________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
स्थापना पुण्य कहतां पुण्य ऐसा अक्षर लिखीने थापवा, ते संग्रह नयनें मते असदभाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो. अने कोई जीव पुण्य रूप करणी करे छे एहवी मर्ति स्थापवी, ते सदभाव स्थापना रूप पुण्य जाणवो २. अने द्रव्यपुण्य कहतां ऊपर थकी अरुचि भावे अणा उपयोगे व्यवहार नयने मते पुण्य रूप करणीनो करवो, ते सर्वे तद्वित् शरीर आश्रय द्रव्य पुण्य जाणवो ३. अने भाव पुणय कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन, कायाये करी एक चित्ते व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पुण्य रूप करणीनो करवो ते सर्वे भाव पुण्य जाणवो ४.
हि उदय भाव रूप पापमा निक्षेपा
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only