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अध्यात्मगीता.
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निज सत्ता जोतो इहतो धर्म. एटले शब्द नयने मते निज सत्ता केहतां पोतानी आत्म सत्ताने जोतो, अने इहतो धर्म केहता ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंतो धर्म पोतानी आहम सत्ताने त्रिषे रयो छे तेहनी प्रगट करवानी इहा ( इच्छा ) करतो. शुद्ध अरूपी चेतन अणग्रहतो नव कर्म. एटले शुद्ध कहतां निर्मल कर्मरूप मलथकी रहित, अने अरूपी कहतां पुद्गलादि विभाव दशाना रूप थकी रहित, अने चेतन कहतां ज्ञानादि चेतना रूप लक्षण करीने सहित, अणग्रहतो नव कर्म. एटले अग्रहतो नव कर्म कहतां जे समय जे जीवनो एवो उपयोग व ते जीवनें नवा कर्मनो ग्र हण न जाणवो ॥ ८ ॥
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