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गुणस्थानक विचार.
थको मोक्ष सुखनो अभिलाप करे पण आलंवन विना कार्य नीपजत्रो दुकर छे तेथी प्रथम देवतत्र श्री वीतराग अनंत ज्ञानमय अनंत-दर्शनमय शुद्ध स्वरूपी आत्म ऋद्धिभोगी आत्मालंबी आत्मपरणामी जेहने अवलंबीने अनंता जीव अव्याबाध सुख बरे ते देवतत्व तेहने सेववे सर्व जीव संसारभयथी छुटे तथा निग्रंथपंच महाव्रतधारी संवरस्वरूपी एक निर्मल मोक्षमार्गने विषे जेहनी दृष्टि छे, शरीर इंद्रीय, कपाय, योगनी प्रवृत्तिजीपता मुनिराज अतीतकाल विषय संभालता नथी, वर्त्तमान विषयमा रमता नथी, अनागतकाल विषयनी आसा नथी, पोताना अनंतगुणपर्याय निर्मल करवाने उत्कृष्ट उद्यमवंत छे ते साधु महात्मा
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