशिक कहियें अने जे श्रुतज्ञाने करी छ द्रव्य ओलखीने पांच द्रव्यनो त्याग करे अने ज्ञानवंत जीवने ध्यावे ते निश्चय देशावगाशिक व्रत कहियें. ११ पौषध व्रत कहे छे. जे चार पहोर अथवा आठ पहोर सुधी समता परिणामे सावध छोडी निरारंभपणे सझायध्यानमां प्रवर्ते ते व्यवहार पोशह कहिये अने पोताना जीवने ज्ञान ध्यानथी पोषाने पुष्ट करे ते निश्वयथो पौषध व्रत कहियें. जीवने पोताना स्त्रगुणे करी पोपीजे तेणे पौषध कहियें. १२ अतिथिसंविभाग व्रत कहे छे. जे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ आगमसार, पोशहने पारणे अथवा सदा सर्वदा साधुने तथा जैनधर्मिश्रावकने पोतानी शक्ति प्रमाणे दान देवं ते व्यवहार अतिथिसंविभाग कहियें अने पोताना जीवने अथवा शिष्यने ज्ञाननुं दान ते भगवं भणाववुं, सुणवुं सुणाववुं, ते निश्चयथी अतिथिसंभाग व्रत कहियें एटले श्रावकना बार व्रत कहां ते समकित सहित जे निश्चय तथा व्यवहारथी बार व्रत धारे ते जीवने पांचमे गुणठाणे देशविरति श्रावक कहिये. देश केहतां देशथकी थोडीशी व्रतिपण छे माटे अने यतिने सर्वथी व्रतिपणो छे तेथी पांच महाव्रत छे. साधुने पांच महाव्रतमां सर्व व्रत आव्यां. ए निश्चय त्यागरूप ज्ञान ध्यान संवर निर्जरामां थिरताना परि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १४५ णाम ते निश्रय चारित्र तेना एक उत्सर्ग बीजो अपवाद ए बे मार्ग छे तेमां जे उत्कृष्ट तीक्ष्ण परिणाम ते उत्सर्ग राखवाने कारण - रूप ते अपवाद - उक्तंच ॥ " संघरणंमि असुडं, दुन्नवि गिन्ह तदेतयाणहियं || आउर दिवं तेणं, ते चेवहीयं असंघरणे " ॥ १ ॥ एटले ज्यां सुधी साधक भावने बाधक न पडे त्यां सुधी जेहनी ना कही ते आदरखो नही अने जो साधक परिणाम रहेता न दीठा तैवारे जेहनी ना ते आचरे तेने अपवाद मार्ग कहियें. जे आत्मगुण राखवाने करवो ते अपवाद अने गुणीने रागे भक्तियें करवो ते प्रशस्त ए वे तो साधन छे अने जे औदयिकने अखमवाथी करवुं ते अतिचार छे तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ सबल ने औदयिक माटे, आसक्तपणे करकुं ते पडिवाइ छे ते मध्ये अपवाद मार्ग ते परिणाम दृढ रहे तेम आज्ञायें करवो. www.kobatirth.org आगमसार. हवे चार ध्यान कहे छे. १ आर्तध्यान, २ रौद्रध्यान, ३ धर्मध्यान, ४ शुक्लध्यान. तिहां पहेला वे ध्यान ते अशुभ कहियें अने पाछला वे ध्यान ते शुभ छे. जे एक ध्येयने विषे अंतर् मुहूर्त चित्तनो उपयोगनो तन्मय एकाग्रपणे थीर रहेवो ते ध्यान अने केवलीने योगनो रोकवो ते ध्यान उक्तंच: अंतो मुहूत्ता मित्ता चित्तावत्थाणमेग वथ्थुम्मि, छउमत्थाणं झाणं, जोगनिरोहो जिणाणंतु. तिहां मनमां आह दोहट्टना परिणाम ते आर्तध्यान कहियें तेना चार पाया छे. १ भाइ, For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १४७ मित्र, सज्जन, माता, पिता, स्त्री, पुत्र, धन, प्रमुख इष्ट वस्तुनो वियोग थयाथी विलाप करे ते पहेली इष्ट वियोगनामा आर्तध्यान तथा २ अनिष्ट जे भुंडां दुःखनां कारण, दुश्मन दरिद्रीपणो, तथा कुपुत्रादि मलवाथी मनमां दुःख चिता उपजे ते अनिष्ट संयोग नाम आतध्यान. ३ शरीरमा रोग उपना थका दुःख करे, चिंता घणी करे ते रोगचिंतानाम आर्तध्यान. ४ मनमा आगलना वखतनो शोच करे जे आ वर्षमां आ काम करशुं, आवता वर्षमा अमुक काम करशुं तो अमुक लाभ थशे अथवा दान शील तपनुं फल मांगे जे आ भवमां तप कीघो छे माटे आवते भवें इंद्र चक्रवर्तिनी पदवी मले एहवी आगला www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ आगमसार. भवनी वांच्छा ते अग्रशोचना परिणाम उपजे अथवा नियाणानो करवो ते निदान आर्तध्यान कहीये, ए धर्म करणीनां फलनुं नियाशुं समकित न करे. ए आर्तध्याननो चोथो पायो जाणवो. ए आर्तध्यानना चार भेद कला ए तिर्यच गतिना कारण छे. ए ध्यान - ना परिणाम ते पांचमा अथवा छहा गुणठाणा सुधी होय. २. जे कठोर परिणामनुं चितवन ते रौद्रध्यान तेना चार भेद छे. ? जीवहिंसा करीने हर्ष पामे अथवा बीजो कोइ हिंसा करतो होय तेने देखी खुशी थाय अथवा युद्धनी अनुमोदना करे ते हिंसानुबंधी रौद्रध्यान. २ जूटुं बोलीनें मनमां हर्ष पाने के www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार जुओ में केवो कपट केळव्यो. मारा जूठापणानी खबर कोइने पडी नहीं, एवो मृषावाद रूप परिणाम ते मृषानुबंधी रौद्रध्यान. ३ चोरी फरी अथवा ठगाइ करी मनमा खुशी थाय के मारा जेवो जोरावर कोण छे, हं पारको माल खाऊ छु एवो परिणाम ते चौरानुबंधि रौद्रध्यान. ४ परिग्रह धन धान्य परिवार घणो वधवानी लालच होय ते धन अथवा कुटुंबने माटे गमे तेवु पाप करे अथवा घणो परिग्रह मिल्याथी अहंकार करे ते परिग्रहरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान. ए रौद्रध्यानना चार भेद कह्या. ए ध्यान नरक गति पमाडवार्नु कारण छे. महा अशुभकर्मनुं कारण छे. ए पात्रमा गुणठाणा सुधी छे अने छठे गुणठाणे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. पण एक हिंसानुबंधीरौद्रध्यानना परिणाम कोइक जीवने होय. हवे धर्मध्यान कहे छे. जे व्यवहार क्रियारूप ते कारण धर्म तथा श्रुतज्ञान अने चारित्र ए उपादानपणे साधन धर्म तथा रत्नत्रयी भेदपणे ते उपादान शुद्ध व्यवहार उत्सर्गाऽनुयायी ते अपवाद धर्म जाणवो अने अभेद रत्नत्रयी ते साधन शुद्ध निश्चयनयें उत्सर्ग धर्म अने (धम्मो वत्थु सहावो) ने वस्तुनो सत्तागत शुद्ध पारिणामिक स्वगुण प्रवृति कादिक अनंतानंद रूप सिद्धावस्थायें रह्यो ते एवंभूत उत्सर्ग उपादान शुद्धधर्म, ते धर्मर्नु भासन रमण एकाग्रपणे चिंतन तन्मयतानो उपयोग एकत्वनो चिंतववो ते धर्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १५१ ध्यान कहिये. तेना पाया चार छे ते कहे छे. १ आज्ञाविचयधर्मध्यान ते जे वीतराग देवनी आज्ञा साची करी सद्दहे एटले भगवते छ द्रव्यनुं स्वरूप नय प्रमाण निक्षेपा सहित सिद्ध स्वरूप, निगोद स्वरूप जे कह्या तेम सदहे, वीतरागनी आज्ञा नित्य अनित्य स्या. द्वादपणे निश्चय व्यहारपणे माने सद्दहे ते आज्ञा प्रमाणे यथार्थ उपयोग भासन थयो तेने हर्षे करी ते उपयोग मध्ये निर्धार, भासन, रमण अनुभवता, एकता, तन्मयपणो ते आज्ञाविचय धर्मध्यान कहिये. ___ २ अपायविचयधर्मध्यान ते जीवमा अशुद्धपणे कर्मना योगथी संसारी अवस्थामां अमेक अपाय कहेतां दूषण छे ते अज्ञान, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ आगमसार. राग, द्वेष, कषाय, आस्रव ए मारा नथी. हुं एथकी न्यारो छं. हुं अनंतज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्यमयी, शुद्ध, बुद्ध, अविनाशी छं. अज, अनादि, अनंत, अक्षर, अनक्षर, अचल, अकल, अमल, अगम्य, अनामी, अरूपी, अकर्मा, अबंधक, अनुदय, अनुदीरक, अयोगी अभोगी, अभेदी, अवेदी, अछेदी, अखेदी, अकषायी, असखाइ, अलेशी, अशरीरी, अणाहारी, अव्याबाध, अनवगाही, अगुरुलघु, अपरिणामी, अतीन्द्रिय, अप्राणी, अयोनि, असंसारी, अमर, अपर, अपरंपार, अव्यापी, अनाश्रित, अकंप, अविरुद्ध, अनाश्रव, अलख, अशोकी. असंगी, लोकालोकज्ञायक, एवो शुद्ध चिदानंद मारो www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir d For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जीव छे, एहवो एकाग्रतारूप ध्यान ते अपायविचयधर्मध्यान जाणवो. ३ विपाकविचय धर्मध्यान कहे छे. जे एहवो जीव छे तोपण कर्मवशे दुःखी छे ते कर्मनो विषाक चिंतवे जे जीवनो ज्ञानगुण ते ज्ञानावरणीय कर्मे दाब्यो छे अने दर्शनावरणीय कर्मे दर्शनगुण दाब्यो छे, एम आठ कर्मे जीवना आठ गुण दाब्या छे एटले आ संसारमा भमतां थकां जीवने जे सुखदुःख छ ते सर्व कर्मनां कीधां छे. माटे सुख उपने राचवू नही अने दुःख उपने दिलगीर थर्बु नही. कर्म स्वरूपनी प्रकृति, स्थिति, रस, अने प्रदेशनो बंध, उदय, उदीरणा, तथा सत्ता, चितवन एकाग्रता परिणाम ते विपाकविचय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. धर्मध्यान. ४ संस्थान विचयधर्मध्यान कहे छे. ते चउद राजमान लोकचं स्वरूप विचारे जे ए लोक ते चउदराज ऊंचो छे ते मध्ये सातराज अधोलोक छे. विचमा अढारसो योजन मनुष्य क्षेत्र त्रिछो लोक छे ते ऊपर कांइक ऊणो सातराज ऊर्ध्वलोक छे तेमां सर्व वैमानिक देवता वसे छे अने ऊपरें सिद्ध शिला सिद्ध क्षेत्र छे. ए रीते लोकनुं प्रमाण छे. ए लोकन संस्थान वैशाख छे. अनंतो काल आपणा जीवें संसारमा भमतां सर्व लोकने जन्म मरण करी फरस्यो छे, एवं जे लोक स्वरूप तथा लोकने विषे पंचास्तिकायर्नु अवस्थान तथा परिणमन द्रव्य मध्ये गुणपर्यायर्नु अवस्थान www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. तेनो जे एकाग्रताये तन्मयचितवन परिणाम एहवू जे ध्यान ते संस्थान विचय धर्मध्यान कहिये. ए धर्मध्यानना चार पाया कह्या. ए धर्मध्यान चोथा गुणठाणाथी मांडीने सातमा गुणठाणा सुधी छे. हवे शुक्लध्यान कहे छे. शुक्ल केहतां निमल, शुद्ध, पर आलंबन विना आत्माना स्वरूपने तन्मयपणे ध्यावे एहवं ध्यान तेने शुक्लध्यान कहिये. तेहना पाया चार छे ते कहे छे. १ पृथक्त्ववितर्कसप्रविचार-ते पृथक्त्व केहतां जीवथो अजीव जूदा करवा, स्वभाव क्भिाव तेने जूदा पृथकपणे बहेंचण करवी स्वरूपने विषे पण द्रव्य तथा पर्यायनो पृथक् www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ आगमलार. पणे ध्यान करी, पर्याय ते गुणमा संक्रमाचे अने गुण ते पर्यायमां संक्रमण करे ए रीते स्वधर्मने विषे धर्मातरभेद ते पृथक्त्व कहिये अने तेनो वितर्क ते जे श्रुतज्ञाने स्थित उपयोग अने सप्रविचार ते सविकल्पोपयोग एटले एक चिंतव्या पछी बीजो चिंतववो तेने विचार कहियें एटले निर्मल विकल्प सहित पोतानी सत्ताने ध्यावे ते पृथक्त्व वितर्कसम विचार पेहेलो पायो ए आठमा गुणठाणाथी मांडी अग्यारमा गुणठाणा सुधी छे. २ एकत्व वितर्कअप्रविचार नामा बीजो पायो कहे छे. जे जीव आपणा गुणपर्यायनी एकता करी ध्यावे ते आवी रीते के जीवना गुणपर्याय अने जीव ते एकज छे, अने महारो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १५७ जीव सिद्धस्वरूप एकज छे एवो एकत्व स्त्ररूप तन्मयपणे अनंता आत्म धर्मनो एकत्वपणे ध्यानवितर्क केहतां श्रुतज्ञानावलंवीपणे अने अप्रविचार केहतां विकल्प रहित दर्शन ज्ञाननो समयांतरें कारणता विना रत्नत्रयीनो एक समयी कारण कार्यतापणे जे ध्यान वीर्य उपयोगनी एकाग्रता ते एकत्ववितर्क अप्रविचार जाणवो. ए पायो बारमा गुणठाणे ध्यावे. ए बेहु पायामां श्रुतज्ञानावलंबनीपणो छे. पण अवधि मनःर्पयत्र ज्ञानोपयोगें वर्तता जीव कोइ ध्यान करी सके नहीं, ए बे ज्ञान परानुयायी छे. माटे ए ध्यानथी घनघातियां चार कर्म खपावे. निर्मल केवल ज्ञान पामे पछे तेरमें गुणठाणे ध्यानंतरीकापणे वर्त्ते छे. तेर www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __ आगमसार. माना अंते अने चउदमे गुणठाणे बाकीना बे पाया ध्यावें. ३ सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपति पायो कहे छे. ते सूक्ष्म मन, वचन कायाना योग रुंधे, शैलेशी करण करी अयोगी थाय ते जे अप्रतिपाति निर्मलवीर्य अचलतारूप परिणाम ते सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाति ध्यान जाणवू. इहां सत्ताये ८५ प्रकृति रही हती ते मध्ये ७२ खपावे. .. ४ उच्छिन्नक्रियानुवृत्ति पायो कहे छे. जे योग निरुंध कीधा पछे तेर प्रकृति खपावे, अकर्मा थाय, सर्व क्रियाथी रहित थाय ते, समुच्छिन्न क्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान कहियें. ए ध्यान ध्यावतां शेष, दल, खरणरूप क्रिया www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ उच्छेदे, अवगाहना देहमानमांथी त्रीजो भाग घटाडे, शरीर मूकी इहांथी सातराज ऊपर लोकने अंते जाय, सिद्ध थाय. इहां शिष्य पूछे जे चौदमे गुणठाणे तो अक्रिय छे, तो सात राज उंचो गयो ए क्रिया केम करे छे ? तेने उत्तर जे सिद्ध तो अक्रिय छे, परंतु पूर्व प्रेरणायें तुंबीने दृष्टान्ते जीवमां चालवानो गुण छे. धर्मास्तिकायमध्ये प्रेरणा गुण छे, तेथी कर्मरहित जीव मोक्षे जतां लोकने अंते जइ रहे. इहां कोई पूछे जे आगळ उंचो अलोक छे तिहां किम जातो नथी ? तेने उत्तर जे आगल धर्मास्तिकाय नथी माटे न जाय. वली कोइ पूछे जे तो अधोगतियें अथवा तिरच्छी गतियें केम नथी जातो ? तेने www.kobatirth.org आगमसार. For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० आगमसार. उत्तर जे कर्मना भारथी रहित थयो, हल्लयो थयो, माटे नीचो तथा डाबो जिमणो न जाय, कारण के प्रेरक कोइ नथी तथा कंपे नही केमके अक्रिय छे माटे तथा कोइ पूछे जे सिद्धने कर्म केम लागता नथी ? तेने कहे छे जे कर्म तो जीवने अज्ञानथी तथा योगथी लागे छे, ते सिद्धना जीवने अज्ञान तथा योग नथी, माटे कर्म लागे नही. ए चार ध्याननो अधिकार कह्यो. ___हवे वली बीजा चार ध्यान कहे छे. १ पदस्थ, २ पिंडस्थ, ३ रूपस्थ, ४ रूपातीत. तेमां पहेलं पदस्थ ध्यान कहे छे. जे अरिहंतादीक पांच परमेष्ठीना गुण संभारे, तेनो चित्तमां ध्यान करे ते पदस्थध्यान. २ पिं. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १६१ डस्थ केहतां शरीरमा रह्यो जे आपणो जीव तेमां अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधुपणाना गुण सर्व छ एहवो जे ध्यान ते पिंड कहेतां जीव द्रव्य अथवा आकार अथवा स्थापना तेनु अवलंबन पामी गुणीना गुण मध्ये एकत्वता उपयोग करवो ते पिंडस्थ ध्यान. ३ रूपमा रह्यो थको पण ए मारो अरूपी अनंत गुणी छे, जे वस्तुनो स्वरूप अतिशयावलंबी थया पछे आत्मानुं रूप एकतापणो एहवो जे ध्यान ते रूपस्थध्यान. ए त्रण ध्यान धर्म ध्यानमां गणवां. ४ निरंजन, निर्मल, संकल्पविकल्प रहित अभेद एक शुद्ध सत्तारूप चिदानंद तत्त्वामृत, असंग, अखंड, अनंतगुण पर्यायरूप, आत्मस्वरूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ आगमसार. ध्यान ते रूपातीत ध्यान जाणवू. इहां मार्ग णागुणठाणा नयप्रमाण मति आदिक ज्ञान क्षयोपशमभाव सर्व छांडवा योग्य थया. एक सिद्धना मूल गुणने ध्यावे ते रूपातीत ध्यान जाणवो एटले मोक्षनुं कारण जे ध्यान ते कयु. हवे भावना कहे छे. तेमां धर्म ध्याननी चार भावना कहे छे. १ मैत्री भावना ते सर्व जीव साथे मित्रतानो भाव चिंतववो, सर्वनुं भलं चाहवू पण कोइनुं मार्छ चिंतवq नही. सर्व जीव ऊपर हित बुद्धि राखवी ते मैत्री भावना. २ गुणवंत अने ज्ञानादिक गुण ऊपरें राग जे गुणी श्री अरिहंतादिकनो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. योग मिल्ये जे अनंत गुण मोक्षना कारण तत्त्वभोगी तत्वविलासी एवा अद्भुत प्रभुजी अहो प्रभुजी अहो प्रभुजीनी उपकारता अहो प्रभुनी निःसंगता एहवो जे परिणाम ते अ. द्भुतता वली दुःखे करी मोहाधीन मोहमयी पुद्गल रंगी पराधीन मने एहवा परमात्मा प्रभु अथवा यथार्थ वादी गुरु तथा स्याद्वाद धर्मनो योग मिल्यो, आज मुजने चिंतामणिनी कोडी मिलि. आज माहरा मननो मनोरथ सफल थयो, एहवी आश्चर्यता तथा पली रखे मने एहवा कारणनो विरह पडे एहवो कायरता परिणाम ते बीजी प्रमोदभावना. ३ जे धर्मवंत ऊपर राग अने मिथ्यावी ऊपर राग नही तेम द्वेष पण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. नही कारण के हिंसक ऊपरें पण उत्तम जी. वने करुणा उपजे. जो उपदेश थकी सारा मार्गे आवे तो तेने शुद्ध मार्गे आणवो, कदाचित् मागें न आवे तो पण द्वेष न राखवो केमके ते अजाण छे एम समजवु एहवा जे परिणाम ते मध्यस्थ भावना. ४ सर्व जीवने पोताने तुल्य जाणी दया पाले, कोइने हणे नहीं तथा जे दुःखी अथवा धर्महीन तेना जीव उपर करुणा तेना दुःख टाळवानो परिणाम तथा धर्महीन जीव देखीने एवो चिंतवे जे ए जीव किवारें धर्म पामशे, यथार्थ आत्मसाधन पामी स्वरूप धर्मने किवारे (क्यारे) अवलंबशे एवो परिणाम ते चोथी करुणा केहतां दया भावना. ए चार भावना कही. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १६५ १ हवे बार भावना कहे छे. शरीर, कुटुंब, धन, परिवार सर्व विनाशी छे. जीवनो मूल धर्म अविनाशी छे. एम चितवनुं ते पहेली अनित्य भावना. २ संसारमां मरण समये जीवने शरण राखनार कोइ नथी. एक धर्मनो शरण है एवं चितवकुं ते बीजी अशरण भावना. ३ मारा जीवे संसारमां भमतां सर्व भव कीधा छे ए संसारथी हुं के. वारें छुटीश, ए संसार मारो नथी, हुं मोक्षमयी छु एम विचारखं ते त्रीजी संसार भावना. ४ए माहरो जीव एकलो छे, एकलो आव्यो, एकलो जशे, पोतानां करेलां कर्म एकलो भोगवशे एम चितवनुं ते चोथी एकत्व भावना. ५ आ संसारमां कोइ कोइनो नथी ७ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ आगमसार. एम चिंतवद् ते पांचमी अन्यत्व भावना. ६ आ शरीर अपवित्र मलमूत्रनी खाण छे, रो. ग-जराथी भरयो छे, ए शरीरथी हुं न्यारो हुं, एम चिंतववो ते छही अशुचि भावना. ७ रागद्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व प्रमुख सर्व आस्रव छ, एम चितवq ते सातमी आस्त्रव भावना. ८ ज्ञानध्यानमां वर्त्ततो जीव नवां कमे बांधे नहीं ते आठमी संवर भावना. ९ ज्ञान सहित क्रिया ते निर्जरानुं कारण छे, ते नवमी निर्जरा भावना. १० चउदराज लोकनुं स्वरूप विचार, ते दशमी लोकस्वरूप भावना. ११ संसारमा भमता जीवने समकित ज्ञाननी प्राप्ति पामवी (थवी) दुर्लभ छ, अथवा समकित पाम्यो पण चारित्र सर्व विरति प www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १६७ रिणाम रूप- धर्म पामवो दुर्लभ छे ते अग्यारमी बोधिदुर्लभ भावना. १२ धर्मना कहेणहार ( कथक ) गुरु तथा शुद्ध आगमनुं सांभलवं एहवी जोगवाइ मलवि दोहेली छे ते बारमी धर्मदुर्लभ भावना. एटले बार भावना कही. ए चारित्रनुं स्वरूप संपूर्ण कहां. एवो समकित सहित ज्ञानचारित्रनुं ते कारण छे, तेना उपर भव्य प्राणीयें उद्यम करवो. अने जो तेवुं ज्ञानचारित्र नही पले तोपण श्रेणिक राजानी पेरे सद्दहणा शुद्ध राखजो. जो समकित शुद्ध छे तो मोक्ष नजीक छे. समकित विना ज्ञानध्यान क्रिया सर्व ब्रिःफल छे एम आगममां को छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जसकं तं किरइ, अहवा न सकेइ तहय सदइ । सद्दहमाणो जीवो, पावइ अयरामरं ठाणं ।।१।। अर्थ-रे जीव ? तुं करी शके तो कर अने जो न करी शके तोपण जेवी वीतरागं धर्म कह्यो ते रीते सद्दहजे. सदहणा शुद्ध राखनार जीव अजरामर स्थानक ते मोक्ष पदवी पामे. हवे समकितनो मार्ग कहे छे. १ जीव, २ अजीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ आत्रव, ६ संवर, ७ निर्जरा, ८ बंध, ९ मोक्ष. ए नव तत्त्व छे. तेमां मोक्षनो कर्त्ता जीव छ, अने संवर तथा निर्जरा ए बे छे, ते मोक्षना उपादानकारण छे, देवगुरु उपकारी ते मोक्षना निमित्त कारण छे एटले जीव संवर निर्जरा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. मोक्ष ए चार उपादेय छे अने बीजा पांच हेय छ एहवो परिणाम तेने समकित ज्ञान कहिये ते समकित ज्ञान भलोज थाय. तिहां अनुयोगद्वारमा कह्यो छे, नायम्मि गिन्हियव्वे,। अगिन्हियव्वे अइच्छ अत्थंमि ॥ जइवमेवइयजो, सो उवएसो नओ ताम ।। ____अर्थ:-ज्ञानथी छ द्रव्य जाणीने लेवा योग्य होय ते ले अने छांडवा योग्य छांडे एवो जे उपदेश ते नय उपदेश जाणवो. हवे समकितनी दश रुचि कहे छे. १ निसर्ग रुचि ते निश्चयनये करी जीवादि नव तत्व जाणे, आश्रव त्यागे, संवर आदरे, वीतरागना कह्या भाव जे छ द्रव्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० क्षेत्र काल भाव सहित जाणे, नामादि चार निक्षेपा पोतानी बुद्धिथी जाणे, सदहे, वीतरागना भाख्या भाव ते सत्य एवी सद्दहणा होय. आगमसार. २ उपदेश रुचि नव तव तथा छ द्रव्यने गुरु उपदेशथी जाणी सदहे ते उपदेश रुचि. ३ आज्ञा रुचि ते रागद्वेष मोह जेमना गया छे, अज्ञान मिटयुं छे एहवा अरिहंत देव तेणे जे आज्ञा कही तेने माने सद्दहे ते आज्ञारुचि. www.kobatirth.org ४ सूत्ररुचि १ आचारांग, २ सुयगडांग, ३ ठाणांग, ४ समवायांग, ६ भगवती, ६ ज्ञाताधर्म कथा, ७ उपासकदशांग, ८ अं For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १७१ तगडदशांग, ९ अनुत्तरोववाइ दशांग, १० प्रश्नव्याकरण, ११ विपाक, ए इग्यार अंग तथा बारमुं अंग दृष्टिवाद जेमां चउद पूर्व हतां ते हमणां विच्छेद गयां छे. तथा १ उववाइ, २ रायपसेणी, ३ जीवाभिगम, ४ पन्नवणा, ५ जंबुद्वीपपन्नति, ६ चंदपन्नति, ७ सूरपन्नति, ८ कप्पीआ, ९ कप्पवडंसिया, १० पुटिफआ, ११ पुष्फचुलोआ, १२ वन्हिदिशा, ए बार उपांग जाणवां. अने १ व्यवहारसूत्र, २ बृहत्कल्प, ३ दशाश्रुतस्कंध, ४ निशीथ, ५ महानिशीथ, ६ जितकल्प, ए छ छेदग्रंथ तथा १ चउसरण, २ संथारापयभा, ३ तंदुलवेयालीय, ४ चंदाविजय, ५ देविदथुओ, ७ वीरथुओ, ८ गच्छाचार, ९ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. जोतिकरंड, १० आयुः पञ्चखाण, ए दश पयन्नानां नाम तथा १ आवश्यक, २ दशवैकालिक, ३ उत्तराध्ययन, ४ ओघनियुक्ति, ए चार मूलसूत्र तथा १ नंदि, २ अनुयोगद्वार, ए पीस्तालीस आगम ते मूलसूत्र तथा २ नियुक्ति, ३ भाष्य, ४ चूर्णि, ५ टीका, ए पंचांगीना वचन जे जीव माने तथा आगम सांभलवानी तथा भणवानी जेने घणी चाहना होय ते सूत्ररुचि जाणवी. ५ जे जीव गुरुमुखथी एक पदनो अर्थ सांभलीने अनेक पद सद्दहे ते बीजरुचि.. ६ अभिगमरुचि ते जे सूत्र सिद्धान्त अर्थ सहित जाणे अने अर्थ विचार सभिलवानी घणी चाहना होय ते अभिगमरुषि. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ७ जे छ द्रव्यना गुण पर्यायने चार प्रमाण तथा सात नये करी जाणे ते विस्ता. ररुचि. ८ क्रियारूचि ते दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, समिति, गुप्ति बाह्य क्रिया सहित आत्मधर्म साथे जेने रुचि घणो होय ते क्रियारुचि. ९ संक्षेपरुचि ते जे अर्थने ज्ञानमां थोडो कहे थके घणो जाणीने कुमतिमां पडे नहि, जिनमतनी प्रतीति माने ते संक्षेपरुचि. १० जे पांच अस्तिकायनु स्वरूप जाणे श्रुतज्ञाननो स्वभाव अंतरंग सत्ता सद्दहे ते धर्मरुचि. हवे समकितना आठ गुण कहे छे. १ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ आगमसार. निःशंका ते जिनागम मध्ये सूक्ष्म अर्थ कह्या ते साचा सद्दहे तेमां संदेह आणे नही. तथा सात भयथी पण डरे नहि. २ निकखा गुण ते पुण्यरूप फलनी चाहना न राखे. केमके जिहां इच्छा तिहां कर्मनो बंध छे माटे. ३ निवित्तिगिच्छागुण ते शुभ अशुभ पुगल एक सरिखा छे तेमां पुण्यना उदयथी शुभयोग मिल्या खुशी थइ अहंकार न करवो तथा पापना उदयथी दुःखसंयोग मिल्या दिलगीर थाg नही. ४ अमूढदृष्टि गुण ते जे आगममां सूक्ष्म निगोदना तथा छ द्रव्यना सूक्ष्म विचार कह्या छे ते सांभलतो थको मुंजाय नही, जे पोतानी धारणामां आवे ते धारी राखे अने जे धारणामां न आवे तेने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार १७५ सरहे ५ उपबृंहगुण जे ए आपणा जीवमां अनंत ज्ञानादिक गुण छे ते छुपाववा नही, शुद्ध सत्ता जेवी छे तेवी कहेवी, राग द्वेष अज्ञान ते कर्मनी उपाधि छे. जीव ए उपाधिथी न्यारो छे. ६ स्थिरीकरण गुण ते आपणा परिणाम ज्ञानध्यानमां स्थिर करवा, डगाववा नही अथवा कोइ भव्य प्राणी धर्मथी पडतो होय तेने • साह्य देइ उपदेश आपी स्थिर करवो. ७ वात्सल्यता गुण ते जेनी साथे ज्ञान ध्यान तप पडिकमणो भेलो करता होइये अने सद्दहणा पण एकज होय ते आपणो साधर्मि भाइ छे तेनी भक्ति करवी. अथवा सर्व जीवना ज्ञानादि गुण आपणा समान छे माटे सर्व जीव ऊपर दया करवी. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ अथवा बीजा जीवना पण आपणा तुल्य ज्ञानादि गुण छे ते जीवने पोषवा योग्य ज्ञान ध्याननो घणो अभ्यास करावे. ८ प्रभावक गुण ते भगवंतना धर्मनी प्रभावना महिमा करवो अथवा पोताने ज्ञानादि गुण वधारवा दान, शील, तप, भाव, पूजा करी घणो महिमा करवो. ए समकितना आठ गुण. हवे समकितना पांच लक्षण कहे छे. १ उपशम भाव लक्षण ते विवेकी प्राणी प्रायें कषाय न करे अने जो कदाचित् कषाय करे तोपण तरत मनने पाछो वाले. २ आस्ताभूषण ते भगवंतना वचन ऊपर शुद्ध प्रतीत राखें, भगवंते जेम आगममां आज्ञा करी तेम सहहे. ३ दया भाव लक्षण ते सर्व जीव www.kobatirth.org आगमसार. For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १७७ १७७ पोताना सरीखा जाणी दया पालवी. ४ निर्वेद ते संसारथी तथा धनथी शरीरथी उदाशीपणो राखवो. ५ संवेग, ते इन्द्रियना सुख जीवें अनंति वार भोगव्या पण ते दुःखना कारण छे, एक चिदानंद मोक्षमयी अतीन्द्रिय सुखने आपणा करी जाणे. ए समकितना पांच लक्षण कह्यां.. हवे छ आयतन कहे छे. १ निश्चय. कुगुरु ते भगवंतना वचनना खोटा अर्थ करे खोटी प्ररुपणा करे. २ व्यवहारकुगुरु ते योगी, संन्यासी, ब्राह्मण अने आचारहीन वेषधारी यति ते पण छोडवा. ३ निश्चय कुदेव ते जिणे श्रीवीतरागदेवतुं स्वरूप नथी जाण्यु. ४ व्यवहार कुदेव ते जे सरागीदेव कृष्ण, महा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ आगमसार. देव, क्षेत्रपाल, देवी,पितर प्रमुख ते पण छोडवा. ५ निश्चयथी कुधर्म ते जे एकांत मार्ग बाह्यकरणी उपर राच्या छे अंतरंगज्ञान नथी ओलख्यो ते. ६ व्यवहार कुधर्म ते पारका अन्य दर्शनोना मत सर्व छांडवा एटले कुदेव कुगुरु तथा कुधर्मने छोडी शुद्धदेव, गुरु तथा धर्म सद्दहे ते समकितनी सद्दहणा जाणवी. समकितना लक्षण पनवणा सूत्रथी कहे छे. परमत्थसंथवो वा, सुदिपरमत्थ सेवणावावि ॥ वावन कुदसणा, वजाणाय सम्मत्तसद्दहणा ॥ १॥ अर्थः-परमार्थ छ द्रव्य नव तत्त्वना गुण पर्याय मोक्षनुं स्वरूप एटले जे परमार्थ सूक्ष्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. अर्थ छे ते जाणवानो घणो अभ्यास परचो करे अथवा जाणवानी घणी चाहना राखे अने सुदिठ कहेतां भली रीते दीठा जाण्या छे परमार्थ छ द्रव्य मोक्षमार्ग जेणे एहवा गुरुनी सेवा करे एटले ज्ञानी गुरु धारवा अने वावन्न कहेतां जिनमति यतिना नाम धरावीने जे क्षेत्रपाल प्रमुखने समकित विना माने एवा गुरुनो संग वर्जे अने कुदर्शनी जे अन्यमति तेनो संग न करे एवा जे परिणाम ते समकितनी सद्दहणा जाणवी. विरया सावज्जाओ, फसायहीणा महव्वयधरावि ॥ सम्मदिठिविडूणा, कयावि मुख्खं न पावंति ॥२॥ । www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૪૦ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org आगमसार. अर्थ:- जे सावद्य आरंभथी विरम्या है, क्रोधादि चार कषाय जीत्या छे अने शुद्ध पांच महाव्रत पाले छे पण समकित विना छे ते जीव मोक्ष पामे नहि. हवे समकित ते शी वस्तु छे ते विषे गाथा कहे छे. नयभंगपमाणेहिं, जो अप्पा सायवायभावेणं जाणइ मोक्स्खसरूवं, समदिडिओ सो नेओ | ३| अर्थ:- नय तथा भंगे करी तथा प्रमाणे करी जे पोताना आत्माने जाणे, ओलखे, स्याद्वाद आठ पक्षे जाणे अने एम स्याद्वादपणे मोक्ष निःकर्माssस्थाने पण जाणे, परवस्तुने हेय जाणे, जीवगुण उपादेय जाणे तेने समकीति जाणवो. For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आगमसार. १८१ हवे जीवस्वरूप ध्यान करवाने गाथा कहे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अहमिको खलु सुद्धो, निम्ममओ नाणदंसणसमग्गो || तम्मि ठिओ तच्चित्तो, सव्वे ए ए खयं नेमि ॥ ४ ॥ अर्थ:- ज्ञानी जीव एहनुं ध्यान करे के हुँ एक छं, पर पुद्गलथी न्यारो हुं, निश्चय नयेकरी शुद्ध छु, ज्ञानदर्शन स्वरूप छु, निर्मल छु, ममताथी रहित हुं हुं मारा गुणमां रह्यो छु, चेतनागुण ते माहारी सत्ता छे, हुं मारा आत्म स्वरूपने ध्यावतो सर्व कर्म क्षय करूँ छु. For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ आगमसार. निरंजणं निकल अयल, देवअणाइ अणाइ अणंतं ॥ चेयणलख्खण सिद्धसम, परमप्पा सिवसंतं ॥५॥ अर्थ:-कर्म अंजनथी रहित निरंजन छु, कलंक रहित छु, अयल केहतां पोताना स्वरूपथी किवारे चलायमान थाउं नहीं, परमदेव छु. जेनी आदि नथी तथा जेनो अंत नथी चेतना लक्षण छु, सिद्ध समान छ, संतसत्ता मयी छं. जीवादिसदहणं सम्मत्तं, अहिगमो नाणं ॥ तथ्थेव सया रमणं, चरणं एसो हु मुख्ख पहो॥६॥ __ अर्थः-जीवादिक छ द्रव्य जेवा के तेवा सदहवा ते समकित अने छ द्रव्य जेवा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १८३ छ तेहवा गुणपर्याय सहित जाणे ते ज्ञान जाण. ते छ द्रव्य जाणीने अजीवने छांडे अने जीवना स्वगुणमां स्थिर थइने रमे ते चारित्र कहिये. ए ज्ञान दर्शन चारित्र शुद्धरत्नत्रयी ते मोक्षनो मार्ग छे माटे ए ज्ञान दर्शन चारित्रनो घणो यत्न करवो, ए रत्नत्रयी पामीने प्रमाद करवो नहीं. तिहां निश्चय व्यवहारनी गाथा. निच्छयमग्गो मुख्खो, ववहारो पुण्णकारणो वुत्तो॥ पढमो संवररूवो, आसवहेउ तओ बीओ॥ ७ ॥ अर्थ:-निश्चयनयनो मार्ग ज्ञान सत्तारूप ते मोक्षy कारण छे अने व्यवहार क्रिया www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir e आगमसार. पहेलो निय नय ते पुण्यनुं कारण कह्यो नय संवर छे अने निश्चय संवर निश्चय नय ते एकज छे जूदा नथी. बीजो व्यवहार नय ते आस्रव नवा कर्म लेवानो हेतु छे एटले शुभ पुण्य कर्मनो आस्रव थाय छे अने अशुभ व्यवहारें अशुभ कर्मनो आस्रव थाय छे. कोइ पूछे जे व्यवहारनय आस्रवनुं कारण छे तो अमे व्यवहार नही आदरसुं, एक निश्चय मार्ग आदर. तेने उत्तर कहे छे. जई जिणमयं पवज्जह, ता मा ववहारनित्थर मुयह ॥ एकेण. विण तिथ्थं, छिज्जइ अत्रेणओ तच्च ॥ ८ ॥ अर्थः-- अहो भव्य प्राणी ! जो समने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १८५ जिनमतनी चाहना के अने जो तुमे जिनमतने इच्छो छो, मोक्षने चाहो छो तो निश्चयनय अने व्यवहारनय छांडशो नहि एटले बेहु नय मानजो. व्यवहार नये चालजो अने मिश्रय नय सद्दहजो जो तुमे व्यवहार नय उत्थापशो तो जिन शासनना तीर्थनो उच्छेद बाशे. जेणे व्यवहार न मान्यो तेणे गुरु वंदना, जिनभक्ति, तप, पञ्चख्खाण, सर्व न मान्या एम जेणे आचार उथाप्यो तेणे निमित्त कारण उथाप्यो अने निमित्त कारण विना एकलो उपादान कारण ते सिद्ध न थाय, माटे निमित्त कारणरूप व्यवहार नय जरूर मानवो अने जो एकलो व्यवहार नय मोनियें तो निश्चयनय ओलख्या बिना तस्वनुं www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. स्वरूप जाण्यु जाय नहीं माटे तत्व मोक्षमार्ग ते निश्चयनय विना पामिये नही अने तत्वज्ञान विना मोक्ष नथी एटले निश्चयनय व्यवहार नय बे मानवा. जे कारणे आगममा ज्ञान क्रियायी मोक्ष छ, तिहां ज्ञान-हेय उपादेयनी परीक्षा, क्रिया जे हेय बंधकारणनो त्याग, उपादेय स्वगुण ते लेवा, थिर परिणाम राखवा एवं ज्ञान क्रिया ते मोक्षy कारण छे माटे ज्ञान सहित क्रिया प्रमाण छे. ज्ञान विना क्रिया पुण्यनुं कारण छे एम निश्चय विना व्यवहार निःफल छे अने निश्चय सहित व्यवहार ते प्रमाण छे. तेनो दृष्टान्त-जेम सोनाना आभूषणमां उपधातु अथवा किणजो मिल्यो होय ते पण उंचा सोनाने भावें लेइ राखिये www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १८७ छैये अने जो ते किणजो तथा सोनुं जू दुं करियें तो सहु कोइ सोनाने ले पण कोइ किणजो जे कुधातु ते लीये नही तेम निश्चय नय सोना समान छे माटे निश्वयनय सहित सर्व भला के अने निश्चयनय विना सर्व अलेखे माटे आगममां निश्चय व्यवहार रूप मोक्षमार्ग छे ते को. वली शरीर ऊपर मोह करे नही ते विषे. च्छिज्जो भिज्जो जाय खओ, जो इहमे हु सरीरं || अप्पा भावे निम्मलो, जं पावं भवतीरं ॥ ९ ॥ अर्थ :- भव्य प्राणी एम शरीर छीजजाओ भिजजाओ, क्षय थइ जाओ, www.kobatirth.org चिंतवे जे ए For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. विणसी जाओ, ए म्हारुं शरीर पौगलिक छे परवस्तु छे ते एक दिवसे मूकवुं छे माटे रे प्राणी ! तुं आपणा आत्माने निर्मलपणे ध्यावतो संसारथी तरीने कांठो पामीश. ए हिज अप्पा सो परमप्पा, कम्मविसेसोइ जायोअप्पा ॥ इमये देवज्जाजुसो परमप्पा, बहु तुझे अप्पो अप्पा ॥ १० ॥ अर्थ :- अहो भव्यजीव ! एहीज आपणो आत्मा छे ते शुद्ध ब्रह्म छे पण कर्मने वश पड्यो जन्ममरण करे छे पण ए शरीरमां जे जीव छे ते देव छे, परमात्मा छे, माटे तुमे आपणो आत्मा ध्यावो, तरण तारण जिहाज ए आपणो आत्माज के एम श्री हेमाचायें www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १८९ वीतरागस्तोत्रमा कयो छे. यः परात्मा परं ज्योतिः, परमः परमेष्टिनाम् ॥ आदित्यवर्ण तमसः, परस्तादामनंति यम् ॥ १॥ सर्वे येनोदमूल्यंत, समूलाः क्लेशपादपाः । इत्यादि ॥ अर्थः-परमात्मा छे, परमज्योति छे, पंच परमेष्ठीथी पण अधिक पूज्य छे. केमके पंचपरमेष्ठी तो मोक्षमार्गना देखाडनारा छे पण मोक्षमा जवावालो तो आपणो जीव छे. अज्ञाननो मिटावनार छे सर्व कर्म क्लेशनो खपावनार छे एवो आत्मा ध्यावो एहिज परम श्रेय, कारण छे, शुद्ध छे, परम निर्मल छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, एहवो आत्मा उपादेय जाणी सद्दहे अने जेवो पोताथी निरवाह थाय तेवो त्याग वैरागमा प्रवर्ते एटले धन ते परवस्तु जाणी सुपात्रने दान आपे अने इन्द्रियना विकार ते कर्मबंधना कारण जाणी परिहरे, शील पाले, जे आहार छे ते पौद्गलिक परवस्तु छे, शरीर पुष्टीनुं कारण छे, अने शरीर पुष्ट कीधाथी इंद्रियोना विषयनो पोष थाय माटे ते पर स्वभाव छ, अज्ञान संसारचं कारण, छे माटे आहारनो त्याग करवो तेने तप कहिये. तथा पूजा ते जे श्री अरिहंत देवें मोक्षमार्ग उपदेश्यो ते आपणे जाण्यो माटे आपणा उपकारी छे ते उपकारीनी बहुमान सहित भक्ति करिये. माटे श्री अरिहंत देवा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. १९१ धिदेवनी पूजा करवी. एम दान, शील, तप, पूजा, सर्व जीव अजीवनुं स्वरूप ओ - लख्या विना जे करतुं ते पुण्यरूप इंद्रिय सुखनुं कारण छे अने जे जीवने उपादेय करी वांछा विना करे ते निर्जरानुं कारण के. एम दया पण श्रीभगवती सूत्रमां सातावेदनी कर्मनुं कारण के. एटले सम्यक ज्ञाननी सर्व करणी निज्र्जरारूप के अने ज्ञान विना सर्व करणी बंधनुं कारण छे, माटे ज्ञाननो वणो अभ्यास करजो ए भगवंतें सीखामण दीधी के. तथा ज्ञाननुं कारण श्रुतज्ञान छे तेनो घणो भाव राखजो. श्रीठाणांगमां तथा उत्तराध्ययनमां १ वाचना, २ पृच्छना, ३ परावर्तना, ४ अनुप्रेक्षा, ५ धर्मकथा, ए www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ आगमसार. सझ्झाय भणवा गुणवानुं फल मोक्ष कह्यो रे. सझाय करवार्थी ज्ञानावरणी कर्म खपावे केमके वाचनाथी तीर्थधर्म प्रवत्र्ते, महानिर्जरा थाय पछवाथी सूत्र तथा अर्थ शुद्ध थाय, मिथ्यात्व मोहनीय खपावे, ते जेम अर्थ विचार पूछे तेम तेम समकित निर्मळ थाय अने अनुप्रेक्षा ते अर्थ विचारतां सात कर्मनी स्थिति, रस पातला करे. अनंतो संसार खपावीने पातला करे तथा श्रुतज्ञाननी आराधनाथी अज्ञान मिटे एवां फल कहां छे. ___ माटे यांचर्चा तथा भणवानो घणो उद्यम करवो, केमके आज पांचमा आरामां कोइ केवलो नथी तथा मनःपर्यवज्ञानी अने अवविज्ञानी पण नथी,एकमात्र श्रुतज्ञान-आगमनो आधार छे.यतः www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org आगमसार. कहं अम्हारिसा पाणी, दुसमादोसदूसिया || हा अणाहा कहं हुंता, न हुंतो जड़ जिणागमो ॥ १ ॥ १९३ अर्थ - हे भगवंत ! अमसरिखा प्राणीनी शी गति थात जे अमें आ दुसम पंचम कालमां अवतार लीधो. हा - इति खेदे, अमे अनाथ कुं. ( छोए ) जो जिनराजन कहेला आगम न होत तो आज शुं थात, एटले आज आगमनोज आधार छे माटे आगम अने आगमधर जे बहुश्रुत तेनो घणो विनय करवो. आगममां विनयनुं फल ते सांभलवु अने सांभलवानुं फल ज्ञान छे, ज्ञाननुं फल मोक्ष छे, एम आगम सांभली लेवा योग्य 7 For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ आगमसार. लेजो, छंडवा योग्य छोडजो, सद्दहणा शुद्ध राखजो, सद्दहणा ते मोक्षनुं मूल ले ए इन्द्रिय सुख तो आ जीवे अनंतिवार पाम्युं छे. एहवी जाति - जन्म - योनि कोइ रही नथी जे आपणा जीवे नहीं करी होय. ए जीवने संसारमां भमतां अनंतां पुल परावर्तन थयां पण धर्मनी जोगवायीं मली नहीं तो हवे मनुष्यभव, श्रावककुल, निरोग शरीर, पंचेंद्रिय प्रगट, बुद्धि निर्मल, एटला संयोग मल्या वली श्री वीतरागनी वाणीना कहेनारा शुद्ध गुरुनी जोगवाइ पामीने अहो भव्यलोको ! तुमे धर्मने विषे विशेष उद्यम करजो, फरिथी एवी जोगवाइ मिलवी दुर्लभ के माटे प्रमाद करशो नहीं. ए शरीर, धन, कुटुंब, आयुष्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार, सर्व चंचल छे. क्षण क्षण छीजे छे, माटे पांच समवाय कारण मल्यां मोक्षरूप कार्य सिद्ध करवू ते पंचसमवायनां नाम कहे छे. १ काल, २. स्वभाव, नियति. ४ पूर्वकृत,५ पुरुषकार. ए पांच समवाय माने ते समकीति छै. एमां एक समवाय उथ्थापे तेहने मिथ्यात्वी कहिये एम सम्मति सूत्रमा कयो छे. कालो सहार नियइ.पुव्वकथं पुरिसकारणे पंच॥ समवाए सम्मत्तं, एगते होइ मिच्छत्तं ॥ १ ॥ अर्थः-काल लब्धि विना मोक्षरूप कार्य सिद्ध थाय नही एटले काल सर्वचं कारण छे. जे काले जे कार्य थवानो होय ते कार्य ते काले थाय, ए काल समवाय अंगीकार करी कहो. इहां कोइ पूछे जे अभव्य जीव मोक्षे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ३९६ केम जता नथी? तेनो उत्तर जे अभव्यने काल मले पण अभव्यमा मुक्ति जवानो स्वभाव नथी तेथी मोक्षे जाय नहीं.केमके काल स्वभाव ए वे कारण जोइये नेवारे फरि पूछयुं जे भव्य जीवोमां तो मोक्षे जवानो स्वभाव छे तो सर्व भव्य केम मोक्ष जता नथी तेने उत्तर जे नियत कहेतां निश्चय समकित गुण जागे तेवारें मोक्ष पामे एटले काल स्वभाव नियत ए त्रण कारण मान्या ते वारे फरि पूछयु जे समकित आदि कारण तो श्रेणिक राजाने हता तो मोक्ष केम न थयो ? तेने उत्तर जे पूर्वकृत कर्म घणां हृतां अथवा पुरुषाकार जे उद्यम करयो नही. फरी पूछयु जे शालिभद्र प्रभुखे तो उद्यम घणो कीधो तेनुं उत्तर जे तेमना पूर्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. कृत शुभकर्म खप्यां नहतां माटे पांच समवाय मिल्या कार्यनी सिद्धि थाय, तेबारें फरि पूछयुं जे मरुदेवा माताने तो चार कारण मिल्या पण पांचमो पुरुषाकार उद्यम कांइ कीयो नही तेने उत्तर जे क्षपक श्रेणि चढवानो शुक्ल ध्यान रूप उद्यम कीधो छ माटे पांच समवाय मील्या मोक्षरूप कार्य सिद्ध थाय. ___जेवारे केवलज्ञाने करी सर्व द्रव्य जेम रह्यां के तेम देखे एटले आकाशद्रव्य लोकालोक प्रमाण छे तेमां अलोकमां बीजुं द्रव्य कोइ नथी. लोकाकाशना एकेक प्रदेशे धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायनो एकेक प्रदेश रह्यो छे तथा अनंता जीवना अनंता प्रदेश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. रह्य । छे, अनंता पुद्गल परमाणुआ रह्या छे. कालनो समय सर्वत्र वर्ते छे. हवे छ द्रव्यनी फरसना कहे छे. धर्मास्तिकायना एक प्रदेशे धर्मास्तिकायना छ प्रदेश फरस्या छे ते आवी रीते के चार दिशिना चार अने पांचमो नीचे, छटो ऊपर ए छ प्रदेश फरस्या छ तथा एक मूल पोते प्रदेश एम सात प्रदेशनो संबंध ले अने धर्मास्तिकायना एक प्रदेशने आकाशद्रव्य तथा अधर्मास्तिकायना सात सात प्रदेश फरशे ले ते एक मूलना प्रदेशने बीजा द्रव्यनो मूलनो प्रदेश फरशे माटे सात प्रदेशनी फरसना छे अने धर्मास्किायना एक प्रदेशे जीव पुद्गलना अनंता प्रदेशनी फरसना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. छे अने लोकने अंते जे धर्मास्तिकायना प्रदेश छे तेने आकाश फरसनातो छए दिशीनी छे अने एकमूल प्रदेश सुद्धां सात प्रदेशनी फरशना छे अने बीजा द्रव्यनी त्रण दिशीनी फरशना छे एम सर्व द्रव्यनी फरशना छे अने आकाशी धर्म अधर्मनी अवगाहना सूक्ष्म छे धर्म अधर्म द्रव्यथी जीवनी अवगाहना भूक्ष्म छे जीवथी पुद्गलनी अवगाहना सूक्ष्म छे. एम छ. द्रव्यना गुण पर्याय सामान्य स्वभाव ११ छे. अने विशेष स्वभाव दश छे, ते श्रीसिद्ध भगवंत ज्ञानथी जाणे दर्शनथी देखे. ते इग्यार सामान्य स्वभाव कहे छे. १ अस्ति स्वभाव, २ नास्ति स्वभाव, ३ नित्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. स्मभाव, ४ अनित्य स्वभाव, ५ एक स्वभाव ६ अनेक स्वभाव, ७ भेद स्वभाव, ८ अभेद स्वभाव, ९ भव्य स्वभाव, १० अभव्य स्वभाव, ११ परम स्वभाव. ए इग्यार सामान्य स्वभाव सर्व द्रव्यमां छे. ए सामान्य उपयोग दर्शन गुणथी देखे. हने दश विशेष स्वभाव कहे छे. १ चेतन स्वभाव, २ अचेतन स्वभाव, ३ मूर्ति स्वभाव, ४ अमूर्ति स्वभाव, ५ एक प्रदेश स्वभाव, ६ अनेक प्रदेश स्वभाव, ७ शुद्ध स्वभाव, ८ अशुद्ध स्वभाव, ९ विभाव स्वभाव, १० उपचरित स्वभाव. ए दश विशेष स्वभाव छे.ते कोइक द्रव्यमां कोइक स्वभाव छे, कोइक द्रव्यमां कोइक स्वभाव नथी, ए ज्ञानथी जाणे एटले सिद्ध भगवान् लोकालोक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमनार. २०१ सर्व ज्ञानोपयोगथी जाणी रह्या छे. दर्शनोपयोगथी देखी रह्या छ एहवा अनंत गुणी अरूपी सिद्ध भगवान् छे ते समान पोताना आत्माने जाणे उपादेय करी ध्यावे ते समकित जाणवो. ॥ दोहा ॥ अष्ट कर्म वन दाहके, भए सिद्ध जिनचन्द । ता सम जो अप्पा गणे, वंदे ताको इंद ॥१॥ कर्मरोग औषधसमी, ज्ञान सुधारस वृष्टि । शिव सुखामृत सरोवरी, जय २ सम्यक दृष्टि॥२ एहिज सद्गुरु शीख छे, एहिज शिवपुर माग । लेजो निज ज्ञानादि गुण, करजोपरगुण त्याग।।३ ज्ञान वृक्ष सेवो भविक, चारित्र समकित मूल । अमर अगम पद फल लहो, जिनवर पदवी फूल ४ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ आगमसार, संवत सत्तर छिहत्तरे, मनशुद्ध फागुण मास । मोटे कोट मरोटमे, वसतां सुख चोमास ॥५॥ सुविहित खरतर गच्छ सुथिर, युगवर जिन चंद मूर। पुण्य प्रधान प्रधान गुण, पाठक गुण पंडर ॥६॥ तास शिष्य पाठक प्रवर, मुमतिसार गुणवंत । सकल शास्त्र ज्ञायक गुणी, साधुरंग जसवंत ॥७ तास शिष्य पाठक विबुध, जिनमत परमत जाण। भविक कमल प्रतिबोधवा, राजसार गुरुभाण ॥८ ज्ञानधमे पाठक प्रवर, शमदम गुणे अगाह । राजहंस गुरु गुरु शक्ति, सहुजग करे सराह।।९ तास शिष्य आगमरुचि, जैनधर्मको दास । देवचंद आनंदमें, कीनो ग्रंथ प्रकाश ॥१०॥ आगमसारोद्धार एह, प्राकृत संस्कृत रूप । ग्रंथ कियो देवचंदमुनि, ज्ञानामृत रसकूपा॥११॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. २०३ करयो इहां सहाय अति, दुर्गदास शुभचित्त । समजावन निज मित्रकुं, कीनो ग्रंथ पवित्त॥१२ धमित्र जिन धर्म रत, भविजन समकितवंत । शुद्ध अमरपद ओलखण, ग्रंथ कियो गुणवंत॥१३ तत्त्वज्ञानमय ग्रंथ यह, जोवे बालाबोध । निजपर सत्ता सब लिखे, श्रोता लहे प्रबोध॥१४ ता कारण देवचंदमुनि, कीनो भापा ग्रंथ । भणशे गुणशे जे भविक, लहेशे ते शिवपंथ।१५ कथक शुद्ध श्रोतारुचि, मिलजो एह संयोग । तत्त्वज्ञान श्रद्धा सहित,वलीय काय निरोग।।१६ परमागमसुं राचजो, लहेशो परमानंद । धर्मराग गुरु धर्मसौं, धरजो ए सुखठेद ॥१७॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ गुणस्थानकविचार. ग्रंथ कियो मनरंगसो, सितपख फागुणमास । भोमवार अरु तीज तिथि, सफल फली मन आस ॥१८॥ गुणस्थानकविचार. हवे गुणठाणानो विचार लखीई छ. प्रथम मिथ्यात्वगुणठाणुं १, सास्वादनगुणठाणु २, मिश्रगुणठाणुं ३, अविरत समकित गुणठाणुं ४, देशविरति गुणठाणुं ५, प्रमत्तगुणठाणुं ६, अप्रमत्तगुणठाणुं ७, अपूर्वकरण गुणठाणुं ८, अनिवृत्तिबादर गुणठाणुं ९, सूक्ष्मसंपराय गुणटाणुं १०, उपशांतमोह गुणठाणुं ११, क्षीणमोह गुणठाणुं १२, सयोगी केवली गुणठाणुं १३, अयोगीकेवलि गुणठाणू www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २०५ १४, अरिहंतनां भाख्यां वचन साचां करी सद्दहेनहि ते मिथ्यात्व गुणठाणो कहीइं, तेहना भेद पांच छे. अभिग्गहिय मिथ्यात्व जे लीधो हठ मुकी सके नहीं १, अनभिग्रहिक मिथ्यात्व जे देव तथा कुदेव तथा गुरु तथा कुगुरु धर्म अधर्म सरिखा करी माने परीक्षाबुद्धी नहीं २, अभिनिवेशमिथ्यात्व जे खोटाने खोटुं जाणे पण हठ मुकी सके नहीं ३, सांशयिक मिथ्यात्व जे केवलिना भाख्या वचन तेमा संशय उपजे पूरीपरतीत आवे नहीं ४, अनाभोग मिथ्यात्व जे कांई जाणपणुं उपजे नहीं एकेंद्रीविकलेंद्रीनी पेरे तथा श्रीठाणांगसूत्रे मिथ्यात्वना दसबोल कह्या छ, जीवने अजीव करी माने ते मिथ्यात्व १, तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ गुणस्थानकविचार. अजीवने जीव करी माने ते मिथ्यात्व २, तथा धर्मने अधर्म करी माने ते मिथ्यात्व ३ तथा अधर्मने धर्म करी माने ते मिथ्यात्व ४, मोक्षनोमार्ग ज्ञानदर्शन चारित्रतपः तेहने मोक्षमार्ग न माने ते मिथ्यात्व ५, तथा मोशनो मार्ग नथी संसारनोहंतु छे तेहने मोक्षमार्ग करी माने ते मिथ्यात्व ६,तथा मोक्ष गया नथी तेने मोक्ष माने ते मिथ्यात्व ७,जे मोक्षे गया तेहने मोक्ष न माने ते मिथ्यात्व ८,जे साधु विषयविकार त्यागी तेहने असाधु माने ते मिथ्यात्व ९, तथा जे साधु नथी तेहने साधु करी माने ते मिथ्यात्व १० ते मिथ्यात्वनी चाल तीन प्रकारनी छे देवगत मिथ्यात्व ते कुदेव सरागी तेहने देव करी माने १, बीजो गुरुगत जे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २०७ कुगुरुने गुरु करी माने बीजो पर्वगत मिथ्यात्व संसारी पर्वने धर्मना पर्व करी माने ते मिथ्यात्व ते मिथ्यात्वनी स्थिति तीन प्रकारनी छे. अनादि अनंतनी अभव्य जीवने, अनादि सांत भव्यजीवने, सादिसांत पडवाइने, ते जघन्य अंतर्मुहत उत्ऋष्टी अर्द्रपुलपरावर्त काईक उणी छे. वीजु गुणठाणुं सास्वादन ते कोईक जीव उपसमसमकितथी पडतो मिथ्यात्व गुणठाणे पोतो नथी वचे छआवलिका रहे ते सास्वादन गुणठाणुं कहीइं. तेहनो दृष्टांत छ कोइ पुरुष खीरखांड घृत जमीने तुरत वमतो होई ते वमतां काईक स्वाद आवे तिम समकितिथी पडतां पिण काइक वासना रहे तेहने सास्वादन कहिइं २ बीजो गुणठाणो मिश्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ गुणस्थानक विचार. कोइ जीव क्षयोपशम समकितथी पडी मिश्रमोहनीने उदये मिश्रगुणठाणे आवे अथवा मिथ्यात्वथी निकली समकित गुणठाणे आवतां वचे मिश्रमोहनीने उदये मिश्र गुणठाणे आवे ते जीव अंतमुहूर्त्तकालसीम रहे एहने समकित मिथ्यात्वदृष्टि कही. एहनो दृष्टांत कहे छे जे कोई जीव नालियरदीपमां वसतो होई ते नालियर खाई तेहने अन्न दीठे राग न उपजे तेम द्वेष पण न उपजे तिम ए जीवने जिन धर्म साचो सांभलतां राग पण न उपजे तेम द्वेष उपजे नहीं एहवा जीवने मिश्रगुणठाणं कहीई, एहनी स्थिति अंतमुहूर्तनी ३ चोथो अविरत समकित तेहना भेद त्रण छे, तेहनो पहेलो भेद उपसमसमकित जे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २०९ जीव अनादि मिथ्यात्व संज्ञीपंचेंद्रीपर्याप्तो कोई कारण पामीने संसारथी उभगे,नरक निगोदथी जनममरणना दुःखथी बीहे तेवारे ए सर्व संसार खोटो जाणे, धर्म जाणवानी रुचि घणी करे, दयापाले, दानदे, तप करे, श्रावकनां वार व्रत पाले, साधुना महाव्रत पाले ते जीव यथाप्रवृत्तिकरणे वर्तता कहीइं, एटली करणीसुधी भव्य तथा अभव्य जीव आवे, नवग्रैवेयकसुधी जार पण समकित पाम्यो नथी ते माटे लेखामां नावे, तोपण कोई जीव वैराग्य परिणामसहित संतारने असार जाणतो साचा धर्मनो परीक्षा करतो सातकर्मनी थीति उत्कृष्टी खपावे, एक कोडाकोडी सागरोपम बाकी थीति सातकर्मनी रहे तेवारे अपूर्वकरण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० गुणस्थानकविचार. करे तेवारे एक ज्ञान मार्ग साचो करी माने, बूद्धिसूक्ष्मभाव जाणवानी विशेष थाई तेबारे पछे एक आत्मा पोताना शरीरने विषे रह्यो, पण अशरीरी छे, अरुपी छे, अविनाशी छे, अनंतज्ञानमयो, अनंत दर्शनमयी,अनंत चारित्र मयी,अनंत अगुरुलधुमयी, अनंततपमयी, अनंतवीर्यमयी, निर्मल अलेप अखंड छ तेहना प्रदेश अखंख्याता छ, प्रदेश २ अनंता गुण अनंता पर्याय छे, उपयोग लक्षण ते माहरो धर्म छे, ए धर्म जे जे करतां प्रगट थाये, गुणीश्रीअरिहंत, सिद्ध, आचारज,उपाध्याय, साधु तथा सिद्धांत तेहनो विनय तथा वैयावञ्च करवो, अरिहंतना आगम प्रमाणप्रतीत राखे ते समकित कहीइं, ते समकितना तिन www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २११ भेद छे,उपसम समकित १ क्षयोपशम समकित २ क्षायिकसकित तिहां अनंतानुबंधिकपाय ४ मिथ्यात्वमोहनी, मिश्रमोहनी, समकितमोहनी एसातप्रकृति उदये आवे ते खपावी अने उदये नथी आवी ते विपाके उपसमावी छे, प्रदेसे उदये छे, समकितमोहनी उदय आकरो छे तेणे समकितमां अतिचार लागे छे तेहने क्षयोपशम समकित कहीई, एहवी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूत्त छे उत्कृष्टि ६६ छासठिसागरोपम केतलाएक मनुष्यभव अधिक एतली स्थिति रहे ए समकितने पांच अतिचार लागे तेहनां नाम ॥ संका जे आगममां कह्यो ते साचो पिण काईक संदेह उपजे १, अतिचार ॥ कंखा बीजा मतना शास्त्र तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ गुणस्थानकविचार. देव हरिहरादिक सरागि तथा ते मतना गुरुसविकारी तेहने काईक रुडापणे जाणि वांछा करिए २ अतिचार, वितिगिछाजे धर्मअरिहंतनो कह्यो करीइं पण एहनो फल थासे के नही थाय अथवा जिनसासनथी वीजा मतनी करणी रुटी छे एहवो परिणाम आवे ते बीजो ३ अतिचार॥ पसंस जे परमतनी परसंसा करे जे वीजा मतना देव तथा लिंगीयाना कष्टकरणी तथा कोई चमत्कार देखीने ते उपर राग आवे तेहने पंग लाग तेहना गुण बोले ए चोथो ४ अतिचार जाणवो ॥ संथयो जे बीजा मतना देव तथा गुरु तथा ते मतना जे सेवक तेडनो परिचय मेलाप घणो करे बीजा मतनी बात करे सांभले तेपांचमो अति www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २१३ चार ॥ ए क्षयोपशम समकित एक जीवने असंख्यातीवार आवे अने वली असंख्यातीवारजाए, जे आगमने आधारे राखे तेहने रहे तेपले क्षायिक समकित थाई ते क्षायिकनो अर्थ लिखीई के अनंतानुबंधी च्यार ४ मिथ्यात्व मोहनी १ मिश्रमोहनी २ समकित - मोहनी ३ ए सात प्रकृति सर्वथा जे जीव खपावीने निरमलीपरतीत किधी ते क्षायिकसमकिती कही. ए ओव्या पछे जाय नहीं. ए समकितवाला जीवने दस जातिनी रुचि उपजे ते लिखीइं छे. निसर्गरुचि नव तच्च ९ छ द्रव्य तेहना ४ निक्षेपा सातनय पोतानी बुद्धिथी साचा जाणे ते निसर्गरुचि १ अभिगमरुचि जे जिनागमनासुक्ष्म अर्थ जाणवानी रुचि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ गुणस्थानकविचार. गुरुना मुखथी उपदेशी जाणे ते उपदेशरुचि २ श्रीअरिहंत केवलीना कह्या वचननी आणा प्रमाण करे ते आणारुचि ३ सूत्ररुचि जिनसूत्र सांभलतां साचा मारगनी परतीत उपजे समकित पामे ४ बीजरुचि सिद्धांतनुं एकपद सांभलतां बधावोलन जाणपणुं आवे श्रद्धासमीथाई ५ अभिगमरुचि जे ११ अंगादिक ८४ आगम तथा नियुक्तिभाप्य चूर्णिटीकाना अर्थ जाणे सर्व बोलना परमार्थ जाणवानी रुचि ६ विस्ताररुचि ६ द्रव्यनाभाव ४ निक्षे. पेसातनय करी च्यार प्रमाणे करी जाणे ७ क्रिया रुचि जे जीव जिनशासननी क्रिया साची करी सूत्रमा कही ते रीते करे आधीपाछी न करे ८ संक्षेपरुचि, जे जीव सिद्धां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २१५ तना जाणगीतार्थ आगमने अनुसारे जे अर्थ कहे ते साचा करी माने ९ धर्मरुचि, आतमानो धर्म ज्ञानदर्शन चारित्रमयी अरूपी आतमानो परिणाम भावदया प्रमुख गुणी श्री अरिहंतादिकनो बहुमान वेयावच ते धर्म करी माने बीजा बाह्य तपबाह्य किरिया जे आगममां कह्या परमाण करे ते धमनो कारण करी माने ते धर्मरुचि, समकित मोक्षमार्ग मूल छे, समकित विना जे करणि ते संसार खाते छे (पण) मोक्षमारग न जाणे ए चोथो गुणठाणो कह्यो ४ पांचमो देशविरति गुणठाणो इहां जीवने व्रतपञ्चखाण आवे, जघन्ये एक नवकारसीपञ्चरकाण तथा कंदमूलना पचखाण साची श्रद्धा सहीत थया होवे तेह्रने श्रावक कहीइं, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ गुणस्थानकविचार. उत्कृष्टे इंद्रीसुखनी वांछा विना श्रावकनां बारव्रतपाले ते उत्कृष्टो श्रावक कहीइं बारव्रतनां नाम १ स्थूलपाणातिपात विरमण, जे त्रस जीवने निरापराध हणे नहि २ स्थूलमृषावाद विरमण, जे मोटका पांच कन्यालीक १, गवालीक २, भौमालिक ३, थापिणमोसो ४, कुडीसाख न बोले ५ ॥ ३ थूलअदत्तादान विरमण, जे चोरी कीधे राजा दंडे तथा च्यार रुडां माणस ठवको दे अथवा पोताने भय लागे अथवा सामाना जीवने ध्रास्को पडे ते मोटी चोरी करवी नहि ४ थूलमैथुन विरमणव्रत, जे परस्त्री मनुष्यणी तथा तिर्यंचणी तथा देवतानी भोगववी नहीं. पांच इंद्रीना स्वाद घणा मगनपणे सेवे नहीं www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २१७ ५ थूलपरिग्रह विरमण जे धनादिक नव भेदनो परिग्रहनो पञ्चक्खाण करे, ईच्छा परिमाण करे अथवा पोता पासे जे धन होइं ते राखी बीजानो पञ्चक्खाण करे ६ दिक् परिमाणवत जे च्यार दिशा तथा ऊंचो तथा नीचो दिसी जावानो मान करे ७ भोगोपभोग परिमाण व्रत जे नीम साचवे, पन्नर कर्मादान न करे, जे पोताने खावेपीवे तथा वस्त्रोन मान राखे ८ अनर्थ दंड विरमणव्रत, ते जे मोटका पाप, रंगवां, खेतर खेडवां, भाठो जे चूना प्रमुख न करवानां पञ्चक्खाण करे ९ सामायिकवत जे जघन्य २ घडी सुद्धी संसारनां काम मूकी कुटुंब धननो राग तजी कोइथी द्वेष न करवो एहवो समपरिमाण राखवो ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ गुणस्थानकविचार. सामायिक कहिइं १० देशावगासिकवत जे बे घडीथी च्यार पोहोरथी उणुंकाल दिसर्नु मानकरिथीरचित्तसमतापणे रहेवू ते देसावगा. सिकवत जाणवू ११ पौपधवत च्यार पोहर अथवा आठ पोहोर सूधी समतापणे साधुपेरे श्रावकवरते, मन वचन काया समताई राखे ते पोषधव्रत कहीई १२ अतिथिसंविभाग बारमुं व्रत जे श्रावक ते साधुने विहरावाने पछे जिम, जो तेहवा साधुनो योग न मिले तो साधर्मिक श्रावकने जीमाडीने जमवा बेसबुं बठा पछे थाडीसीकवार साधुजीनी वाटजोवी इंम करतां साधूनी नाव्या तो एहवी भावना भाववी जे धन्य ते श्रावक जे साधुजीने वहोरावीने जिमता हस्ये इंम चितवी जमवा बेसे ए बारव्रत धरे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. ते श्रावक कहीई श्रावकने जघन्य ३ वार उत्कृष्टे ७ वार चैत्यवंदन करवू, अरिहंतदेवसिद्ध भगवंतने वंदना करवी तथा नित्य पडिक्कमणुं बे वार करवू जो नित्य न थाय तो पाखीनो पडिकमणुं नियमा कर तथा पञ्चक्खाण प्रभातना नोकारसी अवस्य साचववी, रात्रि चविहार तिविहार दुविहार ए ३ मांहि एक पञ्चकवाण अवस्य करवु ए पांचमा गुणठाणानी स्थितिः जघन्य अंतमुहूर्त उत्कृष्टं देशे उणी पूर्वकोडी वर्षनी जाणवी. ए जीव अढार पाप स्थानक आलोइने निर्मल थयो चारित्रफरसे ते कहे छ, अथ अढारे पाप स्थान लिखीइं छे. कोइ भव्य जीव अवसर पामीने जैनागम स्मूणतां संसारथी उभग्यो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० गुणस्थानक विचार. थको मोक्ष सुखनो अभिलाप करे पण आलंवन विना कार्य नीपजत्रो दुकर छे तेथी प्रथम देवतत्र श्री वीतराग अनंत ज्ञानमय अनंत-दर्शनमय शुद्ध स्वरूपी आत्म ऋद्धिभोगी आत्मालंबी आत्मपरणामी जेहने अवलंबीने अनंता जीव अव्याबाध सुख बरे ते देवतत्व तेहने सेववे सर्व जीव संसारभयथी छुटे तथा निग्रंथपंच महाव्रतधारी संवरस्वरूपी एक निर्मल मोक्षमार्गने विषे जेहनी दृष्टि छे, शरीर इंद्रीय, कपाय, योगनी प्रवृत्तिजीपता मुनिराज अतीतकाल विषय संभालता नथी, वर्त्तमान विषयमा रमता नथी, अनागतकाल विषयनी आसा नथी, पोताना अनंतगुणपर्याय निर्मल करवाने उत्कृष्ट उद्यमवंत छे ते साधु महात्मा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २२१ गुरुपणे धारवा, तथा धर्मतत्व जे जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी स्थावाद रीते पोतानी गुणपर्याय परणति ते धर्म श्री सिद्ध भगवानने प्रगट छे, श्री अरिहंते उपदिस्यो आचार्य ते धर्म साधवाने ज्ञानादिक पंचाचार पाले छे, श्रीउपाध्यायजी ते धर्मनी घोषणा करे छे, साधुनिग्रंथ ते धर्म साधवाने राज्य तजी इंद्रिय विषय तजी वनमां साधु टोला मध्ये अथवा एकल वासी वनवासी गुफानिवासी पर्वतनी शीला उपर उनाले आतापना शीतकाले नदीने तटे शीत खमे छे, जगत्रयथी अव्याकपणे रागद्वेष वारता समतामई श्रुतसंपन्न चारित्रसंपन्न विचरे छे तथा देशविरति ते सुद्ध धर्म प्रगट करवा वास्ते देसविरती लेइ सर्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ गुणस्थानकविचार. विरतीनी इहा करतो संसार कार्य ते विष पाननी पेरे उदासीनपणे करे छे, सम्यग्दृष्टि ते धर्मनी इहा करता कईयासिद्धीलंभो कईयासवेगुणनिरावरणा कईयाअदाबाहं, सुहंसमुहंमयेसिजे ॥