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१०८ अध्यात्मगीता. रीते पोतानो पद प्रते प्रगट करे त्यारे, तदा अनुभवे शुद्ध आनन्द शर्म. एटल तदा कहता तिवारे अने अनुभवे कहतां भागवे. त्यारे शिष्य कहे-श्यूं भोगरे ? तोके, शुद्ध आनंद शर्म. एटले शुद्ध कहतां निर्मल; विभाव दशा रूप उपाधि थकी रहित, अने आनंद कहतां एहवी रीते आनन्दमयी, अने शर्म कहतां एहवो पोतानो मूल घर प्रते भोगवे. अने एहवी रीते पोतानो मल घर प्रते केम भोगवे ? भेद रत्नत्रयी तीक्ष्णताये, अभेद रत्नत्रयीम समाय. एटले भेद कहतां जुदी २ अने रत्नत्रयी कहता ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप जे रत्न त्रयी. अन तीक्ष्णता कहतां तेहने विपे तानसा रूप एकाग्रतापणे
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