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अध्यात्मगीता.
ढाल:
यदा निर्विकल्पी थयो शुद्ध ब्रह्म ।
तदा अनुभवै शुद्ध आनंद शर्म ॥ भेद रत्न त्रयी तीक्ष्णतायै । अभेद रत्न त्रयी में समाये ॥ ३५ ॥
अर्थ :-- एटले यदा निर्विकल्पी थयो शुद्ध ब्रह्म. एटले यदा कहतां जिवारे अने निर्विकल्पी यो कहतां एहवी रोते चलाचल परणाम रूप विकल्प गुं रहित जीव थावै. अने एहवी रीते विकल्प मुं रहित जीव थावे त्यारे, शुद्ध ब्रह्म. एटले शुद्ध ब्रह्म कहतां ते जीव शुद्ध पूर्ण ब्रह्म रूप निर्मलानन्द एवो पोतानो पढ़ मतें प्रगट करे. अने एहवी
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SURREKON
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