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५० अध्यात्मगीता.
अर्थः-एटले बहुल कहतां घगा जीव एहवी रीते सद्गुरुना जोग मिल्या थकी सम्यकत्वनी प्राप्ति पते पामे, अने कोई वली सहजथि थइ सजीव. एटले कोइक जीव सहज थकी सजीव थइने चार प्रत्येक बुद्धनी परे पिण समकित पामे. पिण आत्मशक्ति करी गंठी भेदी. एटले जिहां गंठी भेद करवो तिहां तो पोताना आत्मानी शक्तिये अपूर्व करण रूप वीर्ये करीने जो गंठीने भेदीये तो समकितनी प्राप्ति प्रते पामीये, अने एहवी रीते समकितनी प्राप्ति प्रते पाम्यो त्यारे. भेद ज्ञानी थयो आत्मकही. एटले भेदज्ञानी कहतां जीव अजोलनी ओलखाणे, स्व परनी बैंचन रूप ते जीवने भेदज्ञान प्रगटे, अने एहवी
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