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अध्यात्मगीता.
योग जेहनो वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तोके चरणानंदी एटले चरणानंदी कहतां चारित्रने विषे सदा काल निरंतर पणे जेहनो आनंद पणो वर्ते छ; अने कर गुरु रंग. एटले कर गुरु रंग कहतां जो एहवा गुरुनिहारे रंग लगावीयै तो संसार समुद्रनो पार प्रते पामीये. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तो के आत्मतत्वालंबी रमता आत्म राम. एटले आत्म तत्वालंबी कहतां सदा काल निरंतर पणे जे पोताना आत्म स्वरूपना आलंबनने विष वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? तोके रमता आत्म राम. एटले रमता आत्मराम कहतां सदाकाल निरंतर पणे जे पोताना आत्म स्वरूपने विषे रमण प्रते करे छे. वली
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