१॥ कईयापुग्गलरहियो, रमामिसिवमयल निरुवमसहावो, पासंतीसवपयं भुजंतो अप्पणोभावं ॥२॥ ए भावना भाविने धर्मनो अभिलाष करतां संसारप्रवृत्ति तप्त लोहपद धरवानी रीते करे छे संसारसंपदा बालक रमवानां धूलघर समान जाणे छे, ते धर्म प्रगट करवानी रुचि सर्व जीवे करवी, पण ते धर्म आठ कर्म आवयों छे ते आठ कर्मने क्षये प्रगटे ते आठ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २२३ कर्मनो क्षय, पापस्थान आलोयतां थाये ते पापस्थाननी आलोयणा करवी जे माहरे जीवे संसार भमतां स्वस्वरूपनी भूले हिंसा पापस्थान को आपणा ज्ञानादिक प्राण हण्या ते भावहिंसा अने रागद्वेपे असंयमे परना प्राण हण्या ते द्रव्यहिंसा ते लौकिक रीते पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, उसकाय हण्या, संताप्या,छेचा भेद्या, तपाव्या, परने संकेश उपजाव्यो,परणति संकल्पे प्रवर्ते हे श्रीवीतराग तुमें.सर्व जाणो छो, ते हिंसाने धर्म करी मान्यो हिंसामध्ये राच्यो ए रीते हिंसा पोते ए भवे पाछले अनंतेभवे जे जे हिंसा परणति करी, करावी,करतां, अनुमोदि भने वचने कायाए ते सर्व श्रीप्रभुजीनीसाखे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ गुणस्थानकविचार, गुरुसाखे मिच्छामिदुक्कडं ए प्रथम पापस्थान ॥ हवे बीजो पापस्थान ते मृषावाद जे जूटुं बोलवू, लौकिक संसारकाममध्ये लोकोक्तर धर्मकार्यमध्ये ते पिण भाव मृषावाद स्वस्वरूपशुद्ध अध्यात्मभाव पोतानी परणतिने पोतानी न माने, शरीर इन्द्रिय धन कुटुंब ते परभाव संसार हेतु दुष्टता मूल तेहने पोताना कहे क्रोधेमृषा बोले, भयेमृषा बोले, लोभेमृपा बोले ते सर्व माहरे जीवे संसार भमतां चार गतिमांही जे मृपावाद षोल्या होय, बोलाव्या होय, बोलता अनुमोद्या होय, ते मने वचने कायाए ते सर्व श्रीप्रभुजीनी साखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुकटं २ हा त्रीजी पापस्थानक अदत्तादान ते जे पारकी वस्तु www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २२५ aratat aata alfaक जे संसारी असंयमीना धनकंचन द्विपद चतुःपद आदिक अण दीघा लेवा, लोकोत्तर ते जे चैत्यउपगरण पूजाउपगरण चारित्रउपगरण तेनो चोरवो बाह्य वस्तुनो लेवो, ते द्रव्य, भाव ते जीवपर पुल धादिकनो आत्मानेविषे ग्राहकतारुप परिणमन करयो हवे, कराव्यो, हवे, करतां अनुमोद्यो हवे, ते मन वचन कायाए ते सर्व श्रीप्रभुजीनी साखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुक्कडं ३ हवे चोथो पापस्थान मैथुन जे कामी भोगीपणे इंद्री विपे पुद्गलना वर्णादिकनो भोगववो लोकोत्तर धर्मलिंगे धर्मी महाजन साधु साध्वी धर्मोपकरण चैत्यादिने विषे इंद्रीनी पोषणा करवी ते वली द्रव्यथी 8 www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ गुणस्थानक विचार. वेद ३ उदये जे कामविकारीपणे भोगविलासादिक, भावथी आत्मपरिणति पर भोगीपणे पर वस्तु अशुचिपरिणाममध्ये रमणीकता तें माहारे जीवे, एकेन्द्रियपणे बेरिन्द्रिपणे, तेरिन्द्रिपणे, चोरिन्द्रिपणे, पंचेन्द्रिपणे फरसन १ रसन २ घ्राण ३ चक्षु ४ श्रोत्रेन्द्रिय ६ इन्द्रिना वीस विषय वांच्छया सेव्या सेवाव्या सेवतां अनुमोचा होई ते मन वचन काया करी श्रीप्रभुजीनी साखे आत्मसाखे मिच्छामिदुकडं ४ हवे पांचमो पापस्थान परिग्रह जे कोई आत्मधर्मथी अन्यभाव संरक्षणा परिणामे राखवा ते, लौकिक परिग्रह द्विपद चतुःपद धनधान्य गृहखेत्र वस्त्रममुख, लोकोतर परिग्रह सम्यक्त्वनो हेतु मोक्षकारण श्री www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २२७ अरिहंतनो चैत्य तथा जिनविय तथा ज्ञाननो कारण पुस्तक नवकारवाली प्रमुखचारित्रनां उपगरण तेहने ममत्वभावे ग्रहे, द्रव्य परिग्रह पुद्गल खंघादि ममत्वभावे ग्रहे, भावपरिग्रह क्रोधादिक अशुद्ध परिणाम परभावस्वामित्वग्राहकत्वादिक परिणति ते परिग्रह राख्यो हवे परद्रव्यनी इच्छा करी हवे, परिग्रह मुख मान्यो हवे, परिग्रह नासते धर्मआचरण करयो हवे ते परिग्रह पापस्थान मने बचने कायाए करो सेव्यो, सेवाव्यो होय सेवतां अनुमोद्यो होवे ते श्रीअरिहंतनी साखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुक्कडं ५ हवे छठो पापस्थानक क्रोधतप्त परिणाम क्षमानो रोधक ते लौकिक भाई पिता प्रमुख कुटुंब उपर तथा अन्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ गुणस्थानकविचार. जीव उपर क्रोध परिणाम लोकोत्तर देवगुरु साधर्मिक उपर क्रोध परिणामते द्रव्यतः तथा सकेंठोरता भाव रुद्र परिणाम ते जो कोई रीतनो अप्रशस्त क्रोध कों होवे कराव्यो होवे करतां अनुमोद्यो होवे ते श्री त्रिभुवनपति निरंजन देवनीसारखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिछामिदुक्कडं. हवे सातमो पापस्थान मान, अहंकार ? रुपनो, धननो,राज्यनो,परिवारनो, वलनो, तपनो, विद्यानो, कुलनो तथा गुणी नहीं ने गुणीनो मान आचार्य उपाध्याय साधुपणानो अभिमान संसारकार्य यशाभिलाषे मान, धर्मकार्ये संघयात्राचैत्य प्रमुखनो कराव्या रखवाल्यानो मान कर्यो हवे, लौकिक बाह्यलोकोत्तर गुणनो गुणीथी, महत्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २२९ कर्यो हवे ते सर्व मने वचने कायाई करि कों हवे कराव्यो होवे करता अनुमोद्यो होवे ते श्रीप्रभुजीनी साखे आत्मसाखे मिछामिदुक्कडं ७ हवे आठमो पापस्थान माया कपट वक्रता जे कोइथी वचननो द्रोह ठगाई करवी ते माया अलौकिक संसारी संबंधथी लोकोतर आचार्य साधु सार्मिकथी धर्म पद्धतिनो कपट करवो ते द्रव्यतः कोइने वंचवो, भावतः आजवता रहित परिणामे जे माहरे जीवे कयों कराव्यो करतां अनुमोद्यो ते अने वचने कायाये करी श्रीजगवत्सल परम करुणानिधिनी साखे गुरु यथार्थवादिनी साखे, आत्म साखे पिछामि दुकडं ८ हवे नवमो पापस्थान लोभ, लालची परिणाम इच्छा गृद्धता ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० गुणस्थानकविचार, लौकिक, बाह्य पोताने इष्ट वस्तु तेहनी लालच जे घणी जडे, इंद्रीय सुख प्रमुख आवे एहवो परिणाम ते लोभ, लोकोत्तर धर्मलिंगे धन विषय जसनो लाभ वांछे ए द्रव्यतः का, जे भावतः परभावाभिलाप सर्व ते जे माहारे जीवे कर्यों कराव्यो करतां अनुमोद्यो ते मने करि वचने करि कायाये करि श्री प्रभुजीनी साखे गुरु साखे आत्म साखे मिछामिदुकडं ९ हवे दसमो पापस्थान रागप्रीत परिणाम वाल्हास जे जीव अजीव पोताने विष पोषणीये लौकिक तथा लोकोत्तरथी द्रव्य तथा भावथी ते राग परिणति अनंती आत्माथी उपनी अन्य द्रव्यने विष तेना उदिकनी रीझ ते माहारे जीवे करी करावी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २३१ करना अनुमोदि ते सर्व मने करी वचने कायाए करी श्रीअरिहंतनी साखे गुरुनी साखे मिछामिदुकडं १० हवे अग्यारमो पापस्थानक द्वेष अप्रीति परिणाम जीव तथा अजीव उपर पोतानी विषयादि इष्टताये अपूरातां जे असूहामणां ते लौकिक उपर द्वेष तथा लोकोत्तर उपर द्वेष जे कर्यो होवे कराव्यो होते करतापत्ये अनुमोद्यो होवे ते मने वचने कापाये करी ते श्रीसर्वज्ञनी साखे गुरु साखे मिछामिदुक्कडं ११ हवे बारमो पापस्थान कलह वढवाड कोईथी द्रव्य वासते जस वडाई वासते आक्रोश कुपचनादिक करवा तथा धर्म मध्ये नामगावा वासते, कुयुक्तिये पोतानो मत थापवाने जे कलह www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ गुणस्थानकविचार. करवे प्रशस्त करतां अप्रशस्त थयुं होवे ते सर्व मने वचने कायाए करी कर्यु कराव्यु अनुमोयुं ते देवसाखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुक्कडं १२ तथा तेरमो पापस्थान अभ्याख्यान कुडोआल देवो द्वेपे तथा हास्ये गुणीना गुण ओलववा, आगलाने सहसाकारे हिणो वचन कहेवो तथा वस्तुगते लोपीने फटकार करवो ते लौकिक अन्यजी वने संसारी रीते, लोकोत्तर अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु साधर्मिक देशविरति समकिती तेहनी औदयि चाल देखी कलंक देवो ते अभ्याख्यान कर्या होवे, कराव्या होवे करतां अनुमोद्या होते मने वचने कायाए करी श्रीप्रभुजीनीसाखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छा. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २३ मिदुक्कडं १३ हो सोळमो पापस्थान परपरिवाद. पारकी निंद्या ते द्वेषे पारका अवगुण कह्या, कोइना अपजस वास्ते पारकी कुथली करी अथवा सामा मनुष्यने खिसाणो पाडवा वासते जे निंदा करी ते मध्ये लौकिक ते जे संसारी जोवनी, लोकोत्तर गुणी जैनमार्ग अवलंबता मार्गानुसारिथी मांडो सिद्धभगवान लगे जे अब र्णवाद बोलवो ते बोल्यो होवे बोलाव्यो होवे बोलताने अनुमोद्यो होवे ते मन वचन कायाए करीने श्रीप्रभुजीनी साखे, गुरु साखे, आत्म साखे मिछामिदुक्कडं १४ पन्नरमो पापस्थान रति तथा अरति उपजे असाता दुःखवियोग हानि प्रमुख उपजे जे अरति आकुलता किहांइ सुहाय नही ते अरति लौकिक विषयनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ गुणस्थानकविचार. ऊणी असुहामणे, तथा लोकोत्तर आगम सुणतां देवयात्राये तप सामायकपोसह भणवो प्रमुख ते मध्ये अरति करि होवे तथा रति, इंद्री विषयमध्येरीझ सुहामण रक्तता विश्राम ते रति लोकिक, तथा लोकोत्तर चैत्य पुस्तकादिकनी सुंदरता देखीने जे इंद्री विषे रीझ पामे ते रीझ ए नवां कर्म बांधवाने आकरि चिकणता जे माहरे जीवे करी, करावी, क. रतां अनुमोदी ते मने वचने कायाये करी श्रीपरमात्मानी साखे गुरुनी साखे आत्म साखेमिछामिदक्कडं १५ हवे चउदमोपापस्थान पैशुन्य पारकी चाडी करवी ते जे द्वेषे थाये आगल्या जीवनेकष्ट असातानो हेतु राजा तथा आचार्यादिक अधिक आगल तेहना छता www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २३५ अथवा अछता दोष कही तेहनो आश्रय भांजवो ते पैशुन्य कहिये ते जे माहारे जीवे करयो कराव्यो करतां अनुमोद्यो मनेवचने कायाए करी श्रीप्रभुजोनी साखे, आत्मसाखे गुरुसाखे मिछामिदुकडं १६ हवे सत्तरमो पापस्थान माया मृपा कपटे परने ठगवा वास्ते मिटुं बोले, कोइ कपटलिंग बगलानी पेरे देखाडीने गुणी नहि ने गुणी रीते वंदाववो, पूजाववो मनाववो कराववो अथवा लौकिक वचने व्यापार प्रमुख मध्ये कपटे मृषा बोले तथा धर्मचाले जैनागम मध्ये कपट रीते प्रवृत्ति करवी ते लिगी जीव प्रमुख करवाते जे माहारे जीने करयां कराव्यां करतां अनुमोद्या ते मने वचने कायाए करी श्रीमभुजीनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ गुणस्थानकविचार. साखे गुरु सारखे आत्म साखे मिछामिदुक्कडं १७ हवे अहारमो पापस्थान मिथ्यात्व जे कुदेव विषयी कर्माधीन परिग्रही पुण्यप्रकृति भोगि तेहने देव माने, कुगुरु चारित्रधर्म रहित जे अन्य लिंगी तथा स्वलिंगी गुणभ्रष्ट परिग्रहनो लोभी अढार पापरथान भरया ते गुरु करी माने, धमे यथार्थ आत्मपरिणति विना अथवा तेहना साधन बिना धर्म माने तथा जीवादिक नव तत्त्व जिम वस्तुधर्म वस्तुपणे पोतानी परिणति छे, पटद्रव्ये जिम पोतानो परिणति गुणपर्याय स्वभाव स्याद्वाद रीते जिम छ तिम न सद्दहे कल्पित रीते सहहे तेने मिथ्यात्व कहे थे, तेहना मूल भेद ५ अभिग्रहमिथ्यात्त्र-खोटोकदाग्रह झाल्यो मूके www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २३७ नहि १ अनभिग्रह मिथ्यात्व गुणअवगुण परख्या विना सर्व सरिखा माने २ अभिनिवेश मिथ्यात्व. जाणीने खोटो कदाग्रह खेंचे ३ संशयमिथ्यात्व जे सर्व संशय मध्ये रहे ४ अनाभोग मिथ्यात्व जे कांइ जाणे नहि तथा साध्य साधन निमित्त तथा उपादान उत्सर्ग अपवाद विपर्यास रीते करि एहवी अशुद्ध सद्दहणा जे वेदांतादिकनी ते सर्व मिथ्यात्व जाणवो, ते जे सेव्यो होवे, सेवाव्यो होवे सेवतां अनुमोद्यो हो मने वचने कायाए करीने ते श्रीप्रभुजीनी साखे गुरुसाखे आत्मसाखे मिच्छामिदुक्कडं, ते मिध्यात्व जीवने महादुःखकारी छे, अनादि संसारनो बीज छ, लोकोत्तर श्रीजिनेंद्रनो कह्यो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ गुणस्थानकविचार. शुद्धमार्ग जीव पामे नही ते मिथ्यात्व महापापस्थान छे ते थकां धर्म करणी पिण साधक न थाय ते मारे मिथ्यात्वनो पश्चात्ताप घणो करयो ते मिथ्यात्व टलतो नथी ते जे पूर्व जीये गुणीनी आशातना तथा गुणनो अनादर कर्यो छे ते महागुणी अरिहंत देव तेहनी भक्तिने काजे उत्तम भव्यजीवे जे धनादिक रह्यो थको पोताना आत्माने तथा अन्य संसारी जीवने सिण ( स्नेह) सरागता, परिग्रहता हिंसादिकनो हेतु थाये तिणे गुणीनी भक्ति जोडतो निरधिकरणी थाये ते माटे जे अरिहंतनी भक्ति कारजे कर्यो जे धनादिक ते देवको कहिये ते जे खाधो होवे अथवा पोते विणसाडयो. होवे अथवा उवेख्यो होवे ते सर्वे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २३९ देवकाना दूषण थयो ते माटे देवका दोपनी आलोयणा करवी ते लखीये छ जे माह्यरे जीवे एकेंद्री पृथवीकायपणे जिनबिंबादिकनी आशातना करी अथवा पृथ्वीकायपणे मुक्यां जे शरीर तेहथी जे गुणी अथवा गुणीनी थापना चैत्यादिक तेहने व्याघात थयो तथा अप्काय. पणे पाणिमे चैत्य वहेवराव्या पाडया जिन बिंब वहाव्यां तथा अनिकायपणे जे चैत्यबिबादिक बाल्या होवे, तथा वायुकायपणे चैत्य पाइयो होवे, तथा वनस्पतिकायपणे जे चैत्य मध्ये रुखडा झाड खापणे उगीने चैत्य पाडया होवे, त्रसकायपणे चैत्यमध्ये मालादिक करी रह्या हवे पंखीने भवे चैत्य तथा जिनबिंध उपर बेसी असमंजस आचरण करयां होवे, तथा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० गुणस्थानक विचार. देवकाद्रव्य मनुष्यपणे जाणि तथा जाण्या विना खाधा होवे अथवा अविधि वावर्या होवे तथा देवका उपर अन्याय हुकम कर्या होवे, अथवा देवकी वस्तु वावरीने पोताना यश बोलाव्या होवे, देवका दोकडा व्याजे राखी थोडो व्याज भरी आप्यो होवे अने घणो लाभ लीघो होवे, तथा बीजो पण देवी इंद्री सुख यशवडाई प्रमुख जे करी eta तथा अरिहंत देव ते सांसारिक कामे मान्या इछ्या होवे ते मने बचने कायाए करी मिळामिदुकडं. हिने माहारे ए कार्य अशुद्धाचरणरूप न करनुं आज पछी माहारो आत्मा अनंतगुणमयी प्रगट करवानी रुचि करवी श्रीअरिहंतनो को मार्ग तहत करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २४१ सद्दहवो, अन्य सर्व मिथ्या, श्रीवीतरागे को निग्रंथे आचर्यो समकिती जीवे सद्दह्यो श्रीगणधर देवे आगम मध्ये गुंथ्यो शुद्ध धर्म माहरो तथा सर्व जीवनो हित छे ते माहारे प्रमाण ते सदहवो. ते जाणवते आदरवो ते नीपजाववो. जे समये समये गुणस्थान चढी कर्मक्षय करी संलेशी अंते पोतानी सिद्ध संपदा प्रथास्येते समयसार मानवो अने जेने ए मारगनी परतीत प्रगटी तेने शरणे रहेवी तथा साव्य शुद्धसत्ता साधन गुणठाणे चढी ते रत्नत्रयी परणमत्री ए मार्ग माहरो सदा अfare होज्यो इति ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. ॥ दहा ॥ परम अध्यात्मने लखे, सद्गुरुकेरे संग; तिणकुं भव सफलो होव, अविहड प्रगटे रंग. १ धर्मध्यानको हेत यह, शिव साधनको खेत; ऐसो अवसर कब मिले, चेत सके तो चेत. २ वक्ता श्रोता सम मिले, प्रगटे निजगुणरूप; अक्षय खजानो ज्ञानको, तीन भूवनको भूप. ३ एह पत्र अनुपहे, समझे जे चित्तलाय; देवचंद्रकवि इंम कहे, निज आतम थिर थाय.४ __ इति अढार पापस्थान जाणवां. हवे छठो गुणठाणो प्रमत्त साधु एहवे नामे कहीये जे प्रत्याख्यानी चोकडीनो उदय टल्यो सर्व विरति प्रगटी, संयम साधन मारे पौद्गलिक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २४३ भावे ग्रहपण पुद्गलने भोगिपणे ग्रहे नहीं. स्वरूपरमणी आत्मधर्म थिरता रुप सर्वपरभाव उपर अग्राहकतारूप चारित्रधर्म प्रगटयो छे ते साधु उत्सर्ग अपवाद मार्गपंचमहाव्रत पाले छे, तिहां द्रव्यभाव पंच महाव्रत सहित पांच समिति तीनगुपतिना दश यति धर्मना पात्रथका निराशंसी एक आत्मा निर्मल करवाना उद्यमथकी विचरे ते पंच महाव्रत, तिहां पहेलो महावत सव्वाओपाणाईवायाओविरमणं" विवहारे छकायना जीवना द्रव्य प्राण १० हणे नही हणावे नहीं हणताने अनुमोदे नही. मन वचन कायाए करीने, निश्चयथी ज्ञानदर्शन चारित्र मुख प्रमुख भावमाण पोताना परना कर्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ गुणस्थानकविचार. आवरणपणे हणे नहि, हणावे नहि, हणता अनुमोघे नहीं, तथा बीजे महावते, सव्वाओ मोसा वायाओ वेरमणं. द्रव्यत क्रोधे माने मायाए लोभे सक्ष्मवादर लौकिक तथा लोकोत्तर जूटुं पोते बोले नही बोलावे नहि बोलता अनुमोद्ये नहि मन बचन कायाए करी, भावथी सर्व द्रव्य पर्यायनो यथार्थ जाणवो, सत्य भासनरूप ज्ञायकता शक्ति साधि ज्ञान सत्यपणे पाले तथा श्री वीतरागना आगम प्रमाणे अर्थ भाव छे तेहनी सझाय करे जेहथी पोताना ज्ञानदर्शन चारित्र निर्मल थाये ते भाषा वोले. त्रीजी महावत सव्वाओ अदिनादाणाओ वेरमणं" जे द्रव्य ते प्रणतुस मात्र पण अण दीधो ले। नहीं, लेबरावे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २४५ नही, जे लेवे तेहने सारो कहे नही, मने वचने कायाए करीने लौकिक चोरी जे संसारी जीवनी वस्तु चोरी लेवी, लोकोत्तर चोरी जे तीर्थकर आगमे जे न लेवानो कह्यो ते लेवो ते चोरी न करे, भावथी आत्मानी ग्राहकता शक्ति ते स्वरूप ग्रहणरूप कार्यना कर्ता छे ते अनादिनी परभाव ग्राहकता करी रह्यु छे ते निवारीने स्वरूप ग्राहकपणे परणमावे, ते अदत्तादान विमरणव्रत थयो ते अदत्तादान चार भेदे छे ते तीर्थकर अदत्तजे तीर्थकरनी आणामें न लेबो कह्यो सर्व परभाव ते लेवे १ बीजो गुरुअदत्त जे गुरु परंपरा विनासत्र अर्य कहेवा २ तीजो स्वामी अदत्त में वस्तुनो जे धणी होने तेनी अणदीधी जे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ૨૯૬ वस्तु लेंत्री ते ३ चोथुं जीव अदत्त जे कोइ जीव एम को नथी जे माहरा प्राणहणो अने पोतानेइद्रीसवाद माटे परजीवना प्राणहणे ते जीव अदत्त ४ तथा प्रशस्त काम करतां कोइ जीवना प्राणघात थाये ते श्री भगवंते हिंसा कही नथी, ते विनय तथा वैयावच्चमां गण्युं छे ए द्रव्यभाव अदत्तादान त्रिविधि त्रिविधपणे होवे. चोथे महाव्रते " सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं" जे द्रव्यथी पांच इंद्रिना वीस विषय सेवे नहीं, सेवतां अनुमोदे नहीं, मनुष्य तिर्यच देवताना विषयनी वांछा न करे, न करावे, अनुमोदे नही, भावथी जे आत्मा द्रव्य आत्म गुणनो भोगी छे ते पण करम करवा माटे परभावने भोगने गुणस्थानक विचार. ५ For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. ૨૦૦ ते भाव मैथुन छे, ते सर्व परभाव भोगीपणे भोगवे नही, ते आत्मानिःकर्मा करवा माटे, परभाव साधनपणे हे पण अभोग्य अग्राह्यपणे अरमणिक माने जे माहरो आत्मा आत्मानंदनो भोगी ते परभाव अनंत जीवे अनंतवार लेइ भोगवीने वम्यो ते मने ग्रहवो भोग घटे नही ए अनंत जीवे अनंतीवार भोगवी जे अँठ जडचल तेहने हुं भोगनुं नहीं इम सर्व परभाव भोगीपणो तजी स्वभाव भोक्तपणे रहेवो ते द्रव्यथी मैथुनना कारणरूपी खंध तथा रूपी खंब मिल्या जीवनो, खेत्रथी मैथुन तीन लोकने विवे इंद्रीना सवादनी ईच्छा, कालथी मैथुन दिवस तथा रात्री, भावथी मैथुन रागथो तथा द्वेषथी, ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ गुणस्थानकविचार. सर्वथी सेववो नहीं तेहनी वाड नवे पालवी १ वाडे जे थानके स्त्री पशु पंडक रहे ते थानके ब्रह्मचारीए रात्रीये रहेवू नहीं. बाजी वाडे स्त्री साथे हासि तथा कामकथा करवी नहीं, श्रीजी वाडे जे पीठ पाटले स्त्री बेठी होये ते पाटले बे घडी लगे ब्रह्मचारी पुरुषे बेसवू नहीं, स्त्रीये तीन पहोर लगे बेसवं नहीं, चोथी वाडे स्त्री, रूप नजर जोडीने जोवू नहीं. पांचमी वाडे जिहां स्त्री भरतार काम भोग भोगवता होवे ते भीतने अंतरे ब्रह्मचारीये राते रहेवू नहीं, तेहना शब्द काने पडवा देवा नहीं. छठी वाडे गृहस्थपणे जे भोग भोगव्या ते संभारवा नहीं. सातमी वाडे सरस आहार जेहथी काम दीपे ते आहार करवो नहीं, आ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २४९ ठमी वाडे अतिमात्राए आहार करवो नहीं, नवमी वाडे शरीर सिणगार लूगडानो तथा घरेणानो करवो नहीं, सनान उगटणा न करवा, एकली स्त्री साथे एकलु वाटे चालवू नहीं, तथा नानुं बालक तथा बालिकाथी एक शय्याए सुq नहीं, सात वरस पछी, पांचमे महाव्रते "सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणे" जे द्रव्यथी परिग्रह सूक्ष्मवादर राखे नहीं रखावे नहीं, राखे तेहने अनुमोदे नही, जे संयम पालवा माटे सुखे सिझाय थाये ते माटे उपकरण १४ राखे, कारणे अधिको जोइए तो गृहस्थनाथका पाडेरं वापरे ए थिरकल्पीनो विवहार छे, जिनकल्पी कोई उपगरण न राखे, अपवादे दस उपगरण राखे, बार कषाय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. उदय टल्या तेहने छठो गुणठाणो कहीये साधु कहीये. पण ५ परमाद सेवे निद्रा १ विकथा २ आहार ३ अल्पविषय ४ मानादिक ५ ए अल्प सेवे अनाभोगे जाणे, सेवे नहीं, ए छट्ठा गुणठाणानी स्थिति जघन्ये एक समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ए गुणठाणे तीन चारित्र सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि ए तीन चारित्र छे. तेहनो स्वरूप जे परभाव परत्यागे स्वरूप एकत्वते चारित्र कहीये ते मध्ये जे तजवा योग्य भाव तजे ते द्वेष विना अने रत्नत्रयीजे आत्मधर्म ते ग्रहे स्वधर्म माटे पण लौकिकादिक इष्टता राग विना एहवो समपरिणाम ते सामायिक कहीए, तथा जे सामायक मध्ये संज्वलनना तीवोदये जे आकरा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. १५१ अतिचारे अथवा बार कषायने उदये असंजमपरिणाम फरसे जे पूर्व पर्याय छेदीने अभिनव निर्मल पर्यायनो अंगीकार करवो ते छैदोपस्थापनीय कहीये, अने छेदोपस्थापनीचारित्र भरत ५ तथा ऐरवत ५ ते मध्ये प्रथम चरम तीर्थकरना साधुजीने होवे तथा तीर्थकर तथा गणधरजीना शिष्य नव पूर्वथी उपरांत श्रुतवंत मध्य युवानवयि प्रथम संघयणे अढार मासनो उग्रतप ते अप्रमादी निद्रा रहित नवजणा वनवासी थका जें तप करे ते परिहार विशुद्ध चारित्र कहिजे, दशमे गुणठाणे शुक्लध्यान तथा सूक्ष्म लोभनो उदय छे ते सूक्ष्म संपराय चारित्र कहिजे, तथा सर्वथा कषायनो उदय नथी ते यथाख्यात चारित्र www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ गुणस्थानकषिचार, कहिजे ते मध्ये ११ मे गुणठाणे उपशांत यथाख्यात छे १२, १३, १४ मे गुणठाणे क्षायिक यथाख्यात छे, हवे सातमो अप्रमत्त गुणठाणो लिखीये छे, छठे गुणठाणे जे भाव साधुजीना कह्या ते सर्व होवे पण पांच प्रमाद न होवे, ते माटे अप्रमाद, ए छठे गुणठाणे वरततो साधुजिन शासनने कामे लब्धि फोर वे पण सातमे गुाणाठणे वरततो साधु लब्धि न फोरवे, एहनी स्थिति जघन्य एक समयउत्कृष्ट अंतर्मुहूर्तनी छे. छठे तथा सातमे गुणठाणे मिलीने साधु देशे उणी पूर्व कोडी रहे. श्री भगवती सूत्रे ए बे गुणठाणानी देशे उणी पूर्व कोडी स्थिति जूदी कही छे. ते व्यवहार नये छ, समय तथा बे समय बच्चे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २५३ गुणठाणो पलटे ते गये व्यो नथी ते माटे अंतर्मु. हर्ननी स्थिति कही. छठे, सातमे बे गुणठाणे सामायिक तथा दोपस्थापनीय तथा परिहार विशुद्धि चारित्र छे, तथा सातमे गुणठाणे साधु लब्धि फोरवे नहीं अने छठा गुणठाणाना साधु जिनशासनने काजे लब्धि फोरवे तेनुं साधुपणुं जाय नहीं ७ आठमो अपूर्वकरण गुणठाणो जे जीव भावनाभावतो आत्मानो स्वरूप अनंतज्ञानमयी, अनंतदर्शनमयी, अनंतचारित्रमयी, अनंतदानमयी, अनालाममयी, अनंतभोगमयी, अनंतउपभोगमयी, अनंतवीर्यमयी, अनंतअव्यावाधसुखमयी, परमआनंदमयी, अरूपी, अवेदी, अकपाई, अलेसी, अशरीरी, अनाहारी, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ गुणस्थानकविचार. सर्वआनंदरूप माहरो धर्म छे ए शरीर, आहार तेहुनहीं, एहवी भावनामांहे परणम्यो जीव शुध्याननो पेहलो पायो ध्यावे, इहां पांच अपूर्वकरणकरे पूर्व किंवारे नकरयां होय ते करे तेहनां नाम पहेलो अपूर्वकरण थितिघात जे जीव कने असंख्याता थित जघन्य थोकडा हता ते करमथिति सघली खपावी अथवा उपशमावी बीजो अपूर्वसंघात जे कर्मना रस चीकणास हती ते खपावी पातलं करवू, बीजो अपूर्वगुण श्रेणि जे जीवने सत्तामाहे करमदल हतां ते सरवे बिखेरी नाखवा, चोथो अपूर्व गुणसंक्रम आत्मना गुणमे रमवो, पांचमो अपूर्व जे नवोस्थितिबंध न करवो एहवा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानक विचार. २५५ परिणामथी कषाय खपावीने आतमा शीतल परिणामे परणम्यो करम निर्जरा करे ते ए गुणठाणं जयन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्तनी स्थिति छे, ए गुणठाणे चारित्र सामायिक तथा छेदोपस्थापनीय ए वे छे ८ नवमो गुणठाणो अनिवृत्तिवादर छे ते शुक्ल ध्याननो पहेलो पायो तेथी आवे, ए गुणठाणे वर्तता जीव एक अध्यवसाये जेटला होवे तेटला सर्वनो एक सरखो परिणाम एक सरखो संवर, एकसरखी निर्जरा, एहने सामायिक तथा छेदोपस्थापनीय ए वे चारित्र होवे, एहने अंते तीन वेद जाये तथा तीन कषाय संजलनो क्रोधमान माया लोभ जाये ए गुणठाणे संख्याता जीव होये. ए गुणगणानी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ गुणस्थानकविचार. स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्त्तनी छे. ९ दशमो गुणठाणो सूक्ष्म संपराय इहां सूक्ष्म संज्वलननो लोभ उदय होवे. इहां वे जातना जीव पापीये, उपशम श्रेणि तथा क्षपक श्रेणि. करमने उपशमाने क्षपकश्रेणि कर्म मोहनीने खपावे, ए गुणठाणे एक सूक्ष्म संपराय चारित्र होवे, ध्यान शुक्ल होवे परिणाम निरमल होत्रे, ते अवेदी के एहनी स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतमुहूर्त्तनी छे. १० इग्यारमो गुणठाणो उपशांतमोह विहां जे जीव उपशम श्रेणि आठमेछतोबोलना परिणामशांत मोह कर्मनी प्रकृतिउपशमावती जाय. तेहनो उठाणधुरथीज उपशमावानो के ते नवमे आवी मोहमकृति उपशमावी दशमे लोभ उप www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir J For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. २५७ शमावीने कपायना उदयरहीत छे ते इग्यारमे आवे ते 'यथाख्यात चारित्र पामे, एहने चोवीस संपरायकी क्रिया उतरी एकइरियावहिकी क्रिया रहे. प्रकृति तथा परदेश ए व बंध रह्या छे हेतु न बांछे, बंध एक मातावेदनीनो छे, ध्यान शुक्ल छे ए गुणठाणे जे जीव मरण पाम्या पछी चोथे गुणठाणे आवे ते देवता लवसत्तमीया थाए, एकावतारी थाए. अथवा कोइक जीव अगीयारमे गुणठाणे उपशांत अद्वाते जई पाछो पडे ते इग्यारमाथी दशमे आवे दशमाथी नवमे आवे नवमेथी आठमे आवे आठमेथी सातमे आवे सातमेथी १ पड़ी पाछो क्षपक श्रेणिये चढी. