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अध्यात्मगीता.
सद्गुरु केहवा छे ? तो के शुद्ध स्वरूपने विषे भोगे जोगे जसु विश्राम. एटले शुद्ध कहतां जे निर्मल कर्म रूप मल थको रहित एहवो पोतानो स्वरूप, अने भोगे कहतां तेहना भोगने विपे अने जोगे कहतां मन वचन कायाना जोगनो विश्राम पणो वर्ते छे. अने वली सद्गुरु केहवा छे ? ॥ १८ ॥
हाल:सद्गुरु जोगथी बहुल जीव। कोइ क्लो सहजथि थइ सजीव ॥ आत्म शक्ति करी गंठिभेदो । भेद ज्ञानो थयो आत्म वेदो ॥ १९ ॥
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