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१६० अध्यात्मगीता. लगावे छे. एटले नाम थकी पाप कहतां पाप ऐसो नाम ते नेगम नयने मते त्रगे काल एक रूप पणे वर्ने छ १. अने स्थापना पाप कहतां पाप अक्षर लिखीने स्थापवा ते संग्रह नयने मते असद् भाव स्थापना पाप जाणवो. अने कर्म सत्ताना प्रकृति रूप दलीया, जीवनी सत्ताये लागा छे ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप पाप जाणवो २. अने द्रव्य पाप कहतां उदय भावने जोगे व्यवहार नयने मते ते दलीयांनो उदय थयो ते सर्वे भव शरीर आश्रय उदय भाव रूव द्रव्य पाप जाणको ३ अने भाव पाप कहतां रिजु सूत्र नयने मते मन, वचन कायाये करी व्यवहार नयने मते ऊपर थकी पाप रूप दलीयानो भोगवणो ते सर्वे भाव
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