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अध्यात्मगीता.
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एटले क्षेत्रथकी कहेतां जीवने स्वक्षेत्र रूप असंखप्रदेशी कहिये. अने विशुद्ध कहेतां शुद्ध निर्मलपणे करी जाणवो. द्रव्यथी स्वगुण पर्याय पिंड. एटले द्रव्य थकी कहेतां जीव द्रउपने स्वगुणने स्वपर्याय तेहनोज पिंड कहिये. नित्य एकत्व सहजी अखंड. एटले नित्य कतां भाव की जीव सदा काल शास्वतो नित्य वर्ते छे. अने एकत्व पणे वर्ते छे. अने सहजी अखंड कहेतां सहज थकी जीव अखंड छे, कोईनो छेद्यो छेदाय नहीं, भेद्यो भेदाय नहीं, निर्लेप अखंड सदा काल शास्वतो छे
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चालः---
रुजु सूये विकल्प परिणामी जीव
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