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ गुणस्थानक विचार. छडे आवे. इहांथी पाछो पंडे नचढे तो पाछो पांच गुणठाणे आवे, पांचमाथी चोथे आये. जो सायक ममकिती होए तो चोथे गुणठाणे टके अने उपशम समकिती होए तो चोथाथी पडी बीजे सास्वादन गुणठाणे थईने पहेले मिथ्यात्व गुणठाण आवे कोई एक जीव मुहूर्त रहे, कोइक जीव देश आणो पुद्गल परावर्त मिथ्यात्वीपणे रहे पले समकित पामे, एअगीयारमो गुणठाणो एक जीव च्यारवार पामे, एक जीव एकभवमांहि बेवार पामे, पहनी स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्तनी छे. एअगीयारमो, हवे बारमो क्षीणमोह गुणठाणा ते जे जीव आठमा गुणare कर्म खपावतो तात्र वीज निरसल www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. उपयोग शुद्ध शुक्र ध्यानने वले नवमे दशमे गुणठाणे मोहनी कर्म खपावी बारमे गुणठाणे आवे, एह शुक्र ध्याननों बीजो पायो एकत्ववितर्क अप्रविचार ध्यावे, एहथी आयु बले धनघाती तीन कर्म ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय अंतराय खपावे, एहनी स्थिति अंर्तमुहूतेनी छे. १२ । तेरमो गुणठाणो सयोगी केवली जे जीव वारमाने अंते ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय, ए खपे केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगटे, लोक अलोकना सर्व भाव अतीतकाल अनागतकाल वर्तमानकाल सर्व प्रत्यक्ष आत्मवले इन्द्रिय विना जाण देखे, इहां जे अंतगड केवली होवे ते केवली समुदूधात करीने मोक्ष जाय अने जे केवलीनो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha २६० गुणस्थानकविचार. आऊखो घणो होवे ते अनेक जीवने उपगार करतां अनेकदेशना देता विचरे देशे उणीपूर्व कोडी लगे विचरे. तथा जे तीर्थंकरदेव केवलीपणे विचरे ते चोत्रीश अतिशय तथा आठ प्रातिहारज विराजमान थका नवा सोनाना कमले पग थापता चाले, योजनप्रमाण मांडले. समोसरणे सोनाने सिंहासने तीन छत्र माथे वीराजता बे पासे चामरनी जोड विंझता हजार धजा इंद्रधजा लहेकता देशना देता जघन्य बहोतेर वरसने आऊखे उत्कृष्टे चोरासी लाख पूरवने आऊखे विचरे, अनेक जीवने धरम उपदेश दे, गणधर थापना करे, साधु साध्वी श्रावक श्राविका ए च्यार संघ थापे, द्वादशांगी सिद्धांत प्ररूपे. अने सामान्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणस्थानकविचार. केवलीने अतिशय नहोवे ते छेडे आवरजीकरण करे पछी जो आऊखो अने बीजा करम सरखां होवे तो केवली समुद्घात न करे, अने जो आऊखेथी (अन्य) करम घणा होवे तो केवली समुद्घात करे तेहने आठे समय लागे, ए तेरमा गुणठाणानी स्थिति जघन्य अंतमुहूतनी छे उत्कृष्टे देश उणीपूर्ण कोडी वर्षनो ले १३ ।। चउदमे गुणठाणे अयोगी केवली ते जे जीव तेरमे गुणठाणे जोगरोध करवा मांडे, मूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाते शुक्ल ध्याननो बीजो पायो ध्यावतो ते चउदमे गुणठाणे चढे तिहां प्रथमथी वादर मनोजोग रोके पछी बादर वचनजोग रोके पछी बादर कायाजोग रोके पछी सूक्ष्म मनोयोग केरो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ गुणस्थानकविचार. पछी मूक्ष्म वचनजोग राके पछी मूक्ष्म कायाजोग रोके शरीररहित थाए जेटलो देहमान होवे जघन्य बे हाथनी उत्कृष्टो पांचसे धनुपनो त्रीजे भागे घटाडे, तेबारे जघन्य वत्रीस आंगुलनी उत्कृष्ट तीनसतेत्रीस धनुष बत्रास आंगुलनी अवगाहना रहे, तेवारे आत्मा अयोगी अक्रिय, अलेसी, अनाहारी, अशरीरी, शुक्ल ध्याननो चोथो पायो थईने अघाती करम च्यार, वेदनाकर्म १ आउखा.. कर्म २ नामकर्म ३ गोत्रकर्म ४ नो क्षय करीने मोक्ष जाय ॥ इतिश्री चउदमु गुणस्थानक संपूर्णम् ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंडित श्रीदेवचन्द्र गणि विरचित || अध्यात्मगीता || श्री संवेगी सिरदार शिरोमणि जिन उत्तम पदपंकज रूप, शिष्य अमीकुंवर कृत बालाबोध सहिता || || ढालभंवरगाथानी ॥ प्रणमिये विश्वहित जिनवाणी । महानंद तरु सींचवाऽमृत पाणी ॥ महा मोहपुर भेदवा वज्रपाणी गहन भवफंद छेदन कृपाणी ॥ १ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अर्थ:-प्रणमिये कहेतां नमस्कार प्रते करिये छे. केहने नमस्कार करिये छ ? के विश्वहित जिनवाणी. एटले विश्व कहेतां जगत्रयना जीव, तेहने हेतना करणवाली जिनवाणी कहेता जिनेश्वर देवनी वाणी, तेहनें नमस्कार प्रते करिये छे, एटले चली जिनवाणी केहवी छे ? के महानंद तरु सींचवा अमृत पाणी. एटले माहा कहता जे मोटो, अने नंद कहता जे आणंदमयी, एहवो मोक्षरूपीयो तरु कहतां वृक्ष, तेहने सींचीने नव पल्लव करवानें जिनवाणी केहबी छ ? के अमृत समाणी कहेतां अमृत समान जाणवी. एटले वली जिनवाणी हवी छ ? के माहा मोहपुर भेदवा वज्रपाणी, एटले महा कहतां जे मोटो, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ३ मोह रूप पुर कहेतां जे नगर, तेहनें भेदवाने जिनवाणी केही छे ? के वज्रपाणि कहेतां इंद्र समान जाणवी. एटले जिम वज्रे करीने इंद्र असुरादिकना नगर ते विदारे तिम, sai जिनेश्वर देवनी वाणी रूप वज्रे करी सित्तेर कोडाकोड मोहनी कर्म रूप स्थिति छे तेहने विदारी, एक कोडाकोडिनी मांहिली पासे आणी मेले, ए परमार्थ. एटले वली जिनवाणी केहवी छै ? के गहन भमफेद छेदन कृपाणी. एटले गहन कहेतां जे आकरी, एहवी भवरूप कंद कहेतां जे अटवी, छेदवा ने जिनवाणी केहवी छे ? के कौवाड़ी समान जाणवी ॥ १ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. || चाल सुरती महिनानी ॥ द्रव्य अनंत प्रकाशक, भासक तत्त्व स्वरूप | आतम तत्त्व विबोधक, शोधक सच्चिद्रूप ॥ नय निक्षेप प्रमाणे, जाणे वस्तु समस्त । त्रिकरण योगे प्रणमुं, जैनागम सु प्रशस्त ॥ २ ॥ अर्थः- वली जिनवाणी केहवी छे ? के द्रव्य अनंत प्रकाशक. एटले द्रव्य अनंत कहेता उदय भावने जोगे करी जीव अजीव रूप अनंता द्रव्य जगत्रयने विषे रह्या छे, तेहने जिनवाणी केही छे ? के प्रकाशना कर्णवाली छे. अने भासक तत्व स्वरुप एटले www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. भासक कहेतां आत्म तत्वना भासननी कर णवाली छे. आतम तत्व विबोधक शोधक सच्चिद्रप. एटले वली जिनवाणी केहवी छे ? के ओतम तव विबोधक कहतां आतम तवना बोधनी करवावाली के एटले जिनवाणी सांभलतां थकां आत्मा बोध बीजनी प्राप्ति मते पामे. अने वली जिनवाणी केहवी छे ? के शोधक सच्चिद्रूप. एटले शोधक सच्चिद्रप कहेतां ज्ञान दर्शन चारित्र आदि अनंत गुण आत्माने विषे शक्ति पणे रह्या छे तेहने जिनवाणी हवी छे ? शुद्धनी करवावाली जाणवी. जिम सोनाने विषे मेल रह्यो छे ते सोनो, अग्निने जोगे करी शुद्ध थाय तिम, आतमा ने विषे कर्म रूप मेल रह्यो छे ते आतमा, जिनवाणीने जोगे करी शुद्ध थाय छे. ए पर www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. मार्थ जाणवो. नयनिक्षेप प्रमाणे जाणे वस्तु समस्त. एटले वली जिनवाणी के हवी छे ? के नय कहतां नैगमादि सात नये करी, अने निक्षेप कहेतां नामादि च्यार निक्षेपे करी अने प्रमाणे कहेता प्रत्यक्ष परोक्ष बे प्रमाणे करी, जिनवाणी केहवी छ ? के समस्त वस्तु पदार्थनां जाणपणाना करणवाली छे. त्रिकरण योगे प्रणमुं, जैनागम सुप्रशस्त एटले अन्यमतिना शास्त्र के ते तो अप्रशस्त छे, अने जिनमतिना आगम छे ते प्रशस्त छे, एवो जैनागम, तेहने त्रिकरण जोगे कहेतां मने करी, वचने करी, कायाये करी प्रणमूं कहेतां नमस्कार प्रति करूं छु ॥ २॥ इति श्री जिनवाणीने नमस्कार जागवा ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. हवे अध्यात्मगीतानो उपदेश करयो ते मुनिप्रति ओलखावे छे. एटले अध्यात्मगीताना उपदेशक, ते मुनि केहवा छे ? ढाल:जिणे आतमा शुद्धताये पिछाण्यो । तिणे लोक अलोकनो भाव जाण्यो॥ आत्मरमणी मुनि जगवदोता । उपदिश्यूं तेणे अध्यात्मगीता ॥३॥ ____ अर्थः---एटले वली ए मुनि केहवा छ ? के जिणे आतमा शुद्धताये पिछाण्यो. एटले जिणे पोताना आतमाने शुद्ध रीते पिछाण्यो कहेतां जाण्यो ओलख्यो छे. तिणे लोकालोकनो भाव जाण्यो, एटले ते मुनिये लोका www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८ अध्यात्मगीताः लोकना भाव प्रत्यक्षपणे जाण्या दीठा. आतमरमणी मुनि जगवदीता. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? के आतमरमणी कहेतां जिणे पोताना आतम स्वरूपनेविषै सदा काल रमण प्रति करचो छे एवा मुनि कहतां जे मुनि, अने जगवदीता कहतां जगत्त्रयने विषे चावा छे. उपदिश्यूँ तेथे अध्यातमगीता. एटले उपदिश्यू कहेतां ते मुनिय अध्यात्मगीता नो उपदेश प्रतै करचो छे. कर्त्ता कहे हूं कर्त्ता नथी ॥ ३ ॥ चाल: द्रव्य सर्वना भावना जाणग पासग एह । ज्ञाता, कर्त्ता, भोक्ता, रमता, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. परणति गेह ॥ ग्राहक, रक्षक, व्यापक, धारक धर्मसमूह | दान, लाभ, बल, भोग उपभोगतणो जे व्यूह ॥ ४ ॥ अर्थ:- एटले वली ए मुनि केहवा छे ? के द्रव्य सर्वना भावना जाणग पासगए ह. एटले द्रव्य सर्व कतां धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आदि पट द्रव्यना भावना जाणग कहेतां भिन्न भिन्न प्रकारे करी जाणे छे, अने पासग कहेतां देखे छे. ज्ञाता, कर्ता, भोक्ता, रमता, परणतिगेह. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? तोके ज्ञाता कहतां ज्ञाने करीनें अनेक ज्ञेय पदार्थने जाणे छे, अने पोताना A www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. आत्म स्वरूपने पिण जाणे छे. अने वली ए मुनि केहवा छे के ? कर्ता कहेतां शुभाशुभ रूप विभाव दशाना अकर्ता छै, अने पोतानी ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे लक्ष्मी तेहना कर्ता छे. अने बली ए मुनि केहवा छे के ? भोक्ता कहेतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलना भोग थकी रहित छै, अने पोताना ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे पर्याय तेहना भोगर्ने विष सदा काल निरंतरपणे वर्ते छे. अने वली ए मुनि केहवा छ ? रमता परणति गेह. एटले रमता परिणति गेह कहतां पोतानी स्वपरगति रूप गेह कहेतां जे घर, तेहनें विप सदा काल निरंतर पणे जेणे रमण प्रति करयो छे, पिण पर परणतिमा पेसी रमण प्रत करता नथी. ग्राहक, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. रक्षक, व्यापक, धारक धर्मसमूह. एटले धारक धर्मसमूह कहेतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप जे धर्म पोतानी आत्म सत्ता विपे रह्यो छे, तेहना ग्राहक कहेतां जेणे ग्रहण प्रति करयो छे. अने बली ए मुनि केहवा छ ? तो के रक्षक कहेता ते धर्मनी रक्षा प्रतै करे छे. अने वली ए सुनी केहवा छे ? के व्यापक कहेता तेह धर्मने विष सदा काल व्यापी रह्या छै. दान, लाभ, बल, भोग, उपभोग तणो जे व्यूह. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? के जेहनें दानादिक पांच लब्धिनो व्यूह कहतां समुदाय प्रतै प्रगव्यो छे. त्यारे (शिप्य कहे छे के) दानादिक पंच लब्धि ते श्यु कहिये ? त्यारे (गुरु कहे.) भो शिष्य !!! www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. दानअंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो दान प्रगट्यो । १ । अने लाभ अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो लाभ प्रगट्यो । २। अने भोग अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो भोग प्रगट्यो । ३ । अने उपभोग अंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो उपभोग प्रगटयो । ४ । अने वार्यअंतराय कर्म क्षय गयो त्यारे अनंतो वीर्य प्रगटयो । ५ । त्यारे (शिष्य कहे छे के) दान ते कोने दिये छे ? अने लाभते श्यानो थयो ? अने भोग ते श्यू भोगवे छ ? अने उगभोग ते श्युं कहिये ? अने वीर्य किहां फोरवे छे (त्यारे गुरु कहे) भो शिष्य ! दान पोताना ज्ञानादि अनंत गुणनें विषे दीये छे अने लाभ पोताना स्वरूपनो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. थयो. अने भोग कहेतां पोताना ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे पर्याय तेहनो समे समे अनंतो भोग भोगवे छे. अने उपभोग ते पोताना गुणनो कहिये. वीर्य पोताना ज्ञानादि अनंत गुणने विपे फोरवे छे. इति सामान्य प्रकारे दानादि पंच लब्धिनो विचार जाणवो ॥ ४॥ एणी रीते श्रीअध्यात्मगीताना प्रकाशकरूप कर्त्तानी स्तुति करी. हवे कर्ता, शिष्य ऊपर कृपा करी साते नये जीवनो स्वरूप प्रति ओलखावे छे: ढाल: संग्रहे एक आया वखाण्यो । नैगमे अंशथी जे प्रमाण्यो.॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ अध्यात्मगीता दुविध व्यवहार नय वस्तु विहचे । अशुद्ध वलि शुद्ध भासन प्रपंचे ॥५॥ अर्थः-- संग्रहे एक आया वखाण्यो कहेतां संग्रह नयना मतवालो सत्तानो ग्रहण करे छे. एटले सर्व जीव सत्ताये एक रूप सरीखा छे. माटे संग्रह नयने मते सर्व जीव सत्ताये एक रूप जाणवा अने नैगमे अंशथी जे प्रमाण्यो. एटले नैगमै अंसथी जे प्रमाण्यो कहेतां, नैगम नयना मतवाली एक अंश ग्र हीने सर्व वस्तुनो प्रमाण प्रते करे छे. माटे सर्व जीवना आठ चक प्रदेश, सदा काल सिद्ध समान निरावरणपणे वर्ते छे. एटले नैगम नयने मते अंशथकी सर्व जीव एक रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सरीखा जाणवा. दुविध व्यवहार नय वस्तु विहचे. एटले व्यवहार नयना मतवालो वैहचण करीने बोल्यो के एम नहिं; जीव ना बे प्रकार जाणवा. अशुद्ध वलि शुद्ध भासन प्रपंचे. एटले एक अशुद्ध प्रकारे अने बीजा शुद्ध प्रकारै. एटले ए अशुद्ध शुद्ध रूप भासन करवा जाणपणारूप ओलखाण करवा सारू, वैहचण करी दिखाडे छे. एटले जीवना बे भेद-एक सकल कर्म क्षय करी लोकने अंते विराजमान ते सिद्ध, अने बाकी बीजा संसारी. ते संसारी ना वे भेद--एक अयोगी ने बीजा सयोगी. एटले. चउदमा गुण स्थानना जीव ते अयोगी, वाकी वीजा सयोगी. ते सयोगीना के भेद-एक केवली. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ अध्यात्मगीता. बीजा छदमस्थ. एटले तेरमा गुणस्थानना जीव ते केवली. बाकी बीजा छद्मस्थ. एटले छद्मस्थना वे भेद-एक क्षीण मोही, अने वीजा उपसंत मोही. एटले बारमा गुणस्थानना जीव ते क्षीण मोही, अने बाकी बीजा उपसंत मोही ते उपसंतमोहीना वे भेद-एक अकषायी अने बीजा सकषायी. एटले अग्यारमा गुणस्थानना जीव ते अकपायी, अने वाकी बीजा सकषायी. ते सकपायीना बे भेद-एक मूक्ष्म कषायी अने वीजा बादर कपायी. एटले दसमा गुणस्थानना जीव ते सूक्ष्म कषायी अने बाकी बीजा सर्व बादर कपायी. ते बादर कपायी ना वे भेद-एक श्रेणि प्रतिपन्न अने बीजा श्रेणी रहित. एटले आठमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता, नवमा गुणस्थानना जीव ते श्रेणि प्रतिपन्न अने बाकी बीजा श्रेणिरहित. ते श्रेणिरहितना बे भेद-एक अप्रमादी अने बाकी बीजा सर्व प्रमादी. एटले सातमा गुण स्थानना जीव ते अप्रमादी, अने बीजा सर्व प्रमादी. ते प्रमादीना पे भेद-एक सर्व विरति अने बीजा देश विरति. ते देश विरतिना वे भेदएक विरति परिणामी अने बीजा अविरति परिणामी.ते अविरतिना के भेद-एक अविरति सम्यक्त्वी अने बीजा मिथ्यात्वी. ते मिथ्यात्वीना वे भेद--एक भव्य वीजा अभव्य. ते भव्यना के भेद----एक गंठी भेदी अने भीजा जीव गंठी अभेदी. एटले एणी रीते व्यवहार नयना मत वालो जेहवो देखे तेहवा भेद www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ विहचे ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. www.kobatirth.org चाल: अशुद्धपणे पणसयतेसठी भेद प्रमाण । उदय विभेदे द्रव्यना भेद अनंत कहाण ॥ शुद्धपणे चेतनता प्रगटे जीव विभिन्न । क्षयोपशमिक असंख क्षायिक एक अनन्न ॥ ६ ॥ अर्थ:- वली व्यवहार नयने मते अशुद्ध प्रकारे करी जीवनो स्वरूप ओलखावे छे. अशुद्धपणे पणसयतेसठी भेद प्रमाण, एटले पणसयतेसठी कहतां जीवद्रव्यना पांचसैने त्रेसठ भेदनो प्रमाण जाणवो. उदय For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. विभेदै द्रव्यना भेद अनंत कहाण. एटले उदय विभेदे कहतां उदय भावनें जोगे करीने जोतां तो द्रव्यना भेद अनंत कहाण केहतां जीव द्रव्यना अनंता भेद जाणवा. शुद्धपणे चेतनता प्रगटे जीव विभिन्न एटले शुद्धपणे केहतां शुद्ध प्रकारे करीने, अने चेतनता कहेतां जीवनी चेतना, अने प्रगटे कहेतां निपजे, अने विभिन्न कहेतां अभेदात्मपणे करी जाणवी. क्षयोपसमिक असंख क्षायिक एक अनन्न. एटले क्षयोपसमिक कहेता क्षयोपसम भावना असंख कहेतां असंख्याता भेद कहिये. अने क्षायिक एक अनन्न. एटले क्षायिक कहेतां क्षायिक भावनो एक भेद जाणवो ॥६॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. नामथी जीव चेतन प्रबुद्ध । क्षेत्रथी असंख देशी विशुद्ध ॥ द्रव्यथी स्वगुण पर्याय पिंड । नित्य एकत्व सहजी अखंड ॥७॥ अर्थः-हवे च्यार निक्षेपे करी जीवनो स्वरूप ओलखावे छे. नामथी जीव चेतन प्रबुद्ध एटले नाम थकी जीवन चेतन कहिये. एटले चेतना लक्षणो ते जीव. चेतनाते इयुं के ज्ञान, दर्शन चारित्र, तप, वीर्य, अने उपयोग ए जीवनी चेतना. अने प्रबुद्ध कहेतां एहवी रीते जाणवी. क्षेत्रथी असंख देशी विशुद्ध. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अध्यात्मगीता. × एटले क्षेत्रथकी कहेतां जीवने स्वक्षेत्र रूप असंखप्रदेशी कहिये. अने विशुद्ध कहेतां शुद्ध निर्मलपणे करी जाणवो. द्रव्यथी स्वगुण पर्याय पिंड. एटले द्रव्य थकी कहेतां जीव द्रउपने स्वगुणने स्वपर्याय तेहनोज पिंड कहिये. नित्य एकत्व सहजी अखंड. एटले नित्य कतां भाव की जीव सदा काल शास्वतो नित्य वर्ते छे. अने एकत्व पणे वर्ते छे. अने सहजी अखंड कहेतां सहज थकी जीव अखंड छे, कोईनो छेद्यो छेदाय नहीं, भेद्यो भेदाय नहीं, निर्लेप अखंड सदा काल शास्वतो छे || 6 || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चालः--- रुजु सूये विकल्प परिणामी जीव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨ अध्यात्मगीता. स्वभाव। वर्तमान परिणतिमय व्यक्ते ग्राहक भाव॥ शब्द नये निज सत्ता जोतो इहतो धर्म । शुद्ध अरूपी चेतन अणग्रहतो नव कर्म ॥८॥ ____ अर्थः- रिजु सुये विकल्प परिणामी जीव स्वभाव. एटले रिजु सुये कहतां ऋजुमूत्र नयने मते अने विकल्प परिणामी जीव स्वभाव. एटले जीव नो स्वभाव कहेतां जीव विकल्प रूप परिणामी भावने ग्रहे छे. वर्तमान परणतिमय व्यक्त ग्राहक भाव. एटले वर्तमान केहतां वर्तमान समय जे जीवनो जेहवो उपयोग वर्ते ते समय ते जीवने, ए नयना मत वालो तेहवो कहि बोलावे. शब्द नये www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. २३ निज सत्ता जोतो इहतो धर्म. एटले शब्द नयने मते निज सत्ता केहतां पोतानी आत्म सत्ताने जोतो, अने इहतो धर्म केहता ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंतो धर्म पोतानी आहम सत्ताने त्रिषे रयो छे तेहनी प्रगट करवानी इहा ( इच्छा ) करतो. शुद्ध अरूपी चेतन अणग्रहतो नव कर्म. एटले शुद्ध कहतां निर्मल कर्मरूप मलथकी रहित, अने अरूपी कहतां पुद्गलादि विभाव दशाना रूप थकी रहित, अने चेतन कहतां ज्ञानादि चेतना रूप लक्षण करीने सहित, अणग्रहतो नव कर्म. एटले अग्रहतो नव कर्म कहतां जे समय जे जीवनो एवो उपयोग व ते जीवनें नवा कर्मनो ग्र हण न जाणवो ॥ ८ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ढाल:इणि परे शुद्ध सिद्धात्म रूपी । मुक्त पर शक्ति व्यक्त अरूपी ॥ समकिती देशबति सर्व विरती । धरे साध्य रूपे सदा तत्त्व प्रीति॥९॥ अर्थ:--एटले बली जीव केहवो छ ? के इग परे शुद्ध सिद्धात्म रूपी. एटले एणी परै शुद्ध कहतां निर्मल कर्म रूप लेप थकी रहित छे. अने सिद्धात्मरूपी कहतां निश्चय नयने मते जीव सत्ताये सिद्ध समान अरूपी छे. मुक्तपर शक्त व्यक्त अरूपी एटले मुक्त पर कहतां जे समय जे जीवनो एहवी रीते शुद्ध भासन रूप उपयोग वर्ते ते समय ते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जीव मुक्तपर कहतां कर्मथकी मुकाय छे. अने एहवी रीते कर्मथकी मुकाय त्यारे शक्त, व्यक्त, अरूपी एटले शक्त कहतां अनंता गुण पोतानी आत्मसत्ताने विषे शक्ति पणे रह्या छे, ते व्यक्त कहतां व्यक्तिरूप अरूपी पणे प्रगट थता जाय छे. एटले ए किहा किहा जीव ? एहवा रीते जाणपणो कोने थयो ? एहवी रीते भासन कोनें थयो ? एहवी रीते रमण कोण कर छे ? के सम्यकत्वी देश विरति सर्व विरति. एटले सम्यक्त्वी कहतां चोथा गुण स्थान वाला जीव, अने देश विरति कहतां पांचमा गुण स्थान वाला जीव, अने सर्व विरति कहतां छठा सातमां गुण स्थान वाला जीव, तेहने एहवी रीते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ अध्यात्मगीता. जाणपणा रूप भासन रमण थयो छे. अने धरै साध्य रूपै सदा तत्व प्रीति. एटले धेरै साध्य रूपै कहेता पोतानो आत्मतत्त्व निरावरण करवा जोवे जो त्यां जेहनी प्रीति प्रतें लागी छे, अने एहवी रीते प्रीति प्रतें लागी त्यारे ॥ ९॥ चाल: समभिरूढ नये निरावर्णी ज्ञाना. दिक गुण मुख्य । क्षायिक अनंत चतुष्टय भोगी मुग्ध अलक्ष ॥ एवं भूते निर्मल सकल स्वधर्म प्रकाश। पूर्ण पर्याय प्रगटे पूर्णशक्ति वि. लास ॥१०॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. २७ अर्थः- समभिरूढ नये निरावर्णी ज्ञानादिक गुण मुख्य. एटले समभिरूढ नयनें मते शुक्ल ध्यान रूप अग्निये करी घाति कर्मने क्षये, निरावण कहेतां कर्मरूप आवरणने अभावे, ज्ञानादिक अनंत गुण रूप लक्ष्मी मते प्रगटे. अने क्षायिक अनंत चतुष्टय भोगी मुग्ध अलक्ष. एटले क्षायिक अनंत चतुष्टय कहेतां अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत चारित्र, अनंतवीर्य, ए चार अनंत चतुष्टयरूप क्षायिक भावे प्रगटे. अने भोगी कहेतां तेहना भोगने विषे सदा काल निरंतर पणे जेहनो उपयोग प्रतें वर्ते छे. अने मुग्ध कहेतां जे भोला लोक, अने अलक्ष कहतां तेहना लख्या में ए स्वरूप न आवे, एवंभूते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮ अध्यात्मगीता. निर्मल सकल स्वधर्म प्रकाश एटले एवंभूत नयने ते निर्मल कतां कर्मरूप मल थकी रहित, अने सकल कतां सम्पूर्ण, अने स्व कहेतां पोतानो, अने धर्म कहतां ज्ञानादि अनंतगुणरूप जे धर्म, अने प्रकाश कहेतां तेहनो सत्तागतनेविषे प्रकाशमतें प्रगटे. अने एहवी रीते ज्ञानादि अनंत गुण रूप धर्मनो प्रकाशमतें प्रगयो त्यारे, पूर्ण पर्याय प्रगटे पूर्ण शक्ति विलास एटले पूर्ण कहेतां संपूर्ण अने शक्ति कहेतां पर्याय रूप शक्तिना विलासपतें भोगवे ॥ १० ॥ हाल: एम नय भंग संगे सनूरो। साधना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. APPS सिद्धता रूप पूरो ॥ साधक भाव त्यां लगे अधूरो। साध्य सिद्धे नही हेतु सूरो ॥११॥ ___ अर्थ:-हने साध्य साधन रूप जाण पणो करवा सारू जीवनो स्वरूप ओलखावे छे, मारे एम नय भंग संगे सनूरो. एटले एम नय कहेता नैगमादि सात नयरूप नैगम १ संग्रह २ ब्यवहार ३ रुजुसूत्र ४ शब्द ५ समभिरूढ ६ अने एवंभूत ७ एणी रीते साले नयै करी, अने तेहना अहावीस उपनय कहतां निगमना ऋणभेद एटले प्रथम वर्तमाने अतीत आरोपणी नैगम १, अने वर्तमाने अनागत आरोपणि नैगम २ अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० अध्यात्मगीता. वर्त्तमान नैगम ३ अने संग्रह नयना बे भेद - एक सामान्य संग्रह ४ अने वीजो विशेष संग्रह ५ अने व्यवहार नय ना वे भेद - एक शुद्ध व्यवहार ६ अने वीजो अशुद्ध व्यवहार ७ अने रुजुसूत्र नयना बे भेद - एक सूक्ष्म रुजु ८ अने वीजो बादररुजु ९ शब्दनयनो एक भेद १० समभिरूढ नयनो एक भेद १९ अने एवंभूत नयनो एक भेद १२ हवे दश द्रव्यास्तिक नय कहतां नित्य द्रव्यास्तिक १३ एक द्रव्यास्तिक १४ सद्रव्यास्तिक, १५ वक्तव्यद्रव्यास्तिक १६ अशुद्ध हव्यास्तिक १७ अन्वय द्रव्यास्तिक १८ परम द्रव्यास्तिक १९ शुद्ध द्रव्यास्तिक २० सत्ता द्रव्यास्तिक २१ परमभावद्रव्यास्तिक २२ हवे पर्यायास्तिक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. नयना ६ भेद कहे छे-एटले प्रथम द्रव्यपर्याय २३ द्रव्य व्यंजन पर्याय २४ गुण पर्याय २५ गुणव्यंजनपर्याय २६ स्वभाव पर्याय २७ अने विभाव पर्याय २८ एणी रीते अठावीसउपनयनो स्वरूप जाणवो. अने भंग कहतां एक एक नयना सो सो भांगा कहतां ७ नयना सातसो ( ७०० ) भांगा जाणवा. अने संगे कहतां तेहने संगे करीने सनूरो कहतां जीवने दीपतो कहिये. अने साधना सिद्धता रूप पूरो. एटले जीव ने पूरो क्यारे कहिये ? के साधना कहतां शुद्ध व्यवहार नयने मते चोथा गुणस्थानथी मांडी यावत् तेरमा चउदमा गुणस्थान पर्यंत साधक भावे करी निश्चय नयने मते सिद्धिरूप कार्य प्रतें नीपजे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. त्यारे जीवने पूरो कहिये. अने साधक भाव त्यां लगे अधरो. एटले जीवने अधूरो केम कहिये ? के साधक भाव कहतां शब्द समभिरूढ नयने मते देशविरति सर्वविरति रूप साधक भाव छे त्यांलगै जीव ने अधूरो कहिये. अने साध्य सिद्ध नहीं हेतु सूरो. एटले साध्य कहतां पोतानो आत्मा निरावर्ण करवा रूप जोवे जो अनेसिद्ध कहतां शुद्ध निश्चय नय सिद्धि रूप काय ते नीपजै. त्यारै नहीं हेतु सूरो एटले नहीं हेतु कहतां जीवनें साधन रूप कोई हेतु नो प्रयोजन न रह्यो ॥ ११ ॥ काल अनादि अतीत अनंते जे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ३३ पर रक्त | संगांगी परिणामे वर्ते मोहाशक्त ॥ पुद्गल भोगे इयो धारे पुद्गल खंध | पर कर्ता परिणामे बांधे कर्म नो बंध ॥ १२ ॥ अर्थः- हिवै जीवनो स्वरूप निगोदथकी मांडीनें देखावे छे. एटले काल अनादि अतीत अनंतै जे पररक्त एटले अतीत कहतां अनादि काल नूंं जीवनें पर पुद्गलादि विभाव दशानें विषे रक्त परिणाम वर्ते छे. तेस्येणै करीनें ? तो कै संगांगी परिणाम वर्ते मोहाशक्त. एटले संगांगी कहतां जीवै करचो संग, त्यारै मोह दीधो अंग एटले संगांगी परिणाम थया तेणै करीने स्यो विगाड़ थयो 2 www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अध्यात्मगीता. ३४ झ्यो धारे पुद्गलं खंध, यो कहतां पुदगलना रोहयो, एटले जिम २ तोके पुद्गल भोगे एटले पुद्गल भोगे भोग नें विषै जीव पुदगलना भोग मिले तिम तिम जीa अधिक २ झ उपजे अने एहवी रोते पुद्गलना भोगनें विषै रीझ उपजी त्यारे, धारे पुद्गल खंध. एटले धारे पुद्गल खंध कहतां पुद्गलना खंध ने मेलवानी वच्छारूप प्रणाम पतें वर्ते. अने एहवी रीते पुद्गलना खंध नें मेलवानी वंच्छा रूप प्रणाम वर्त्या त्यारे, परकर्ता परिणामे बांधे कर्म नो बंध. एटले पर कर्त्ता कहतां जीव पर नो कर्त्ता थयो अने एहवी रीते पर नो कर्त्ता थयो त्यारे बांधे कर्म बंध. एटले बांधे कर्म नो बंध For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. कहतां जीव कर्म रूप पुद्गलना बंध प्रतें बांधवा मांडया ॥ १२॥ ___ ढाल:बंधक वीर्य करणे उदेरे । विपाकी प्रकृति भोगवे दल बिखेरे ॥ कर्म उदयागता स्वगुण रोके । गुण वि. ना जीव भवो भव ढोके ॥ १३ ॥ ___ अर्थ:-बंधक वीर्य करणे उदे रे. एटले बंधक कहना जीना ना नया कर्मनां बंध प्रर्ते केम बांधे ? तोके बीच करणे उदरे. एटले वीय कहतां पराक्रम, अने करण कहतां इंद्री, अने उदेर कहता तेहनी प्रेरणाये करीने, त न www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. विपाकी प्रकृति भोगवे दल विखरे. एटले विपाकी कहतां शुभाशुभ प्रकृति रूप विपाक ना दलीया जीवनी सत्ताये रह्या छे, ते उदे आवे ते भोगवी ने विखेर कहतां खेरवे. अने तेहने विषे परिणाम रूप मननी चिकासे करी नवा कर्मना बंध प्रते बांधे, अने एहवी रीते नवा कर्मना बंध प्रते बांध्या त्यारे. कर्म उदय उदयता स्वगुण रोके. एटले कर्म उदय कहतां एहवी रीते ते कर्म ने उदय करी ने स्व कहतां पोताना गुण तेहनें रोके कहतां ढाके, अने एहवी रीते पोताना गुण ने ढोके त्यारे गुण विना जीव भवोभव ढोके. एटले गुण विना कहतां गुण विनानो जीव निर्गुणी थयो त्यारे भवोभव ने विष ढोके कहतां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. आथड़े ( भ्रमण करे ) त्यारे शिष्य कहे केम आथड़े ? ॥ १३ ॥ चाल:आत्म गुण आवणे न ग्रहे आत्म धर्म । ग्राहक शक्ति प्रयोगे जोडे सर्म ॥ पर लाभे पर भोग ने योगे थाये पर करि । एह अनादि प्रवर्ते वाधे पर विस्तार ॥ १४ ॥ अर्थः-एटले आत्म गुण आवर्णे न ग्रहे आत्म धर्म. एटले आत्म गुण कहतां एहवी रीते पोताना आत्मगुणने कर्म रूप आवर्ण प्रते लाग्यो, त्यारे न ग्रहे आत्म धर्म. NE www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. एटले न ग्रहे आत्म धर्म कहतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंतो धर्म आत्माने विषे रह्यो छे, तेहनो ग्रहण प्रते न करे अने एहवी रीते आत्मगुणनो ग्रहण प्रतें न करे त्यारे, ग्राहक शक्ति प्रयोगे जोड़े पुद्गल सर्म, एटले ग्राहक शक्ति कहतां आत्मानी ग्राहकता रूप जे शक्ति, अने प्रयोगे कहतां तेणे करीने जोड़े पुद्गल सर्म. एटले जोड़े पुद्गल सर्म कहतां कर्मरूप पुद्गलना खंध प्रते जोड़वा मांड्या, अने एहवी रीते कर्मरूप पुद्गगलना खंध प्रते जोड़वा मांड्या त्यारे, परलाभे परभोगने जोग थाये पर कर्त्तार. एटले परलाभे कहतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलना लाभ मिल्या तेहने विष लाभ पणो मान्यो १ अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. दान कहतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलनो दान देईने तेहने विष दान पणो मान्यो २ अने भोग कहतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलना भोग मिल्या, तेहने विष भोगपणो मान्यो ३ अने उपभोय कहतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गगलना उपभोग मिल्या, तेहने विष उपभोग पणो मान्यो ४ अने ए दानादिक चार लब्धिने विषे वीर्यनी शक्ति हती ते फोरववा मांडी. एटले ए पंच लब्धि स्परूप अनुजाइ पणे जीव भूल्यो. त्यारे पर अनुजाइ पणे अवली ( उलटी ) फोरवया मांडी. अने एहवी रीते अवली फोरखवा मांडी, त्यारे जोगे थाये पर कार. एटले जोगे कहतां तेहने जोगे करीने जीव परनो कर्ता थयो अने परनो कर्त्ता www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० अध्यात्मगीता. थयो त्यारे, एह अनादि प्रवर्ते बाधे पर विस्तार एटले एह अनादि कहतां एहवी रीते अनादि कालनी जीवने अवला प्रवर्ती, थई त्यारे वाधै पर विस्तार, एटले वाधै पर विस्तार कहतां जीवने कर्म रूप पर पुद्गलनो विस्तार प्रते वधवा मांड्यो, त्यारे शिष्य कहे कर्मरूप पर पुगलनो विस्तार प्रते केम वधवा मांड्यो ? ॥ १४ ॥ ढाल: www.kobatirth.org MA एम उपयोग वीर्यादि लब्धि | पर भाव रंगी करे कर्म वृद्धि ॥ पर दयादिक यदा सुह विकल्पे । तदा तदा पुण्य कर्म तो बंध कल्पे ॥ १५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ४१ अर्थ:-एटले एम उपयोग वीर्यादि लब्धि कहतां एहवी रीते वीर्यादि पंचलब्धि ने विष जीवनो अवलो उपयोग क्यों, अने एम अवलो उपयोग वो त्यारे पर भाव रंगी करे कर्म वृद्धि. एटले पर भाव रंगी कहतां जीव पर स्वभाव रूप विभाव दशा ने विषे रंगाणो अने एहवी रीते पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे रंगाणो त्यारे करे कर्म वृद्धि कहतां ते जीवे नवा नवा कर्मनी वृद्धि प्रतें करवा मांडी. अने पर दयादिक यदा सुह विकल्पै. एटले यदा कहतां जेवा रे जीवनो पर दयादि शुभ विकल्प थयो. तदा पुण्य कर्म तणो बंध कल्पै. एटले तदा कहतां तिवारे जीव पुण्य रूप कर्मनो बंध प्रतें www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir કર अध्यात्मगीता. बांधे, अने एहवी रीते शुभाशुभ रूप कर्मना बंध प्रतें बांध्या त्यारे ? ॥ १५ ॥ चाल:तेहिज हिंसादिक द्रव्याव करतो चंचल चित्त । कटुक विपाकी चेतन मेलै कर्म विचित्त ॥ आत्म गुण में हणतो हिंसक भावे थाय । आत्म धर्मनो रक्षक भाव अहिंसक कहाय ॥ १६ ॥ __ अर्थ:-तेहिज हिंसादिक द्रव्याश्रव करतो चंचल चित्त. एटले तेहिज हिंसादि कहतां ते जीव पहिले गुणस्थान अणा उप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. योगे मिथ्यात्व भावे, एहवी रीते हिंसादि आश्रव रूप प्रणामे चंचल स्वभावै शुभाशुभ रूप आश्रवने दली करी पोताना गुणने ढांके कहता हणे, अने एहवी रीते पोताना गुणने हण्या सारे, कटुक विपाकी चेतन मेले कर्म, विचित्र. एटले कटुक विपाकी कहतां ते जीव कड़वा विपाक प्रतें भोगवः अने मेले कर्म विचित्र एटले मेले कर्म विचित्र कहतां जीव विचित्र विचित्र प्रकारना कर्म प्रते भेलवा (ग्रहण करवा ) मांड्या, अने एहवी रीते कर्म प्रतें मेलववा मांड्यां त्यारे, आत्म गुणने हणतो हिंसक भावे थाय. एटले आत्म गुणने हणतो कहतां एहवी रीते जे पोताना आत्माना गुगने हणे तेहने भाव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. हिंसा लागे. अने आत्म धर्मनो रक्षक भाव अहिंसक कहाय. एटले आत्म धर्मनो रक्षक कहतां शुभाशुभ विभाव दशा रूप पर पुद्गलनी वेच्छा थकी रहित, अने एक पोतानी आत्म सत्ताये ज्ञानादि अनंत गुण रूप धर्म रह्यो छ, तेहनी रक्षा प्रते करे छे, ते जीवने भाव अहिंसक कहतां भाव दया कहिये. अने एहवी रीते भाव दया रूप प्रणाम वा त्यारे?॥१६।। PER 2 DALTH आत्म गुण रक्षणा तेह धर्म। स्वगुण विध्वंसणा ते अधर्म ॥ भाव अध्यात्म अनुगत प्रवृत्ति । तेहथी होय संसार छित्ति ॥ १७॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अर्थ:-आत्म गुण रक्षणा तेह धर्म. एटले धर्म कोने कहिये ? तोके एहवी रीते जे पोताना आत्म गुणने निरावर्ण कहतां प्रगट करवानी वांच्छा रूप प्रणाम प्रते वर्ते छे, अने जे गुण प्रगट्या छे ते गुणनी रक्षा करे छे ते जीवने धर्मी कहिये. अने स्वगुण विध्वंसणा ते अधर्म. एटले अधर्म ते कोनें कहिये तो के स्व कहतां पोताना गुण तेहनें विध्वंसणे कहतां कर्म रूप आवणे करि हणे ते जीवने अधर्मी कहिये. अने भाव आध्यात्म गत प्रवृत्ति, एटले भाव अध्यात्य कहतां सीने में चाण पणो थयो छे, एहवी रीते जेहन भासन थयो , एहवी रीते जे रमण करे छे, ते जीव ने भाव अध्यात्मी क अज www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. हिये. अने एहवीरीते भाव अध्यात्म रूप गुण प्रणभ्यो त्यार, अनुगत प्रवृत्ति एटले अनुगत कहतां एहवा रीते जे पोताना आत्म स्वरूप में प्रवृत्ति कहता रमण ते करे छे. अने एहवी रीते रमण प्रते करे त्यारे तेहथी होय संसार छित्ति. एटले ते जीव संसारनो छेह यहता पार प्रतें पामे त्यारे शिष्य कहे एहनी रीते संसारनो पार पते के पा? :१७ ॥ एह प्रबोधनो कारण तारण सद्गुरु संग। श्रुत उपयोगी चरणानंदी कर गुरु रंग ॥ आत्म तत्त्वालंबी - - - M ( www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. रमता आत्म राम । शुद्ध स्वरूप नें भोगे जोगे जसु विश्राम ॥ १८ ॥ www.kobatirth.org ૩૭ अर्थ :- एटले एह प्रबोध कहतां एहवी रीते प्रतिबोध कहां पामीचे ? अने कारण कहतां एहवी रीते प्रतिबोधनो कारण किहां मिले ? अने तारण कहां हवी रीते प्रतिबोध देईने संसार थकी कोण तारे ? तोके सद्गुरु संग. एटले सद्गुरु संग कहतां जे भला गुरु तेहनो संग करतां तेहनी सेवा कहतां, तेहनी भक्ति करतां संसार समुद्र नो पार तें पामीयें. वली सद् गुरु केरा के वीके श्रुत उपयोगी चरणानंदी कर गुरु रंग. एटले श्रुत उपयोगी कहतां श्रुत ज्ञान नें विषे सदाकाल निरंतर पणे उप For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. योग जेहनो वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तोके चरणानंदी एटले चरणानंदी कहतां चारित्रने विषे सदा काल निरंतर पणे जेहनो आनंद पणो वर्ते छ; अने कर गुरु रंग. एटले कर गुरु रंग कहतां जो एहवा गुरुनिहारे रंग लगावीयै तो संसार समुद्रनो पार प्रते पामीये. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तो के आत्मतत्वालंबी रमता आत्म राम. एटले आत्म तत्वालंबी कहतां सदा काल निरंतर पणे जे पोताना आत्म स्वरूपना आलंबनने विष वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तोके रमता आत्म राम. एटले रमता आत्मराम कहतां सदाकाल निरंतर पणे जे पोताना आत्म स्वरूपने विषे रमण प्रते करे छे. वली www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सद्गुरु केहवा छे ? तो के शुद्ध स्वरूपने विषे भोगे जोगे जसु विश्राम. एटले शुद्ध कहतां जे निर्मल कर्म रूप मल थको रहित एहवो पोतानो स्वरूप, अने भोगे कहतां तेहना भोगने विपे अने जोगे कहतां मन वचन कायाना जोगनो विश्राम पणो वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? ॥ १८ ॥ हाल:सद्गुरु जोगथी बहुल जीव। कोइ क्लो सहजथि थइ सजीव ॥ आत्म शक्ति करी गंठिभेदो । भेद ज्ञानो थयो आत्म वेदो ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० अध्यात्मगीता. अर्थः-एटले बहुल कहतां घगा जीव एहवी रीते सद्गुरुना जोग मिल्या थकी सम्यकत्वनी प्राप्ति पते पामे, अने कोई वली सहजथि थइ सजीव. एटले कोइक जीव सहज थकी सजीव थइने चार प्रत्येक बुद्धनी परे पिण समकित पामे. पिण आत्मशक्ति करी गंठी भेदी. एटले जिहां गंठी भेद करवो तिहां तो पोताना आत्मानी शक्तिये अपूर्व करण रूप वीर्ये करीने जो गंठीने भेदीये तो समकितनी प्राप्ति प्रते पामीये, अने एहवी रीते समकितनी प्राप्ति प्रते पाम्यो त्यारे. भेद ज्ञानी थयो आत्मकही. एटले भेदज्ञानी कहतां जीव अजोलनी ओलखाणे, स्व परनी बैंचन रूप ते जीवने भेदज्ञान प्रगटे, अने एहवी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. राते भेदज्ञान प्रगट्यो त्यारे ? तोके थयो आत्मवेदी कहतां पोताना आत्मानो स्वरूप प्रगट करवो तेहना वेदने विषे सदा काल निरंतर पणे उपयोग जेहनो वर्ते. अने एहवी रीते उपयोग प्रतें केम बयों ? ॥ १९ ॥ __ चालः-- द्रव्ये गुण पर्याय अनंतनी थई परतीत । जाण्यो आत्म कता भोक्ता गइ परभीत ॥ श्रद्धा योगे उपनो भासन सुनये सत्व । साध्यालंबी चेतना वलगी आत्म तत्व ॥२०॥ अर्थ:---एटले द्रव्ये गुण पर्याय अनंत नी थई परतीत. एटले द्रव्य कहतां धर्मास्ति A -. NA Apna mope T4 www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ अध्यात्मगीता. काय ? अधर्मास्तिकाय २ आकास्तिकाय ३ पुद्गलास्तिकाय ४ काल ५ अने जीव ६ ए छ; द्रव्य अने गुण पर्याय कहतां तेना अनंता अनंतागुण ने अनंता पर्याय तेहनो भासन कहां जाणपणा रूप प्रतीत म प्रगटे, अने एहवी रीते प्रतीत ते प्र- जाण्यो आत्म कर्त्ता भोक्ता गइ गढ़ी आम कर्ता कहतां परभीत. एटले जा व्यवहार नयनें मते जीवने विभाव दशानो कर्त्ता कहिये अने निश्चय नयनें मते जिवने पोतानी ज्ञानादि अनंत गुण रूप जे लक्ष्मी तेहनो कर्ता कहिये अने भोक्ता कहता व्यवहार नयनें मते जीवनें शुभाशुभ रूप पर पुइनो भोक्ता कहिये. ৗ शुभ रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अने निश्चय नये जीवनें पोताना ज्ञानादि अनंत रूप जे पर्याय तेहनो भोक्ता कहिये. अने एवी रात - निश्चय व्यवहार नये यो जाण्यो पोनाना आत्माने कर्ता भोक्ता १ ॥ त्यारे, गइ पर भीत. एटले गइ परभीत कहतां ते जीवनें भव ना भय प्रते टले, एटले भवना भय प्रते केम टल्या ? तोके श्रद्धा योगे उपनो भासन सुनये सत्य. एटले श्रद्धा कहतां श्रद्धाने योगे अने सु नय कहतां भले नये करीने सत्य भासन रूप प्रतीत प्रते मगरे. अने एहवी रीते सत्य भासन रूप प्रतीत प्रते प्रगटी त्यारे. साध्यालंबी चेतना बलगी आत्मतत्व. एटले साध्य कहतां पोतातो आत्मा निरावर्ण करवा रूप जेवे जो, अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __ अध्यात्मगीता. चेतना वलगी कहतां त्यां जेहनी चेतना प्रतें लागी. अने एहवी रीते चेतना लागी त्यारे ? ॥ २०॥ ढाल:इंद्र चंद्रादि पद रोग जाण्यो। शुद्ध निज सिद्धता धन पिछाण्यो॥ आत्म धन अन्य आपै न चोरे। कोण जग दीन बली कोण जोरे ॥ २१॥ अर्थ:-इंद्र चंद्रादि पद रोग जाण्यो. एटले इंद्र चंद्रादि कहतां इंद्र चंद्र आदि चक्रवर्ती वासुदेवना, बलदेवना इंद्रीजनित पुद्गलीक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ५५ जे सुख, तेहनें रोग समान करी जाणै एटले एहवी राते इंद्री जनित पुद्गलीक सुखने रोग समान करी क्रेम जाण्यां ? तो के शुद्ध निज सिद्धता धन पिछाण्यो. एटले शुद्ध कहतां जे निर्मल कर्म रूप मलथकी रहित, एहवो पोताना आत्मानो सिद्धि रूप जे धन, तेहने पिछाण्यो कहतां जाण्यो. एटले एहवी रीते पोताना आत्मानो सिद्धि रूप धन पतें ओलख्यो त्यारे आत्म धन न आपे न चोरे. एटले आत्म धन कहतां पोताना आत्मानो ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप जे धन, न आपे न चोरे एटले न आपे asai ए कोईने आयो अपाय नहीं, अने न चोरे कहतां ए कोईना लीधो लेवाय नहीं. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. कौण जग दीन वली कोण जोरे. एटले जगत मे कोई दीन पिण नथी जे तेहने आपे, अने जगतमे कोई जोरावर पिण नथी जो खेंची लेवे. एटले निश्चय नयने मते सर्वे जीव सत्ताये एक रूप सरीखा ज्ञानादि अनंत गुण रूप लक्ष्मीना धणी जाणवा एटले लाली मेरे लालकी, ज्यां देखें त्यां लाल. ( इसमें कौन है कंगाल ?) तोकै दिलकी गांठ खोलत नहीं ताते फिरै कंगाल ॥ २१ ॥ चाल:- . आत्म सर्व समान निधान महा सुख कंद । सिद्धतणा साधर्मी सत्तायै गुण वृंद ॥ जेह स्वजाति www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ५७ तेहथी कोण करै वधं बंध । प्रगढ्यो भाव अहिंसक जाणै शुद्ध प्रबंध || २२ || अर्थ:- एटले आत्म सर्व समान कहतां सर्वे जीव सत्ता एकरूप सरीखा सामान्य पणे करी जाणवा, अने निधान कहतां निश्चय नयने मते सर्वे जीव सत्ताये ज्ञान, दर्शन, चारित्र, रूप निधाने करीने सहित छे अने महा सुख कंद. एटले महा सुख कद कहतां निश्चय नयने मते सर्वे जीव सत्तायै सुखना कंद कहतां मूल सामान्य करी जाणवा. सिद्ध तणा साधर्मी सत्ता गुण वृंद. एटले सिद्ध तणा साधर्मी कहतां निश्चय नयने मते सर्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ अध्यात्मगीता. जीवनो धर्म सत्ताये सिद्ध समान एक रूप सरीखी करी जाणवो अने गुण वृंद कहतां निश्चय नयने मते सर्वजीव सत्ताये ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप छंद कहतां जे समूह ति करीने सहित छे. अने एहवी रीते जेह स्वजाति तेहथी कोण करे वध बंध. एटले स्वजाति कहतां सर्व जीव सत्ताये एकरूप सरीखा छे, एक ठिकाणेथी आव्या, अने एक ठिकाणे जासे तेहथो कौण करे व बंध. एटले तेहथी व बंध कहत तिष सूं म्हारै छेदन भेदन रूप विरोध भाव करवो न घंटे. एटले एहवी रीते विरोध भाव केम न करे ? तो के प्रगट्यो भाव अहिंसक जाणे शुद्ध प्रबंध. एटले प्रगढ्यो भाव अहिं www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सक कहतां ते जीवने भाव दया रूप अहिंसक पाणे प्रगटे. अने एहवा रीते भाव दया रूप अहिंसकपणो प्रगटे अने एवी रीते भाव दया रूप अहिंसकपणो प्रगट्यो त्यारे. जाणे शुद्ध प्रबंध.एटले जाणे शुद्ध प्रबन्ध कहतां ते जीवने शुद्ध प्रतिबोधनो लाभ प्रते जाणवो अने एहवी रीते शुद्ध प्रतिबोधनो लाभथयोत्यारे॥२२॥ ढाल:ज्ञाननी तीक्ष्णता चरण तेह । ज्ञान एकत्वता ध्यान मेह ॥ आत्मता दात्मता पूर्ण भावे । तदा निर्मलानंद संपूर्ण पावे ॥ २३ ॥ अर्थ:-ज्ञाननी तीक्ष्णता चरण तेह. - - - ATE www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. एटले चरण कहतां चारित्रवंत जीव ते कोने कहिये ? तो के जीव अजीव रूप नव तत्व, षट् द्रव्य, नय, निक्षेप, प्रमाण, उत्सर्ग, अपवाद, निश्चय, व्यवहार, द्रव्य, भावनो स्वरूप जाणि, जीव सत्ताने ध्यावे; अजीव सत्तानों त्याग करे. ज्ञान, दर्शण, चारित्र रूप शुद्ध निश्चय नय ज्ञाननी तीक्ष्णता रूप उपयोग जेहनो वर्ते, तेह जीवने चारित्रवंत कहिये ज्ञान ध्यान गेह. एटले ध्यान नो गेह कहतां घर ते कोनं कहिये ? तो के एहवी रीते जे पोताना आत्म स्वरूपना ज्ञान रूप ध्याननें विषे एकत्वपणे, सदाकाल निरंतर पणे, जेहनो उपयोग वर्ते ते जीवने ध्याननो गेह कहतां घर प्रतें कहिये. एटले एहवी रीते ज्ञान ध्यान www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. रूप जीवनो उपयोग वो त्यारे; आत्मता. दात्मता कहतां आत्मानो तद्रूप स्वरूप जेहवो सत्ताये रह्यो छे तेहवो, अने ता पूर्ण भावे. एटले ता कहतां तिमज अने पूर्णभावे कहतां शुद्ध निश्चय नय सम्पूर्ण भावे करीने सहित. नदा निर्मलानंद सम्पूर्ण पावे. एटले तदा कहतां तिवारे अने निर्मल कहतां कर्म रूप मलथकी रहित अने नंद कहतां आनंद मयी, अने सम्पूर्ण पावे कहतां सिद्धि रूप कार्य प्रते सम्पूर्ण भावे करीने नीपजे अने एहवी रीते सिद्धि रूप कार्य सम्पूर्ण भावे करीने नीपजे त्यारे ? ॥ २३ ॥ चाल:चेतन अस्ति स्वभाव में जेह न www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. भासे भाव । तेहथि भिन्न अरोचक रोचक आत्म स्वभाव ॥ सम्यक्त भावे भावे आत्म शक्ति अनंत । कर्म नाशनो चिंतन नाणे ते मतिवंत ॥ २४ ॥ POORE. अर्थ:-चेतन अस्ति स्वभाव में जेह न भास भाव. एटले चेतननो अस्ति स्वभाव कहतां शुद्ध निश्चय नय पोतानी आत्म सत्ता ने विष झानादि अनंतगुण रूप स्फाटिक रत्न समान अस्ति स्वभाव रह्यो छे; तेहना कोई काले नास्ति पणो नथी; जहन भासे भाव एटले जेह न भासे भाव कहतां ए अस्ति www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. स्वभाव में शुभाशुभ रूप विभाव दशानो नास्ति पणो जाणको एटले ए शुभाशुभ रूप विभाव दशा जीवने अनादिकालनी लागी छे, ते व्यवहार नयनें मते, पिण नास्तिपणे जाणवी. तेहथि भिन्न अरोचक रोचक आत्म स्वभाव. एटले तेहथि भिन्न कहतां ए शुभाशुभ विभाव दशा रूप कर्मथकी भिन्न कहतां जुदो छ; अने अरोचक कहतां ए विभाव दशाथ की एहवी दृष्टि बाला जीवनो अरुचि भाव वर्ने छे त्यारे शिष्य कहे रुचि किहां वर्ने छे ? तोके रोचक आत्म स्वभाव, एटले रोचक आत्म स्वभाव कहतां एहबी रीते जामपण रूप रमण जेहनें थयो छे, तेह जीवनें एक शुद्ध चिदानंद परमज्योति पूर्णब्रह्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ अध्यात्मगीता. रूप निर्मलानंद एहयो पोताना आत्मानो स्वरूप प्रगट करना; रोचक कहतां रुचि जेहनी वर्ते छे. अने एहवी ते रुचि प्रत्तें वर्ती त्यारे, सम्यक्त भावे भावे आत्मशक्ति अनंत. एटले सम्यक्त भार कहतां एहवी रीते जाणपणा रूप सम्यक्त भावे करीने जेणे पोताना आत्मानी अनंती शक्ति प्रत जाणी छ; अने एहवी रीते अनंतशक्ति गर्ने जाणी त्यारे, कर्म नाशनों चिंतन नाणे ते मतिवंत. एटले मतिवंत कहतां एहवी निर्मल बुद्धिना धणी शुद्ध भासन रूप जाणपणे करीने, जेणे पोताना आत्माने कर्म रूप उपाधि थकी रहित, शद्ध चिदानंद निर्मल परमज्योति सत्ताये सिद्ध समान, एहवी रीते जेणे निश्चय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. नयने मते जाणपणा रूप अन्तरंग प्रतीत करी छे, ते जीव कम नाशन चिंतन नाणे; कहतां शुद्ध निश्चय नय करीन. जोतांतो स्फटिक रत्न समान आत्मानो स्वभाव निर्लेप छे. एटले जिम स्फटिक श्याम डंकन जोगे करी ने श्याम दीखे अने राता डकनें जोगे करी ने रातो दीखे, पिण ए डंकनें अभावे जोतांतो स्फटिक निर्मलो छ, तिम आत्मानो स्वभाव शुद्ध निर्मल स्फटिक समान छे. पिण शुभाशुभ पुण्य पाप रूप डंकने जोगे करी कर्मरूप आमा (प्रतिविम्ब ) पड़ी छे; पिण ए कर्म रूप डंकने अभावे करी में जोतांतो आत्मा शुद्ध निर्मल परम ज्योति सत्ताये सिद्ध समान छे. ( गाथा ) जिम निर्मल तारे रत्न www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ अध्यात्मगीता. स्फटिक तणी, तिम जे जीव स्वभाव || ते जिन वीरेरे, धर्म प्रकाशियो, प्रवल कषाय अभाव ॥ इतिश्री जशरिया कृत वा सो गाथाना स्तवन मध्ये परमार्थ जाणवो एहवी रीते शुद्ध भासन रूप जाण पणाना धणी तेह जीव कर्म नाशनो चिन्तन कहतां कायर पणो चित्तन विषे न लावे जे म्हारे कर्म की वारे टले. अने एहवी रीते कायर पणो केम न लावे ? ॥ २४ ॥ ढाल:----- स्वगुण चिन्तन रसे बुद्धि घाले । आत्म सत्ता भणीजे निहाले || शुद्ध स्याद्वाद पद जे संभाले 1 www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ६७ पर घरे तेह मति केम वाले ॥२५॥ अर्थः-स्वगुण चिन्तन रसे बुद्धि घाले एटले स्वगुण कहतां पोतानी आत्म सत्ताने विष ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंता गुण रह्या छे. अने चिंतन रसे बुद्धि घाले. एटले चितन कहतां तेहना चिंतन ने विषे रसे करी ने युक्त बुद्धि जेहनी वर्ते छे अने एहवी रीते रसे करी ने युक्त बुद्धि वर्ती त्यार; आत्म सत्ता भणी ते निहाले. ए:ले आत्म सत्ता कहतां ज्ञानादि अनन्त गुण रूप पोतानी आत्म सत्ता ने अन्तर दृष्टिये करीने निहाले कहतां निरखी ने जोवे छे. अने एहवी रीते पोतानी आत्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ अध्यात्मगीता. सत्ता में जोवे त्यारे. शुद्ध स्याद्वाद पद जे संभाले. एटले शुद्ध कहतां निर्मल कम रूप लेप थकी रहित अने स्यावाद कहतां स्याद्वाद रूप नित्य १ अनित्य २ एक ३ अनेक ४ सत्य ५ असत्य ६ वक्तव्य ७ अरक्तव्य ८ एणीरीते आठ पक्षे करीने सहित, अने पद कहतां एहवो पोताना पद प्रते, अने संभाले कहतां जाणे देखे छे. त्यारे शिष्य कहे, नित्य अनित्यादि आठ पक्षे करीने पोतानो पद प्रतें केम संभाल कहतां जाण देखे छ ? त्यारे गुरु कहे भो ? शिष्य स्यावाद मंजरी! गे कह्यो छे:- नित्या नित्याधनक धर्म सवलेक वस्तु, भ्युपगमत्वं स्याद् बादत्वं ॥ त्यारे शिष्य कहे ए नित्य अनित्यादि आठ पक्षे करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जीवनो स्वरुप कैम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे, व्यवहार नयनें मते उदय भावनें जोगे करी जे गति म जीव वर्ते छे, ते गति में नित्य छे. अने समय समय आउखो घटे छे यातें अनित्य कहिये पिण ते अनित्यपणा में पोते नित्य पणे वतै छ. एटले ए नित्य में अनित्य, अनित्य में नित्य, ए व्यवहार नयनें मतै भरमार्थ जाणवो । १। हिवै निश्चय नयनें मतै नित्य अनित्य पक्ष करी जीवनो स्वरूप देखाडै छै. एबले निश्चय नयनें मतै जीवना चार गुण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अने वीर्य, ए चार गुण, अने पर्याय में अव्यावाध अमूर्ति अने अणअवगाह, एटले ए चार गुण अने त्रण पर्याय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० अध्यात्मगीता. जीवना नित्य छे. अने एक अगुरु लघु पर्याय जीव ने सर्वे गुणमां हानि वृद्धि रूप उपजवो विणसवो करे छे, माटै अनित्य कहिये. अने ए अगुरु लघु पाय सर्व गुण में हानि वृद्धि रूप उपजवो विणसवो करे छे तेहमां ए ज्ञानादि चार गुण ते नित्य पण वर्ते छे. एटले ए नित्य में अनित्य, अने अनित्य में नित्य पक्षनो विचार निश्चय नयने मते जाणवो ॥ २॥ हिवे व्यवहार नयनें मते एक अनेक पक्षे करी जीवनो स्वरूप देखाड़े छे. एटले व्यवहार नयने मते उदय भावनें जोगे करी जे गति में जीव वर्ते छे, ते गति में एक छ पिण कोई नो बेटो, कोई नो बाप, कोई नो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ७१ काको, कोई नो मामो, कोई नो भाई, कोईनो भत्रीजो, एम अनेक प्रकार जीव में बेटापणो, काकापणो, मामापणो, भाईपणो भत्रीजपणो, रह्यो छे. मारे एणी रीते अनेक पण कहिये. पिण ए बेटा, बाप, काका, मामा, भाई, भरोज पणा पोता पणोते एक वत छे. एटल ए एक में अनेक. अने अनेक में एक, पक्षनो विचार व्यवहार नयने मते जाणवो । ३ । हवे निश्चय नय करी जीवम एक अनेक पक्ष प्रते देखाड़े छे. एटले निश्चय नय करी सर्व जीवनो धर्म सत्ताये एक रूप सरीखो छ माटे सर्व जीव एक कहिये; अने गुण पर्याय ने प्रदेश अनेक छे. एटले गुण अतन्ता, पर्याय अनंता. अने प्रदेश असंख्याता, माटे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ अध्यात्मगीता. अनके पिण कहिये; अनेए गुण पर्यायने प्रदेश अनेक छे, पिण तेहमां जीवपणो एक सरीखो छे. माटे एहवी रीते अनेकमें एक पण कहिये. एटले हवी ते निश्चय नय करी एक में अनेक, अने अनेकर्मे एक पक्षनो विचार जाणवो । ४ । हिवे व्यवहार नयने मते जीवमें सत्य असत्य पक्ष मते देखा है. एटले व्यवहार नयने मते जीव पोते पोधनाच्य, क्षेत्र: काल, भावपणे करीने सत्य छे. अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, अने परभाव पण करीने असत्य छे. एटले व्यवहार नयने मते द्रव्यथकी जीव द्रव्य जे गतिथे पोते विराजमान थको वर्त्ते छे १ अने क्षेत्र थकी कहतां जेटलो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. क्षेत्र पोते अवगाहि कहतां मर्यादारूप पोतानो करीने रोक्यो छे २ अने कालथकी कहता समय रूप पोताना आऊखा प्रमाणे काल जाय छे. ३ अने भाव कहतां सर्व जीव पोते पोताना शुभाशुभ रूप भावमें रह्यो वर्ते छे. एटले एहवी रीते व्यवहार नयने मते सव जीव पोते पोताना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावे करीने सत्य छे. अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाव पणे करीने असत्य छे, पिण ए असत्य पणामे पोतानो सत्य पणो वनैं छे. एटले सत्य में असत्य, अने असत्य में सत्य पक्षनो विचार व्यवहार नयने मते करी जाणवो । ५। हिवे निश्चय नय करी जीवमे सत्य www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ अध्यात्मगीता. असत्य पक्ष प्रते दिखावे छे. एटले निश्चय नयने मते जीव पोते पोताना स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र स्वकाल, स्वभाव पणे करीने सत्य छे. अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाव पणे करी ने असत्य छे. एटले निश्चय नयने मते जीव में स्वद्रव्य कहतां ज्ञानादि गुण जाणवा १ अने स्वक्षेत्र कहतां जीव पोताना असंख्यात प्रदेश रूप स्वक्षेत्र अवगाहि रह्यो छे २ अने स्वकाल कहतां पोतानो अगुरुलघु पर्याय सदाकाल हानि वृद्धि रूप उपजावो विणसवो करे छे ३ अने स्वभाव कहतां पोताना गुण पर्याय ४ तेणे करीने जीव सत्य छे. अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाव पणे करी जीव असत्य छे. पिण ए असत्यपणाम पो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. तानो सत्य पणो वर्ने छे. एटले ए सत्य में असत्य, अने असत्य में सत्य पक्षनो विचार निश्चय नयनें मते करी जाणवो।६। हिवे निश्चय व्यवहार नये वक्तव्य, अवक्तव्य रूप पक्षे करी जीवनो स्वरूप प्रते देखावे छे. एटले उदय भाव ने जोगे करी व्यवहार नयने मते जीव पहिले गुणस्थान सुं मांडी यावत् तेरमा चवदमा गुणस्थान पर्यंत वर्ते छे, ते जीवना जेटला गुण केवली भगवानना परुपवार्म आवे ते वक्तव्य अने केवली भगवानना परुपवामें न आवे ते अवक्तव्य. । ७। ____ अने निश्चय नयनें मते सिद्ध परमात्मा गुणस्थान वर्जित लोकनें अंते विराजमान www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ अध्यात्मगीता. वर्त्ते छे, तेहना जेटला गुण केवली भगवानना परुपवा आवे ते वक्तव्य, अने केवली भगवानना परववामें न आवे ते अवक्तव्य. एहवी रीते निश्चय व्यवहार नय वक्तव्य, अवक्तव्य रूप पक्षे करी जीवनो स्वरूप जाणवो ८ इति आठ पक्षे करी जीवन स्वरूप ओलखवो. पद अने पद संभाले. एटले एवं पोतानो संभाले कहतां जाणे, ओलखे है, संभाले अने एहवी रीते पोतानो पद कहतां जाणे, ओलखे त्यारे, पर घरे तेह मति . केम वाले एटले पर घर कहनां शुभाशुभ विभाव दशा रूप जे जड़ स्वभाव तिहाथकी मति निवारी ने पोतानो ज्ञानादि अनन्त गुण रूप जे घर तिहां जेहनी मात मते वर्त www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ७७ छे. अने एहवी रीते मति मते वर्त्ती त्यारे ? || २५ ॥ चाल: - पुण्य पाप दे पुद्गल दल भासे परभाव | परभावे पर संगति पामें दुष्ट विभाव || ते माटे निजभोगी योगोश्वर सुप्रसन्न । देव नरक तृणमणि सम भासे जेहनें मन्न ॥ २६ ॥ www.kobatirth.org अर्थ:- पुण्य पाप वे पुद्गल दल भासे परवा एटले पुण्य पाप कहतां पहिले गुणस्थाने मिथ्यात्व भावनो पुण्य के तेतो जीवनं शुभ प्रकृति रूप कर्मनो उदय छे. