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अध्यात्मगीता. विपाकी प्रकृति भोगवे दल विखरे. एटले विपाकी कहतां शुभाशुभ प्रकृति रूप विपाक ना दलीया जीवनी सत्ताये रह्या छे, ते उदे आवे ते भोगवी ने विखेर कहतां खेरवे. अने तेहने विषे परिणाम रूप मननी चिकासे करी नवा कर्मना बंध प्रते बांधे, अने एहवी रीते नवा कर्मना बंध प्रते बांध्या त्यारे. कर्म उदय उदयता स्वगुण रोके. एटले कर्म उदय कहतां एहवी रीते ते कर्म ने उदय करी ने स्व कहतां पोताना गुण तेहनें रोके कहतां ढाके, अने एहवी रीते पोताना गुण ने ढोके त्यारे गुण विना जीव भवोभव ढोके. एटले गुण विना कहतां गुण विनानो जीव निर्गुणी थयो त्यारे भवोभव ने विष ढोके कहतां
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