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आगमसार,
पोशहने पारणे अथवा सदा सर्वदा साधुने तथा जैनधर्मिश्रावकने पोतानी शक्ति प्रमाणे दान देवं ते व्यवहार अतिथिसंविभाग कहियें अने पोताना जीवने अथवा शिष्यने ज्ञाननुं दान ते भगवं भणाववुं, सुणवुं सुणाववुं, ते निश्चयथी अतिथिसंभाग व्रत कहियें एटले श्रावकना बार व्रत कहां ते समकित सहित जे निश्चय तथा व्यवहारथी बार व्रत धारे ते जीवने पांचमे गुणठाणे देशविरति श्रावक कहिये. देश केहतां देशथकी थोडीशी व्रतिपण छे माटे अने यतिने सर्वथी व्रतिपणो छे तेथी पांच महाव्रत छे. साधुने पांच महाव्रतमां सर्व व्रत आव्यां. ए निश्चय त्यागरूप ज्ञान ध्यान संवर निर्जरामां थिरताना परि
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