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ अध्यात्मगीता. अने पाप छे तेतो जीवने अशुभ प्रकृति रूप कर्मनो उदय छे. अने ए शुभाशुभ प्रकृति रूप कर्मना पुद्गल जीवने अनादि काल ना लागा छे, ते पर स्वभाव रूप मोक्ष नगरे जातां जीवनें विघ्न नाकरणहार जाणवा. अने एहवी रीते विधना करणहार थया त्यारे; परभावे पर संगति पामे दुष्ट विभाव. एटले परभावे पर संगति कहता ए परस्वभाव रूप विभाग दशा में संगे करीने, पामें दुष्ट विभाग. एटले पामें दुष्ट विभाग कहता एहवी रीते जीव संसार में फिरतां अनेक प्रकारे कर्म विटंबना रूप दुःख विपाक प्रतें भोगवे. ते माटे निज भोगी योगीश्वर सुप्रसन्न. एटले निजभोगी कहतां ए पर स्वभाव रूप विभाव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ७९ दशाना भोग थकी जीव रहित छे. अने निश्चय नयनें मते निज कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण रूप जे पर्य्याय प्रर्ते प्रगटे तेहनो जीव भोगी छे। अने योगीश्वर एटले योगीश्वर सुप्रसन्न कहतां एहवी निर्मल बुद्धिना धणी योगीश्वर मुनिराज, सुप्रसन्न कहतां भली तरह चित्त जेहनो सदा काल प्रसन्न पणे वर्त्ते छे. अने वली योगीश्वर सुप्रसन्न एटले योगीश्वर सुप्रसन्न कहर्ता शुद्ध निश्चय नये करी ने जोतांतो मन, वचन, काया रूप पुद्गलनो योगथकी जीव रहित छे. अने पोताना ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप जे योग तेहने जोगे करी ने जीव योगीश्वर छे; अने सुप्रसन्न कहतां तेह जोग ने विषे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सदाकाल जीव सुकहतां भली तरह प्रसन्न पणे वर्ने छे. अने एहवी रीते सुकहतां भली तरह प्रसन्न पणे वयो त्यारे; देव नरक तृण मणि सम भासे जेहन मन. एटल देव नरक तृण मणि सम कहतां भवनपति, व्यं तर, ज्योतिषी, वैमानीक, नवग्रेवैयक, अनुत्तरवेमानना जे सुख, अने नरक कहतां सात नरक ना जे दुःख, अने तृण पणि कहता तृण ( घास , अने मणिरत्न सम कहतां ए सर्व ऊपर ते जीवने सम भाव पणे चित्त वर्ते छे. अने एहवी रीते समभाव पण चित्त वो त्यारे ? ॥ २६ ॥ चाल:तेह समतारसो तत्व साधै । www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ८१ निश्चलानन्द अनुभव आराधे || तीव्र घन घाती निज कर्म तोड़े । सन्धि पड़ी लेहिनें ते विछोड़े ॥२७॥ अर्थः- तेह समतारसी तत्व साधे एटले एहवी रीते शुद्ध भासन रूप जाणपण करीनें तेह कहतां ते मुनिराज, अने समतारसी कहतां समताना रसिया प्रतं होवे. अने एहवी रीते समता ना रसिया प्रतें होवे, त्यारे तत्व साधे. एटले तत्व कहतां पोताना आत्मतत्त्वने अने साधे कहतां संपूर्ण भावे करी नीपजावे. अने rati संपूर्ण भावे करी केम नीपजावे ? तोके, विलानंद अनुभव आराधे एटले निश्चल कहेतां अचल आव्योथको जाय नहीं, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अने नंद कहतां आनंदमयी; अनुभव आराधे, एटले अनुभव कहतां एहवी रीते अनुभव रूपी अमृतनो आराधे कहतां ते जीव सदा काल आस्वादन प्रतें करे. अने एहवी रीते आस्वादन प्रते करे, त्यारे, तीन घनघाती निज कर्म तोड़, एटले तीव्र कहतां आकराअने घनघाती कहतां पोताना आत्मगुणर्ने घातना करणहार एहवा ज्ञानावर्णादि चार कर्म अने निज कर्म तोड़े. एटले निज कहतां पोताना कर्म अने तोड़े कहतां तेहने ध्यान रूप अग्निये बालीने क्षय करे. अने एहवी रीते ध्यान रूप अग्निये बालीने क्षय करे, त्यारे, संधि पड़ि लेहिने ते विछोड़े. एटले सन्धि कहतां सीम मर्यादानो अंत तेहने छेड़ो कहिये. एटले बारमा गुण www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. स्थाननो छेडो फरसीघाती कर्मने विछोड़े कहतां विखरे. त्यारे शिष्य कहे घाती कर्मने केम बिखेरे ? ॥ २७ ॥ चाल:सम्यग् रत्नत्रयी रस राच्यो चेतन राय। ज्ञानक्रिया चक्रे चकचूरो सर्व अपाय ॥ कारक चक्र स्वभावथी साधे पूरण साध्य । कर्ता कारण कार्य एक थया निराबाध्य ॥२८॥ ___ अर्थ:-सम्यग् रत्नत्रयी रस राच्यो चेतनराय. एटले सम्यग् कहतां भली प्रकारे, अने रत्नत्रयी कहतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जे रत्नत्रयी, रस राच्यो चेतनराय, एटले चेतनराय कहतां चेतन महाराज रूप जे राजा, अने रस कहतां तेहना रसने विषे, अने राच्यो कहतां एकत्वपणे वो. अने एहवी रीते एकत्वपणे वो त्यारे, ज्ञान क्रिया चक्रे चकचूरी सर्व अपाय. एटले ज्ञान क्रिया चक्रे कहतां ज्ञान क्रिया रूप चक्रे करीने घाती कर्म रूप अपाय कहतांजे वेरी जीवने अनादि कालना शत्रुभूत थईने लागा हता, तेहने चकचूरी कहतां चूरी बालीन अप करे, अने एहवी रीते चूरी बालीन क्षय केम करे? तोके, कारक चक्र स्वभावथी साधे पूरण साध्य, एटले कारक चक्र कहतां कर्ता १ कारण २ कार्य ३ संप्रदान ४ अपादान ५ अने अधि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. करण ६ ए पटकारक रूप जे चक्र तेणे करीने, साधे पूर्ण साध्य. एटले साधे पूर्ण साध्य कहतां ते जीव पोतानुं कार्य प्रत साधे कहतां सम्पूर्ण नीपजावे. त्यारे शिष्य कहे-ए षट् कारक रूप चक्रे करीने पोतानो कार्य प्रतें केम साधे ? त्यारे गुरु कहे-कर्ता जीव ? अने कारण रूप समकित गुण २ अने कार्य करवो छे केवल ज्ञान रूप ३ अने अपादान कहतां कर्म रूप अशुद्धताना आवर्ण टलता जाय ४ अने संप्रदान कहतां गुणश्रेणी रूप निर्मलता संपजती ( प्रगटती ) जाय ५ अने आधार कहतां ए केवल ज्ञान रूप कार्यमें, छोये (छकारक) आधारभूत जाणवा ६ एणी रीते षट्कारक रूप चक्रे करी ते जीव पोतानो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. कार्य प्रते नीपजावे. अने एहवी रीते षत् कारक रूप चक्रे करी पोतानो कार्य प्रते नीपजावे, त्यारे का कारण काय एक थया निराबाध्य. एटले कर्ता चेतन, अने कारण ज्ञानादि गुण, अने कार्य कहतां अनेक ज्ञेय पदार्थ जाणवा, देखवा रूप. अने एक थया कहतां ए त्रण एकतापणे निराबाध्य कहता अबाधा रहित नीपजे. एटले एहवी रीते अबाधा रहित केम नीपजे ? ॥ २८ ॥ ढाल: स्वगुण आयुधथको कर्म चूरे । असंख्यात गुणी निर्जरा तेह पूरे ॥ टले आवरणथी गुण विकाशे । www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. साधना शक्ति तिम २ प्रकाशे ॥ २९ ॥ अर्थ:-स्वगुण आयुधथकी कर्म चूरे. एटले कर्मने केम चूरे ? तोके, स्वगुण आयुधथकी, एटल स्वगुण कहतां पोताना ज्ञानादि गुण रुप, आयुध कहतां जे हथियार, तणे करीने कर्म च अने एहवी रीते कर्म ने चूरे. त्यारे असंख्यात गुणी निर्जरा तेह पूरे. एटले असंख्यात गुणी कहतां ते जीव समय समय असंख्यात गुणा निर्जरा प्रते करे, अने एहवी रीते निर्जरा करे, त्यारे, तेह पूरे. एटले तेह कहतां ते जीव, अने पूरे कहता पोताने स्वगुणे करी आत्माने पूरे. अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. एहवी रीते आत्माने केम पूरे ? तो के, टले आवरणे गुणविकासे एटले टले आवरणे कहतां जिम जिम कर्म रूप पुद्गलना आवरण टलता जाय, अने गुण विकाशे कहतां तिम तिम आत्मगुण विकस्वर कहतां प्रगट पणे थता जाय. त्यारे शिष्य कहे ? आत्मगुण केम विकस्वर थाय ? त्यारे गुरु कहे-सूर्य आडा वादलां आवे, त्यार, सूर्यनी क्रांति प्रते दबाय, अने वादला जिम जिम पवनने जोरे विखरता जाय, तिम तिम सूर्यनी कांति प्रकाश प्रते पामती जाय, तिम इहां ए दृष्टांन्ते आत्म गुणने कर्म रूप वादला आंडा आव्या, त्यारे आत्मानी गुण रूप क्रांति प्रते दवाणी, पिण अंतरने विषे आत्माने गुणरूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ८९ क्रांति सूर्यनी पेरे देदीप्यमान छै माटे शुक्ल ध्यान रूप वायराने जोगे करी, जिम जिम कर्म रूप वादला विखरता जाय, तिम तिम आत्माने गुण रूप क्रांति प्रकाश प्रते पामती जाय. अने एहवी रीते गुण रूप क्रांति प्रकाश प्रते केम पामे ? तोके, साधना शक्ति तिम तिम प्रकाशे एटले साधना कहतां पोतानो आत्म गुण रूप कार्य प्रते साधवू, तेहने विषे निश्चलता रूप प्रगाम अने शक्ति कहतां पराक्रम रूप वीर्यनो उलास तेगे करीने, अने तिम तिम प्रकाशे कहतां, श्रेणी रूप प्रकाश प्रते बघतो जाय. अने एहवी रीते श्रेणी रूप प्रकाश प्रते वध्यो त्यारे ॥ २९ ॥ चाल: www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० अभ्यात्मगीता. प्रगव्यो आत्म धर्म थया सबी साधन रीत । बाधक भाव ग्रहणता भागी जोगी नीत ॥ उदय उदीरणा ते पिण पूर्व निजरा काज । अनभि सन्धि बंधकता निरस आत्मराज ॥ ३०॥ __ अर्थ:-एटले एहवी रीते आत्मानी शक्ति प्रते जागी त्यारे, प्रगट्या आत्म धम थया सबि साधन रीत. एटले प्रगट्या आत्म धर्म, कहतां कर्मरूप आवरणने अभावे, अनंत गुणरूप आत्मिक धर्म प्रते प्रगटे. अने एहवी रीते अनंत गुणरूप आत्मिक धर्म प्रते केम प्रगटे ? तोके, थया सवि साधन रीत, एटले www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. थया सबि साधन रीत कहतां, आत्मनी कर्तृत्वता भोक्तृत्वादि पंचशक्ति ते अनादि कालनी पर अनुजाइ पणे अवली प्रणमी हती; तिहाथकी निवारीने पोताना स्वरूप अनुजाइ रूप साधन पणे प्रणमावी. त्यारे शिष्य कहे, ए पांच शक्ति स्वरुप अनुजाइ रूप साधन पणे केम प्रणमी ? त्यारे गुरु कहे,-आत्मानी कत्तृखता रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी परकर्तीपणे अवली प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वरूप कर्त्तारूप साधनपणे प्रणमावी.१अने आत्मानी भोक्तृत्वता रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी पर पुद्गलादि विभाव दशाना भोगने विषे प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. स्वभाव भोगीपणे प्रणमावी. २ अने आत्मानी रक्षकत्वा रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी पर पुद्रलादि विभाव दशाना रक्षक पणे प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वभाव रक्षकपणे प्रणमावी. ३ अने आत्मानी व्यापकत्वा रूपजे शक्ति ते अनादि कालनी पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे व्यापी रही हती, तिहां थकी निवारिने पोताना स्वभाव व्यापक पणे प्रणमावी. ४ अने आत्मानी ग्राहकता रूप जे शक्ति ते अनादि कालनी पर ग्राहकपणे अवली प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वभाव ग्राहक पणे प्रणमावी. ५ एहवी रीते ए पांच शक्ति अनादि कालनी पर अनुयाईपणे अवली www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ९३ प्रणमी हती, तिहां थकी निवारीने पोताना स्वरूप अनुयाई रूप साधन पणे प्रणमात्री, अने एहवी ते स्वरूप अनुयाई रूप साधन पणे प्रणमी, त्यारे, वाधक भाव ग्रहणता भागी जागी नीत एटले वाधक भाव कहतां अनादि कालनो ए पर स्वभाव रूप विभाव दशानि हारे, जीवने वाधक भाव रूप ग्रहणपणो हतो, ते भाग्यो कहां दल्यो. अने एहवी ते वाक भाव टल्यो त्यारे, जागी नीत, एटले जागी नीत कहतां पर ग्रहण रूप अनित्यपणो दल्यो. अने स्वरूप ग्रहण रूप नित्यतापणी प्रगट्यो, त्यारे, उदय उदीरजा ते पण पूर्व निर्जरा काज. एटले उदय कहां स्थिति पाके उदय भावने जोगे करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जे कर्म उदय आवे, ते भोगवीने निर्जरा प्रत्ये करे. अने उदीरणा कहतां जीवनी सत्ताये बंध रूप कर्मना पुद्गल लागा छे ते खेंची कहता उदेरी-उदय आणी भोगवीने निर्जरावे. अने एहवी रीते निर्जरावे त्यारे, अनभि सन्धि बंधकता निरस आत्मराय. एटले अनभि कहतां अनुक्रमे, अने सन्धि कहता सीम मर्यादानो अंत, तेहने छेडो कहिये. एटले बारहमां गुणस्थानने छेड़े, अने आत्मराय कहतां चेतन महाराज रूप जे राजा तेहनी सत्ताये बंधक कहतां बंध रूप कर्मना पुद्गल रह्या छे ते निरस कहतां कषाय रूप रसथकी रहित लूखा जाणवा, अने एहवी रीते कषाय रूप रसथकी रहित लूखासपणे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अध्यात्मगीता. ९५ वर्त्या त्यारे ॥ ॥ ३० ॥ ढाल: देशपति जब थयो नितरंगी । तदा कुण थायै कुनय चाल संगी ॥ यदा आत्मा आत्म भावै रमाव्यो । तदा बाधक भाव दूरे गमाव्यो ॥ ३१ ॥ अर्थ: - देशपति जब थयो नितरंगी. एटले देशपति कहतां जिम देशनो धणी, अने पति कहतां राजा, जब थयो नितरंगी. एटले जब कहतां जिवारे, अने थयो नितरंगी कहतां जेहनो चित्त नित मार्गने विषै रंगाणो, अने नित मार्गनो चालणहार थयो तदा कुण थाये कुनय चाल संगी. एटले तदा For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ अध्यात्मगीता. कहतां तिवारे, अने कुनय कहतां ए कडा नयरूप अनित्य मानो चालणहार कुण होय ? एम इहां ए देशपति कहनां असंख्यात प्रदेश रूप जे देश, अने ते दशने विष ज्ञानादि अनंत गुण रूप लक्ष्मी रही छे, तेहनो पति कहतां धणी, एहयो जे चतन महाराजा, जब थयो नित्यरंगी एटले जब कहतां जिवारे, अन थयो नित्यरंगी कहता ए पर स्वभाव रूप अनित्य मागे मूकीने, पोताना स्वरूप मे रमण करवा रूप नित्य मार्ग प्रतें पकड़यो. अने एहवी रीते नित्य मार्ग प्रतें पकडयो, त्यारे, तदा कुण थाये कुनय चाल संगी, एटले तदा कयतां तिवारे अने कुनय कहतां ए कूड़ा (खोटा) नय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. रूप अनित्य मार्ग प्रते केम चलवे ? एटले जे मार्गे पोते चाले ते मार्गनो पर ने पिण उपदेश प्रतें करे. एटले एहवी रोते शुद्ध मार्गना परने उपदेश प्रतें कोण करे ? तोके, यदा आत्मा आत्म भावे रमाव्यो. एटले यदा कहतां जिवारे, अने आत्म भावे रमाव्यो कहतां जेणे पोताना आत्माने आत्मभावने विषे रमाव्यो कहतां रमाड्यो ते करे. अने एल्वी रीते आत्मभावने विषे रमाड्यो त्यारे तदा बाधक भाव दूरे गमाव्यो. एटले तदा कहतां तिवारे, अने बाधक भाव कहतां अनादि कालनो ए पर स्वभावरूप विभाव दशा निहारे जीवने बाधक भावरूप ग्रहणपणो हतो ते दूरे गमायो, एटले दूर गमाव्यो कहतां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. तेहनो नाश प्रत करयो. अने एहवी रीते बाधक भावनो नाश प्रत केम करयो ? ॥३१॥ चाल:-- सहिज क्षमा गुण शक्तिथी छेद्यो क्रोध सुभट्ट । मार्दव भावप्रभावथी भेद्यो मान मरट्ट ॥ माया आर्जव योगे लोभते निस्पृह भाव । मोह महा भट ध्वंसे ध्वस्यो सर्व विभाव ॥ ३२॥ अर्थः-सहिन क्षमा गुण शक्तिथी छेयो क्रोध सु भट्ट. एटले सहिज क्षमा गुण कहता अकृत्रिम भाव रूप ने क्षमा-गुण, अने शक्तिथी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. कहतां ए अकृत्रिम भाव रूप शक्तिये करीने, छेद्यो क्रोध मुभट्ट. एटले छेद्यो क्रोध सुभट्ट कहतां ए मोह राजानो क्रोध रूपी जे सुभट्ट तेहने छेद्यो कहतां निकंदन प्रते करयो. १ मादर्व भाव प्रभावथी भेद्यो मान मरह. एटले मार्दव भाव कहतां मृदुता भाव रूप जे नरमास गुण, अने प्रभावथी कहतां तेहने प्रभावे करीने भेद्यो मान मरट्ट. एटले मान मरट्ट कहतां ए मान रूपी मुभट प्रत भेद्यो कहतां छेद्यो, तेहने उनमेली (उखेड़ी) नाख्यो अने मरट्ट कहता एहवी रीते मान रूपी सु. भटनो मरोड़ प्रते मेट कोधो. २ माया आजैव योगे लोभते निस्पृह भाव. एटले माया कहतां माया रूप जे कपट, अने आर्जव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. कहतां सरल स्वभाव पणो, अने जोगै कहतां तेहने जोगे करीने दूर प्रते करयो. ३ लोभते निस्पृह भाव. एटले लोभते निस्पृह भाव कहतां ए निर्लोभ रूप निस्पृही भाव थकी लोभनो नाश प्रत करयो. ४ मोह महा भट्ट ध्वसे ध्वस्यो सर्व विभाव. एटले मोह महा कहतां मोह रूप महा भट्ट कहतां जे सुभट, एहवो जे शूरवीर ते सर्वे अवगुणने विषे राजा समान तेहने ध्वंसे कहतां ध्वंसे. एटले हडसेली नाखे. एहवी रीते मोहने दूर करने करीने चस्यो सर्व विभाव. एटले ध्वस्यो सर्व विभाव कहतां एड विभाव दशा रूप जे परस्वभाव; एहवी रीते सर्व अपाय कहतां जे पाप जीवने अनादि www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १०१ कालना शत्रुभूत थईने लागा हता तेहने ध्वंस्ये कहां स्यो, एटले नाश प्रते करचो. अने एहवी रीते क्रोवादिकनो नाश पर्ने केम करयो ? ।। ३२ ।। ढाल: इम स्वभाविक थयो आत्म वीर । भोगवे आत्म संपद सुधीर ॥ जेह उदया गता प्रकृति वलगी । अव्यापक थको खेखै तेह अलगी www.kobatirth.org ------ ॥ ३३ ॥ अर्थ: - एम स्वभाविक थयो आत्म वीर. एटले आत्म कहतां जे आत्मा, अने वीर कहतां जे शूरवीर महा पराक्रमी अनंत For Private And Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. बलनो धणी कर्म शत्रुनो जीतणहारो. अने एम स्वभाविक थयो कहतां ए पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे प्रणम्यो हतो, तिहां थकी मति निवारीने स्वभाविक कहतां पोताना स्वभावने विषे प्रणम्यो. अने एहवी रीते पोताना स्वभावने विष प्रणम्यो त्यारे. भोगवे आत्म संपद सुधीर. एटले आत्म संपद कहतां ज्ञानादि अनंत चतुष्टय रूप पोतानी आत्म संपदा प्रतें भोगवे कहतां विलसे. अने सु कहतां भली तरह अने धीर कहतां अधीर पणो मुकीने निर्भय थको भोगवे. अने जेह उदयागता प्रकृति वलगी. एटले जे उदयागता कहतां उदय भावने जोगे, प्रकृति वलगी कहतां जे आत्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. प्रदेशे कर्म रूप प्रकृति वलगी कहता लागी छे, ते अव्यापक थको खेरवे तेह अलगी. एटले अव्यापक थको कहतां अलिप्त पणे न्यारो रही जे कर्म रूप प्रकृति उदय आवे ते भोगवीने खेरवे. एणी रीते अलगी कहतां दूरे करीने आत्म गुण निरावर्ण प्रते करे. त्यारे शिष्य कहे-आत्म गुण केम निरावर्ण प्रते करे ? ॥ ३३ ॥ चाल:धर्म ध्यान इकतानमें ध्यावै अरिहा सिद्धाते परिणतथी प्रगटी तात्विक सहज समृद्धि ॥ स्व स्वरूप एकत्वै तन्मय गुण पर्याय । ध्यानै ध्याता www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ अध्यात्मगीता. निरमोहीनें विकल्प जाय ॥ ३४ ॥ अर्थः- धर्म ध्यान इकतानमें ध्यावे अरिहा सिद्ध. एटले धर्म ध्यान कहतां पोतानो आत्मिक धर्म सत्तागतने विषे अनंतो रह्यो छे, ते धर्मने ओलखी प्रतीत करी तेहना ध्यानने विषे प्रवर्ते. त्यारे शिष्य कहे - एहवी ते ध्यानने विषे केम प्रवर्ते ? तोके एकतानमे कहतां शुद्ध शुक्ल ध्यान रुपातीत प्रणाम रूप एकत्व पणे, ध्यावे अरिहा सिद्ध. एटले अरिहा सिद्ध कहतां अरिहंत तथा सिद्धने गुणे पोताना आत्माने समतुल्य पणे सरीखो गिणी, अने ध्यावे कहतां एहवी रीते निरागता पणे ओलखीने तेहना ध्यानने बिषे प्रवर्ते अने एहवी रीते ध्यानने विषे भवत्यों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १०५ त्यारे. ते परिणितथी प्रगटी तत्विक सहज समृद्ध. एटले ते परिणितथी कहतां एहवी निर्मल शुद्ध आत्मानी प्रणति थकी अने प्रगटी कहतां नीपजी. त्यारे शिष्य कहे-यूं नीपजी ? तोके, तत्विक सहज समृद्ध. एटले तत्विक कहतां तद् र पपणे जेहवी सत्ताये हती तेहवी, अने सहज कहतां ए अकृत्रिम भाव रूप संपदा प्रते, अने सम कहतां सम्पूर्ण अने रिद्ध कहतां पोतानी ज्ञानादि अनंत चतुष्टय रूप लक्ष्मी प्रतें प्रगटे. अने एहवी रीते पोतानी लक्ष्मी प्रतें केम प्रगटे ? तोके, स्व स्वरूप एकत्वे तन्मय गुण पर्याय. एटले स्त्र स्वरूप कहतां पोताना आत्मिक स्वरूपने विर्षे, अने एकत्व कहतां तेहने विषे एकत्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ अध्यात्मगीता. पणे वर्ते. अने एहवी रीते एकत्वपणे केम वयों ? तो के, तन्मय गुण पर्याय. एटले तन्मय कहतां तलालीन रूप, अने गुण पर्याय कहतां एहवी रीते पोताना गुण पर्यायना चिंतनने विषे; व्याने ध्याता निर्मोही ने विकल्प जाय. एटले ध्याने कहतां तेहना ध्यानने विषे अने ध्याता कहतां एहवी रीते एकत्व पणे वर्ते. अने एहवी रीते एकत्व पणे वच्यों त्यारे, निर्मोहीने विकल्प जाय. एटले निर्मोही कहतां ते जीव मोह रहित थाय, अने एहवी रीते मोह रहित थाय त्यारे, सर्वे विकल्प दूरे जाय. एटले दूरे जाय कहतां तेहनो नाश प्रते पामे. अने एहवी रीते नाश प्रते केम प्रामे ! ॥ ३४ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अध्यात्मगीता. ढाल: यदा निर्विकल्पी थयो शुद्ध ब्रह्म । तदा अनुभवै शुद्ध आनंद शर्म ॥ भेद रत्न त्रयी तीक्ष्णतायै । अभेद रत्न त्रयी में समाये ॥ ३५ ॥ अर्थ :-- एटले यदा निर्विकल्पी थयो शुद्ध ब्रह्म. एटले यदा कहतां जिवारे अने निर्विकल्पी यो कहतां एहवी रोते चलाचल परणाम रूप विकल्प गुं रहित जीव थावै. अने एहवी रीते विकल्प मुं रहित जीव थावे त्यारे, शुद्ध ब्रह्म. एटले शुद्ध ब्रह्म कहतां ते जीव शुद्ध पूर्ण ब्रह्म रूप निर्मलानन्द एवो पोतानो पढ़ मतें प्रगट करे. अने एहवी १०७ SURREKON For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ अध्यात्मगीता. रीते पोतानो पद प्रते प्रगट करे त्यारे, तदा अनुभवे शुद्ध आनन्द शर्म. एटल तदा कहता तिवारे अने अनुभवे कहतां भागवे. त्यारे शिष्य कहे-श्यूं भोगरे ? तोके, शुद्ध आनंद शर्म. एटले शुद्ध कहतां निर्मल; विभाव दशा रूप उपाधि थकी रहित, अने आनंद कहतां एहवी रीते आनन्दमयी, अने शर्म कहतां एहवो पोतानो मूल घर प्रते भोगवे. अने एहवी रीते पोतानो मल घर प्रते केम भोगवे ? भेद रत्नत्रयी तीक्ष्णताये, अभेद रत्नत्रयीम समाय. एटले भेद कहतां जुदी २ अने रत्नत्रयी कहता ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप जे रत्न त्रयी. अन तीक्ष्णता कहतां तेहने विपे तानसा रूप एकाग्रतापणे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १०९ उपयोग प्रतें वर्ते. अने एहवी रीते तन्मय रूप उपयोग प्रर्ते वा त्यारे, अभेद रत्न त्रयीमे समाय. एटले भेद रत्नत्रयी हती ते एक समय एकता रूप अभेदता पणे प्रणमी. अने एहवी रीते अभेद रूप एकता पणे प्रणमी त्यारे जाणवा, देखवा, रमण करवा रूप एक समय उपयोग वयो ? अने एहवी रीते जाणवा देखवा, रमण करवा रूप एक समय उपयोग केम वो ? ॥ ३५ ॥ चाल:दर्शन ज्ञान चरण गुण सम्यग एक एकना हेत । स्व स्व हेत थया सम कालै ते अभेदता खेत ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० अध्यात्मगीता. पूर्ण स्वजाती समाधि घनघाती दल छिन्न । क्षायक भावै प्रगटै आत्म धर्म विभिन्न ३ ३६ ॥ अर्थः-दर्शन ज्ञान चरण गुण सम्यग् एक एकना हेत. एटले सम्यग् ज्ञान, कहतां भले प्रकारे-सम्यग ज्ञान सम्यग दर्शन अने सम्यग चारित्र रूप जे गुण, अने एक एकना हेत कहतां दर्शन छे ते जीवने सामान्य उपयोग रूप गुण छे. अने ज्ञान छे ते जीवने विशेष उपयोग रूप गुण छे. एटले दर्शन तथा ज्ञान ए बे ने विपे स्थिरता रूप एकाग्रता पणे उपयोग पर्ने ते चारित्र जाणवो. माटे ए त्रणे परस्पर एक एकना हेतु कहता www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर अध्यात्मगीता. १११ माहोमांहि एक वीजाना हेतु रूप कारण जाणवा. एटले माहोमांहि एक बीजाना हेतु रूप कारण केम थया ? तोके स्व स्व हेतु थया सम काले ते अभेदता खेत. एटले स्व स्व हेतु थया कहतां आप आपणा हेतु रूप, अने थया सम काले कहतां एक समयमे ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप जे रत्नत्रयी ते एकता पणे प्रणमे; अने एहवी रीते एकता पणे केम प्रणमे ? तोके तेह अभेदता खेत एटले तेह कहतां तिमज, अने अभेद कहतां एहवी रीते अभेदात्म पणे, अने खेत कहतां स्व क्षेत्रने विषे जाणवा. अने एहवी रीते स्त्र क्षेत्रने विषे केप प्रणम्या ? तोके पूरण स्वजाति समावि घनघाती दल छिन्न. एटले www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ अध्यात्मगीता. घनघाती दल छिन्न कहतां घाती कर्म रूप घन कहतां जे समूह तेहनां दलीयां आत्म प्रदेशने विषे लाग्यां हतां तेहने छिन्न कहतां छेदी नारखे. अने एहवी रीते छेदी नांख्यां त्यारे. पूर्ण स्वजाति समाधि. एटले पूर्ण कहतां संपूर्ण अने स्व कहतां पोतानी, अने जाति कहतां ज्ञानादि अनंत गुण एक राशि रूप जाति प्रत प्रगटे, अने समाधि कहतां तेहने विषे सदा काल समाधि प्रतें वर्ते. अने एहवी रीते समाधि प्रर्ने केम वर्ते ? तोके क्षायिक भावे प्रगट्या आत्म धर्म विभिन्न. एटले आत्म धर्म कहतां पोतानी सत्तागतने विपे अनंतो आत्मिक धर्म शक्ति पणे रह्यो हतो ते व्यक्ति पणे क्षायिक भावे प्रगट्यो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ११३ विभिन्न कहता एहवी रीते अभेदात्म पणे प्रगट करी लोकालोकना भासकरथका विचरे. अने एहवी रीते लोकालोकना भासकरथका विचरे त्यारे ॥ ३६ ॥ हाल:-- पछै योग रोधिथयो ते अयोगी । भाव सैलेसता अचल अभंगी ॥ पंच लघु अक्षरे कार्य कारी । भवोपग्रहो कर्म संतति विडारी ॥ ३७॥ अर्थ:--पले योग रोधि थयो ते अयोगी. एटले योग रोधि कहतां पछे तेरमा - - - -: AN M . www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ अध्यात्मगीता, गुणस्थानने छेहले समे योगनी रोध करवा मांडयो एटले मूक्ष्म क्रियां अप्रतिपाति शुक्ल ध्याननो बीजो पायो ध्यावतो ते जीव चउदमे गुणस्थान चढे. तिहां प्रथम बादरनो मनो योग रोके, पछी बादरनो वचन योग रोके, पछी बादरना काय योग रोके, पछी सूक्ष्म मनो योग रोके, पछी सूक्ष्म वचन योग रोके, पछी सूक्ष्म काय योग राके, एहवी रीते सूक्ष्म बादर रूप योगनो रोध करी थयो ते अयोगी. एटले थयो ते अयोगी कहता ते जीव चउदमे गुणस्थाने अयोगी पद प्रतें पामे. अने एहवी रीते अयोगी पद प्रतें केम पाम्यो ? तोके भाव सेलेसता अचल अभंगी. एटले भाव सेलेसता कहतां भावना www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ११५ अकंप अडगपणा थकी, अने अचल कहतां चले नहीं वो स्थिरता रूप भाव, अने अभंगी कहतां एहवी रीते आव्यो थको तें भावनो भंग प्रते न थाय. अने एहवी रीते ते भावनो भंग प्रतें न थाय त्यारे, पंच लघु अक्षरे कार्य कारी. एटले पंच लघु अक्षर कहतां चउदमा गुणस्थाने जीव पोहच्यो त्यारे; अ इ उ ऋ लु, ए पंच लघु अक्षर रूप उच्चार करें, एटला कालमां कार्य कारी कहतां, ते जीव पोतानो सर्व कार्य प्र नीपजावे. अने एहवी रीते सर्व कार्य प्रर्ते केम नीपजावे ? तोके, भवोपग्राही कर्म संतति विडारी, एटले भवोपग्राही कहां भवने आश्रीने. अने कर्मनी संतति कहतां कर्म रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ अध्यात्मगीता. पुद्गलनी संतति वाकी रही हती तेहने विडारी कहतां चूरी वालीने क्षय प्रत करी. अने एहवी रीते चूरी वालीन क्षय करी त्यारे ॥ ३७॥ चाल:-- सम श्रेणै एक समय पुहता जे लोकांति । अफुसमाण गति निर्मल चेतन भाव महंत ॥ चरम त्रिभाग विहीन प्रमाणे जसु अवगाह । आत्म प्रदेश अरूपा खंडा नंद अवाह ॥ ३८ ॥ अर्थ:--सम श्रेण एक सपये पुहवा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जे लोकांति. एटले समश्रेण कहेता पाधरी श्रेणै; अने एक समय कहतां एक समयने विषे पोहता जे लोकांति एटले पोहता जे लोकांति कहतां च उदराज लोकने अंते अजरामर स्थानके सिद्ध क्षेत्र कहतां जे क्षेत्रने विषे अनंता सिद्ध परमात्मा विराजमान थका वर्ते छे, ते क्षेत्रने विष पोहता एटले शिष्य कहे केम पोहता ? तोके, अफुसमाण गति निर्मल चेतन भाव महंत. एटले अफुसमाण कहतां वीजा प्रदेश अणफरसे एटले जे इहां आकाशरूप क्षेत्रना प्रदेश फरस्या हता तेहीज समश्रेणीना सिहां फरस्या छे. पिण वीजा प्रदेश अणफरसै. अने गति कहता एहवी गतिये वर्तता पोहच्या अने निर्मल www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ अध्यात्मगीता. कहतां कर्म रूपं मल थकी रहित. अने एहवी रीते कर्म रूप मलथकी रहित थया स्यारे चेतन भाव महंत. एटले चेतन भाव कहतां शुद्ध ज्ञानादि चेतना गुण रूप भावे करीने सहित, अने महंत कहेतां एहवी मोटी शक्तिना धणी जाणवा. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तोके, चर्म विभाग विहीन प्रमाणे जसु अवगाह. एटले चर्भ विभाग कहेतां छेहला शरीरनो त्रीजो भाग,अने विहीन कहतां घटाडीने, अने प्रमाणे कहतांबे भागना शरीर प्रमाणे आत्म प्रदेशनो घनकरी, जसु अवगाह एटले जसु कहतां जेहनी, अने अवगाह कहतां ते प्रमाणे अवगाहना करी, सिद्ध क्षेत्रने विष विराजमान थका वर्ने छे. अने वली सिद्ध केहवा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'अध्यात्मगीता. छ ? तो के, आत्म प्रदेश अरूपा खंडा नंदा बाह. एटले आत्म प्रदेश अरूपा कहतां आत्मानो स्वरूप असंख्यात प्रदेश रूप अरूपी छे. अने अखंडा कहतां कोईनो खंड्यो खंडाय नहीं, भेद्यो भेदाय नहीं, छेद्यो छेदाय नहीं, सदाकाल शाश्वतो वर्ते छे, अने नंदा कहतां आनंदमयी अने अबाह कहतां ए आनंद प्रगट्यो छे. पिण केहवो छ ? तोके, अबाध्य एटले बाधा रूप पीडाथकी रहित जाणवो.अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? ॥ ३८॥ ढाल:जिहां एक सिद्धात्मा तिहां छे अनंता । अवन्ना अगंधा नहीं फास www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० अध्यात्मगीता. मंता॥ आत्म गुण पूर्णतावंत संता। निराबाध अत्यंत सुखा स्वादवंता ॥ ३९ ॥ अर्थ:-जिहां एक सिद्धात्मा तिहां छे अनंता. एटले जिहां एक सिद्धात्मा कहतां जेणे क्षेत्रे एक सिद्ध परमात्मा छ, तेणे क्षेत्रे अनंता सिद्ध परमात्मा भेला मिलीने रह्या छे. पिण ते सिद्ध केहवा छे ? तोके, अवन्ना अगन्धा नहीं फासमंता. एटले अबन्ना कहता पांच वरण थकी सिद्ध रहित छे. अने अगंधा बे गंधथकी पिग रहित छे. अने वली सिद्ध केहवा छे ? तोके, नहीं फासमंता एटले नहीं फासमंता कहतां आठ फरस रूप शरीरथकी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. पिण सिद्ध रहित छे. अने वली सिद्ध केहवा छ ? तोके, आत्म गुण पूर्णतावंत संता. एटले आत्म गुण कहतां पोताना आत्माना ज्ञानादि अनंत गुण, अने पूरण कहतां एहवी रीते सम्पूर्ण पणे अने संता कहतां संतभावे छतापणे प्रगट्या छे. अने वली सिद्ध केहवा छे? तोके, निराबाध अत्यन्त सुखा स्वादवंता. एटले, निराबाध कहतां सर्व प्रकार अबाध्य एटले बाधा रूप पीडाथकी सिद्ध रहित छे. अने वली सिद्ध केहवा छे? तोके, अत्यंत सुख स्वादवंता. एटले अत्यंत सुख कहतां च्यारे निकायना देवताना इंद्रीयजनित पुद्गलीक जे सुख ते त्रणे कालना लेइने भेला करिये, तेहने अनन्त गुणा वर्ग वगित करिये पिण सिद्ध परमात्मा अजरामर www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ स्थानके आत्मिक सुख अनुभवे छे ते सुख ने तोले एक समय मात्र पिण न आवे. अने स्वादवता कहतां ए विभाविक सुखने अभावे स्वभाविक सुखनो आस्वादन पर्ने करे छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? ||३९|| अध्यात्मगीता. www.kobatirth.org चाल: कर्त्ता कारण कार्य निज परिणामिक भाव । ज्ञाता ज्ञायक भोग्य भोक्ता शुद्ध स्वभाव ॥ ग्राहक, रक्षक, व्यापक, तन्मयताये लीन, पूरण आतम धर्म प्रकाश रसै लयलीन 118011 - For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १२३ अर्यः-कर्ता कारण कार्य निज परिणामिक भाव. एटले कर्त्ता ते सिद्धनो जीव अने कारण कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण प्रते कारण रूप नीपना छे, अने कार्य कहतां ते गुणम रमण करवा रूप कार्य जाणवो. अने निज परिणामिक भाव. एटले निज कहतां पोतानो, अने परिणामिक भाव कहतां नैगम, संग्रह नयनें मते जीवनी सत्ताये परिणामिक भाव रह्यो हतो तेहवो जे एवंभूत नयनें मते सिद्धि रूप कार्य प्रतें नीपनो तेहने विष वर्ने छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ ? तो के, ज्ञाता ज्ञायक भोग्य भोक्ता शुद्ध स्वभाव. एटले ज्ञाता कहतां ज्ञाने करीने, अने ज्ञायक कहतां अनेक ज्ञेय पदार्थ प्रते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ अध्यात्मगीता. जाणे छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ ? तो के, भोग कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण रूप पाय प्रते, अने भोक्ता कहतां तेहना भोगने विषय सदाकाल निरंतर पणे वर्ते छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के, शुद्ध स्वभाव. एटले शुद्ध कहतां निर्मल कर्म रूप उपाधि थकी रहित, अने स्वभाव कहतां एहवो पोतानी स्वभाव प्रते नीपनो छे' अने वली सिद्ध केहवा छे ? तोके, ग्राहक, रक्षक, व्यापक, तन्मयताये लीन. एटले ग्राहक कहतां ए पर समभार रूप विभाव दशानी अनादि कालनो ग्रहणपणो हतो ते निवारीने पोताना स्वरूपनो ग्रहण कों छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ? www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. तो के, रक्षक कहतां पोताना स्वरूप थकी भिन्न कहतां एहवी पुद्गलादि अनित्य वस्तु तेहना अनादिकालना रक्षक हता तिहां थकी मति निवारीने पोताना स्वभाव रक्षक पणे प्रणम्या छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के, व्यापक कहतां ए पर परिणति रूप विभाव दशाने विषे अनादि कालनो व्यापक पणो हतो, तिहां थकी मति निवारीने पोताना स्वभाव व्यापक पणे प्रणम्या छे, अने तन्मयताये लीन. एटले तन्मयताये कहतां तेहने विषे तन्मय रूप एकाग्रता एणे लीन थका वर्ते छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? तो के पूरण आत्म धर्म प्रकाश रसे लयलीन. एटले www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ अध्यात्मगीता. पूरण कहतां सम्पूर्ण, अने आत्मधर्म कहतां पोतानो अनन्त गुण रूप आत्मिक धर्म प्रते अने प्रकाश कहतां तेहनो सत्तागतने विषे प्रकाश प्रते प्रगट्यो छे अने रसै लयलीन. एटले रसै कहतां तेहना रसनें विष सदाकाल लयलीनपणे वतै छे एटले हिवे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप चार भांगे करी सिद्धनो स्वरुप ओलखावे छे ॥ ४० ॥ हाल:-- द्रव्यथी एक चेतन अलेशो । क्षेत्रथी जे असंख्य प्रदेशी॥ उत्यात वलो नाश ध्रुवकाल धर्म। शुद्ध उपयोग गुणभाव शर्म ॥४१॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अध्यात्मगीता. १२७ अर्थ: द्रव्यथी एक चेतन अलेसी. एटले द्रव्यथकी सिद्धने एक चेतन कहिये. एटले चेतन कहां शुद्ध ज्ञानादि चेतना रूप गुणे करीने सहित माटे चेतन कहिये. अने अलेसी कहतां कृष्णनील कापोतादि छ लेकी सिद्ध रहित छे माटे अलेशी कहिये. क्षेत्रथी जे असंख्य प्रदेशी. एटले क्षेत्र थकी सिद्धने स्वक्षेत्र रूप असंख्यात प्रदेशी कहिये. उत्पात नाश ध्रुव काल धर्म. एटले काल थकी सिडने उत्पात कहतां अभिनव पर्याय ना जाणवा देखवापणानो समय २ उपजवो थातो जाय अने नाश कहतां पूर्व पर्यायना जाणवा - देखवापणानो समय २ व्यय कहतां नाश थातो जाय. अने ध्रुव कहतां सिद्धने www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ----- For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮ अध्यात्मगीता. ज्ञानादि अनन्त गुण प्रगट्या छे; ते सदाकाल ध्रुवना ध्रुव पणे शाश्वता वर्ते के. अने धर्म कहता हवी रीते सिद्धने ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंत गुण रूप धर्म मराठ्यां ; तेहने विषे सदाकाल पायनो उत्पात व्यय थइ रह्यो छे. अने वली सिद्ध केहवा छे ? तो के, शुद्ध उपयोग गुण भाव शर्म. एटले भावथकी सिद्ध परमात्माने गुण भाव कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण भाव रूप प्रगट्या छे, तेह रूप शर्म कहता जे घर, अने शुद्ध उपयोग कहतां ते धरने विषे सदाकाल निरंतरपणे सिद्ध परमात्मा, शुद्ध कहतां निर्मल उपयोगवंत थका वर्ते छे. एणी रीते द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाषे करी सिद्ध परमात्मानो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १२९ स्वरूप जाणवो. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छ ? ॥ ४१ ॥ चाल:सादि अनंत अविनाशी अप्रयासी परिणाम । उपादान गुण तेहिज कारण कारय धाम ॥ शुद्ध निक्षेप चतुष्टय जुत्तो रत्तो पूर्णानंद । केवल नाणो जाणै तेहना गुणनो छंद ॥४२॥ ___ अर्थ:-सादि अनन्त अविनाशी अप्रयासी परिणाम. एटले वली सिद्ध केहवा छे ? के, सादि अनन्त. एटले सादि अनन्त कहां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० अध्यात्मगीता. एक सिद्ध आश्रय जे सिद्धि वर्या तेहनी आदि छे. ते आदि मे सिद्धि वर्या पिण तेहनो पाछो फरि अंत नथी. जे फलाणे दिन सिद्ध पाछा संसार में आवसे (अर्थात् नही आवे ) तेहने सादि अनन्त भांगो कहिये. अने वली सिद्ध केहवा छे ? के, अविनाशी एटळे अविनाशी कहतां ए सिद्धि पद निपनो छे, पिण फिरि पाछो विनाश पणो नथी. अने वली सिद्ध केहवा छे ? के अप्रयासी परिणाम. एटले अप्रयासी कहतां सिद्ध प्रयास विना अनंतो आत्मिक सुख प्रते भोगवे छे, अने परिणाम कहतां सिद्ध परमात्मा सदा काल निरंतर पणे पोताना परिणामिक भावनें विषे रह्या वर्ते छे. उपादान गुण तेहिज www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १३१ कारण कार्य धाम. एटले वली सिद्ध केहवा छे ? के उपादान कहतां पोतानो आत्मा; अने गुण तेहिज कारण कहतां पोताना ज्ञानादि अनन्त गुण कारण रूप प्रगट्या छे. अने कार्य कहतां अनेक ज्ञेय पदार्थ जाणवादेखवा रूप पर्यायनो उत्पाद व्यय समय २ होय रह्यो छे. अने एहवी रीते धाम कहतां घर, एटले पोताना आत्मस्वरूपने विष निवास प्रते करयो छे; एटले ए त्रणे एक समय एकता पणे प्रणमे छे. शुद्ध निक्षेप चतुष्टय जुत्तो रत्तो पूर्णानन्द. एटले वली सिद्ध केहवा छे ? तोके शुद्ध निक्षेप चतुष्टय जुत्तो रत्तो. एटले शुद्ध कहतां निर्मल, अने निक्षेप चतुष्ठय कहेतां चार निक्षेपे करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ अध्यात्मगीता. ने, जुत्तो कहतां क्त प्रते वर्त्ते छे. त्यारे शिष्य कहे. चार निक्षेपे करीने सिद्ध नो स्वरूप केम जाणिये ? त्यारे गुरु तदवित् ( तद् व्यतिरिक्त ) शरीर आश्रये चार निक्षेपा कहे छे. एटले नाम सिद्ध कहतां सिद्ध ऐसो नाम त्रणे काल एक रूप शाश्वतो वर्त्ते छे ॥ १ ॥ अने थापना सिद्ध कहत देहमान मध्येथी बीजो भाग घटाड़ीने वे भागना शरीर प्रमाणे आत्म प्रदेशनो घन करी थापना रूप क्षेत्र अवगाही रह्या छे. ॥ २ ॥ अने द्रव्य सिद्ध कहतां शुद्ध निर्मल असंख्यात प्रदेशने विषे ज्ञानादि अनन्त गुण रूप छती पर्य्याय वस्तु रूप मगटयो छे. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १३३ इंति तद्वित शरीर आश्रये द्रव्य जाणवो || ३|| अने भावथकी सिद्धनो स्वरूप कहत सामर्थ पर्याय प्रवर्त्तना रूप अनन्तो धर्म प्रगट्यो छे; तेणे करीने सदा काल नव मवाज्ञेयनी वर्त्तना रूप पर्य्यायनो उत्पात व्यय समय समय अनन्त अनन्तो होय रह्यो छे, तेणे करीने सिद्ध परमात्मा अनंतो सुख भो गवे छे ॥ ४ ॥ एणी रीते ए चार निक्षेपे करीने सिद्ध परमात्मा रत्तो कहतां सदा काल तेहने विषे रक्त प्रवर्ते छे अने पूर्णानंद कहतां एहवी रीते सम्पूर्ण आत्मिक सुखनो आनंद प्रतें भोगवे छे. केवल नांणी जाणे तेहना गुणनो छन्द. एटले केवल नांणी कहतां केवली www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. भगवान, अने जाणे कहतां एहवी रीते सिद्धनो स्वरूप प्रत्यक्ष पण जाणे देखे; अने गुणनो छन्द कहतां ए सिद्ध परमात्माने अनंत गुण रूप समूह प्रते प्रगट्यो छे, तेहने विषे अनन्तो सुख भोगवे छे ते केवली भगवाननेज गम्य छ; पण छदमस्त मुनीना जाण्यामां न आवे ॥ ४२ ॥ ढाल:एहवी शुद्ध सिद्धता करण ईहा । इंद्रिय सुख थकी जे निरोहा। पुद्गली भावना जे असंगी। ते मुनि शुद्ध परमार्थ रंगी ॥ ४३ ॥ ___ अर्थः-एहवी शुद्ध सिद्धता करण ईहा, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. एटले एहवी कहतां आगल वखाणी तेहवी, अने शुद्ध कहतां निर्मल, अने सिद्धता कहतां एहवी रीते सिद्ध परमात्मानी सम्पदा प्रते, ते करण ईहा. एटले करण ईहा कहतां एहवी सिद्धि रूप सम्पदा प्रगट करवाना जे मुनिने ईहा ( इच्छा ) प्रते वर्ते ते मुनि केहवा छे ? तो के इंद्रिय सुख कहेतां पंचेन्द्रीयना वीस विषय रूप पुद्गलीक जे सुख, अने निरीहा कहतां तेहनी इहा रूप बंच्छा थकी रहित थका वर्ते छे. अने वली ए मुनि केहवा छे तो के पुद्लीक भावना जे असंगी. एटले पुद्लीक भाव कहतां पोताना स्वरूप थकी भिन्न कहतां जुदो एहवो शुभाशुभ विभाव दशा रूप जे पुद्लीक मात्र, अने जे कहता ... www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ अध्यात्मगीता. ते मुनि, अने असंगी कहतां तेहनी बंछा रूप. संगथकी रहित न्यारा प्रते वर्ते छे. ते मुनि शुद्ध परमार्थ रंगी. एटले ते मुनिराज शुद्ध कहेता निर्मल बुद्धिना धणी, अने परमार्थ कहतां साध्य एक साधन अनेक, एणी रीते सत्तागतना धर्मने साधे. एहवी रीते परम कहतां उत्कृष्टो अर्थ साधवाने रंगी कहता जेहनो चित्त प्रतें रंगाणो छे. अने एहवी रीते चित्त प्रतें रंगाणो त्यारे ? ॥ ४३ ॥ चाल:स्थाद्वाद आत्मसत्ता रुचि समकित तेह । आत्मधर्मनो भासन निर्मल ज्ञानी जेह । आत्मरमणी चरणी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ध्यानो आत्मलीन । आत्मधर्म रम्यो तेणे भव्य सदा सुख पीन ॥४४॥ ___अर्थः-स्याद्वाद आत्मसत्ता रुचि समकित तेह. एटले वली ए मुनि केहवा छे ? तोके स्याद्वाद कहतां अनेकता नयनी अपेक्षाये स्याद्वाद रूप नित्य अनित्यादि आठ पक्षे करीने; आत्मसत्ता रुचि कहतां एहवी रीते पोतानी आत्मसत्ताने ओलखीने तेहने प्रगट करवानी रुचि प्रतें वर्ते. अने एहवी रीते आत्मसत्ता प्रगट करवानी रुचि प्रते वर्ति त्यारे. समकित तेह. एटले तेह कहतां ते मुनिराज शुद्ध भासन रूप सम्यकत्व भावे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ अध्यात्मगीता. करीने सहित जाणवा, अने एहवी रीते सम्यक् भावे करीने सहित होय त्यारे. आत्मधर्मनो भासन निर्मल ज्ञानी ह. एटले आत्मधर्मनो भासन कहतां शुद्ध निश्चय नये करी जोतातो पोतानी आत्यसत्ताने विष ज्ञानादि अनन्त गुण रूप धर्म रह्या छे, तेहनो भासन कहतां प्रतीत प्रते प्रगटे. अने एहवी रीते प्रतीत प्रतें प्रगटी त्यारे निर्मल ज्ञानी जेह. एटले जेह कहतां ते मुनि, अने निर्मल ज्ञानी कहतां ज्ञानावणादि कर्म रूप आर्वणने अभाव; निर्मल जागपणा रूप ज्ञान तेहने प्रगटे. अने एहवी रीने निर्णन नागपणा रूप ज्ञान प्रगट्यो त्यारं, आत्मरमणी चरणी ध्यानी आत्मलीन. एटले आत्मरमणी कहतां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता ते मुनि सदा काल निरंतरपगे पोताना आत्म स्वरूपने विषे रमण प्रत करे. अने एहवी रीते रमण प्रतें करचो त्यारे, चरणी. एटले चरणी कहतां ए शुद्ध चारित्रने विपे जे उपयोग तेहनो जाणवो. अने एहवी रीते शुद्ध चारित्रने विष उपयोग वा त्यारे ध्यानी आत्मलीन. एटले ध्यानी कहता पोताना आत्म स्वरूपना ध्यानने विषे, अने लीन कहतां तेहने विषे सदा काल तलालीन पणे वर्ते. अने एहवी रीते तलालीन पगे वो त्यारे, आत्मधर्म रम्यो तेणे भव्य सदा मुखपीन. एटले आत्मधर्म कहतां शुद्ध निश्चय नये पोतानी आत्मसत्ताने विपे ज्ञानादि अनन्त गुण रूप धर्म रह्यो छे, ते धर्मने ओलखी प्रतीत करी. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अहो भव्य ! अहो उत्तम ! तेहना ध्यानने विषे सदाकाल रम्यो कहता रमण प्रतें कयों अने एहवी रीते रमण करतां थकां सदा सुखपीन, एटले सदा सुखपीन कहतां ते जीवने सदाकाल पीन कहतां पुष्ट सुख प्रते जाणवो. त्यारे शिष्य कहे एहवी रीते पुष्ट मुखनी प्राप्ति केम नीपजे ? ॥ ४४ ॥ ढाल:अहो भव्य तुम्हें ओलखो जैन धर्म । जिणे पामिये शुद्ध अध्यात्म मर्म ॥ अल्प कालै टलै दुष्ट कर्म । पामिये सोय आनन्द शर्म ॥४५॥ अर्थ:-अहो भव्य तुम्हे ओलखो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता.. जैन धर्म. एटले अहो भव्य ! अहो उत्तम ! अहो सुलभबोधी जीवो ! तुम्हे ओलखो जैन धमे. जिन कहतां वीतराग, राग द्वेष थकी रहित एहवा जे सामान्य केवली तेहने विषे राजो समान, एहवा जिनेश्वर देव, त्रिगड़ाने विषे बेसीने वस्तुधर्म जेहवो अंतरंग सत्तागते रह्यो छे तेहवो जे प्रकाश्यो, ते धर्मने ओलखी प्रतीत कर्यो थकी. जेणे पामिये शुद्ध अध्यात्म मर्म. एटले शुद्ध कहतां निर्मल विभाव दशा रूप उपाधि थकी रहित, एहवो अध्यात्मनो मर्म कहतां अंतरंग जाणपणा रूप ज्ञाने करी स्वरूप भासनतारूप मर्म कहतां प्रतीत प्रते प्रगटी अने एहवी रीते स्वरुप भासनतारुप प्रतीत प्रतें प्रगटी त्यारे. अल्प काले टले दुष्ट कर्म. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. एटले अल्प कहतां थोड़ा कालमे, अने दुष्ट कहतां आकरा आत्मगुणने घातना करणहार एहवा ज्ञानावर्णादि जे कर्म टले कहतां नाश प्रते पामे. अने एहवी रीते कर्मनो नाश प्रते थाय त्यारे पामिये सोय आनन्द शर्म. एटले स्व कहतां पोतानो आत्मिक सुखनो आनंद कहतां एहयो आनंद नित्यानंद परम सुख प्रतें, अने शर्म कहतां जेहनो स्व स्थान प्रतें जिहां अनंता सिद्ध परमात्मा वसे छे, एहयो स्वस्थान कहतां घर प्रते पामे. त्यारे शिष्य कहे-जिहां अनंता सिद्ध परमात्मा वसे छे ते घर प्रतें केम पामिये ? ॥ ४५ ॥ चाल:नय निक्षेप प्रमाणे जाणे जीवा. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जीव । स्व पर विवेचन करतां थाये लाभ सदीव ॥ निश्चे ने व्यवहारे विचरे जे मुनिराज । भवसागरना तारण निर्भय तेह जहाज ॥४६॥ अर्थ:-नय निक्षेप प्रमाणे जाणे जीवा. जीव. एटले नय कहतां नैगमादि सात नये करी, अने निक्षेप कहतां नामादि. चार निक्षेपे करी, जाणे जीवाजीव एटले जाणे जीवाजीव कहतां जीव अजीव रूप नव तत्व षट् द्रव्यनो स्वरूप प्रते जाणे तेहने साधु श्रावकपणो जाणवो. त्यारे शिष्य कहे-नैगमादि सात नये करी, अने नामादि चार निक्षेपे करी जीव अजीव रूप नव तत्व www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. षद्रव्यनो स्वरूप किम जाणिये ? त्यारे हि प्रथम गुरु कृपा करि, सात नये नव तत्वनो स्वरूप प्रतें ओलखावे छे. एटले नैगम नयने मते सर्वे तत्व छ, जे कारण सर्वे तत्वने चाहे छ १. त्यारे संग्रह नयना मतवालो सर्वनो संग्रह करी बोल्यो ( कहे )-एक तत्व. एटले जेहने मन मान्यो ते तत्व, बीजा सर्वे अतत्व जाणवा २. एटले व्यवहार नयना मतवाले बाह्य स्व. रूप देखीने भेद वेंहचवा मांड्या. एटले ए नयना मतवालो दीसता गुण देखे ते माने, माटे बे तत्व-एटले एक जीव तत्व १ अने बीजो अजीव तत्व २. एटले प्रथम जीवना बे भेद-एक सकल कर्म क्षय करी लोकने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १४५ अंते विराजमान ते सिद्ध, अने वाकीना बीजा संसारी. ते संसारीना बे भेद-एक अयोगी अने बाकी बीजा सयोगी. एटले चौदमा गुणस्थानना जीव ते अयोगी, बाकी बीजा सयोगी. ते सयोगीना वे भेद-एक केवली, बाकी बीजा छद्मस्थ. एटले तेरमा गुणस्थानना जीव ते केवली अने वाकी बीजा छद्मस्थ. एटले छद्मस्थना बे भेद-एक क्षीणमोही अने बाकी वीजा उपसंतमोही. एटले बारमा गुणस्थानना जोव ते क्षीणमोही अने बाकी बीजा उपसंतमोही ते उपसंतमोहीना बे भेद-एक अकषाई बोजा सकषाई. एटले अग्यारमा गुणस्थानना जीव ते अकपाई, अने बाकी बीजा सकषाई. ते सकषाईना बे भेद, एक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ अध्यात्मगीता. सूक्ष्मकषाई अने बाकी बीजा बादरकपाई. एटले दशमा गुणस्थानना जीव ते सूक्ष्मकषाई अने बाकी बोजा बादरकपाई ते बादरकपाईना वे भेद एक श्रेणीप्रतिपन्न, अने बीजा श्रेणीरहित. एटले आठमा नवमा गुणस्थानना जीव ते श्रेणीप्रतिपन्न अने बाकी बोजा श्रेणी रहित. ते श्रेणीरहितना वे भेद एक अप्रमादी अने बाकी बीजा सर्वे प्रमादी. एटले सातमा गुणस्थानना जीव ते अप्रमादी, अने बाकी बीजा सर्वे प्रमादी. ते प्रमादीना वे भेद - एक सर्व विरति अने वीजा देश विरति. ते देशविरतिना बे भेद - एक विति परिणाम अने वीजा अवितिपरिणाम. ते अविर्त्तिना वे भेद - एक अविति समकिती अने बीजा मिथ्यात्वी. ते मिथ्या www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. त्वीना बे भेद-एक भव्य, बीजा अभव्य. ते भव्यना बे भेद-एक गंठीभेदो अने बीजा जीव गंठी अभेदो. एटले एणी रीते व्यवहार नयना मतवालो जेहवो देखे तेहवा भेद उहचे. वली जीवना बे भेद-एकत्रस १ अने बीजा थावर २ एटले थावर कहतां पृथ्वी १ अप २ तेउ ३ वायु ४ अने वनस्पति ५ ते सूक्ष्म अने बादर करतां १० ( दश ) भेद अने पर्याप्तो अने अपर्याप्तो करतां २० भेद जाणवा. अने प्रत्येक वनस्पति पर्याप्तो अने अपर्याप्तो, एणी रीते एकेन्द्री थावरना २२ भेद जाणवा. हिवे त्रसनो स्वरूप कहे छे. एटले त्र. सना ४ भेद-देवता १ नारकी २ तिर्यंच ३ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अने मनुष्य. ४ ते मध्ये देवताना ९९ भेद पर्याप्ता अने अपर्याप्ता थईने १९८ भेद जाणवा. नारकीना सात पर्याप्ता, अपर्याप्ता थईने १४ भेद. अने तिर्यच जीव, गर्भज, समुच्छिम एणी रीते पर्याप्ता अने अपर्याप्ता थईने २६ भेद. * मनुष्यना १०१ भेद पर्याप्ता अने अपर्याप्ता थईने २०२ अने १०१ समुच्छिम, एणी रीते ३०३ भेद. इम सर्वे त्रस थावरना थईने व्यवहार नयने मते * बेन्द्री १ तेन्द्री २ चौरिद्रीना ३ पर्याप्ता अपर्याप्ता करने ६ भेद अने पंचईन्द्री तिथंचना २० भेद, जलचर १ थलचर २ खेचर ३ उरपरि ४ भुजपरि ५ ना पर्याप्ता अपर्याप्ता, गर्भन अने छमुछिम करने सर्व २६ भेद जाणवा, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. जीवना ५६३ भेद जाणवा ॥ १ ॥ हिवे अजीवना भेद वेहवे छे. ( देखाड़े हे ) एटले अजीवना २ भेद - एक रूपी अने बीजा अरूपी एटले अरूपी कहतां धर्मास्तिकाय स्कन्ध ( खंध ) १ देश २ अने प्रदेश ३. अधर्मास्तिकाय स्कन्ध ( खंध ) १ देश २ अने प्रदेश ३. आकास्तिकाय स्कन्ध ( खंध ) १ देश २ अने प्रदेश ३. अने अदा कहतां काल. सर्वे थईने १० भेद जाणवा. हवे धर्मास्तिकाय द्रव्यथकी १ क्षेत्रथकी २ कालथकी ३ भावथकी ४ नेगुणथकी ५. एणी रीते अधर्मास्तिकाय, आकास्तिकाय, तथा काल सर्वे थईने २० भेद जाणवा. अने आगला १० भेद मांही भेलतां अरूपीना सर्वे www.kobatirth.org १४९ For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० अध्यात्मगीता. थईने ३० भेद जाणवा ॥ २ ॥ हिवे रूपी अजीवनो स्वरूप कहे छे. एटले रूपी कहेतां ( स्पर्श ) फरसना ८ गन्धना २ रसना ५ वर्णना ५ संस्थानना ५ एणी रीतें २५ भेद ते मध्ये पांच रसना १०० पांच वर्णना १०० पांच संस्थानना १०० अने आठ स्पर्श अने बे गन्ध ए दशना २३० एटले सर्वे थईने रूपीना भेद ५३० कहिये. एणी रीते व्यवहार नयने मते अजीवना रूपी अरूपीना थईने ५६० भेद जाणवा ॥ ३ ॥ एणी रीते व्यवहार नयने मतवाले जीव अजीव रूप बे तनी वेहचण करी देखाड़ी www.kobatirth.org . वली शिष्य कहे - रिजु सूत्र नयने मते करी ती स्वरूप केम जाणिये ? त्यारे For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता १५१ गुरु कहे - कोई जीव शुभाशुभ परिणामे करी पुण्य पाप रूप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीव कहिये. एटले ए चार नय मे ए छ तत्त्व जाणवा ॥ ४ ॥ वली शिष्य कहे - शब्द नयने मते करी तत्वनो स्वरूप केम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे - शब्द नयने मते चोथे गुणस्थाने समकिती जीव, पांचवे गुणस्थाने देशविरती जीव, छठे सातवें गुणस्थाने सर्वविरती जीव, अन्तरंग सत्तागत ना भासन रूप संवर भाव में वर्तता समय २ महा निर्जरा प्रते करे छे ||५| वली शिष्य कहे - समभिरूढ नयने मते करी तaat स्वरूप किम जाणिये ? त्यारे तत्व गुरु कहे जे ए नयना मतवालो श्रेणी भावने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ग्रहे छे, माटे नवमा दशमा गुणस्थानथी मांडी यावत् तेरमां चौदमा गुणस्थान पर्यंत केवली भगवान पिण संवरभावमे वर्तता महानिरी प्रतें करे छे ८ तेहने भव शरीर आश्रये द्रव्य मोक्ष पद कहिये ॥ ६॥ ॥ ९॥ अने एवंभूत नयने मते सकल कर्म क्षयकरी लोकने अंते विराजमान सादिअनंतमे भागे वर्त्तता एहवा सिद्ध परमात्मा तेहने भाव मोक्ष पद कहिये ॥ ७ ॥ ९ ॥ एणी रीते साते नये करी तत्वनो स्वरूप जाणवो. . हिवे नामादि ४ निक्षेपे करी षट् द्रव्यनो स्वरूप ओलखावे छे. एटले नामजीव कहतां नैगम नयने मते गये काले जीवतो हतो आगामी काले जीवसे अने वर्तमान काळे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १५३ पिण जीवे छे. एहवी रीते त्रणे काल एक रूप शाश्वतो वर्त्ते तेहने नामजीव कहिये || १ || अने स्थापनाजीव कहतां जीव एहवा अक्षर लिखीने थापवा, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थापना रूप जीव जाणवो. अने मांचा नीवाणमां जीव ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप जीव जाणवो ॥ २॥ अने द्रव्यजीव कहतां रिजु व्यवहार नयने मते एकेद्री थकी पंचेंद्री पर्यंत पहिले गुणस्थाने अनाउपयोगे मिध्यात्व भावे वर्त्ते तेहने द्रव्यजीव कहिये. ( अणुवओगो दृवं ) ए अनुयोग द्वार सूत्रनो वचन हे ॥ ३ ॥ अने भावजीव कहतां शब्द नयने मते चौथा गुणस्थान सुं मांडी, यावत् छठा सातमा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ अध्यात्मगीता. गुणस्थान पर्यंत जीव अजीवनी ओलखाण, स्व परनी वेहचण करी जीव स्वरूपना उपयोगमां समकित भावे वर्त्ते तेहने भावजीव कहिये. ( उवओगोभावं ) ए अनुयोग द्वारनी साख है || ४ || एणी रीते चार निक्षेपामे पांचे नये करी जीवनो स्वरूप जाणवो. हिवे नामकी धर्मास्तिकाय ऐसो नाम १. अने स्थापना थकी धर्मास्तिकाय ऐसा अक्षर लिखवा, ते स्थापना रूप धर्मास्तिकाय जाणवो २. अने द्रव्यथकी धर्मास्तिकाय द्रव्य असंख्यात प्रदेसी ३. अने भावकी धर्मात्तिकाय द्रव्य चलण सहाय रूप जाणवो ४. हिवे नामथ की अधर्मास्तिकाय ऐसो नाम १. अने स्थापना थकी अधर्मास्तिकाय www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ऐसा अक्षर लिखवा, ते स्थापना रूप अधर्मानिकाय जाणवो २. अने द्रव्य थकी अधर्मास्तिकाय द्रव्य असंख्यात प्रदेसी ३. अने भावथकी अधर्मास्तिकाय द्रव्य स्थिर सहाय रूप जाणवो ४. हिये नाम थकी आकोस्तिकाय एसो नाम १. अने स्थापना थकी आकास्तिकाय सेसा अक्षर लिखवा, ते स्थापना रूप आकास्तिकाय जाणवो २. अने द्रव्य थकी आकास्तिकाय द्रव्य अनन्न प्रदेसी ३. अने भावथकी आकास्तिकाय द्रव्य अवगाहना रूप जाणवो ४. ___ हिचे नामथकी कालद्रव्य एसो नाम १. अने स्थापना थकी कालद्रव्य एसो अक्षर www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ अध्यात्मगीता. लिखवा, ते स्थापना रूप काल जाणवो२. अने द्रव्य थकी कालनो एक समय लोकमे सदा काल शाश्वतो वर्ते छे३. अने भाव थकी काल द्रव्य नवां पुराणो वर्तना रूप जाणवो ४. हिवे भावथकी पुद्गलास्तिकाय ऐसो नाम १. अने स्थापना थकी पुद्गलास्तिकाय ऐसा अक्षर लिखवा, ते स्थापना रूप पुद्गलास्तिकाय जाणवो २. अने द्रव्यथकी पुद्गल द्रव्यना अनन्ता परमाणुंवा लोकमे सदा काल शाश्वता वर्ते छे ३. अने भाव थकी पुद्गल द्रव्य गलण पूरण मिलण विखरण रूप जाणवो ४. ॥६॥ एणी रीते जीव अजीव रूप षट् द्रव्य मे चार चार निक्षेपा जाणवा. