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अध्यात्मगीता.
आथड़े ( भ्रमण करे ) त्यारे शिष्य कहे केम आथड़े ? ॥ १३ ॥
चाल:आत्म गुण आवणे न ग्रहे आत्म धर्म । ग्राहक शक्ति प्रयोगे जोडे सर्म ॥ पर लाभे पर भोग ने योगे थाये पर करि । एह अनादि प्रवर्ते वाधे पर विस्तार ॥ १४ ॥
अर्थः-एटले आत्म गुण आवर्णे न ग्रहे आत्म धर्म. एटले आत्म गुण कहतां एहवी रीते पोताना आत्मगुणने कर्म रूप आवर्ण प्रते लाग्यो, त्यारे न ग्रहे आत्म धर्म.
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