________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
एटले न ग्रहे आत्म धर्म कहतां ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि अनंतो धर्म आत्माने विषे रह्यो छे, तेहनो ग्रहण प्रते न करे अने एहवी रीते आत्मगुणनो ग्रहण प्रतें न करे त्यारे, ग्राहक शक्ति प्रयोगे जोड़े पुद्गल सर्म, एटले ग्राहक शक्ति कहतां आत्मानी ग्राहकता रूप जे शक्ति, अने प्रयोगे कहतां तेणे करीने जोड़े पुद्गल सर्म. एटले जोड़े पुद्गल सर्म कहतां कर्मरूप पुद्गलना खंध प्रते जोड़वा मांड्या, अने एहवी रीते कर्मरूप पुद्गगलना खंध प्रते जोड़वा मांड्या त्यारे, परलाभे परभोगने जोग थाये पर कर्त्तार. एटले परलाभे कहतां शुभाशुभ रूप पर पुद्गलना लाभ मिल्या तेहने विष लाभ पणो मान्यो १ अने
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only