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. हिवे नव तत्व नो स्वरूप नय रूप चार निक्षेपे करी ओलखावे छे. तिहां प्रथम जीव अजीव रूप पट् द्रव्य नो स्वरूप कहो. हिवे उदय भाव रूप पुण्य में निक्षेपा उतारे छे. एटले नाम पुण्य कहतां नैगम नयने मते गये काले पुण्य एहवो नाम वर्ततो हतो अने आवते काले पिण पुण्य एहवो नाम वर्तस्य. अने वर्तमान काले पिण ते नाम वर्ते छे. एहवी रीते नैगम नयनें मते त्रणे काल एक रूप साश्वतो वर्ते, तेहने नाम पुण्य कहिये १ अने स्थापना पुण्य कहतां पुण्य ऐसा अक्षर लिखीने थापा ते संग्रह नयने मते असदभाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो अने कर्म सचाना प्रकृति रूप दलीया जीवनी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सत्ताये लागा छे, ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो २ अने द्रव्यपुण्य कहतां उदय भाव न जोगे व्यवहार नयने मते ते दलीयानो उदय थयो ते भव शरीर आश्रय उदय भाव रूप द्रव्य पुण्य जाणवी . अने भाव पुण्य कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पुण्य रूप दलीयानो भोगवणो ते भाव रूप पुण्य जाणवो. हिवे पुण्य रूप करणीनो करवो, ते ऊपर निक्षेपा लगावे छे. एटले नाम पुण्य कहतां पुण्य एहवो नाम ते नैगम नयने मते त्रणेकाल एक रूप पणे वर्ते छे १. अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. स्थापना पुण्य कहतां पुण्य ऐसा अक्षर लिखीने थापवा, ते संग्रह नयनें मते असदभाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो. अने कोई जीव पुण्य रूप करणी करे छे एहवी मर्ति स्थापवी, ते सदभाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो २. अने द्रव्यपुण्य कहतां ऊपर थकी अरुचि भावे अणा उपयोगे व्यवहार नयने मते पुण्य रूप करणीनो करवो, ते सर्वे तद्वित् शरीर आश्रय द्रव्य पुण्य जाणवो ३. अने भाव पुणय कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी एक चित्ते व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पुण्य रूप करणीनो करवो ते सर्वे भाव पुण्य जाणवो ४. हि उदय भाव रूप पापमा निक्षेपा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० अध्यात्मगीता. लगावे छे. एटले नाम थकी पाप कहतां पाप ऐसो नाम ते नेगम नयने मते त्रगे काल एक रूप पणे वर्ने छ १. अने स्थापना पाप कहतां पाप अक्षर लिखीने स्थापवा ते संग्रह नयने मते असद् भाव स्थापना पाप जाणवो. अने कर्म सत्ताना प्रकृति रूप दलीया, जीवनी सत्ताये लागा छे ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप पाप जाणवो २. अने द्रव्य पाप कहतां उदय भावने जोगे व्यवहार नयने मते ते दलीयांनो उदय थयो ते सर्वे भव शरीर आश्रय उदय भाव रूव द्रव्य पाप जाणको ३ अने भाव पाप कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन कायाये करी व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पाप रूप दलीयानो भोगवणो ते सर्वे भाव www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. रुप पाप जाणवो ४. हिवे पाप रुप करणीनो करवो ते ऊपर निक्षेपा लगावे छे एटले नाम पाप कहतां पाप ऐसो नाम, ते नैगम नयने मते त्रणे काल एक रुप पणे वर्ते छे. १. अने स्थापना पाप कहतां पाप एहवा अक्षर लिखीने थापवा, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थापना रुप पाप जाणवो. अने कोई जीव पाप रुप करणी करे हे एहवी मूर्ति स्थापवी ते सद्भाव स्थापना रूप पाप जाणवो २ अने द्रव्य पाप कहतां ऊपर थकी अरुचिभावे अगाउपयोगे व्यवहार नयने मते पाप रूप करणीनो करवो, ते सर्वे तद्वित (तव्यतिरिक्त ) शरीर आश्रय द्रव्य पाप जाणवो www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ अध्यात्मगीता. ३. अने भावपाप कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन रूप, कायाये करी एकचिते व्यवहार नयने मते उपरथकी पाप रूप करणीनो करवो, ते सर्वे भावपाप जाणवो ४. हिवे आश्रव मे निक्षेपा लगावे छे. एटले नामआश्रव कहतां आश्रव ऐसो नाम, ते नैगम नयने मते त्रणे काल एक रूप पणे वत्त छे १. अने स्थापनाआश्रव कहतां आश्रय एहवा अक्षर लिखीने स्थापवा, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थापना रूप आश्रव जाणवो, अने आश्रय रूप मूर्ति स्थापवाने संग्रह नयनें मते सद्भाव स्थापना रूप आश्रव जाणवो २. अने द्रव्यआश्रय कहतां बेतालीस प्रकार रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १६३ आश्रव नें घड़नाले करी व्यवहार नयने मते शुभाशुभ आश्रव रूप दलीयानो ग्रहण करवो ते सर्वे तद्वित् शरीर आश्रय, द्रव्याश्रव कहिये ३. अने भावआश्रव कहतां रिजु व्यवहार नयने मते मन, वचन, कायाये करी उदयभावने जोगे ते दलियानो भोगवणो, तेहने उदयभाव रूपभाव आश्रव कहिये ४. हिवे संवर मे निक्षेपा उतारे छे. एटले नामसंवर कहतां जे संवर ऐसो नाम, ते नैगम नयने मते त्रणे काल एक रूप जाणवो २. अने स्थापनासंवर कहतां जे संवर ऐसा अक्षर लिखीने स्थापना, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थानना रूप संवर जाणवो. अने संवर रूप मूर्ति स्थापवी, ते संग्रह नपने मते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. सद्भाव स्थापना रूप संवर जाणवो २. अने द्रव्यसंवर कहतां जे व्यवहार नयने मते उपरथकी अरुचि भावे लोक देखाडवा रूप पोषापडिकमणा सामायक आदे अनेक प्रकारे संवरनी करणी करवी, ते सर्वे तदवित् शरीरआश्रय द्रव्यसवर वृथा रूप जाणवा ३. अने भावसंवर कहतां जे रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी यथाप्रवृत्ति रूप करणना परिणामे पोसा पडिकमणां व्रत पचक्खाण आदे व्यवहार नयने मते ऊपरथकी संवर रूप करणाना करवो ४. एटले ए च्यार नयना च्यार निक्षेपा यथाप्रवृत्ति करण रूप संवर जागवो. वलि नाम थकी संवर कहता जे संवर www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ऐसो नाम, ते नैगम नयये मते जाणवो १. अने स्थापना थकी संवर कहता जे संवर ऐसा अक्षर लिखोनें स्थापवा, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थापना रूप संवर जाणवो. अने संवर रूप मूर्ति स्थापवी, ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप संवर जाणवो २. अने द्रव्यसंवर कहतां जे रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी व्रत पचक्वाण रूप उपरथकी व्यवहार नयने मते संवर रूप करणीनो करवो, ते सर्वे तद्वित शरीर आश्रय द्रव्य संवर जाणवो ३. अने भाव संवर कहतां जे शब्द नयने मते जीव अजीव रूप, स्वसत्ता पर सत्तानी वेचण करी स्थिरता रूप परिणामे आगल द्रव्य निक्षेपा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. मध्ये रिजु व्यवहार नये संवर रूप करणी कही, ते करता थकां महा निर्जरा प्रते करे ते सर्वे भाव संवर जाणवो. एणी रीते संवर में पांच नय में चार निक्षेपा जाणवा ४. हिवे निर्जरामे निक्षेपा उतारे छे. एटले नाम थकी निर्जरा कहतां जे निर्जरा एसो नाम, ते नैगम नयने मते त्रणे काल एक रूप पणे जाणवो १. अने स्थापना थकी निर्जरा कहतां जे निर्जरा एसा अक्षर लिखवा, ते संग्रह नयने मते स्थापना रूप निर्जरा जाणवी २. अने व्यनिर्जरा कहता जे व्यवहार नयने मते रिजु सूत्रना उपयोग सहित मिथ्यात्व भावे अकाम निर्जरा कावी, ते सर्वे तद्वित् शरीर आश्रय द्रव्यनिजरा जाणवी ३. अने www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता.. भावनिर्जरा कहतां जे शब्द नयने मते जीव अजीव रूप षट् द्रव्य नव तत्व जाणपणो प्रतीत करी, रिजुना उपयोग सहित ऊपर थको व्यवहार नयने मते बारे भेदे तपस्या रूप करणीनो करतो, ते भावनिजरा जाणवी ४. एणी रीते पांच नयमां चार निक्षेपा निर्जरा रूप जाणवा. हिवे बंधमे निक्षपा उतारे छे. एटले नाम थकी बंध कहतां जे बंध एसो नाम, ते नैगम नयने मते जाणवो १. अने स्थापना थकी बंध कहतां जे बंध ऐसा अक्षर लिखीने स्थापना, ते स्थापना रूप बंध जाणवो २. अने द्रव्य थकी बंध कहतां जे प्रकृतिबंध, स्थिति बंध, रसबंध, मदेशवंध; एणी रीते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता चार प्रकार बंध रूप दलीयां जीवनी सत्ताये बांध्यां छे; ते संग्रह नयने मते कर्मसत्ता रूप भव शरीर आश्रय द्रव्यबंध जाणवो ३. अने भावबंध कहतां जे व्यवहार नयने मते ते दलीयानो उदय थयो, ते उदय भाव रूप भाव बंध जाणवो ४. एणी रीते उदय भाव रूप बंध त्रण नयमां ए च्यार निक्षेपा जाणवा. बली नामथकी बंध कहतां जे बंध ऐसो नाम, ते नैगम नयने मते जाणवो १. अने स्थापना थकी बंध कहतां जे बंध ऐसा अक्षर लिखवा अथवा बंध रूप मूर्ति स्थापवी, ते स्थापना रूप बंध जाणवो २. अने द्रव्यबंध कहतां जे आगल चार प्रकारे बंध रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. दलीया संग्रह नयने मते जीवनी सत्ताये रह्या छे, तेहनो स्थिति पाके व्यवहार नयने मते उदय थयो, ते सर्वे तद्वित् शरीर आश्रय द्रव्यबंध जाणवो ३. अने भाव थकी बंध कहतां जे रिजु सूत्र नयने मते मिथ्यात्व अवृत्त कषाय योग रूप सत्तावन ५७ बंध हेतु प्रमुख जीवना परिणाम, एटले तेहनी चिकासे, वली पाछो कर्म रूप दलीयानो बंध पाड़े माटे रिजु सूत्र नयने मते तेहने भावबंध कहिये ४. एणी रीते बंधमें चार नयमां चार निक्षेपा जाणवा. हिवे मोक्षनीकर्म अवस्थामे निपेक्षा उतारे छे. एटले नाम थकी मोक्ष कहतां जे मोक्ष ऐसो नाम १. स्थापना थकी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. मोक्ष कहतां जे मोक्ष रूप मूर्ति स्थापवी अथवा मोक्ष ऐसा अक्षर लिखवा २. अने द्रव्यमोक्ष कहतां जे समभिरूढ़ नयने मते शुद्ध शुक्लध्यान रूपातीत परिणाम रूप क्षपक श्रेणीये अज्ञान रूप राग द्वेपने मोहनी कर्मनो करचो क्षय बारमे गुणस्थाने, अने केवल ज्ञान पाम्यां, एहवा केवली भगवानने भव शरीर आश्रय द्रव्यमोक्ष पद कहिये ३. अने भावमोक्ष कहतां जे एवंभूत नयने मते अष्ट कमने क्षये, अष्ट गुण सम्पन्न लोकनें अंते विराजमान एहया सिद्ध परात्माने भावमोक्ष पद जाणवो ४. एणी रीते जी अजीव राव पट द्रव्य, नव तत्वमे नय संयुक्त निक्षेपा गाणवा. अने प्रमाणे कहतां प्रत्यक्ष अने परोक्ष www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ए बे प्रमाणे करीने जेणे नव तत्व, षट् द्रव्यनो स्वरूप प्रते जाण्यो छे. अने एहवी रीते जीव अजीव रूप नव तत्व पट द्रव्यनो स्वरूप नय निक्षेप प्रमाणे करीने जाण्यो त्यारे. स्व पर विवेचन करतां थाये लाभ सदैव. एटले स्व पर विवेचन करतां कहतां जीव अजीवनो स्वरूप भिन्न २ प्रकारे जाणीने बेहचे. त्यारे शिष्य कहे-जीव अजीवनो स्वरुप भिन्न २ प्रकारे करी किम जाणे ? त्यारे गुरु कहे-जीव छे ते ज्ञानादि चेतनारूप गुण करीने सहित निश्रय नये करीने सत्ताये सिद्धसमान सदा काल शाश्वतो वर्ते छे. अने व्यवहार नये करी जीवने पुण्य पाप रूप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ अध्यात्मगीता. शुभाशुभ फलनो भोक्ता जाणवो अने अजीव कहतां पांचद्रव्य + चेतनारहित अजीवरूप जड़स्वभाव (ते) न जाणे सुखने, न जाणे दुःखने. त्यारे शिष्य कहे-ए तो सामान्य प्रकारे अर्थ कह्यो पिण विशेष रीते स्वपरनी वेहचणरूप जीवनो स्वरूप किम जाणिये ? त्यारे गुरू कहे-एगोहं. एटले एगोहं कहता हुं एक छ, म्हारो कोई नथी १. सासियो अप्पा. एटले सासियो अप्पा कहतां म्हारो जीव शाश्वतो छ २. नाण दंशण संयुक्तो. एटले नाण दंशण संयुक्तो कहता हूं ज्ञान दर्शणे करीने सहित - - IYum mentRMONT + धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय २ आकाशास्तिकाय ३ पुद्गलास्तिकाय ४ ओर काल ५. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १७३ सो सविवाहिरो भावा, ते सर्वे संयोग लक्षणा. एटले सो सविवाहिरा भावा कहतां जे म्हारा स्वरूप थकी बाह्य वस्तु कहतां जे अलगी ते सर्वे संयोगे मिली छे अने वियोगे जाशे, तेहमां म्हारे श्यो विगाड़ थाशे ? ४. अने संयोग मूला जीवाणं. एटले संयोग मूला जीवाणं कहतां ए संयोगी वस्तुने विष जीव मुंझाणो. एटले पत्ता दुःखं परम्परा. एटले पत्ता दुःखं कहतां ते जीव दुःखनी पर. म्परा प्रते पामे ५. ___माटे, तमहं संयोग संबंध. एटले तमहं संयोग सम्बन्ध कहतां ए संयोगी वस्तु म्हारा स्वरूप थकी भिन्न कहतां जुदी छे-ए शरीरादि पुत्र कला परिवार प्रमुख ६. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ अध्यात्मगीता. सतिविहेण वोसरे. एटले सर्वतिविण कहता हुं मन, वचन, कायाये करीने वोस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राखुं हुं ७. हुं चेतन हूं, ए पुद्गलनो स्वभाव ते अचेतन छे ८. हुं अरूपी हूं, ए पुद्गल रूपी छे. म्हारो ज्ञानादि चेतना लक्षण स्वभाव छे, आ पुद्गलनो जड़ स्वभाव छे ९. हुं अमूर्त्तितुं, आ पुद्गल मूर्त्ति है १०. हु स्वभाविक छं, आ पुद्गल विभाविक छे ११. हुँ शुचि कहतां पवित्र छु, आ पुद्गल अपवित्र छे १२. म्हारो शाश्वतो स्वभाव छे, आ पुदलीक www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अध्यात्मगीता. २७५ वस्तु मने मली छे, ते सर्वे अशाश्वती है १३. म्हारो ज्ञानादि रूप छे, आपुदगलनो पुरण गलण रुप छे. १४. म्हारो अचलित स्वभाव छे. एटले किवारे स्वरूपथकी चलूं नहीं, अने पुद्गलनो चलित स्वभाव छे ९१५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म्हारो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, मयी स्वरुप छे, आपुदगलनो वर्णगंधादि रूप छे, हुं वर्णगंधादिक सुं रहित छं १६. सुधोहं. एटले सुधोहं कहतां हुं शुद्ध निर्मल छं १७. बुधोहं. एटले बुधोहं कहतां हुं ज्ञानानंद निर्विकल्पोऽहं. एटले निर्विकल्पोहं कहतां छं १८. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ अध्यात्मगीता. हुं सर्वे विकल्प सुं रहित छु म्हारो स्वरूप न्यारो छे १९. देहातीdist. एटले देहातीतोऽहं कहतां आ देह रूप जे शरीर तेह थकी हुं रहित छं. २०. अने अज्ञान राग द्वेष रूप जे आश्रव ते म्हारो स्वरूप नहीं, हुं एण सो न्यारो छं. २१. अनंत ज्ञानमयी, अनंत दर्शनमयी, अनंत चारित्रमयी, अनंत वीर्यमयी ए म्हारो स्वरूप छे. २२. शुद्ध. एटले शुद्ध कहतां हुं कर्म रुप मलमुं रहित हूं २३. बुद्ध. एटले बुद्ध कहता हु ज्ञानस्वरूपी छं. २४. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता, अविनाशी एटले अविनाशी कहतां म्हारो कोई काले नाशपणो नथी २५. __अजरा. एटले अजरा कहता हूं जरा { रहित छ् २६. ___ अनादि. एटले अनादि कहतां म्हारी आदि नर्थः २७. अनंत. एटले अनंत कहतां म्हारो कोई काले अंत कहतां छेडो पिण नथी २८. ___अक्षय. एटले अक्षय कहतां म्हारो कोई काले क्षय नथी २१. अक्षर एटले अक्षर कहता हूं कोई काले खरूं नहीं ३७. ___ अचल. एटले अचल कहता हूं कोई काले स्वरूप सूं चलूं नहीं ३१. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मध्यात्मगीता. अकल. एटले अकल कहतां म्हारो स्वरूप केग सूं कल्यो जाय नहीं ३२. अमल. एटले अमल कहता हूं कर्म रूप मलमूं रहित न्यारो छु ३३. ___अगम. एटले अगम कहतां म्हारी कोयने गम नथी ३४. ____ अनामी. एटले अनामी कहता हूं नाम सूं रहित न्यारो छु ३५. __अरूपी. एटले अरूपी कहतां हुं ए विभाव दशाना रूप सुं रहित छु ३६. अकर्मी. एटले अकर्यां कहतां हुं कर्म रूप उपाधि मुं रहित ९ ३७. अबंधक. एटले अबंधक कहता हुं कर्म www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १७९ रूप बंधन मुं रहित, म्हारो खेल न्यारो छ ३८. ___अणुदीय. एटले अणुदीय कहता हुँ उदय भाव सुं रहित छु ३९. ___ अयोगी. एटले अयोगी कहता हुँ मन, वचन, कायाना योग मुं न्यारो छ ४०. __अभोगी. एटले अभोगी कहता हुँ शुभाशुभ रूपविभाव दशाना भोग सुं रहितछु ४१. ____ अरोगी. एटले अरोगी कहतां हुं कर्म रूप रोग सुं न्यारो छु ४२. ___अभेदी. एटले अभेदी कहता हुं कोईनो भेद्यो भेदाऊ नहीं ४३. ___अवेदी. एटले अवेदी कहता हुं त्रण वेद मुं न्यारो छु ४४. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૮૦ अध्यात्मगीता. अछेदी. एटले अछेदी कहतां हुं कोईनो छेदयो छेदाऊं नहीं ४५. अखेदी. एटले अखेदी कहतां हुं स्वरूप रमण मे खेद पाएं नहीं ४५. असखाई. एटले असखाई कहतां म्हारे कोइ सखाई भूत ( साक्षीभूत ) नथी. हुं म्हारे पराक्रमे करी सहित हुं पिण म्हारा अबला ( उलटा ) परिणमन थकी बंधाणी लुं ४७. अने हुं सवलो ( सुलटो ) प्रणमीस त्यारे छुटी. पण मने कोई बांधवा छोटवा सामर्थवान् नथी ४८. अलेशी. एटले अलेशी कहता हुंछ ६ लेश्याथी रहित न्यारो अने लेश्यारूप ते Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. पुद्गल छे, अने म्हारो रूप ते ज्ञानानंद छे ४९. अशरीरी. एटले अशरीरी कहता हुं शरीर रूप जड़ मुं रहित शुद्ध, चिदानंद, पूर्ण ब्रह्म छु ५०. __अभाषी. एटले अभाषी कहता हुँ भाषा रूप पुद्गल में रहित पूरण देव छ. ए भाषा रूप ते पुद्गल छे ५१. अनाहारी, एटले अनाहारी कहता हुँ च्यार* आहार रूप पुद्गलना भोग से रहित, अने पर्याय रूप भोगना विलासी छु ५२. अव्यावाध. एटले अव्यावाध कहता हूं *असणं १ पाणं २ खादिम् ३ स्वादिम् ४ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ अध्यात्मगीता. बाधापिड़ा रूप दुःख सुं रहित-अनंत सुख विलासी छु ५३. अनअवगाही. एटले अनअवगाही कहतां म्हारो स्वरूप कोई द्रव्य अवगाहि सके नहीं ५४. __अगुरुलघु. एटले अगुरु कहतां मोटो नहीं. अने अलधु कहतां छोटो पण नथी. वली भारे नहीं, हलवो नहीं ५५. ___ अपरिणामी. एटले अपरिणामी कहतां हुं मन रूप परिणाम सुं रहित छु ५६. अनेन्द्री. एटले अनेन्द्री कहता हुँ इंद्री रूप विकार मुं रहित-न्यारो, इच्छायोगी छु ५७. अपाणी एटले अपाणी कहता हुं दश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. प्राण रूप पुद्गल सुं रहित. म्हारो खेल न्यारो छे ५८. __ अयोनी. एटले अयोनी कहता हुं चोरासी लाख जीवायोनी रुप परिभ्रमणपणा मुं रहित, निश्चय देव छु ५९. .. असंसारी. एटले असंसारी कहतां हुं चार गति रूप संसार सुं रहित; पूरण आत्माराम © ६०. __अमर. एटले अमर कहता हुं. जन्म, जरा, मरण रुप दुःख सुं रहित छु ६१. अपर. एटले अपर कहतां हुं सर्व परम्परा मुं रहित, म्हारो खेल न्यारो छे ६२. अव्यापी. एटले अव्यापी कहतां ए विभाव रूप जड़पणा सुं रहित, हुं म्हारा www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. स्वरूप में सदाकाल व्यापी रह्यो छ ६३. ___अनास्ति. एटले अनास्ति कहता म्हारो कोई काले नास्तिपणो नथी. हुं म्हारा स्वद्रव्यादिके करीने सदाकाल अस्तिपणेज वर्तु छ ६४. अकंप. एटले अकंप कहता हूं कोईनो कंपायो कंपू नहीं. एम अनंतवीर्य रूप शक्तिनो धणी छु ६५. अविरोध. एटले अविरोध कहता हुं कर्म रूप शत्रुनो रोध्यो रुंधाऊं नहीं, सदा काल निर्लेप कर्म रूप मल सुं रहित न्यारो, हुं म्हारे परिणामिक भावे रह्यो वर्त छु ६६. अनाश्रव. एटले अनाव कहतां हुं शुभाशुभ विभाव दशा रूप आश्रव सुं रहित www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १८५ सदा काल न्यारो वर्त छं. जेम डंकने संयोगे स्फटिकने कलंक लागे पिण मूल स्वभावे जोतांतो स्फटिक शुद्ध निर्मलो छे, तेम हुँ म्हारे स्वभावे निर्लेप रह्यो वर्तु छ ६७. अलख. एटले अलख कहतां म्हारो स्वरूप छद्मस्तने लख्या मे न आवे ६८. __अशोक. एटले अशोक कहता हुं जन्म, जरा, मरण भय रूप शोक संताप सुं रहित सदा काल निरोगी, अमर रूप वर्ने छु ६९. अलोक. एटले अलोक कहता हुं लौकिक मार्ग सुं रहित, म्हारो खेल न्यारो वर्ते छे ७०. ___लोकालोकज्ञायक.एटले लोकालोकज्ञायक कहता हूं ज्ञाने करीने लोकालोकनो स्वरूप एक समयमे जाणवा सामर्थवान् छु ७१. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ अध्यात्मगीता. शुद्ध एटले निर्मल, कर्मरूप मलमुं रहित छु ७२. चिदानंद एटले चिद् कहता ज्ञान अने नंद कहतां आनंद चारित्र रूप तेणे करीने हुँ सहित वर्तुं छु एहवो म्हारो स्वरूप सदा काल शाश्वतो छ. ७३. एहवी रीते,एम वेहचण करतांथाये लाभ सदैव. एटले-थाये लाभ सदैव कहतां एहवी रीते अंतरंग भासन रूप वेहचण करतां थका ते जीवने सदैव कहतां सदा काल निरंतरपणे लाभ प्रते नीपजे. एटले एहवी रीते सदा काल लाभ प्रते केम नीपजे ? तोके निश्चने व्यवहारे विचरे जे मुनिराय. एटले निश्चेने व्यवहारे कहतां जीव अजीव रूप षट् द्रव्य नव तत्वनो स्वरूप निश्चय ब्यवहार नये www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १८७ जाणपणा रूप अंतरंग प्रतीत करवी, ते थकी लाभ मते नीपजे. त्यारे शिष्य कहे - निश्चय व्यवहार नये जीव अजीव रूप षट् द्रव्य नव तत्वनो स्वरूम किम जाणिये ? त्यारे गुरु कहे — निश्चय नय करी सर्व जीव सत्ताये एक रूप सरीखा सिद्धसमान शाश्वता छे; अने व्यवहार नये करी जीवनी अनेक भांति देवता, नारकी, तिर्यच, मनुष्य रूप जाणवी अने कोई जीव शुभ परिणामे करी पुण्य रूप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीव कहिये ५. ते निश्चय नये करी छोड़वा योग्य अने व्यवहार नये करी आदरवा योग्य. बली कोई जीव अशुभ परिणामे करी www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૮૮ अध्यात्मगीता. पाप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीब कहिये ते निश्चय नये करी छांड़वा योग्य अने व्यवहार नये करी छोड़वा योग्य. हिवे संवरनो स्वरूप कहे छे. एटले व्यवहार नये करी संवरनो स्थरूप कहतां निवृत्ति प्रवृत्ति रूप चारित्र जाणवो. अने निश्चय नये करी संवर कहतां जे पोताना स्वरूपमें रमण करबो. बार हिवे निर्जरानो स्वरूप कहे छे. एटले व्यवहार नये करी निर्जराना भेद जाणवा. अने निश्चय नये निर्जरानो स्वरूप कहतां सर्व प्रकारे इच्छानो रोध कर पोताना स्वरूप मे समता भाव वर्त्तवो. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १८९ हिवे मोक्षनी:कर्मावस्थानी स्वरूप कहे छे. एटले व्यवहार नये करी मोक्ष तेरमे चवदबे गुणस्थाने केवलीन कहिये. अने निश्चय नये मोक्षपद कहतां जे सकल कर्म क्षयकरी लोकने अंते विराजमान एहवा सिद्ध परमात्माने जाणवो एणी रीते नवतत्वनो स्वरूप निश्चय व्यवहार करी धारवो. हिवे पट द्रव्यनो स्वरूप निश्चय व्यवहार नय रूप ओलखावे छे. तिहां प्रथम जीवनो स्वरूप आगल कह्यो ते प्रमाणे जाणवो १. हिवे धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकायनो स्वरूप कहे छे. एटले निश्चय नयथकी धर्म अधर्म लोकव्यापी खंध असंख्यात प्रदेश रूप शाश्वतो के अने व्यवहार नयकरी देश www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. प्रदेश अने अगुरु लघु जाणवो ३. हिवे आकास्तिकायनो स्वरूप कहे छे. एटले निश्चयथकी आकास्तिकायनो खंध लोकालोकव्यापी अनन्त प्रदेशी शाश्वती छे, अने व्यवहार नय करी देश प्रदेश अनें अगुरुलघु जाणवा ४. हिवे कालनो स्वरूप कहे छे. एटले निश्चय थकी कालनो एक समय लोकमे सदाकाल शाश्वतो वर्ने छे. अने व्यवहार नय करी काल उत्पांत, व्यय रूप पलटण स्वभावे जाणवा ५. हिये पुद्गलनो स्वरूप कहे छे. एटले निश्चय नये करा पुद्गलना अनंता परमाणु लोक में सदाकाल शाश्वता वर्ते छे. अने व्यवहार नये करी पुद्गलना खंध सर्वे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अशाश्वता जाणवा ६. ___ एणी रीते निश्चय व्यवहारथकी षटद्रव्य नव तत्व नो स्वरूप जाणवो. ए परमार्थ. अने एहवी रीते निश्चय व्यवहार रूप जाण पणे करी साध्यरूप निश्चय दृष्टि अन्तर ने विषे राखी अने निवृत्ति प्रवृत्ति आदि बाह्य व्यवहार रूप क्रिया करता थकां अने विचरे जे मुनिराज; एटले विचरे कहतां रीते स्याद् वाद् रूप जाणपणे करो भव्य प्राणीने हेत उपदेश करतां थका विचरे, जे कहतां ते मुनिराज. अने वली ते मुनि केहवा छे ? भवसागरना तारण निर्भर तेहि जहाज एटले भवसागर कहतां संसार रूप सागर कहता जे समुद्र तेहने विषे भमता भमता अनंता www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ अध्यात्मगीता. कालचक्र वही गया fपण हजी जीव कांठा प्रतें न पाम्यो, एहवो अपगवार जे समुद्र तेहने विषेथी तारवाने ए सुनि केहवा छे ? निर्भय जहाज एटले निर्भय जहाज कहतां एहवा मुनीनी सेवा भक्ति रूप आसना वासना जे जीव करे छे, ते जीव संसार समुद्र मे भ्रमता, निर्भय कहतां भव भ्रमण रूप भय टालवाने निर्भय जहाज प्रते पाम्यो एटले जहाज होय तो पाते तरे अने जहाजने आश्रय तेहने पण तारे. मांटे एहवा जहाजरूप मुनिराज संसार रूप समुद्र पोते तरे, अने भव्य प्राणीने पिण तारे. अने वली ए मुनि केहवा छे ? || ४६ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. ढाल:वस्तु तत्वै रम्या ते निग्रंथ । तत्व अभ्यास तिहां साधु पंथ ॥ तिणे गीतार्थ चरणे रहोजे । शुद्ध सिद्धांत रस तो लहोजे ॥ ४७ ॥ ____ अर्थः-वस्तु तत्व रम्या ते निग्रंथ. एटले वस्तु तत्व कहतां पोताना आत्मानो वस्तु धर्म सत्तागतने विधे अनन्तो रह्यो छे, ते धर्मने ओलखी, प्रतीत करी, अने रम्या कहतां तेहना च्यानने विषे प्रवा. अने वली ए मुनि केहवा छे ? तो के निग्रंथ. एटले निग्रंथ कहतां, चौदह अभ्यंतर, नव विध बाह्यनी गंठो तजे मुनिराज. एटले चौदह www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. अभ्यंतर कहतां त्रण वेद, अने हासादिक पट, एक मिथ्यात्व ए दश, अने क्रोधादिक चार कपाय, ए चौदह प्रकारे अभ्यन्तर; अने धन, धान्य, क्षेत्र, वथु, रू, सावन, दुपय, चउपय, कुवय ए नव प्रकार बाह्य परिग्रहना. अने आगले चौदह प्रकार का ते अभ्यंतर परिग्रह जाणवो. एणी रीते बाह्य अभ्यंतर थइने प्रवीश प्रकारे परिग्रह रूप गंठीने भेदे कहतां छेदे तेहने साध मुनिराज कहिये. अने वली साधु कोने कहिये ? तो के, तत्व अभ्यासे तिहां साधु पंथ एटले तत्व कहतां पोताना आत्मतत्वने निपजावा, अने अभ्यासे कहतां तेहनां अभ्यासने विष सदाकाल निरंतर पणे जेहनो उपयोग प्रते www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. १९५ वत् तिहां साधुपंथ जाणवा. तेणे गीतार्थ चरण रहीज. एटले तेण कहतां ते कारण माटे गीतार्थ मुनि के चरणे रहिजे. अन एहवा गीतार्थ मुनिना चरण कमण सेवा थकी श्यूं नीपजे ? नो के. शुद्ध सिद्धांत रस तो लहिजे एटले शुद्ध कहतां निर्मल यथार्थ निःसंदेह पण सिद्धान्त कहतां एहवा आगम संबंधी या ज्ञान रस प्रते चारखीजे. अने वली ए मुनि केहवा छे ? ।। ४७ ॥ श्रुत अभ्यासी चोमासी वासी लीबड़ी ठाम । शासनरागो सौभागी श्रावकना बहु धाम ॥ खरतर गच्छ पाठक श्री दीपचंद सुप www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ अध्यात्मगीता. साय । देवचंद्र निज हर्षे गायो आतमराय ॥ ४८॥ अर्थ:-एटले श्रुतअभ्यासी कहतां श्रुत ज्ञानने अभ्यासे करीने यथार्थ स्वसत्ता, परसत्ताना भासन रूप उपदेश करतां; अने चौमासी वासी लींबड़ी ठाम. एटले लीबड़ी ग्रामने विषे चौमासो प्रते वसीने ए ग्रंथनी रचना प्रते करी. एटले लींबड़ी ग्राम केहयो छ ? तोके, शासनरागी सोभागी श्रावकना बहु धाम. एटले शासनरागी कहतां जिनशासन ना रागी, जिनशासनना उद्योत ना करणहार, जिनशासननी उन्नति कहतां महिमाना वधारणहार, एहवा सोभागी सिरदार, www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७ यथार्थ भासन रूप आत्मउपयोगी व्यबहार क्रिया रूप आचारना प्रतिपालक, जिनशासन दीपावक, देव गुरु भक्तिकारक, एहवा श्रावक पुण्य प्रभावक, ज्ञानचरचारक एहवा श्रावकना बहु कहतां घणा, अने धाम कहतां वसवाना घर प्रते जाणवा. श्री खरतर - गच्छ पाठक श्री दीपचंद सुपसाय. एटले खरतर गच्छ मध्ये उपाध्याय श्रीदीपचंद गुरुने पसाय कहता प्रसादे करीने; देवचंद्र निज हर्षे गायो आत्मराय. एटले तेहनो शिष्य देवचन्द्र मुनीये, निज कहतां पोताने हर्षे करीने, गायो कहतां संस्तव्यो, अने आत्मराय कहतां आत्मराजानो यथार्थ पणे आत्मिक स्वरूप प्रर्ते वखाण्यो ॥ ४८ ॥ www.kobatirth.org अध्यात्मगीता. For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९८ अध्यात्मगीता. हाल: आत्म गुण रमण करवा अभ्यासै । शुद्ध सत्तारसीने उल्लासै । देवचंद्र रची अध्यात्म -- गीता। आत्म- रमणी मुणी सुप्रतीता ॥ ४९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थः - आत्मगुण रमण करवा अभ्यास एटले आत्मगुण कहतां आत्माना ज्ञानादि अनंत गुणने विषे भव्य जीवने रमण करवा अभ्यासे, एटले तेहने विषे रमण करवा रूप अभ्यासने अर्थे; अने शुद्ध सत्तारसीने उल्लासे एटले शुद्ध कहतां निर्मल अने सत्तारसी कहतां आत्मसत्ताना रसिया, एहवा साधु मुनिराज तेहने उल्लासे देवचंदै रची आत्मगीता. एटले www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मगीता. दवचंद्र गी गीतार्थ मुनीये आत्मगीता कहता आत्मगीत रूप शिझाय प्रते, रचि कहतां रचना प्रते करी. ते रचना कहने अर्थे करी? तोके, आत्मरमी मुनि सु प्रतीता. एटले आत्मरमणी कहतां जणे पाताना आत्मस्वरूपने विषे रमण प्रते करया छे, एहवा मुणी कहतां जे मुनि अने मुकहतां भली तरह, प्रतीता कहतां नेहने स्वरूपनी परतीत करवाने वास्ते.. ___श्री मारवाड़ मध्ये श्री पाली नगरे श्राविका पाई लाडूने सीखवाने अर्थे हेतु उपदेशने माटे संवत् १८८२ ना अषाढ वदी २ गुरुवारे ए ग्रंथनी बालावबाध रूप रचना प्रते करी ॥ ४९ ॥ संवेगामां जे सरदार । तेहना गुण कहतां www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० अध्यात्मगीता. नहिं पार ॥ समरयां संकट दूरे टले । सेव्यांथी शिव सम्पद् मिले ॥ १॥ जिन उत्तम पद पंकज रूप । तेहने सेवे सुर नर भूप ॥ अमी कुंअर कहे निज रूप । ए अध्यात्म गीतानो स्वरूप ॥ २॥ अल्पबुद्धि में रचना करी । शुद्ध करो पंडित जन मिली। भणे गुणे वलि जे सांभल । तिस घर लक्ष्मी लीला करे ॥ ३ ॥ * समाप्त. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only